मेरी चालू बीवी-48

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इमरान हर अगला पल एक नए रोमांच को लेकर आ रहा था मेरे जीवन में ! मैं फोन हाथ से पकड़े कान पर लगाये हर हल्की से हल्की आवाज भी सुनने की कोशिश कर रहा था।

अभी-अभी मेरी बीवी ने अपने पुराने दोस्त के लण्ड को अपने हाथ से पकड़कर उसका पानी निकाला था… हो सकता है कि उसने लण्ड को चूमा भी हो !

ना केवल मेरी बीवी सलोनी अपने दोस्त के लण्ड से खेली बल्कि अपने कपड़े हटा कर अपने कीमती खजाने, वो अंग जो हमेशा छुपे रहते हैं… उनको भी नंगा करके उसने अपने दोस्त को दिखाया !

जहाँ तक मुझे समझ आया… उसने अपनी चूचियाँ नंगी करके उससे चुसवाई, मसलवाई… अपनी चूत को ना केवल नंगी करके दिखाया बल्कि चूत को दोस्त के हाथ से सहलवाया भी… हो सकता है उसने ऊँगली भी अंदर डाली हो…

कुल मिलाकर दोनों अपना पूरा मनोरंजन किया था… और साथ में मेरा, मधु और आपका भी…

उस आवाज से मुझे यह तो लग गया था कि वहाँ कुछ गिरा था… पर क्या और कहाँ… और अभी वहाँ क्या चल रहा था? पता नहीं चल रहा था…

तभी मुझे मधु की आवाज सुनाई दी- हेलो भैया… बहुत समझदार थी मधु… उसने मेरे दिल की बात सुन ली थी…

मैं- हाँ मधु… अभी क्या हो रहा है? मधु- हे हे भैया… भाभी तो ना जाने क्या क्या कर रही थी अंदर… आपने सुना न… हे हे हे हे… मैं- अरे तू पागलों की तरह हंसना बंद कर और बता मुझे ! मधु- क्या भैया??

मैं- अरे तूने जो देखा और अभी ये सब क्या हुआ ! मधु- अरे भाभी स्टूल पर बैठी हैं ना… तो वो चाय जो लेकर आया था उसने भाभी को देखते हुए चाय गिरा दी ! मैं- अरे कहाँ गिरा दी… और क्या देखा उसने?

मधु- वो भाभी के बैठने से उनकी जीन्स नीचे हो गई थी, और उनके चूतड़ देख रहे थे… बस उनको देखते ही उसने चाय मेज पर गिरा दी… हे हे हे हे… बहुत मजा आ रहा है…

मैं- ओह फिर ठीक है… किसी पर गिरी तो नहीं ना?

मधु- नहीं… पर वो आदमी चाय साफ़ करते हुए अभी भी भाभी के चूतड़ ही निहारे जा रहा है…

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मैं- क्यों? सलोनी कुछ नहीं कर रही? मधु- अरे वो तो उसकी और पीठ करके बैठी हैं ना… और उसकी नजर वहीं है, घूर घूर कर देख रहा है…

मैं- चल ठीक है तू अपनी जगह बैठ… शाम को मिलकर बात करते हैं।

तभी मेरा केबिन में रोज़ी ने प्रवेश किया… ओह मैं सोच रहा था कि नीलू को बुलाकर थोड़ा ठंडा हो जाता क्योंकि इस सब घटनाक्रम से मेरा लण्ड बहुत गर्म हो गया था। मगर रोज़ी को भी देख दिल खुश हो गया… आखिर आज सुबह ही उसकी चूत और गांड के दर्शन किये थे…

रोज़ी- मे आई कम इन सर? मैं- हाँ बोलो रोज़ी क्या हुआ? क्या फिर टॉयलेट यूज़ करना है?

वो बुरी तरह शरमा रही थी, उसकी नजर ऊपर ही नहीं उठ रही थी, वो जमीन पर नजर लगाये अपने पैर से जमीन को रगड़ भी रही थी… रोज़ी- ओह…ववव वो नहीं सर…

मैं- अरे यार… तुम इतना क्यों शरमा रही हो… ये सब तो नार्मल चीजें हैं… हम लोगों को आपस में बिल्कुल खुला होना चाहिए… तभी जॉब करने में मजा आता है… वरना रोज एक सा काम करने में तो बोरियत हो जाती है… रोज़ी- जी सर… वो आज आपने मुझे देख लिया न तो इसीलिए…

मैं – हा हा… अरे… मैं तो तुमको रोज ही देखता हूँ… इसमें नया क्या?

मैं उसका इशारा समझ गया था पर उसको सामान्य करने के लिए बात को फॉर्मल बना रहा था… मैं चाह रहा था कि जल्द से जल्द रोज़ी खुल जाये और फिर से चहकने लगे ! रोज़ी- अरे नहीं सर… आप भी ना…

लग रहा था कि वो अब कुछ नार्मल हो रही थी, वो आकर मेरे सामने खड़ी हो गई थी… मैंने उसको बैठने के लिए बोला…

वो मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गई… रोज़ी- वो सर, आपने मुझे उस हालत में देख लिया था… मैं- ओह क्या यार? क्या सीधा नहीं बोल सकती कि नंगी देख लिया था ! रोज़ी- हम्म्म्म… वही सर…

मैं- अरे तो क्या हुआ…?? वो तो नीलू ने भी देखा था… और तुम्हारे बदन पर केवल तुम्हारे पति का कॉपीराइट थोड़े ही है कि उसके अलावा कोई और नहीं देखेगा?

रोज़ी- क्या सर? आप कैसी बात करते हो… एक तो आपने मुझे वैसे देख लिया… और अब ऐसी बातें… मुझे बहुत शर्म आ रही है…

मैं- यह गलत बात है रोज़ी जी… कल से अपनी यह शर्म घर छोड़कर आना… समझी… वरना मत आना…

रोज़ी- नहीं सर, ऐसा मत कहिये प्लीज… यहाँ आकर तो मेरा कुछ मन बहल जाता है वरना…

मैं- अरे कोई परेशानी है क्या? रोज़ी, तुम्हारी शादी को कितना समय हो गया? रोज़ी- यही कोई साढ़े चार साल… मैं- फिर कोई बेबी? रोज़ी- हुआ था सर, पर रहा नहीं… मैं- ओह आई एम सॉरी…

रोज़ी- कोई बात नहीं सर… मैं- फिर दुबारा कोशिश नहीं की?

रोज़ी- डॉक्टर ने अभी मना कर रखा है सर ! मैं- ओह… तुम्हारी सेक्स लाइफ तो सही चल रही है ना? रोज़ी- ह्म्म्म्म… ठीक ही है सर…

वो अब काफी नार्मल हो गई थी… मेरी हर बात को सहज ले रही थी… मैं- अरे ऐसे क्यों बोल रही हो? कुछ गड़बड़ है क्या? रोज़ी- नहीं सर, ठीक ही है…

वो अभी भी आपने बारे में सब कुछ बताने में झिझक रही थी… मैं माहोल को थोड़ा हल्का करने के लिए- वैसे रोज़ी, सच… तुम अंदर से भी बहुत सुन्दर हो… तुम्हारा एक एक अंग साँचे में ढला है… बहुत खूबसूरत ! सच… रोज़ी बुरी तरह से लजा गई… रोज़ी- सर… मैं- अरे यार, इतना भी क्या शर्माना…

मैंने अपनी पेंट की ज़िप खोल अपना लण्ड बाहर निकाल लिया था क्योंकि वो बहुत देर से तने तने अंदर दर्द करने लगा था… मेरा लण्ड कुछ देर पहले सलोनी और अब रोज़ी की बातों से पूरी तरह खड़ा हो गया था और लाल हो रहा था…

मैं अपनी कुर्सी से उठकर रोज़ी के पास जाकर खड़ा हुआ… मैं- लो यार, अब शरमाना बंद करो… मैंने तो तुमको दूर से नंगी देखा पर तुम बिल्कुल पास से देख लो… हा हा… और चाहो तो छूकर भी देख सकती हो…

रोज़ी की आँखें फटी पड़ी थी… वो भौंचक्की सी कभी मुझे और कभी मेरे लण्ड को निहार रही थी… मैं डर गया कि पता नहीं क्या करेगी…

कहानी जारी रहेगी।

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