मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-2

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मेरी सेक्सी एडल्ट स्टोरी के पहले भाग मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-1 में अपने पढ़ा कि मेरे घर के बुजुर्ग नौकर छुट्टी पर गए तो अपने भतीजे को काम करने के लिए छोड़ गए. एक दिन मेरी बहन ने आना था, मैं बाजार गयी, बाजार से लौटी तो मुझे सिसकारियों की सी आवाज सुनायी दी. अब आगे:

मैं अपने बेड रूम के सामने ही खड़ी थी। मैंने रूम के अंदर जाकर रूम का दरवाजा हल्के से लगा दिया। अंदर जाते ही मैंने सलवार कमीज उतार दी। मैं ब्रा और पैंटी में ही आईने के सामने खड़ी हो कर अपने आप को निहारने लगी। “अहह..क्या सही फिगर है मेरी… पर सीमा जितनी अच्छी नहीं है ना!” मैं फिर नेगेटिव सोच रही थी.

“कितनी गीली हो गई हूँ मैं, इससे पहले मैं कभी दिन में गीली नहीं हुई थी, मगर उनके शब्दों ने और सिसकारियों ने मुझे पूरा पिंघला दिया, मेरी पैंटी भी पूरी तरह से मेरी चुत से चिपकी हुई है और उसमें दिख रही है मेरी चुत की दरार… अहह…” उस दरार पर हल्के से मेरी उंगली मैंने फिराई तो मेरे पूरे शरीर पर रोंगटे खड़े हो गए।

मैंने हाथ पीछे ले जाते हुए मेरी ब्रा का हुक निकाल कर ब्रा निकाल दी। मेरे कोमल मुलायम स्तन पूरे रोगटों से भरे हुए थे। मेरे निप्पल भी अब कड़े हो गए थे। मैंने उनको अपनी उंगलियों में पकड़ कर दबा दिए। मेरे मुख से ‘आsssहह…’ सीत्कार बाहर निकली। मैंने अपने स्तनों को मेरे हाथो से पकड़ कर दबाया, मेरे मन में खयाल आया- ऐसे ही राजेश ने सीमा के स्तनों को दबाया होगा, ऐसे ही! मैंने खुद ही अपने स्तनों को सहलाया और खुद ही मुस्कुराई, आगे के विचार मुझे उत्तेजना के शिखर पर पहुँचा रही थी।

“ऐसे ही दबाता होगा ना वो सीमा के स्तन, पर उसके स्तन मेरे स्तनों से ज्यादा कड़क होंगे क्या? न जाने पर उसके मर्दाना हाठों में उसके स्तन पूरे नहीं समा सकते, ऐसे ही छुआ होगा उसने सीमा के निप्पलों को!” ये सोचते हुए मैं अपने निप्पल पर उंगलियाँ फिराने लगी। “ऐसे ही उसने अपनी उंगलियाँ उसके पेट पर घुमाई होंगी.” कहकर मैंने अपनी उंगलियाँ मेरे पेट पर घुमाते हुए मेरी चुत पर ले गयी और ‘सीssssह’ मैंने अपनी टांगें भींचते हुए चुत पर दबा दी। मैं अब अपनी आंखें बंद करके कामुकता के शिखर पर पहुँच रही थी। “दीदी… दीदी… मैं आ गयी, कहाँ हो तुम?” जैसे ही सीमा का आवाज आई, मैं झट से बाथरूम में चली गयी।

अंदर जाकर मैंने शावर लिया और अपने बदन को तौलिये से पौंछने लगी।

तभी दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। “कौन है…?” मैंने पूछा। “मैं सीमा..” जवाब आया। “दो मिनट रुको, मैं चेंज कर रही हूँ.” मैं बोली.

“क्या दीदी, मुझसे क्या शर्माना, दरवाजा खोलो ना… मुझे तुम्हें देखना है.” वह बोली। “बकवास बंद करो सीमा!” मैंने गाउन पहना और दरवाजा खोला।

दरवाजा खोलते ही सीमा सीधी अंदर आ गयी और मुझे गले लगा लिया- दीदी, कितने दिन बाद मिल रही हो! तभी राजेश ने दरवाजा खटखटाया- मेमसाब यह लो शरबत! ऐसा बोलकर उसने शरबत का ग्लास टेबल पर रखा।

“राजेश कहाँ गए थे तुम?” मैंने पूछा। “मेमसाब… वो… वो…” अचानक मेरे सवाल की वजह से वह थोड़ा घबराया, पर उसकी नजर सीमा पर ही थी। “क्या वो… वो… कब से आई हूं मैं… पर तुम्हारा कोई पता ही नहीं?” मैंने जरा चिल्लाते हुए कहा। “मेमसाब, चावल… वो चावल लेने गए थे!” वह बोला. “चावल, चावल तो हैं ना घर में!” मैं बोली। “हाँ… पर बासमती नहीं है… बिरयानी बनाने की सोच रहा था, ये मेमसाब भी आई हैं ना!” सीमा की तरफ देखते हुए राजेश बोला। “अच्छा.. अच्छा… जाओ कुछ नाश्ता बनाओ.” मैं बोली।

“क्या बनाऊँ मेमसाब?” वह बोला. सीमा बोली- समोसा चाट बनाओ, तुम्हारा अच्छा होता है. अचानक सीमा बोली तो मैंने चौंक कर सीमा की तरफ देखा, तब तक उसने अपनी जीभ दांतों तले दबा भी दी थी। “तुम को कैसे पता?” मैंने पूछा। “अरे… नहीं… नार्थ में ऐसी ही चीजें होती हैं ना…” वह नजर चुराते हुए बोली।

“हाँ तो लाओ ना… और दो घंटे तक हमे डिस्टर्ब मत करो, कुछ लगेगा तो बोल देंगे!” “जी मेमसाब!” वह बोलकर चला गया।

उसके जाने के बाद मैंने दरवाजा बंद कर दिया, तब तक सीमा बेड पर बैठ गयी थी। दरवाजा बंद कर के मैं सीमा के पास आई और उसे पूछा- सच बोल सीमा, तू इसको पहचानती है क्या? “नहीं दीदी, मैं कैसे पहचानूँगी इसे?” उसने तो सरासर इन्कार कर दिया।

“सीमा, बताती हो कि नहीं?” मैंने ग़ुस्से से बोली तो वह भी ग़ुस्से से बोली- दीदी, जो भी कहना है, साफ साफ कहो! “मुझे बस इतना ही कहना है कि जो कुछ भी है सच बोल, क्या चल रहा है तुम्हारा?” मैं बोली। “क्या चल है मेरा?” उसने उल्टा मुझे ही सवाल किया। “मैंने आज सब अपनी आँखों से देखा है.” मैं बोली. तो वो अटकते हुए बोली- यह कैसे मुमकिन है, दरवाजा तो बंद था! बोलने के बाद उसे अहसास हुआ उसने फट से जीभ अपने दांतों तले दबा दी।

“पकड़ी गई न… अब बताओ तुम्हारे और राजेश की बीच में क्या चल रहा है?” मैंने पूछा। मैंने उसे पकड़ा जरूर था पर उसपे गुस्सा होने के बजाय उसके मुंह से उसकी कहानी सुनने में ज्यादा रस था। मेरे दिमाग से चुत ज्यादा उत्सुक थी। उनकी बातें अभी भी मुझे याद आने लगी थी। मेरी चुत भी अब गीली होने लगी थी।

“बताती हूँ!” बोलकर उसने कहानी सुनानी चालू कर दी।

“दीदी, तुम्हें तो पता है, राकेश हमेशा टूर पर रहते हैं। मैं भी तुम्हारी तरह घर में अकेली रहती हूं, मुझे भी घर खाने को दौड़ता है। पिछले साल हमारे घर का नौकर काम छोड़ कर चला गया। मैं नौकरानी रखने के बारे में सोच रही थी पर नौकरानी मिलना शहर में बहुत ही मुश्किल है। मिल भी गयी तो भी काम उसके हिसाब से होगा। और फिर चौबीस घंटे काम करने वाली नौकरानी मिलना भी बहुत मुश्किल काम है। तो फिर से नौकर रखने का सोचा, तब उसके बारे में तुमसे बात भी की थी.” “हाँ तुम बोली तो थी, तब मैंने बद्री चाचा से बात भी की थी.” मैं बोली।

“वही तो, तभी बद्री चाचा ने राजेश को हमारे घर भेजा। राजेश भी घर के सारे काम पूरा मन लगाकर करता। और वह ईमानदार भी है। मुझे सारा घर खाने को दौड़ता। तुम्हें तो पता ही है कि मैं कितनी बिंदास स्टाइल की हूँ। पिछली होली को ही इसकी शुरुआत हुई। पिछले साल हमारा पूरा कॉलेज का ग्रुप होली खेलने का प्लान बना रहा था। हम सब घर से कहीं बाहर जाकर होली खेलने वाले थे पर ऐन मौके पे तीनों लड़कों ने प्लान कैंसिल कर दिया, तो हम चारों लड़कियाँ ही बची। अब लड़कियाँ कहाँ बाहर जाएंगी तो हम सब ने मेरे घर पर होली सेलिब्रेट करने की सोची। प्लान के नुसार हम सब सुबह नौ बजे मेरे घर पर मिले। मैंने और राजेश ने पहले ही पूरी तैयारी कर ली थी।

वे तीनों मतलब रंजू, राखी, चेतना। उनको तो तुम पहचानती ही हो, वो सब भी मेरी तरह बोल्ड हैं। वे तीनों मेरे घर पर आई। राजेश ने पराँठे बनाये थे, हम सबने भरपेट खाना खाया, फिर बाहर गार्डन में आकर के होली खेली। हम चारों लड़कियाँ पूरी तरह से भीग चुकी थी।

फिर मैंने राजेश से टॉवल मंगवाया और सिर को और बदन को पौंछ कर घर में आ गयी। घर में आ कर सब बारी बारी नहायी और कपड़े चेंज किये। अब फिर सब को ज़ोरों से भूख लगी थी।

तभी रंजू बोली- सीमा, ड्रिंक्स है क्या तुम्हारे पास? “क्यों, आज अचानक?” मैंने पूछा। “ऐसे ही मूड है.” उसने बोला। “नहीं यार… आज नहीं है, लेकिन अक्सर मेरे घर में होती है हर बार। मैं और राकेश पीते हैं साथ में!” मैंने बताया। “हम्म…तो फिर जाने दो.” कहकर वह बैड पर बैठ गयी.

तभी दरवाजा बजा। “कौन है?” मैंने पूछा। “मैं हूँ… राजेश… खाना लाया हूँ.” वह बाहर से बोला। “ओके ओके… अंदर आ जाओ.” राजू अंदर आ गया और टेबल पर सब सामान रखने लगा।

“राजू तुम नहीं गए कहीं होली खेलने?” राखी ने पूछा। “नही… शाम को खेलूंगा.” वह बोला। “शाम को… तुम्हारे यहाँ तो होली बहुत धूमधाम से मनाते हैं.” चेतना बोली। “जी मेमसाब सबसे बड़ी होली तो हमारे गांव में ही मनाते है, एक दूजे को रंग लगाकर… थोड़ी भंगवा पी कर। बहुत मजा आता है.” राजेश जोश में सब बोलने लगा।

“भंगवा??” चेतना ने पूछा। हम तीनों को भी समझ में नहीं आया था तो हम भी ध्यान से सुनने लगी। “भंगवा… उससे एक नशे वाला शर्बत बनता है.” वह बोला। नशे का नाम सुनते ही रंजू बोली- काश यहाँ भी नशे वाली शर्बत होती! हम तीनों भी हंसने लगी।

“आपको चाहिए क्या?” राजेश बोला. रंजू मूड में आ गयी- है क्या तुम्हारे पास? रंजू ने पूछा। “हाँ, भांग तो हमेशा ही मेरे पास रहती है.” राजू बोला।

“तो गर्ल्स ट्राय करें?” रंजू ने पूछा. हमें भी कुछ नया चाहिए ही था तो सबने हाँ कर दी। “चलेगा राजू हमें दे दो न टेस्ट!” रंजू बोली। “अभी बना के लाते हैं.” राजू बोला. “खाइके पान बनारस वाला…” गाना गाते गाते नीचे चला गया।

“बढ़िया है तुम्हारा नौकर.” रंजू बोली। “इससे भी बढ़िया है.” चेतना बोली। “कौन?” हम तीनों ने उसकी तरफ देखा तो वह घबरा गई। “नहीं… कोई नहीं” वह बोली। “कौन? कौन?” रंजू उसे चिढ़ाती हुई बोली। “नही…कोई नहीं” चेतना इधर उधर देखते हुए बोली।

“तुम्हारा नौकर… क्या नाम है उसका?” राखी कुछ सोचते हुए बोली। “कौन… दामोदर?” रंजू ने चेतना को चिकोटी काटते हुए पूछा। “हाँ याररर… क्या मस्त है ना!” अब राखी लगी चेतना की टांग खींचने लगी। “हाँ यार… उसका वो ना बहुत बढ़िया है… और मजबूत है.” चेतना भी उनके झांसे में आकर सब बताने लगी। “तुम्हें कैसे मालूम?” रंजू बोली। “वो एकदिन खुले में नहा रहा था ना… तब देखा.” चेतना बोली। “नंगा ही नहा रहा था क्या?” रंजू ने पूछा। “नहीं यार… नंगा कैसे नहाएगा… पर उसका टॉवल खुल गया और मुझे दिखा उसका… मूसल!” चेतना शर्माते हुए बोली.

“तो फिर लिया या नहीं चुत में?” रंजू ने पूछा। “हाँ लिया ना… एक बार… बहुत मजा आया था…” चेतना सब याद करते हुए बोली। “पर मैं शर्त लगाकर कहती हूं कि राजू का उससे भी बड़ा होगा.” राखी को क्या सूझी क्या पता। “चुप करो, राजू को बीच में मत लाओ.” मैं डांटते हुए बोली। “क्यों… सीमा को बुरा लगा?” रंजू मुझे चिकोटी काटते हुए बोली। “वैसे कुछ नहीं… क्यों बेचारे को…” मैं बोल ही रही थी. कि राखी बीच में बोली- तुमने भी उसे चढ़ा लिया है क्या? “कुछ भी बोलती हो…” मैं थोड़ा शर्माते हुए बोली। “कुछ भी क्या… मन हुआ तो करने का… और वैसे ही तुम्हें बहुत जरूरत है… दिन ब दिन तुम बहुत बोर होती जा रही हो!” रंजू मुझे चिढ़ाती हुई बोली.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मेरी एडल्ट स्टोरी जारी रहेगी. [email protected]

कहानी का अगला भाग: मेरा नौकर राजू और मेरी बहन-3

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