अनजानी दुनिया में अपने-2

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

मेरी हिन्दी कहानी के पहले भाग अनजानी दुनिया में अपने-1 में आपने पढ़ा कि कैसे मैं राजस्थान में जंगली इलाके में फंस गया और कैसे एक मां बेटी ने मेरी जान बचायी. अब आगे:

दिव्या ने मुझे चारपाई पर बैठाया और मेरे लिए चाय बना लायी। उसकी माँ कहीं दिख नहीं रही थी तो जब मैंने उससे पूछा तो पता लगा कि वो दोनों माँ बेटी यहाँ से कुछ किलोमीटर दूर नरेगा में काम करती हैं, वो भी जाती थी लेकिन आज मेरी वजह से नहीं जा पायी। मुझे बहुत ही ज्यादा अफसोस हुआ, मैंने उन लोगों के लिए कुछ करने की सोची।

अब मेरा दर्द बहुत हद तक कम हो चला था, लेकिन कल शाम का ख़ौफ़ अभी भी था, मैंने दिव्या से मेरी जान बचाने का शुक्रिया कहा और नई जिंदगी देने के लिए उसका अहसान माना.

मैंने दिव्या को अपने पास बुलाकर उससे कहा- दिव्या, तुमने मुझे नया जीवन दिया, तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूं. बोलो तुम क्या चाहती हो?

दोस्तो … मेरे इतना कहते ही दिव्या ने आँसू भरी आंखों से भरभरायी आवाज के साथ कहा- हमें यहां से निकाल लो! और मेरे गले से लग गयी।

मैंने भी उसे कस के पकड़ लिया और उससे वादा किया कि जल्द ही उन दोनों को यहाँ से ले जाऊँगा. जब मैंने ऐसा कहा तो उसने प्यार से मेरी तरफ देखा और मेरे गाल पे किस करके भाग गई.

मैं उसके पीछे गया तो वो झोपड़े के पीछे की तरफ खड़ी मुस्कुरा रही थी, मैंने उसे पीछे से जाकर कमर से पकड़ लिया और उसके कंधे पे किस कर लिया, इससे वो शरमा गयी और अपने दोनों हाथों से आँखें बन्द कर ली। मैंने दिव्या के पीछे से उसकी कमर में हाथ डाल के अपने से सटा लिया, मेरा लन्ड खड़ा होकर उसकी गांड के टच हो रहा था, मैंने उसका चेहरा हाथ से घुमा कर उसके कोमल गाल को चूम लिया, वो अचानक से पलट के मेरे सीने से लग गयी और मैंने उसे बांहों में समेट लिया।

थोड़ी देर बाद उसने मेरी आँखों में देखा तो मैं भी उसकी आँखों में देखने लगा, उसने प्यार भरे अंदाज में मुझसे कहा- तुम मुझे अच्छे लगने लगे हो। बदले में मैंने भी कहा- तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगने लगी हो दिव्या। ऐसा कहकर मैंने उसे गोद में उठा लिया और झोपड़ी में ले जाकर बिस्तर पे लेटा दिया।

अब मैं धीरे धीरे उसके ऊपर आ गया और पूरी तरह उसके ऊपर छा गया. उसके कोमल गाल, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ मुझे भा गए, मैंने अपना चेहरा नीचे लाते हुए उसके एक गाल को अपने मुंह में भर लिया और होठों के बीच दबा के चूसने लगा. काफी देर तक चूसने के बाद मैंने ऐसे ही दूसरा गाल चूसा.

अब मैं उसके होंठों की ओर बढ़ने लगा, मैंने आंखें बंद कर ली ताकि उसके होंठों की कोमलता को महसूस कर सकूं। ‘आआह …’ जैसे ही उसके होंठ मेरे होंठों से मिले, मेरे तन बदन में एक अजीब सी ठंडक महसूस हुई और दिव्या का शरीर कांपने लगा. मैंने उसके चेहरे को पकड़ कर उसके होठों को खाना शुरु किया. यह चुम्बन लगभग 5 मिनट लंबा चला होगा, मुझे तो मजा ही आ गया।

उसके बदन की खुशबू मुझे पागल कर रही थी, वो एक जंगल में रहती थी लेकिन फिर भी उसके बदन में गुलाब के फूल जैसी खुशबू आ रही थी, मैंने थोड़ा नीचे होकर उसके गले पे किस किया तो उसने आँखें बंद कर ली और उसके मुंह से ‘ओह्ह’ निकल गयी।

मुझे उसकी वक्षरेखा दिख रही थी, मैंने अपने होंठ उस पर टिका दिए! ‘आआह …’ उसकी त्वचा इतनी कोमल थी जैसे नवजात बच्चे की होती है, साथ ही एक हाथ उसके मम्मे पर रख दिया और धीरे धीरे दबाने लगा.

अब दिव्या के मुँह से अहम्म अहम्म जैसी आवाज निकलने लगी. अचानक मुझे अपने लौड़े पे उसका हाथ महसूस हुआ, वो उसे पकड़ने की कोशिश कर रही थी जो पूरी तरह खड़ा होकर तन चुका था. मैंने एक हाथ नीचे ले जाकर लौड़ा बाहर निकाला और उसके हाथ में दे दिया, दिव्या के मुँह से इससस्सस निकल गया और वो बोल पड़ी- यह तो बहुत गर्म है।

दोस्तो, उसने अपनी आँखें खोलकर मुझसे पूछा- क्या मैं भी इसे चूस सकती हूं जैसे रात को माँ चूस रही थी? मेरे मुंह से निकला क्या? तो वह बोली- मैंने रात को तुम दोनों को देखा था, कैसे मां इसको चूस रही थी और तुम मां की पेशाब वाली जगह को चाट रहे थे।

यह सुन कर मुझे हंसी आ गयी, मुझे उसकी मासूमियत पर प्यार आ गया और मैंने उसके गाल पे किस कर लिया, साथ ही उसे बोला- दिव्या आई लव यू! मुझे गलत न समझना, वो भावनाओं में बहने से हो गया। दिव्या बोली- मैं सब समझती हूं क्योंकि मैं अब बड़ी हो गयी हूँ, माँ के शरीर को भी किसी की जरूरत थी इसलिए हो गया, मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा है।

अचानक कुछ पैरों की आहट सुनाई देने लगी तो हम दोनों अलग हो गये और अपने कपड़े सही किये. उसकी माँ आ चुकी थी, बहुत थकी हारी, गुमसुम सी दिखाई दे रही थी। वो आराम के लिए लेट गयी और मुझसे पूछा- अब कैसे हो? तो मैंने कहा- अब आराम है, मैं ठीक हूँ, अब मुझे चलना चाहिए।

मेरे इतने कहते ही झोपड़ी में सन्नाटा छा गया और दोनों मां बेटी एक दूसरे की ओर देखने लगी। दो ही दिन में मुझे भी उन दोनों से बहुत लगाव हो गया था, खासकर दिव्या से।

उन दोनों की आँखें भर आयी तो मैंने कहा- तुम्हारे बुरे दिन अब खत्म होने वाले हैं, बहुत जल्द तुम दोनों को यहां से ले जाऊंगा, तुम दोनों की जिंदगी को इस तरह बर्बाद नहीं होने दूंगा, तुम लोगों ने जो मुझे जीवन दिया है वो जीवन का एक पल भी तुम लोगों के काम आया तो मुझे खुशी होगी, अब मुझे चलना चाहिए, मैं आऊंगा मेरा इंतजार करना।

इतना कहकर मैं उठ खड़ा हुआ और झोपड़ी से बाहर आ गया, दोनों से अलविदा कहा और चलना शुरू कर दिया, वो दोनों मुझे जाते हुए देखने लगी। कुछ मीटर चलने के बाद मुझे महसूस हुआ कि मैं कुछ भूल रहा हूँ। मैं वापिस आया और मेरी जेब में से पर्स निकाला और उसमें से बस किराये लायक पैसे रखकर सारे दिव्या की मां के हाथों में रख दिये और उससे कहा- मुझे दिव्या से प्यार हो गया है, वादा करता हूँ कि मैं वापस आऊंगा दिव्या को नया जीवन देने के लिए।

इतना कह कर मैं चल पड़ा अपनी राह … अभी बहुत कुछ करना था उस इंसान को नया जीवन देने के लिए जिसने मुझे नया जीवन दिया.

अभी दिन ढलना बाकी था और मुझे पैदल चलना था मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए।

उन दोनों से वादा करके मैं वापिस कोटा आ गया, आफिस में बहुत डांट भी खानी पड़ी क्योंकि मैं उन दोनों के बारे में किसी को नहीं बता सकता था तो कोई बहाना भी नहीं बना पाया लेकिन मैंने सह लिया और अपने काम में फिर से व्यस्त हो गया.

इन बातों को 1 महीना बीत गया, इस दौरान मुझे उन दोनों की बहुत याद आयी और खासकर दिव्या की; उसका वो मासूम सा चेहरा आंखें बंद करते ही मेरे सामने आ जाता। इधर मुझे आफिस से वक़्त नहीं मिल पा रहा था और उधर उन दोनों के लिए तड़प बढ़ती जा रही थी.

फिर एक दिन मैंने आफिस से दो सप्ताह की छुट्टी ले ली और लग गया उन्हें कोटा लाने का प्लान बनाने में।

सबसे पहले मैंने रूम की जगह एक फ्लैट किराये पर ले लिया, जो थोड़ा महंगा तो था लेकिन वहां किसी प्रकार की रुकावट नहीं थी और मेरी जिंदगी बचाने वालों के लिए इतना तो कर ही सकता था. कुछ गद्दे और कम्बल खरीद लिए, मन ही मन खुश भी था क्योंकि 2 चूत मेरे पास आने वाली थी, लन्ड भी खुश था.

अगले दिन मैंने अपने दोस्त की बाइक ली, फिर कुछ कपड़े खरीदे कामिनी और दिव्या के लिए और चल पड़ा उसी अनजानी दुनिया की तरफ।

जंगल में पहुँचने के बाद मुझे वो पगडंडी नहीं मिल रही थी, एक महीने से ऊपर हो गया वहां गए तो रास्ता भी भूल गया. जैसे जैसे वक़्त गुजरता जा रहा था, मेरी खीज भी बढ़ती जा रही थी. लगभग 2 घंटे गुजर गए लेकिन वो पगडंडी नहीं मिल रही थी. अब मेरी आँखों में आंसू आ गए, उनको कैसे ढूंढूं! आखिर मैं वापिस जाने की सोचने लगा; लेकिन मेरा दिल नहीं मान रहा था, वो फिर से मुझे रास्ता ढूंढने को मजबूर कर रहा था.

तो मैंने दिल की मानकर फिर से पगडंडी ढूंढना शुरू किया तो कुछ दूरी पे मुझे एक पगडंडी दिखाई दी, जिधर ढूंढ रहा था उसके उल्टी साइड में। शायद मैं गलत दिशा में था पहले, तो अब मैंने उसी पगडंडी पर बाइक दौड़ा दी, लगभग 15 मिनट बाद मेरी मंजिल मेरे सामने थी।

मैंने झोंपडी के पास जाकर आवाज लगाई तो कोई जवाब नहीं आया, फिर से आवाज लगाई तो भी आवाज नहीं आई. तब मुझे याद आया कि इस समय तो वो दोनों काम पर गयी होंगी, तो मैं वहीं बाइक साइड में लगाकर इंतजार करने लगा.

वक़्त काटना मुश्किल हो रहा था और बेताबी भी बढ़ती जा रही थी, आखिर शाम के 7 बजे के लगभग मुझे लाल कपड़े हिलते नज़र आये, मैं उठ खड़ा हुआ, मैंने उन्हें चोंकाने की सोची तो धीरे से बाइक झोंपड़ी के साइड में करके छुप गया.

वो झोपड़ी के पास आई और उसे खोलकर अंदर जाने लगी, अंदर जाते हुए दिव्या बोल पड़ी- मां, वो आज भी नहीं आया। इतना सुनते ही मैं बाहर आ गया और दिव्या को आवाज लगाई, दोनों ने चौंक कर मुझे देखा और दौड़ कर मेरे से चिपक गयी, दोनों की आंखों से आंसुओं की गंगा बह निकली, मैंने दोनों को अपनी बांहों में भर लिया और मेरी आँखें भी आंसुओं से फूट पड़ी।

कुछ देर बाद हम नार्मल हुए तो अंदर चले गए. मैंने उन दोनों से कहा- तुम लोगों का वनवास अब पूरा हुआ! तो दोनों बहुत खुश हुई, दिव्या तो बहुत चहक रही थी जैसे उसको खजाना मिल गया हो, और उतना ही खुश मैं था।

मैंने अपने बैग में से उन दोनों के लिए कपड़े निकाले और उन दोनों को दे दिए।

बहुत सोच विचार के बाद यह निर्णय हुआ कि वो दोनों यहाँ का कुछ भी साथ नहीं ले जाना चाहती, इसलिए सारे पुराने कपड़े और सामान जला दिए ताकि किसी को कोई सबूत या जानकारी ना मिले। अब उन दोनों को मैंने बाइक पे बैठाया, बीच में दिव्या और पीछे कामिनी।

मैंने साइड मिरर से देखा कि दोनों बहुत खुश हैं, दिव्या मुझसे चिपकी हुई थी उसके चूचे मेरी कमर पर महसूस हो रहे थे, मैंने जरा सा पीछे मुँह किया तो दिव्या ने हंसकर मेरे गाल पे चूम लिया और मैंने भी खुश हो कर बाइक की स्पीड बढ़ा दी।

लगभग 3 घंटे बाद हम लोग कोटा पहुँच चुके थे, दोनों ने काफी समय बाद शहर देखा तो दोनों उत्सुक हो रही थी.

आखिर हम मेरे फ्लैट पर पहुँच गए. मैंने दरवाजा खोला और दोनों को अंदर जाने के लिए बोला, उनके जाने के बाद मैं अंदर आया।

अंदर आते ही दोनों को कुर्सियों पे बैठाया और उनसे मैंने कहा- कामिनी जी और दिव्या, ये घर जितना मेरा है उतना ही तुम्हारा है, अब जैसे चाहे वैसे इस घर में रहो, अब से तुम्हारे बुरे दिन खत्म हो गए हैं। मेरा इतना बोलते ही दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और कामिनी मेरे पैरों में गिर पड़ी, उन्हें उठाया और उन्हें गले से लगाया, साथ ही दिव्या को पास बुलाकर उसे गले से लगाया।

दोस्तो, आज के लिए इतना ही काफी है, आगे की कहानी अगले भाग में लिखूंगा, मुझे पता है मेरी कहानी में सेक्स वाला हिस्सा बहुत कम है लेकिन आप लोग अपना प्यार बनाये रखिये, आगे सब कुछ आएगा।

आप अपने विचार [email protected] पर भेज सकते हैं।

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000