बीवी की सहेली की बेटी

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पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे मैंने अपनी बीवी की विधवा सहेली की तड़प को शान्त किया।

एक बार किसी काम के सिलसिले में दो हफ़्तों के लिए मुझे मुंबई जाना पड़ा और बिना किसी को बताये मैं घर लौट आया। नहा धोकर तरो-ताजा हुआ तो मुझे ना संजना नजर आई और ना ही अंजू।

मैंने अपनी पत्नी से पूछा- अंजू और संजना नहीं दिख रही?

उसने कहा- अंजू अपनी सहेली के घर गई है और संजना शायद अपने बन रहे घर! आप नहीं थे, बेचारी को रोज अकेली जाना पड़ता है। ‘तुम साथ चली जाती!’ ‘नहीं, मुझे डिनर तैयार करना है!’ ‘तो चल मैं चक्कर मारकर आता हूँ, देखूँ, कहाँ तक काम निबट चुका है?’

मैं वहाँ गया तो वहाँ शांति थी बाहर से देखने में!

जब अंदर घुसा तो मुझे आवाजें सुनी, दीवार के पीछे खड़े होकर देखा तो ठेकेदार और उसका कोई साथी होगा, संजना नंगी होकर दोनों के लण्ड चूस रही थी।

दोनों ने उसे पूरा रगड़ा, मुझे उसकी बेवफाई अच्छी नहीं लगी, मैं बाहर टहलता रहा। जब देखा कि ठेकेदार उसका साथी स्कूटर पर बैठ चले गए तो मैं उसके पास गया, बोला- मजा आया उनके साथ?

उसके रंग उड़ गए!

‘सब देखा साली मैंने! रंडी, बहुत सती-सावित्री बनती थी? एक साथ फुद्दी और गाण्ड में लण्ड लेकर तुमने साबित कर दिया कि तू है ही रंडी!’

उस दिन के बाद मैंने संजना से दूर होना चालू कर दिया।

अब वो माफ़ी मांगती तो मैं उसको चोदता ज़रूर था पर अब दिल से नहीं सिर्फ यह सोच कर कि वो एक रंडी है।

मेरी नज़र अंजू पर थी, उसकी छाती दिन पर दिन बढ़ रही थी, वो रात को अपनी माँ के साथ ही सोती थी क्यूंकि उनके पास एक ही कमरा था।

मैंने संजना को चोदना बहुत कम कर दिया था, मैं चाहता था कि वो बाहर मुँह मारे और घर से गायब रहे जिससे मुझे अंजू पर हाथ साफ़ करने का मौका मिल सके।

वही होने लगा, संजना अब घर से गायब रहने लगी, फिर भी उसकी छोटी बेटी निशा भी थी, मैंने सोनिया वाला तरीका अंजू पर अजमाया, हंसी मजाक में उसके मम्मे दबाने लगता, गुदगुदी के बहाने उसको दबोच लेता।

उसको भी शायद मजा आता था, सोनिया फिर भी कभी कभी मुझे रोकती थी पर अंजू उलटा मुझे गुदगुदी करने लगती, फिर भाग जाती अपने कमरे की तरफ!

मैं उससे बदला लेने के लिए उसको दबोच लेता और उस पर चढ़ जाता।

अब हिम्मत करके मैं उसकी टीशर्ट में हाथ घुसा देता, कई बार वो हंसती हंसती सिसकारी ले जाती। मैं खेला हुआ खिलाड़ी हूँ, उसकी सिसकारी में छुपी जवानी की आहट को भांप लेता था।

एक दिन अंजू मेरे सामने बैठी थी, कैरम खेल रहे थे। सामने थी, गोटी को निशाना लगाने के लिए झुक जाती ताकि मुझे उसके मम्मे दिखें।

अचानक उठी, बोली- पानी पीकर आती हूँ। उठ कर जाते समत्य उसने मुझे गुदगुदी की और भाग गई- अंकल, मजा आया? ऐसे बोल रही थी।

मैंने कमरे में उसको दबोच लिया, वो बिस्तर पर गिर गई। मैंने उसकी टीशर्ट में हाथ घुसा कर पहले बगलों में गुदगुदी की फिर उसके मम्मों को मसलने लगा। उसके चुचूकों को चुटकी में भर कर मसला, एक हाथ मैंने उसकी जांघों के बीच हाथ घुसा गुदगुदी की, पहली बार मैंने उसकी फुद्दी पर हाथ फेरा गुदगुदी के बहाने!

वो मुझसे धकेल कर निकल गई बिना हंसे! आज पहली बार ऐसा हुआ था।

उसी रात की बात है संजना और छोटी निशा दोनों किसी काम के चलते आगरा गई थी, मेरी सासू माँ हॉस्पिटल में थी मेरी पत्नी वहीं थी। उसने मुझे कहा- अंजू को कहना खाना बना ले और खुद भी खा ले आपको भी खिला दे।

करीब साढ़े बारह बजे मुझे पेशाब आया, सोचा देखूं कि अंजू सो गई क्या।

लेकिन अंजू का टी.वी चल रहा था, आवाज़ बंद थी। खिड़की से देखा तो पागल हो गया अंजू ने नीचे कुछ नहीं पहना था उसका हाथ उसके दाने पर था।

मुझे रेकॉर्डिंग याद आई जिसमे वो बाथरूम में अपने हाथ से जगन्नाथ कर रही थी, उसने छाती पर तकिया रख हुआ था- अह अह अंकल! और करो! और करो गुदगुदी! और करो!

इससे अच्छा मौका कभी नहीं मिलता, मैंने दरवाज़े को धकेला, अंदर घुस गया। मुझे देख अंजू अब करती भी तो क्या करती- देख न अंकल की उम्र भी उनके लण्ड जितनी लंबी है! तुमने याद किया और अंकल हाज़िर!

तकिया फेंक मैंने उसको दबोच लिया, उसकी टीशर्ट उतारी! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।

आज गुदगुदी नहीं, प्यार का दिन था।

मैंने उसके मम्मों को जब मसला तो वो आंखें मूंदने लगी। मैंने उसकी फुद्दी पर से उसका हाथ हटाया और अपना रख दिया।

मैंने अपना लण्ड निकाला और उसके मुँह में घुसा दिया। उसे पूरा लण्ड मुँह में लेने में मुश्किल आ रही थी।

उसकी प्यारी सी फुद्दी को जब मैंने चाटा तो अंजू स्वर्ग की सैर करने लगी। मैंने कहा- अब यह काम यहीं रोक दो।

मैंने उसकी टांगें खुलवाई और बीच में बैठ गया। मैं जानता था कि उसको दर्द होगा लेकिन यह दर्द तो एक दिन होना ही होना था।

मैंने अपने मन में कहा- वाह वरिंदर! फिर से कुंवारी लड़की की किस्मत तेरी किस्मत में लिखी है!

झटका दिया, वो दर्द से कराह उठी। वो चुद चुकी लगती थी, क्यूंकि खून नहीं निकला था, लेकिन जैसे मैंने एक और धक्का मारा तो वो रोने लगी और उसकी फुद्दी से खून देख मेरा सीना चौड़ा हो गया और पूरा लण्ड उसकी फुद्दी में इसी ख़ुशी में धकेल दिया।

वो अधमरी सी पड़ी थी लेकिन जैसे मेरा लण्ड रगड़ लगाने लगा, उसको राहत मिली और थोड़ी देर में ही वो आंखें बंद करके मज़े लेकर चुदवाने लगी।

कुंवारी लड़की को चोद कर मैं खुश था। जैसे मेरा पानी निकलने वाला था, मैंने उसको उसकी पोनी से पकड़ खींचा- मुहं खोल रण्डी!

उसने मुँह खोल दिया। मुठ से हिलाते हुए मैंने एक कतरा बाहर नहीं गिरने दिया, पूरा माल उसके मुँह में निकाला जब तक वो पी नहीं गई, उसके बाल नहीं छोड़े। पूरा निगलने के बाद लण्ड पर लगा माल भी चटवाया। अब तो आये दिन अंजू मेरा पानी पीती है।

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