अंगूर का मजा किशमिश में-10

सारिका कंवल मैं अगले दिन उठी और अपने भाई और भाभी से कहा- आज दोपहर में मैं सुधा और विजय के साथ उनको गाँव दिखाने और गाँव के बारे में बताने के लिए जा रही हूँ तो देर हो जाएगी। मैंने तौलिया और बाकी का सामान साथ ले लिया। मैं घर से निकल ही रही थी कि मेरे पति का फोन आया और उन्होंने मुझसे कहा- घर जल्दी आ जाओ.. कुछ काम है ! मैंने कहा- ठीक है मैं कल आ जाऊँगी। यह सुन कर मेरा दिल टूट सा गया क्योंकि पिछले 3 रातों से जो हो रहा था, उसमें मुझे बहुत मजा आ रहा था और ये सब अब खत्म होने वाला था। मैं निकल पड़ी, रास्ते में वो दोनों तैयार खड़े थे। हम नदी की ओर चल पड़े, रास्ते में हम बातें करते जा रहे थे। बातों-बातों में हम नदी के किनारे पहुँच गए, पर हम ऐसी जगह की तलाश करने लगे, जहाँ कोई नहीं आता हो और हम नदी में नहा भी सकें। चलते-चलते हम पहाड़ी के पास पहुँच गए, जहाँ से जंगल शुरू होता था। थोड़ा अन्दर जाने पर ये हमें सुरक्षित लगा क्योंकि ये न तो पूरी तरह जंगल था, न ही यहाँ कोई आता था। छोटी सी पहाड़ी सी थी, जहाँ से झरना जैसा बह रहा था और नीचे पानी रुका सा था, तालाब जैसा.. जिसमें कुछ बड़े-बड़े पत्थर थे। मेरी सहेली ने तब अपने बैग में से एक कपड़ा निकाला और मुझसे कहा- पहन लो। मैंने देखा तो वो एक छोटी सी पैन्टी और ब्रा थी। मैंने पूछा- ये क्या है.. मैंने तो पहले से पहनी हुई है। तब उसने कहा- यह मॉडर्न टाइप की है, इसे बिकिनी कहते हैं ! लड़कियाँ समुन्दर में नहाने के टाइम पहनती हैं ! मैंने पूछा- क्या ये मुझे फिट होंगे? तो उसने कहा- हाँ.. मेरे साइज़ का है। मैंने साड़ी उठा कर पहले अपनी पैन्टी निकाल दी, फिर दूसरी पहनी फिर ब्लाउज निकाल कर ब्रा हटा कर दूसरी पहनी जिसको पहनने में मेरी सहेली ने मेरी मदद की, फिर मैंने अपनी साड़ी और पेटीकोट निकाल दिया। विजय ने मुझे इस लिबास में बहुत गौर से देखा और कहा- तुम इसमें बहुत सेक्सी लग रही हो ! मैंने सुधा से पूछा- तुमने ऐसे क्यों नहीं पहनी? तो उसने अपनी सलवार कमीज उतार दी और मुझे दिखाया बिल्कुल मेरी तरह का उसने भी पहले से पहन रखा था। यह लिबास इतना छोटा था कि मुझे अजीब लग रहा था, पर खैर.. वहाँ हम तीनों के अलावा कोई नहीं आने वाला था। ब्रा इतनी छोटी थी कि मेरे आधे से ज्यादा स्तन दिखाई दे रहे थे और पैन्टी तो बस नाम की थी। एकदम पतला धागे जैसी जिससे मेरी योनि ही सिर्फ ढकी थी बाकी मेरे कूल्हे तो साफ़ खुले दिख रहे थे। मेरी सहेली को शायद इन सबकी आदत थी, तो उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा था। तभी विजय ने भी अपने कपड़े निकाल दिए और उसका पहनावा देख मुझे हँसी आने लगी, पर मैंने खुद को काबू में किया और हँसी रोक ली। उसने जो अंडरवियर पहनी थी, वो बिल्कुल लड़कियों की पैन्टी की तरह थी और उसके चूतड़ साफ़ दिख रहे थे। हम पानी में चले गए और नहाने लगे और एक-दूसरे के साथ छेड़खानी करने लगे। विजय कभी मेरे स्तनों को दबाता तो कभी मेरे चूतड़ों को या फिर मेरी सहेली के। हम भी कभी उसके चूतड़ों पर चांटा मारते या उसे छेड़ते.. काफी मजा आ रहा था। तीनों पानी के अन्दर थे। तभी विजय ने मुझसे पूछा- तुमने अब तक कितने लोगों के साथ सम्भोग किया है? मैंने अनजान बनते हुए कहा- सिर्फ 3 लोगों से ! उसने मुझसे फिर पूछा- किसके-किसके साथ? मैंने कहा- पति, अमर और तुम्हारे साथ ! हालांकि मैंने विजय से पहले और अमर के बाद एक और लड़के के साथ कुछ दिन सेक्स किया था, पर उस वक़्त बताना ठीक नहीं समझा। फिर मेरी सहेली ने मुझसे पूछा- अमर कौन है? मैंने उसको बताया- मैं उससे उड़ीसा में मिली थी और काफी दिन हमारे बीच सेक्स हुआ। फिर मुझसे पूछा- मेरा यादगार दिन कौन सा है? मैंने उस वक़्त कह दिया- सभी लोगों के साथ बिताए दिन यादगार हैं ! पर उन्होंने जोर दिया तो मैंने बता दिया- अमर के साथ। तभी विजय ने मुझसे पूछा- ऐसा क्या था और कोई एक दिन ही यादगार होगा हर दिन नहीं। तब मैंने उनको बताया- उसके साथ मैंने 16 दिन लगातार सम्भोग किया था, वो भी दिन में और रात में कई-कई बार और एक दिन 24 घंटे के अन्दर हमने 11 बार किया था। वो लोग हैरान हो गए कि ऐसा कैसे किया ! तब मैंने बताया कि लगातार नहीं.. बल्कि बीच-बीच में रुक कर 24 घंटे में किया था। फिर मैंने बताया कि अगले दिन मेरी हालत क्या थी, वो लोग उत्सुकता से मेरी बातें सुनने लगे। मैंने उनको बताया- उस दिन पति एक दिन के लिए बाहर गए थे, अगले दिन आने वाले थे। तो करीब 11 बजे हमने एक बार किया फिर दोपहर को 3 बार, फिर शाम को 2 बार, फिर रात भर में 5 बार, सुबह 8 बजे आखिरी बार किया तो मेरी हालत ख़राब हो गई थी। न वो झड़ रहा था न मैं, मैं बार-बार उससे विनती कर रही  थी कि मुझे छोड़ दे.. पर वो मानने को तैयार नहीं था। बस थोड़ी देर कह कह के मुझे बेरहमी से चोद रहा था। मेरी बुर में बहुत दर्द होने लगा था और खून निकल आया था। जब हम अलग हुए तो मैं ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। उसके जाने के बाद मैं वैसे ही नंगी पड़ी रही और जब आँख खुली तो देखा के बिस्तर पर खून लगा है और मेरी जाँघों और बुर में भी। मैं उठ कर साफ़ करने के लिए खड़ी हुई तो जाँघों में इतना दर्द था कि मैं लड़खड़ाते हुए गिर गई। 12 बज रहे थे मैंने उसको फोन करके बुलाया तो वो दफ्तर से छुट्टी लेकर आया और मुझे उठाकर बाथरूम ले गया। वहाँ मैंने खुद को साफ़ किया, फिर दिन भर सोई रही। शाम को अमर ने बताया कि उसको मालूम नहीं था कि खून निकल रहा है और उसके लंड में भी इतना दर्द हो रहा था कि उसने चड्डी तक नहीं पहनी उस दिन। ये सब सुनकर उनके होश उड़ गए और मेरी तरफ देखते हुए कहा- कमाल है, तुम्हारी सेक्सी देह किसी को भो जोश से भर देगी इसमें उस बेचारे का दोष नहीं ! हम अब यूँ ही खेलते हुए पानी में थोड़ी और गहराई में चले गए। वहाँ पानी करीब मेरे गले तक था और ऊपर से झरने जैसा पानी गिर रहा था, जो अधिक नहीं था। पास में कुछ पत्थर थे, विजय एक पत्थर पर पीठ के बल खड़ा हो गया, फिर मुझे अपनी और खींच लिया। मुझे पीठ के बल अपने से चिपका लिया और मेरे स्तनों को पकड़ कर मुझे भींच लिया। तभी सुधा ने नीचे पानी के अन्दर जाकर मेरी पैन्टी निकाल कर पत्थर पर रख दी, फिर ऊपर आकर मुझे चिपक गई। अब मेरा और सुधा का चेहरा आमने-सामने था तथा विजय मेरे पीछे। विजय ने अपनी टाँगों से सुधा को जकड़ लिया और मैं उन दोनों के बीच में थी। सुधा ने मेरे सिर को किनारे किया और अपने होंठों से विजय के होंठों को चूमने लगी। तब मैंने भी सुधा की पैन्टी निकाल दी। विजय ने मेरे स्तनों को मसलते हुए मेरी ब्रा को निकाल कर अलग कर दिया, फिर सुधा की ब्रा को निकाल दिया। हम दोनों औरतें अब नंगी थीं। विजय ने अब सुधा को छोड़ दिया और मुझे अपनी और घुमा कर मेरे होंठों को चूसने लगा। तब सुधा ने विजय का अंडरवियर निकाल दिया। अब हम तीनों ही नंगे हो चुके थे। मुझे थोड़ा डर भी लग रहा था, क्योंकि दिन का समय था और हम खुले आसमान के नीचे थे। विजय मुझे चूमते हुए कभी मेरे स्तनों को दबाता तो कभी चूतड़ों को। मैं भी उसके होंठों को चूसने और चूमने में मग्न हो गई। मेरे हाथ भी हरकत करने लगे, मैंने उसके लिंग को पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया, कभी मैं उसके लिंग को सहलाती तो कभी उसके अन्डकोषों को। तभी सुधा मेरे पीछे आ गई और मुझे पकड़ कर अपना हाथ मेरी योनि में लगा दिया। मैंने कहा- क्या कर रही हो? तो उसने जवाब दिया- तुझे तैयार कर रही हूँ, तुझे गर्म कर रही हूँ चुदवाने के लिए ! उसकी इस तरह की बातें मुझे अजीब तो लग रही थीं, पर एक तरफ से मुझे उत्तेजित भी कर रही थीं। फिर सुधा ने मेरी योनि को सहलाते हुए 2 उंगलियाँ अन्दर डाल दीं और उसे अन्दर-बाहर करने लगी। मैं गर्म होने लगी थी, उधर मेरे सहलाने की वजह से विजय का लिंग भी सख्त हो चुका था। विजय ने तब मेरी टाँगों को फैला कर अपने कमर के दोनों तरफ कर मुझे गोद में उठा लिया। उसने मेरी दोनों जाँघों को पकड़ कर सहारा दिया और मैं उसके गले में दोनों हाथ डाल कर किसी बच्चे की तरह लटक गई। फिर सुधा ने विजय का लिंग पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ना शुरू कर दिया, इससे मुझे बहुत मजा आ रहा था, मन कर रहा था कि जल्दी से उसे मेरी योनि में डाल दे। मैं भी अपनी योनि को उसके ऊपर दबाते हुए विजय को चूमने लगी। तब विजय ने मुझसे कहा- आज एक चीज़ तुम दोनों को करना होगा मेरी खातिर ! मैंने पूछा- क्या? कहानी जारी रहेगी। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें। [email protected]