पर पुरुष समर्पण-2

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मधुरेखा

लेकिन उसने बिना कुछ बोले फ़िर से मेरे लबों को अपने लबों की गिरफ़्त में ले लिया।

काफ़ी देर वो मुझे चूमता रहा। हम दोनों उत्तेजित हो चुके थे।

मैंने अपना ब्लाऊज और ब्रा पूरी तरह से अपने बदन से अलग करते हुए कहा- इन्हें जोर जोर से चूसो शचित !

और मैं शचित को अपने ऊपर लेते हुए वहीं दीवान पर लेट गई। मेरी आँखें बन्द थी !

अब शचित मेरी एक चूची को हाथ से मसल रहा था और दूसरी को चूस रहा था। धीरे धीरे वो मेरे पेट पर आया और मेरी नाभि को खोजने लगा। मेरी साड़ी बिल्कुल नाभि पर बन्धी थी तो उसने धीरे धीरे मेरी साड़ी की प्लीट्स खींचनी शुरू की.

मैंने उसे रोक दिया !

मैंने अपने दोनों चूचे साड़ी से ढक लिए !

शचित घबरा गया, उसे लगा कि मैं नाराज हो गई हूँ उसकी इस हरकत से !

पर मैंने उसे कहा- यहाँ नहीं, बेडरूम में चलते हैं !

मैं चली तो वो मेरे पीछे पीछे आने लगा। बेडरूम में आकर मैं बिस्तर पर चित लेट गई और उसकी ओर अपनी बाहें बढ़ा दी।

वो मेरे ऊपर झुका, मेरे वक्ष पर से मेरी साड़ी का पल्लू हटाया और किसी नन्हे बच्चे की भान्ति मेरा दूध पीने लगा।

मेरे आनन्द की कोई सीमा नहीं थी। सालों बाद किसी पुरुष ने मेरी चूचियाँ ऐसे चूसी होंगी क्योंकि मेरे पति को मुझ में अब रुचि नहीं रही थी। हाँ, श्रेया को मेरा दूध पीने में मज़ा आता है।

अब फ़िर उसका हाथ नीचे मेरी साड़ी के साथ खेलने लगा, उसने मेरे पेटिकोट से साड़ी के प्लीट्स खींच कर बाहर निकाल दिये तो पेटिकोट का नाड़ा उसके हाथ में आ गया।

मेरे नेत्र बन्द थे, मैं तो आने वाले पलों के बारे में सोच कर अति उत्तेजित हो रही थी।

मेरे पेटिकोट का नाड़ा खुल चुका था, शचित का एक हाथ पेटीकोट के भीतर मेरी पैंटी पर था।

वो अब भी मेरे चुचूक चूस रहा था और एक हाथ मेरी पैंटी पर फ़िरा रहा था। उसे आगे बढ़ने की कोई जल्दी नहीं थी। मैंने खुद ही अपने चूतड़ थोड़े ऊँचे करके अपने चूतड़ों के नीचे से साड़ी पेटिकोट सरका कर हटा दिया ताकि जब शचित उन्हें उतारना चाहे तो उसे कोई रुकावट ना मिले !

शचित के कुछ घबराये से रुख व अनाड़ीपन से लग रहा था कि वो शायद पहली बार नारी काया को इस तरह भोग रहा है। वो मेरे चु्चूक चूस रहा था, मैं चाह रही थी वो कुछ आगे कदम बढ़ाये !

मैंने उसका चेहरा अपने हाथों से पकड़ कर अपने वक्ष से हटाया तो वो मुझ पर से उठ गया, आगे कुछ नहीं किया।

मुझे ही बोलना पड़ा- बस? रुक क्यों गये? जो शुरु किया, उसे पूरा करो !

उसकी पैंट के अन्दर बन्द उसके खड़े लौड़े पर नजर गड़ाते हुए मैं बोली।

मैंने उसकी शर्ट का एक बटन खोला, अब उसमें हिम्मत बंधी और उसने अपनी पैंट खोलनी शुरु की पैंट-शर्ट दोनों उतर गए, अब वो बनियान और अन्डरवीयर में था। उसका लिंग ऊपर की तरफ़ था, अगर अण्डरवीयर की इलास्टिक ढीली होती तो वो खुल ऊपर से मुंह निकाल कर बाहर झांक रहा होता।

मैंने अपनी तीन उंगलियों से कच्छे के ऊपर से ही उसके मुण्ड को छुआ ! वो एकदम से जैसे डर गया।

मैंने कहा- क्या हुआ? तुम अपना अण्डरवीयर उतारो, मैं अपनी पैंटी उतारती हूँ।

मैंने अपनी पैंटी अपनी चिकनी जांघों से सरकाने लगी तो मुझे देख उसने भी अपना अण्डरवीयर अपनी टांगों से निकाल दिया। शचित का लण्ड एकदम सीधा था जमीन दे समानान्तर !

मैं बिस्तर पर चित लेट गई। वो सिर्फ़ बनियान में मेरे पूरे बदन को चूमने लगा, शायद ही कोई हिस्सा उसने छोड़ा हो चूमने से मेरे बदन का !

वो फ़िर रुक गया।

मैंने कहा- रुको मत अब ! एक बार पूरा कर लो ! बस एक बार ही करने दूंगी।

वो डर रहा था, मैंने कहा- कुछ नहीं होगा, तुम करो ! तुम अंदर डाल दो !

वो मेरे ऊपर आया और मेरी जांघों के बीच में लौड़े को मेरी फ़ुद्दी पर रख कर दबाव बढ़ाने लगा लेकिन अन्दर नहीं गया।

मैंने अपनी जाँघे पूरी फ़ैलाई और उसे कहा- तुम मुझे थोड़ा सा ऊपर को उठा लो ! फ़िर धीरे धीरे डालो !

उससे नहीं हो रहा था तो मुझे ही रास्ता दिखाना पड़ा, मैंने उसके लण्ड को पकड़ कर अपने योनि-छिद्र के बीच में लगाया और उसे कहा- अब धक्का दो धीरे से !

तब कुछ अन्दर गया और मेरे कहे अनुसार वो करता गया। काफ़ी कसा कसा जा रहा था मेरे अन्दर ! मेरे पति के लन्ड कुछ बड़ा था शचित का !

पहला दौर कोई 15 मिनट चला होगा। मुझे चरमोत्कर्ष दिलवा दिया था उसने, बहुत मज़ा आया था मुझे। झड़ने के बाद हम दोनों काफ़ी देर ऐसे ही लेटे रहे।

मैं बहुत खुश थी।

कुछ देर बाद उसके हाथ फ़िर मेरे बदन पर फ़िरने लगे तो मैंने उसे रोक दिया।

कहानी जारी रहेगी।

पर पुरुष समर्पण-1

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