मेरा नौकर राजू और मैं-1

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

मेरी पिछली कहानी मेरा नौकर राजू और मेरी बहन आपने पढ़ी, पसंद की, मुझे मेल किये, धन्यवाद. अब मैं उससे आगे की कहानी लिख रही हूँ. पढ़ कर मजा लें!

हम औरतें अपनी यौन भूख पर बहुत नियंत्रण रखती हैं, पर कभी कभी हम भी मजबूर हो जाती हैं। कुछ ऐसा ही मेरी बहन सीमा के साथ हुआ। इसलिए मैं उसको दोषी नहीं मान रही थी। सेक्स की कमी मुझसे ज्यादा कौन समझ सकता है। पर सीमा ने मुझे अंदर तक कुरेद दिया था। मैं सेक्स की कमी को हमेशा ही नजर अंदाज करती रही थी। शर्म की वजह से या और कुछ, पर मैंने कभी इसके बारे में ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। पर अब अपनी छोटी बहन की चुदास भरी बातें सुनकर मेरे अंदर वह भूख फिर से उभरने लगी थी। पर डर भी लग रहा था कि सीमा की तरह मेरे बारे में अगर नितिन को पता चल गया तो वह मुझे जान से मार देगा।

जिस तरह सीमा कंफ्यूज थी पहली बार करते वक्त… उसी तरह मैं भी कंफ्यूज थी, सोच सोच कर मेरा दिमाग चकराने लगा था।

मैं बाथरूम गयी और शावर लेने लगी, ऊपर से बरस रही ठंडे पानी की धारों में मेरा मन भी शांत हो जाये यही एक इच्छा थी पर वो शांत नहीं हो रहा था। लगभग दस मिनट मैं पूरे कपड़ों में शावर के नीचे खड़ी रही। कुछ समय बाद शांति मिली तो मैंने अपने कपड़े उतार दिए, चुत में उंगली डाल कर देखा तो वह भी पानी पानी हो गयी थी। फिर मैं ठीक से नहाई, तौलिये से अपना नंगा बदन को सुखाने के बाद आईने में खुद की देखने लगी।

“कितना अन्याय कर रही थी मैं अपने बदन पर! मुझे नितिन से उसके बारे में बात करनी होगी, उसे मेरी जरूरतों के बारे में बताना होगा!” फिर से उन्ही विचारों ने मेरे दिमाग पर कब्जा कर दिया।

“मेमसाब, खाना लगा दूँ क्या?” रूम के बाहर से राजू की आवाज आई, वैसे ही मैं होश में आई। “हा लगा दो.” मैं बोली तो वह नीचे चला गया, मैंने नाईटी पहन ली। अंदर कुछ पहनने की इच्छा नहीं हो रही थी, वैसे भी बहुत गर्मी थी।

मैं नीचे जाकर खाना खाने लगी, राजू मेरे सामने नहीं आ रहा था, शायद वह डर गया था कि दोपहर की बात मुझे पता न चल जाये।

मैंने खाना खत्म किया और ऊपर जाकर बैड पर सो गई, दिमाग में फिर भी वही ख्याल बार बार आ रहे थे… पर क्या करूँ… कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सोचते सोचते कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता नहीं चला।

अचानक दरवाजे पे दस्तक हुई, मैं उठ गई। नींद अभी पूरी नहीं हुई थी, मैं अंगड़ाई लेते हुए बेड से उतरी और दरवाजा खोला। बाहर का नजारा देखा तो मैं शॉक हो गयी, बाहर राजू खड़ा था, एकदम नंगा। राजू का पूरा शरीर उसका विशाल लंड मेरी तरफ देख रहा था। उसका कसरती बदन बिल्कुल सीमा ने बोला था वैसे ही था, उसका लंड भी वैसा ही था काला मूसल, उसके ऊपर गुलाबी सुपारी।

गुलाबी… पर सीमा ने तो चॉकलेटी बोली थी, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। मैं शॉक में वैसी ही खड़ी रही।

उसने मुझे एक धक्का दिया, उस धक्के से मैं पीछे सरक गई। वह एक हाथ से उसका विशाल लंड पर मुठ मारते हुए और राक्षसी स्माइल देते हुए मुझे पीछे धकेलने लगा। मैं कुछ भी प्रतिकार नहीं कर सकती थी, उसकी राक्षसी मुस्कान देखकर पीछे पीछे हट रही थी।

अचानक मेरे पैर बेड के पास आ कर रुक गए और उसके एक और धक्के से मैं बेड पर बैठ गई। उसका लंड बिल्कुल मेरे सामने था, उस काले विशाल लंड पर वह मुठ मार रहा रहा। राक्षसी हँसी हँसते हुए मुझे वह सब दिखा रहा था।

मैं होश में आई और उसको पूछा- यह क्या कर रहे हो राजू? “कुछ नाही मेमसाब, ईह है ना, बहुत जालिम है, एकदम से गरम हुई गवा, अभी तनिक ठंडा करना है.” मेरी तरफ देख कर हंसते हुए बोला। “तुम जाओ यहाँ से!” मैं बोली। “नहीं मेमसाब तनिक इसे ठंडा तो कराई दो!” वह अपना लंड आगे लाते हुए बोला। “नहीं राजू, तुम जाओ यहाँ से!” मैंने उसे दूर धकेलते हुए बोला।

“आईसा का करत हो मेमसाब… जरा सी ठंडक तो मांगत है.” कहकर वह फिर से मेरे सामने खड़ा हो गया। अपना लंड मेरे होठों पर घिसते हुए वह फिर से हँसने लगा। “आहहह…” मैं चिल्लाई, जलती भट्टी में से निकले लोहे की रॉड की तरह वह गरम था। मेरे होंठ अब जलने लगे थे। “जल गए मेरे होंठ!” मैं बोली। “हाँ तभी तो बोले हैं, ईह कमीना बोहुत गरम हुई गवा है, तनिक ठंडा कराई दो!” कहकर वह फिर से अपना लंड मेरे होंठों पर घिसने लगा। “नहीं राजू तुम जाओ यहाँ से” मैंने उसके लंड को अपने हाथों से दूर धकेलते हुए बोला।

“अरे जानेमन, तनिक ठंडक तो देई दो, तोहार जवानी बड़ी मस्त मस्त है…” ऐसा कह के वह फिर से अपना लंड मेरे होठों पे घुमाने लगा और एक हाथ से मेरा स्तन दबाने लगा, दबाने नहीं पूरा मसलने लगा। “नहीं राजू!” मैं रोते हुए बोली। “का नही… अरे मेमसाब… ईह ससुरा तो तोहार गुलाम होना चाहत है, और तुम हो कि…” वह आगे कुछ बोले उसके पहले मैं वहाँ से उठी। “राजू, अब तुम जाओ यहाँ से!” मैंने उसे बाजू से धकेला। मेरा शरीर तो कह रहा था कि राजू की बात मान ले… लेकिन दिमाग उचित अनुचित के फेर में पड़ा हुआ था.

उसने फिर से मेरे पास आते हुए मुझे धक्का दिया और मुझे बेड पर बिठा दिया- तू ऐसे नहीं मानेगी… तोहार बहन तो गुलाम है इसकी… साली छिनाल रांड, अब तू भी उसकी गुलाम बन… चल ठंडा कर दे इसको!” ऐसा बोलकर उसने मेरे गाल पंजे में पकड़े और ज़ोरों से दबा दिए। मेरे होंठ खुल गए थे, मेरा प्रतिकार अब मेरी वासना की वजह से कम हो गया था।

उसने मेरे होठों के अंदर दबा दिया, और घपाघप मेरे होंठ चोदने लगा। उसके लंड की गर्मी अब कम हो रही थी पर मेरे होंठ जलने लगे थे। वह दूसरे हाथ से मेरे स्तन को बेरहमी से मसल रहा था। दर्द के कारण मेरे आँखों से आंसू बहने लगे थे, पर उसको उसकी परवाह नहीं थी। वह मजे से मेरे होठों को चोद रहा था, राक्षसी हँसी हंसते हुए सिसकारियाँ भर रहा था। “अब कैसा लग रहा है… तोहार बहन तो गुलाम है इसकी. अब तू भी बन जा… तुझे भी बहुत खुश रखेगा यह कमीना… तोहार कमीनी चुत भी तो चाही इसे… साली अब तो रांड बन जा इसकी… पियार से बोला था ठंडा कराय दे इसे… तो नहीं बोलत है, साली छिनाल!” वह गचा गच मेरे मुँह को चोद रहा था।

अचानक उसने अपना लंड बाहर निकाला और अपने हाथ से हिलाते हुए अपना पूरा काम रस बाहर निकाला, पूरा मेरे चेहरे पर… मैं उसे अपने हाथ से पौंछने लगी और वह कमरे के बाहर चला गया और जाते वक्त बोला कल तोहार चुत में… मजा आवेगा! राक्षसी हँसी हंसते हुए वह नीचे चला गया।

मैं उसका वीर्य अपने चेहरे से पौंछ रही थी कि दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी और मेरी आँख खुल गयी। “ओह नो… वह सपना था!” मन में ख्याल आया, नींद पूरी उड़ गई थी।

मैंने आईने में खुद को देखा तो चेहरे पर कुछ भी नहीं था, हाथ फिराया तो चिपचिपापन भी नहीं था। मैं वैसे ही दरवाजे के पास गई और आवाज दी- कौन है? “मेमसाब मैं हूँ राजू, चाय तैयार है!” राजू की बाहर से आवाज आ रही थी। घड़ी में देखा तो रात के नौ बजे थे।

“ठीक है नीचे ही रख दो, मैं तैयार हो कर आती हूँ” मैंने उसे बताया और बाथरूम चली गयी। फ्रेश होकर बाहर आई, सपने में जो देखा वही आँखों के सामने आ रहा था। पहले तो राजू का डर लगने लगा था, पर सपना है पता चलने के बाद मेरी जान में जान आयी। मैं नीचे चली गयी और चाय पीने लगी तभी राजू बोला- मेमसाब आज कुछ स्वीट बनाता हूँ. “हाँ राजू कुछ स्वीट ही बनाओ!” उसे इतना ही कह कर मैं अपने रूम में गयी।

उस रात मुझे अच्छे से नींद आयी। दूसरे दिन मैं सुबह सात बजे उठी, फ्रेश हो कर नीचे आ गयी। राजू ने चाय नाश्ता बनाकर रखा था। वह मुझे बोला- मेमसाब, आज दोपहर को छुट्टी चाही, रंग खेलने जाना है. “हाँ हाँ… कोई बात नहीं!” मैंने उसे छुट्टी दे दे, वह खुश हुआ और अपना काम करने लगा।

दोपहर को वह मेरे कमरे के बाहर आया और दरवाजा खटखटाया, मैं कुछ सोचते हुए बाल्कनी में खड़ी थी। यह भांग क्या होती है मुझे समझ में नहीं आ रहा था, उसके बारे में मैंने सिर्फ सुना था। पर सीमा की बातें सुनने के बाद पीने का मन भी कर रहा रहा था… पर डर भी लग रहा था, न जाने उसका नशा कैसा होगा।

दरवाजे पे हुई दस्तक सुनकर मैं दरवाजे के पास गई और दरवाजा खोला, बाहर राजू खड़ा था। “मेमसाब हम जावत हैं.” “हाँ हाँ ठीक है.” मैं बोली. “पर जा कहाँ रहे हो?” मैंने उसे पूछा। “भैय्या के घर पर, वहीं सब इकट्ठा हो कर रंग खेलते हैं.” वह बोला।

“अच्छा…” मैं सुनते हुए बोली- तो मेरा एक काम करोगे? मैंने पूछा। “का मेमसाब?” उसने मुझे पूछा। “मुझे सीमा के घर छोड़ दो, और वहीं से तुम चले जाओ.” मैं बोली. “नाही मेमसाब, हम उनके घर के पास में छोड़ सकते हैं पर उनके घर नाही जा सकत हैं.” वह बोला। “हाँ हाँ ठीक है, तुम गाड़ी निकालो, मैं तैयार हो कर आती हूँ.” वह नीचे गाड़ी निकालने चला गया।

मैंने जल्दी से चेंज किया और नीचे आ गयी। राजू गाड़ी निकालकर नीचे ही खड़ा था। मैंने डोर लॉक किया और गाड़ी मैं आ कर बैठ गई। राजू ने गाड़ी चालू की, रास्ते में बहुत सारे बच्चे और लोग रंग खेल रहे थे। “और राजू… कितनी देर होली खेलने का इरादा है?” मैं टाइम पास करने के लिए बोली। “ऐसन है ना मेमसाब, चार छह घंटे तो लग ही जायेंगे!” उसने गाड़ी चलाते हुए जवाब दिया।

“और क्या क्या करते हो तुम?” मैंने पूछा। “वह क्या है ना… अभी जाकर हम भर पेट खाऊंगा… भाबी के हाथ का खाना… फिर भाँगवा पिएंगे फिर होली खेलेंगे…” वह सब बारीकी से बताने लगा। “वाह… फिर तो बहुत मजा आएगा.” मैं बोली। “हाँ बहुत मजा आवत है.” बोलते हुए वो ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली…’ यह गाना गाने लगा।

उसकी बातें सुनकर मुझे उससे जलन होने लगी थी, छोटे छोटे काम करता था लेकिन खुशी क्या है उसे पता थी। और हम इतना पैसा कमाते है ऐश में रहते है फिर भी सुख नहीं। “आना पड़ेगा तुम्हारी होली देखने के लिए!” मैं बोली। “हाँ मेमसाब चलो न, अभी चलेंगी तो भी कोनो दिक्कत नाही, उल्टा भाभीजी ख़ुश ही होंगी!” वह बोला। “नहीं फिर कभी!” मैं बोली।

मेरी कहानी आपको पसंद आ रही है या नहीं? मुझे मेल करके बतायें। मेरा मेल आई डी है [email protected] कहानी जारी रहेगी.

कहानी का अगला भाग: मेरा नौकर राजू और मैं-2

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000