व्यंग्य कथा : अकबर और बीरबल

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था, सारे दरबारी अपने अपने काम में व्यस्त थे कि अकबर ने बीरबल की तरफ देखते हुये कहा- बीरबल, कई दिनों से एक सवाल मुझे काफ़ी परेशान किये जा रहा है, शायद तुम्हारे पास इस सवाल का कोई जवाब हो?

बीरबल ने सर झुका कर कहा- हुज़ूर आप अपना सवाल पूछिये, मैं पूरी कोशिश करूँगा आपके सवाल का वाज़िब जवाब देने की।

अकबर ने कहा- बीरबल, मुझे ये मालूम करना है कि इस दुनिया में सबसे अधिक मूर्ख किस देश में रहते हैं?

बीरबल ने कुछ देर सोचा और कहा- हुज़ूर इस सवाल का जवाब ढूँढने के लिये मुझे संसार के सारे देशों में घूम घूम कर वहाँ के लोगों के बारे में जानकारी लेनी होगी, और यह यात्रा पूरी करने में मुझे कम से कम तीन साल तो लग ही जायेगा।

अकबर ने तुरंत जवाब दिया- ठीक है, मैं तुम्हें दो साल की मोहलत देता हूँ, आज से ठीक दो साल के बाद यहाँ आकर सारे दरबार के सामने अपना जवाब देना।

बीरबल ने अदब से सर झुका कर कहा- तो फिर जहाँपनाह मुझे इज़ाज़त दें, मैं घर जाकर अपनी यात्रा की तैयारी करता हूँ। यह कह कर बीरबल ने दरबार से विदा ली।

बीरबल को गये हुये पूरे तीन हफ्ते गुज़र गये थे और अकबर को बीरबल के बिना दरबार में सूनापन महसूस होने लगा। बादशाह सलामत आँख मूँद कर यह सोचने लगे कि बीरबल न जाने इस समय किस देश में होगा कि अचानक दरबार में होने वाली खुसर पुसर ने उनकी आँखें खोल दी।

और,

अकबर ने अपने सामने बीरबल को हाथ जोड़े खड़ा पाया, अकबर ने अचंभित हो कर पूछा- अरे बीरबल, तुम इतनी जल्दी कैसे वापस आ गये? और, मेरे सवाल के जवाब का क्या हुआ?

बीरबल ने कहा- हुज़ूर, मुझे आपके सवाल का जवाब मिल गया है और इसी लिये मैं वापस आ गया हूँ।

तो फिर बताओ तुम्हारा जवाब क्या है? अकबर ने अधीरतापूर्वक पूछा।

बीरबल ने विनती की- हुज़ूर पहले वचन दीजिये कि मेरा जवाब सुन कर आप मुझे किसी भी तरह का दंड नहीं दीजियेगा।

ठीक है मैं वचन देता हूँ। अब तो बताओ तुम्हारा जवाब क्या है? अकबर ने कहा।

बीरबल ने सर झुका कर उत्तर दिया- सरकार दुनिया में सबसे ज्यादा मूर्ख हमारे ही देश हिन्दुस्तान में रहते हैं।

पर बीरबल बिना किसी और देश गये सिर्फ़ तीन हफ्तों में तुमने यह कैसे जान लिया कि हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा मूर्ख रहते हैं? अकबर ने खीजते हुये पूछा।

हुज़ूर मैं विस्तार से आपको बताता हूँ कि पिछले तीन हफ्तों में मैंने क्या क्या देखा, और मैंने जो कुछ भी देखा उसी के आधार पर आपके सवाल का जवाब दिया है। यह कहते हुये बीरबल ने अपनी पिछले तीन हफ्तों की दास्तान बयान करनी शुरू कर दी।

उस दिन दरबार से जाने के बाद मैं सीधा घर गया और बोरी बिस्तर बाँध कर अगले दिन सुबह सुबह ही विश्व भ्रमण के लिये निकल पड़ा। दो दिन की घुड़सवारी के बाद एक छोटे से नगर में पहुँचा तो देखा कि गुस्से से तमतमाते हुये लोगों की एक भीड़ सड़क पर खड़े वाहनों को आग लगा रही थी और साथ ही साथ ईंटे पत्थर मार कर दुकानों को तोड़ने में लगी हुई थी।

मैंने भीड़ में से एक युवक को कोने में खींच कर पूछा- यह सब क्यों किया जा रहा है?

पता चला कि नगर के पीने के पानी वाले कुयें में एक चूहा पाया गया है !

बस नागरिकों को आ गया गुस्सा, पहले तो नगर अधिकारी की जम कर पिटाई की और फिर तोड़ फ़ोड़ में लग गये।

मैंने पूछा- आखिर चूहे को कुयें में से निकाला किसने?

तो जवाब मिला- चूहा तो अभी भी उसी कुयें में मरा पड़ा है और उसे निकालना तो सरकार का काम है।

खैर मैंने गुस्से से लाल पीली भीड़ को समझाने की कोशिश की कि इस तोड़ फ़ोड़ से तो उनको ही नुकसान होगा। अगर सारे वाहन जला दिये तो क्या गधे पर बैठ कर जगह जगह जायेंगे? दुकानें और दुकानों में रखा सामान तुम्हारे जैसे नागरिकों की ही सम्पत्ति है। उसे जलाने से आखिर नुकसान किसका होगा।

यह सुनना था कि सारी भीड़ यह चिल्लाते हुये कि मैं एक निकम्मा सरकारी जासूस हूँ मेरी तरफ डंडे ले कर दौड़ पड़ी।

सरकार, मैं किसी तरह जान बचा कर भागा और पास की ही एक सराय में जा कर छुप गया।

पूरी रात सराय में बिता कर मैं अगले दिन सूरज निकलने से पहले ही आगे के लिये निकल पड़ा। अगले पाँच सात दिन बड़े चैन से गुजरे, कोई बड़ा हादसा भी नहीं हुआ। दो हफ्ते पूरे होने को आये थे और मैं अब तक पिछले नगर की घटना को थोड़ा थोड़ा भूल भी चुका था। पर हुज़ूर-ए-आला, अगले दिन जो मैंने देखा वैसा नज़ारा तो शायद नरक में भी देखने को नहीं मिलेगा। शहर की सड़कें खून से लाल थीं, चारों तरफ बच्चों, आदमियों, औरतों, बकरियों और तकरीबन हर चलने फ़िरने वाली चीज़ों की लाशें पड़ी हुई थीं, इमारतें आग में जल रहीं थी।

मैंने सड़क के कोने में सहमे से बैठे हुये एक बूढ़े से पूछा कि क्या किसी दुश्मन की फौज ने आकर यह कहर ढा दिया है?

बूढ़े ने आँसू पोंछते हुये बताया- शहर में दो धर्मों के लोगों के बीच दंगा हो गया और बस मार काट शुरू हो गई।

मैंने विचलित आवाज़ में पूछा- दंगा शुरू कैसे हुआ?

पता चला कि एक आवारा सुअर दौड़ते दौड़ते एक नस्जिद में घुस गया। किसी ने चिल्ला कर कह दिया कि यह दूसरे मजहब वाले की ही करतूत होगी। बस दोनों गुटों के बीच तलवारें तन गईं और जो भी सामने आया, अपने मजहब के लिये कुर्बान हो गया।

मुझसे वो सब देखा नहीं गया और मैं घोड़ा तेजी से दौड़ाते हुये उस शहर से कोसों दूर निकल गया।

तीसरा हफ्ता शुरू हो गया था और मैं भगवान से मना रहा था कि हिन्दुस्तान की सीमा पार होने से पहले मुझे अब कोई और बेवकूफी भरा नजारा देखने को न मिले। पर जहाँपनाह, शायद ऊपर वाले को इतनी नीचे से कही गई फरियाद सुनाई नहीं दी। अगले दिन जब मैं मूढ़गढ़ पहुँचा तो क्या देखता हूँ कि युवकों की एक टोली कुछ खास लोगों को चुन चुन कर पीट रही है।

मैं एक घायल को लेकर जब चिकित्सालय गया तो पता चला कि सारे चिकित्सक हड़ताल पर हैं और किसी भी मरीज़ को नहीं देखेंगे। खैर मैं उस घायल को चिकित्सालय में ही छोड़ कर बाजार की तरफ चल पड़ा जरूरत का कुछ सामान खरीदने के लिये। बाजार पहुँचा तो पाया कि सारी दुकानें बंद हैं। और, कुछ एक जो खुली हैं उनके दुकानदार अपनी टूटी हुई टाँगों को पकड़ कर अपनी दुकानों को लुटता हुआ देख रहे हैं। पता चला कि वो लोग बंद में हिस्सा न लेने की सज़ा भुगत रहे हैं।

सारी स्थिति से मुझे एक नौजवान ने अवगत कराया जो कि उस समय एक दूसरे युवक की पिटाई करने में जुटा हुआ था, उसने बताया कि जहाँपनाह अकबर ने दो दिन पहले घोषणा की कि अस्सी फीसदी सरकारी नौकरियाँ पिछड़ी जाति के लोगों को ही दी जायेंगी। उसी के विरोध में पिछड़ी जाति के युवकों की पिटाई की जा रही है और पूरे नगर में सब हड़ताल पर हैं।

मैंने उस युवक से कहा- इन पिछड़ी जाति के युवकों को पीट कर तुमको क्या मिलेगा? अरे पीटना ही है तो उसे पीटो जिसने ऐसी घोषणा की। और, हड़ताल और बंद करने से तो हम जैसे साधारण नागरिकों को ही तकलीफ़ उठानी पड़ती है।

मेरी बातों को अनसुना कर के वो एक खुली हुई दुकान की तरफ लाठी ले कर दौड़ पड़ा।

हुज़ूर मैंने मन ही मन सोचा कि यहाँ के नागरिक तो मूर्ख हैं ही, पर यहाँ का शासक तो महामूर्ख है जिसके दिमाग में इस तरह का वाहयात ख्याल आया। बस सरकार मैंने आगे जाना व्यर्थ समझा– मुझे आपके सवाल का जवाब मिल चुका था और मैंने वापस आना ही उचित समझा।

बीरबल की व्याख्या सुन कर अकबर थोड़ी देर शाँत रहे, फ़िर मुस्कुराते हुये बीरबल के पास आ कर बोले- बीरबल तुम्हारा जवाब सुन कर मुझे बहुत बड़ी राहत मिल गई है।

बीरबल ने भ्रमित हो कर अकबर की तरफ़ देखते हुये कहा- हुज़ूर मैं कुछ समझा नहीं।

अकबर ने खुलासा किया- बीरबल अगर इस देश के प्राणी इतने मूर्ख न होते तो मैं इन पर शासन कैसे कर पाता। और जब तक यह मुल्क़ मूर्खों से भरा रहेगा, तब तक हम और हमारी पीढ़ियाँ यहाँ राज करती रहेंगी। जहाँ तक आरक्षण का सवाल है तो तुम क्यों परेशान होते हो? तुम्हारे बच्चों को कौन सी नौकरी करनी है – कल को जहाँगीर बादशाह बनेगा और तुम्हारे बच्चे शान-ओ-शौकत से उसके दरबार में काम करेंगे। आरक्षण करने से मुझको यह फायदा हुआ कि मूर्खों की एक टोली अब मूर्खों की दो टोलियों में बँट गई है – इन्हें जितना बाँटते जाओगे, शासन करने में उतनी ही आसानी होगी। बीरबल तुम्हारे जवाब ने मेरे दिल पर से एक काफ़ी बड़ा बोझ हटा दिया है।

बीरबल के भी ज्ञान-चक्षु खुल गये और उसने मुस्कुराते हुये पास में रखे मदिरा के प्याले को मुँह से लगा लिया।

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000