बीवी की सहेली को चोद ही दिया

रीता मेरी पड़ोसन थी. मेरी पत्नी नेहा से उसकी अच्छी दोस्ती थी. शाम को अक्सर वो दोनों खूब बतियाती थी. दोनों एक दूसरे के पतियों के बारे में कह सुनकर खिलखिला कर हंसती थी. मुझे भी रीता बहुत अच्छी लगती थी. मैं अक्सर अपनी खिड़की से उसे झांक कर देखा करता था. उसके कंटीले नयन, मेरे को चीर जाते थे. उसकी बड़ी बड़ी आंखें जैसे शराब के मस्त कटोरे हों. उसका मेरी तरफ़ देख कर पलक झपकाना मेरे दिल में कई तीर चला देता था. वो सामने आंगन में जब बैठ कर कपड़े धोती थी तो उसके सुन्दर वक्ष ऐसे झूलते थे… मेरा मन उसे मसलने के लिये उतावला हो उठता था. पेटिकोट में उसके लचकते चूतड़ बरबस ही मेरा लण्ड खड़ा कर देते थे. पर वो मुझे बस मुस्करा कर ही देखती थी… अकेले में कभी भी घर नहीं आती थी.

नेहा सुबह ही स्कूल चली जाती थी… मैं दस बजे खाना खाकर ही दफ़्तर जाता था.

एक बार रीता ने नेहा को सवेरे स्कूल जाते समय रोककर कुछ कहा और दोनों मेरी तरफ़ देख कर बाते करने लगी. फिर नेहा चली गई. उसके जाने के कुछ ही देर बाद मैंने रीता को अपने घर में देखा. मेरी आंखें उसे देख कर चकाचौंध हो गई. जैसे कोई रूप की देवी आंगन में उतर आई हो… वो बहुत मेक अप करके आई थी. उसका अंग अंग जैसे रूप की वर्षा कर रहा था. उसके उठे हुये गोरे-गोरे चमकते हुये बाहर झांकते हुये उभरे हुये वक्ष जैसे बिजलियाँ गिरा रहे थे.

उसका सुन्दर गोल गोरा चिकना चेहरा… निगाहें डालते ही जैसे फ़िसल पड़ी. “र्…र्…रीता जी! आप…?” “मुझे अन्दर आने को नहीं कहेंगे?” “ओ… हाँ… जी हाँ… आईये ना… स्वागत है इस घर में आपका!!!” “जी, मुझे तो बस एक कटोरी शक्कर चाहिये… घर में खत्म हो गई है.” उसके सुन्दर चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई. मेरी सांसें जैसे तेज हो गई थी. वो भी कुछ नर्वस सी हो गई थी. “बला की खूबसूरत हो…!” “जी!… आपने कुछ कहा…?”

मैं हड़बड़ा गया… मैं जल्दी से अन्दर गया और अपनी सांसें नियंत्रित करने लगा. यह पहली बार इस तरह आई है , क्या करूँ…!!!” मैंने कटोरी उठाई और हड़बड़ाहट में शक्कर की जगह नमक भर दिया. मैं बाहर आया… मुझे देख कर उसे हंसी आ गई… और जोर से खिलखिला उठी. “जीजू! चाय में नमक नहीं… शक्कर डालते हैं… यह तो नमक है…!” “अरे यह क्या ले आया… मैं फिर से अन्दर गया.

वो भी मेरे पीछे पीछे आ गई… “वो रही शक्कर…” उसके नमक को नमक के बर्तन में डाल दिया और शक्कर भर ली. “धन्यवाद जीजू… ब्याज समेत वापस कर दूंगी!” और वो इठला कर चल दी… “बाप रे… क्या चीज़ है…!” उसने पीछे मुड़ कर कहा- क्या कहा जीजू… मैंने सुना नहीं…!” “हाँ… मैं कह रहा था आप तो आती ही नहीं हो… आया करो… अच्छा लगता है!” “तो लो… हम बैठ गये…!”

मैं बगलें झांकने लगा… पर उसने बात बना ली और बातें करने लगी. बातों बातों में मैंने उसका मोबाईल नम्बर ले लिया. जब मैंने बात आगे नहीं बढाई तो वो मुस्करा कर उठी और घर चली गई. मुझे लगा कि मैंने गलती कर दी… वो तो कुछ करने के लिये ही तो शायद आई थी! और फिर वो मेरे कहने पर बैठ भी तो गई थी…

“बहुत लाईन मार रहे थे जी…?” “नहीं नेहा, वो तो नमक लेने आई थी…” “नमक नहीं… शक्कर… मीठी थी ना?” “क्या नेहा… वो अच्छी तो है… पर यूँ ना कहो.” “मन में लड्डू फ़ूट रहे हैं… मिलवाऊँ उससे क्या?” “सच… मजा आ जायेगा…!”

नेहा हंस पड़ी… “ऐ रीता… साहब बुला रहे हैं… जरा जल्दी आ…!” नेहा ने बाहर झांक कर रीता को आवाज दी. रीता ने खिड़की से झांक कर कहा- आती हूँ!” वो जैसे थी वैसे ही भाग कर हमारे घर आ गई. “अरे क्या हुआ साहब को…?” “कुछ नहीं, तेरे जीजू तुझे चाय पिलाना चाह रहे हैं.” और हंस दी.

रीता भी शरमा गई और तिरछी नजरों से उसने मुझे देखा. फिर उसकी आंखें झुक गई. नेहा चाय बनाने चली गई. मैंने शिकायती लहजे में कहा- सब बता दिया ना नेहा को…!” “तो क्या हुआ… आप ने तो मुझे फोन ही नहीं किया?” “करूंगा जरूर…बात जरूर करना!” कुछ ही देर में चाय पी कर रीता चली गई.

“बहुत अच्छी लगती है ना…?” मैंने नेहा को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा और सर हाँ में हिला दिया. “तो पटा लो उसे… पर ध्यान रखना तुम सिर्फ़ मेरे हो!”

कुछ ही दिनों में मेरी और रीता की दोस्ती हो चुकी थी. वो और मैंनेहा की अनुपस्थिति में खूब मोबाइल पर बातें करते थे. धीरे धीरे हम दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. रात को तो उसका फोन मुझे रोज आता था. नेहा भी सुन कर बहुत मजा लेती थी. पर नेहा को नहीं पता था कि हम दोनों प्यार में खो चुके हैं. वो कभी कभी मुझे अपने समय के हिसाब से झील के किनारे बुला लेती थी. वहाँ पर मौका पा कर हम दोनों एक दूसरे को चुम्मा-चाटी कर लेते थे. कई बार तो मौका मिलने पर रीता के उभार यानि चूतड़ों को और मम्मों को धीरे से दबा भी देता था. मेरी इस हरकत पर उसकी आंखों में लाल डोरे खिंच जाते थे. प्रति-उत्तर में वो मेरे कड़कते लण्ड पर हाथ मार कर सहला देती थी… और एक मर्द मार मुस्कान से मुझे घायल कर देती थी.

अगले दिन रीता के पति के ऑफ़िस जाते ही नेहा ने रीता को बुला लिया. मुझे लग रहा था कि रीता आज रंग में थी. उसकी अंखियों के गुलाबी डोरे मुझे साफ़ नजर आ रहे थे. मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से नेहा को देखा. नेहा ने तुरन्त आंख मार कर मुझे इशारा कर दिया. रीता भी ये सब देख कर लजा गई. मेरा लण्ड फ़ूलने लगा… . नेहा रीता को एक दुल्हन की तरह बेडरूम में ले आई. रीता अपना सर झुका कर लजाती हुई अन्दर आ गई.

नेहा ने रीता को बिस्तर पर लेटा दिया और कहा- रीता, अब अपनी आंखे बन्द कर ले” “हाय नेहा, तू अब जा ना… अब मैं सब कर लूंगी!” “ऊँ हु… पहले उसका मुन्ना तो घुसा ले… देख कैसा कड़क हो रहा है!” “ऐसे तो मैं मर जाऊँगी… राम!”

मैं इशारा पाते ही रीता के नजदीक आ गया. उसके नाजुक मम्मे को सहला दिया. ये देख कर नेहा के उरोज भी कड़क उठे. उसने धीरे से अपने मम्मों पर हाथ रखा और दबा दिया. मैंने रीता की जांघों पर कपड़ों को हटा कर सहलाते हुये चूत को सहला दिया. उधर नेहा के बदन में सिरहन होने लगी… उसने अपनी चूत को कस कर दबा ली. रीता का शरीर वासना से थरथरा रहा था. वो मेरी कमीज पकड़ कर अपनी तरफ़ मुझे खींचने लगी. उसने अपने कपड़े ऊँचे करके अपने पांव ऊपर उठा दिये. एक दम चिकनी चूत… गुलाबी सी… और डबलरोटी सी फ़ूली हुई. मैं तो उसकी चूत देखता ही रह गया, ऐसी सुन्दर और चिकनी चूत की तो मैंने कभी कल्पना ही नहीं की थी. “विनोद, चोद डाल मेरी प्यारी सहेली को…! है ना मलाईदार कुड़ी!” रीता घबरा गई और मुझे धकेलने लगी. मैंने उसे और जकड़ लिया.

“नेहा तू जा ना!… मैं तो शरम से मर जाऊँगी… प्लीज!” रीता ने अनुनय करते हुये कहा. “वाह री… मेरी शेरनी… नीचे दबी हुई है, चुदने की पूरी तैयारी है… फिर मुझसे काहे की शरम है… मुझे भी तो यही चोदता है… अब छोड़ शरम!” मेरा लण्ड कड़क था… उसकी चूत के द्वार पर उसके गीलेपन से तर हो चुका था. “अरे राम रे… नहीं कर ना… उह्ह्ह्ह्… नेहा जा ना… आईईईईइ… घुस गया राम जी” “रीता… इतनी प्यारी चूत मिली है भला कौन छोड़ देगा… पाव रोटी सी चूत… रसभरी…” मैंने वासना से भीगे हुये स्वर में कहा. “अह्ह्ह्ह मैं तो मर गई… नेहा के सामने मत चोदो ना… मां री… धीरे से घुसाओ ना!”

मैंने जोर लगा कर लण्ड पूरा ही घुसेड़ दिया. उसने आनन्द के मारे अपनी आंखें बन्द कर ली. नेहा ने भी अपने कपड़े उतार दिये और रीता के करीब आ गई. “तुम चोदो ना, मैं जरा इस से अपनी चूत चुसवा लूँ…”

नेहा ने अपनी टांगें चौड़ी की और दोनों पांव इधर उधर करके मेरे सामने ही उसके मुख पर अपनी चूत सेट कर ली. अपने हाथों से अपनी चूत खोल कर उसे रीता के मुख पर दबा दिया. रीता के एक ही बार चूसने से नेहा चिहुंक उठी. मैंने भी सामने रीता पर सवार नेहा के दोनों बोबे पकड़ कर दबा दिये और उन्हें मसलने लगा. “यह रीता भी ना साली! इतने कपड़े पहन कर चुदा रही है… ले और चूस दे मेरी चूत!” नेहा कुछ असहज सी बोली. “तू बहुत खराब है… जीजू को सामने ही देखते हुये मुझे चुदवा रही है!” रीता ने नेहा से नजरें चुराते हुये शिकायत की. “चल हट… इच्छा तो तेरी थी ना चुदने की… अब जी भर कर चुदा ले… अरे ठीक से मसलो ना विनोद!” मैं तो हाँफ़ रहा था… शॉट बड़ी मुश्किल से लग रहे थे. कभी नेहा तो कभी रीता के भारी भरकम कपड़े…

अचानक नेहा ऊपर से उतर गई और मुझे भी उतार दिया और रीता के कपड़े उतारने लगी. “ना करो, मने सरम आवे है…” वो अपनी गांव की भाषा पर आ गई थी. “ऐसे तो ना मुझे मजा रहा है और ना विनोद को…!” कुछ ही देर में हम दोनों ने रीता को नंगी कर दिया. वो शरम के मारे सिमट गई. उसकी प्यारी सी गोल गाण्ड उभर कर सामने आ गई. “विनोद चल मार दे इसकी…साली बहुत इतरा रही है, इतने नखरे मत साली… मेरे पास भी ऐसी ही प्यारी सी चूत है… पर मेरा विनोद तो तुझ पर मर मिटा है ना!”

मुझे तो उसकी सेक्सी गाण्ड देखकर नशा सा आ गया. मैं उसकी पीठ से जा चिपका और उसके चूतड़ों के बीच अपना लण्ड घुसेड़ने लगा. नेहा ने मेरी मदद की और उसकी गाण्ड में ढेर सारी क्रीम लगा दी.

“काई करे है… म्हारी गाण्ड मारेगो… बाई रे… अरे मारी नाक्यो रे… यो तो गयो माईने!” जोश में रीता अपनी मूल भाषा पर आ गई थी. “रीताजी, आप राजस्थान की भाषा बोलती है… वहाँ भी रही है क्या?” मैंने आश्चर्य से कहा. “एक तो म्हारी गाण्ड मारे, फिर पता और पूछे… चाल रे, धक्का मारो नी सा…”

मुझे क्या फ़रक पड़ता था भला! मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी. रीता की चिकनी गाण्ड चुदने लगी. उसकी सिसकारियाँ भी तेज होने लगी. मुझे वो सब मजा मिल रहा था जिसकी मैं रीता के साथ कल्पना करता रहा था. नेहा भी रीता के नाजुक अंगों से खेल रही थी. मैंने नेहा का हाथ रीता के स्तनों से हटा दिया और उसे मैंने थाम लिया. नेहा ने अपनी अंगुली में थूक लगाया और मेरी गाण्ड में धीरे से दबा कर अन्दर कर दी. मुझे इस क्रिया से और आनन्द आने लगा. मेरा लण्ड फ़ूलता जा रहा था. रीता की टाईट गाण्ड चोदने में मुझे अपूर्व आनन्द आ रहा था. उसकी टाइट गाण्ड ने मेरी जान निकाल दी और मेरा वीर्य निकल पड़ा. मेरा ढेर सारा वीर्य उसकी गाण्ड में भरता चला गया.

रीता की गाण्ड मार कर मैं बिस्तर से उतर गया. रीता ने नेहा की तरफ़ वासना युक्त नजरों से देखा. नेहा को तो बस इसी बात का इन्तज़ार था. वो मर्दो की भांति रीता पर चढ़ गई और अपनी चूत को उसकी चूत से टकरा दिया. रीता ने आनन्द के मारे आंखें बन्द ली. नेहा ने अपनी चूत की रगड़ मारी और दोनों का गीलापन चूत पर फ़ैल गया. दोनों ने एक दूसरे के स्तन भींच लिये और मसलने लगी. अपनी चूत को भी एक दूसरे की चूत से रगड़ने लगी.

“हाय रे नेहा, मुझे तो कड़क लण्ड चाहिये… चूत में घुसेड़ दे… हाय विनोद… मुझे लण्ड खिला दे…” “अभी उसका ठण्डा है, खड़ा तो होने दे… तब तक मेरी चूत का मजा ले… देख मैंने भी यह खेल बहुत दिनों के बाद खेला है… लण्ड तो अपन रोज ही लेते हैं!” “पर विनोद का लण्ड तो मैं अपनी चूत में पहली बार लूंगी ना…” रीता कसमसाते हुये बोली. “अरे, अभी तो पेला था उसने…” वो तो गाण्ड मारी थी… चूत तो बाकी है ना… विनोद… प्लीज आ जाना…”

उसकी बातें सुन कर मेरा लण्ड फिर से तन्ना उठा. मैंने नेहा को अपना लौड़ा दिखाया तो वो अलग हो गई. मैंने रीता की टांगें ऊपर करके उसे चौड़ा दी और अपना लण्ड हाथ से थाम कर उसे धीरे से अन्दर तक पिरो दिया. और एक दो बार हिला कर अन्दर तक पूरा घुसेड़ कर जड़ तक सेट कर दिया. फिर उसके ऊपर आराम से लेट गया. उसके बोबे मैंने थामे और उसे भींच कर, अपने होंठ उसके होठों से सेट कर दिए. उसके दोनों हाथ मेरे चूतड़ों पर कस गये थे. लण्ड को चूत की गहराइयों में पाकर वो आनन्दित हो रही थी. लण्ड उसकी बच्चेदानी के छेद के समीप पहुंच गया था. उसने मुझे कस कर पकड़ा हुआ था. चुदाई की रफ़्तार मैंने आनन्द के मारे तेज कर दी थी. मैं उसकी चूत में लण्ड को ऊपर नीचे रगड़ कर चोदने लगा था . उसके होंठ जैसे फ़ड़फ़ड़ा कर रह गये… मेरे अधरों से चिपके उसके होंठ जैसे कुछ कहना चाहते थे. उसका जिस्म वासना से तड़प उठा. उसकी चूत भी ऊपर उठ कर लण्ड लेने लगी. दोनों जैसे अनन्त सागर में गोते लगाने लगे. चुदाई चलती रही. वो शायद बीच में एक बार झड़ भी गई थी, पर और चुदने की आशा में वो चुपचाप ही रही. उसकी फ़ूली हुई चूत मेरे लण्ड को गपागप खा रही थी.

हम दोनों एक दूसरे को बस रगड़ कर चोद रहे थे, समय का किसे ज्ञान था, जाने कब तक हम चुदाई करते रहे. दूसरी बार जब रीता झड़ी तो इस बार वो चीख सी उठी. मेरी चुदाई की तन्मयता भंग हो गई, और मेरा लन्ड भी फ़ुफ़कारता हुआ, किनारे पर लग गया. वीर्य लावा की तरह फ़ूट पड़ा… और उसकी चूत में भरता गया. “हाय बस करो… आगे पीछे सब जगह तो अपना माल भर दिया… बस करो…”

नेहा पास में बैठी अपनी चूत को अंगुली से चोद रही थी, अपने दाने को हिला हिला कर अपना माल निकालने की कोशिश कर रही थी. हम दोनों ने उसकी सहायता की और मैंने उसकी चूत में अपनी अंगुली का कमाल दिखाना आरम्भ कर दिया. उधर रीता ने उसके मम्मे मसल कर और उसके अधरों को चूस कर उसे मस्त करने लगी. नेहा की चूत के दाने को मसलते ही वो तड़प उठी और झड़ने लगी.

“हाय विनोद… मैं तो गई… आह निकल गया… साले मर्दों के हाथ की बात तो मस्त ही होती है… कैसा हाथ मार कर मेरी जान निकाल दी!” हम तीनों सुस्ताने लगे. नेहा उठी और कुछ ही देर में दूध गरम करके ले आई. “लो कमजोरी दूर करो और दूध पी जाओ!”

हम सभी धीरे धीरे दूध पीने लगे… तभी रीता को जैसे खटका हुआ. उसने फ़टाफ़ट अपने कपड़े पहने और अपने आप को ठीक किया और तेजी से भाग निकली. “अरे ये रीता का आदमी आज जल्दी कैसे आ गया?” हम दोनों ही आश्चर्य कर रहे थे. थोड़ी ही देर में उनके झग़ड़े की आवाजे आने लगी. “क्या कर रही थी अब तक… खाना क्यो नहीं पकाया… मेरा बाप बनायेगा क्या? बहुत तेज भूख लगी है.”

हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और हंस पड़े. “उसकी मां चुदने दे यार… आज छुट्टी ली है तो उसका पूरा फ़ायदा उठायें!” मैंने मुस्करा कर कहा और नेहा मेरे से चिपक गई. रीता शर्मा