एक सुन्दर सत्य -2

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लेखक- स्वीट राज और पिंकी सेन

उधर मन्त्री का चमचा ऊपर आ गया था और मन्त्री की सचिव नूरी को इशारे से उसने अपने पीछे आने को कहा।

दोनों का खूब याराना था तो जब भी मौका मिले अपने नंगे बदन भिड़ा बैठते थे।

नूरी भी बिना कुछ बोले उसके पीछे आ गई, दोनों ज़न्नत के कमरे में चले गये।

नूरी- क्या हुआ? यहाँ क्यों बुलाया है मुझे? मिस ज़न्नत आ के पास जा तू…

चमचा- अरे मेरी छम्मक छल्लो… इतनी जल्दी मन्त्री जी थोड़े ही उसे आज़ाद कर देंगे… आज तो बड़ी प्यारी बुलबुल पकड़ में आई है… मन्त्री जी पूरा मज़ा लेने के बाद ही उसको जाने देंगे… तब तक इस कमरे में थोड़ा गुटर-गूँ हम भी कर लेते हैं।

नूरी- आजकल कुछ ज़्यादा ही बदमाश हो गये हो, जब देखो गंदी बातें करने लगते हो? जाओ मुझे नहीं करना कुछ भी…

चमचा- ओये बहन की लौड़ी… नखरे मत दिखा। तुझे मन्त्री जी की पी ए मैंने ही बनाया है और साली, मन्त्री जी को तो कभी ना नहीं कहती… जब देखो उनकी गोद में बैठी रहती हो?

नूरी- वो तो मेरे अन्नदाता है, उनको कैसे ना कह सकती हूँ मैं…

चमचा- अन्नदाता नहीं लण्डदाता बोल… मेरी नूरी चल अब टाईम मत खराब कर…

इतना बोलकर चमचा नूरी के बदन से चिपक गया उसके चूतड़ दबाने लगा।

उधर अब जरा मन्त्री जी और ज़न्नत खान का हाल चाल भी देख लें-

अब वो धीरे धीरे आगे बढ़े और अपना होंठ ज़न्नत के होठों के पास ले जाने लगे। ज़न्नत की तेज होती गरम सांसें उनको अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी।

बस इतना कहते ही उसने ज़न्नत के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना उन्होंने अपना हाथ उसके सर के पीछे करके ज़न्नत के सर को पकड़ लिया और उसके होठों को चूमने लगे, उसके होठों के मीठे रस को पीने लगे।

अब धीरे धीरे ज़न्नत भी उत्तेजित हो रही थी, आखिर वो भी तो इंसान थी, इस हालत में कब तक अपने जज्ब्बात काबू में रख पाती। अब ज़न्नत भी साथ देने लगी थी।

मन्त्रीजी अब भी उसके होंठ चूस रहे थे, लेकिन अब उनके हाथ भी गहराइयों को टटोलने लगे थे। उनके हाथ अब उसके उरेजों पर था और वो प्यार से धीरे धीरे उसे दबा रहे थे।

मन्त्री जी बोले- ऐ बेपनाह हुस्न की मलिका, अब तो अपने हुस्न का दीदार करा दो, ऐसे अपना मुखड़ा ना छुपाओ… देखने दो मुझे इस चमकते हुए चेहरे को… निहारने दो मुझे इन रस से भरे चूचों को… मेरी आँखों कैद कर लेने दो इस सुलगते जिस्म को… आज मेरा रोम रोम तेरे क़ातिल हुस्न में रम जाने दो… दीवाना बना हूँ, कब से बेक़रार हूँ इस हुस्न को पाने को।

बस मन्त्री के हाथ उसकी पीठ के नीचे गये और पीछे से उसके ब्लाऊज़ के हुक खोलने लगा, सत्तर के दशक में साड़ी के साथ ब्लाऊज़ में पीछे के हुक लगाने का फ़ैशन था।

ज़न्नत ने भी करवट ली और अब उसकी पीठ मन्त्री के सामने थी।

अब मन्त्री जी के हाथ उसके ब्लाउज के हुक पर तेजी से घूम रहे थे और हर पल एक हुक खुलता जा रहा था।

कुछ देर में उसकी ब्लाउज खुल चुकी थी तो ज़न्नत सीधी हो गई, अब अंदर की काली ब्रा नजर आ रही थी, जो उरोजों को छुपा तो नहीं पा रही थी बल्कि आमंत्रण दे रही थी।

मन्त्री जी ने अब अपना हाथ पीछे करके उसकी ब्रा का हुक खोला और उसे उतार दिया।

क्या खूबसूरत दूधिया दो कबूतर थे। मन्त्री तो बस उस लाजवाब हुस्न को देखता रह गया।

मन्त्री जी ने ज़न्नत के सुडौल वक्षों को हाथों में दबोच लिया और आराम से धीरे धीरे सहलाने लगे।

कुछ देर तक वैसे ही सहलाते रहे फिर एक को अपने मुंह में लेकर धीरे धीरे प्यार से चूसने लगे।

ज़न्नत की आँखें बंद थी और वो रह रह कर सिहर रही थी।

मन्त्री जी उसके निप्प्ल्स को चुटकी में दबा कर गोल गोल घुमा रहे थे।

ज़न्नत का बदन अकड़ रहा था, वो उत्तेजित हो रही थी, अब उसके मुंह से मादक सीत्कार निकल रही थी।

अब तो मन्त्री जी के हाथ पूरी हरकत में आ गए, वो ज़न्नत के बूब्स को बुरी तरह से मसलने लगे।

ज़न्नत मन ही मन सोच रही थी- कमीना ऐसे कर रहा है जैसे कभी कोई लड़की नहीं चोदी।

चूमाचाटी का यह सिलसिला जब रुका तो मन्त्री के साथ साथ ज़न्नत भी गर्म हो चुकी थी, दोनों की साँसें तेज हो गई थी।

धीरे धीरे उनके हाथ ज़न्नत के बदन पर फिसल रहे थे, तेजी से निचे आ रहे थे, जैसे जैसे हाथ नीचे आ रहे थे, ज़न्नत की सांसे तेज हो रही थी।

अब हाथ पेट पर पहुँच चुका था, और उन्होंने अपनी ऊँगली ज़न्नत की नाभि में डाल दिया।

ज़न्नत का बदन अकड़ रहा था।

इधर चमचा नूरी को चोदने के लिये मरा जा रहा था- जब चमचे ने नूरी के चूतड़ मसलने शुरु किये तो नूरी बोली- ऐसे नहीं… कपड़े खराब हो जायेंगे… अगर मन्त्री जी को जरा भी शक हो गया कि तू मुझे चोदता है तो हम दोनों की छुट्टी हो जाएगी… मुझे नंगी कर ले…  इन कपड़ों पहले निकाल तो लेने दे…

चमचा- हा हा… जल्दी कर आज तुझे नया मज़ा दूँगा मैं… साली उस ज़न्नत को जब से देखा है, लौड़ा बैठने का नाम ही नहीं ले रहा… अब वो तो नसीब में है नहीं, तुझे ही ज़न्नत समझ के चोद लूँगा!

कुछ ही देर में दोनो नंगे हो गये।

नूरी का जिस्म भी काबीले तारीफ था, बड़े बड़े रस से भरे चूचे, पतली कमर पीछे बाहर को निकले हुए चूतड़, जिन्हें देख कर साफ पता चलता था कि इसकी खूब ठुकाई हो चुकी है।

चमचे का लण्ड भी करीब 6″ का ठीकठाक मोटाई वाला था।

उसने नूरी की स्कर्ट का हुक खोला तो वो नीचे गिर गई, अन्दर देखा तो नूरी ने कच्छी ही नहीं पहनी थी।

चमचा बोला- साली रण्डी, कच्छी भी नहीं पहनी आज?

नूरी बोली- वो ज़न्नत ने आना था तो मन्त्री जी ने एक बार मुझे चोद कर माल निकाल दिया था तो मैंने कच्छी अपनी फ़ुद्दी साफ़ करके वहीं फ़ेंक दी थी।

चमचा नूरी को झट से अपनी बाहों में लेकर बेड पे लेट गया और इस बीच नूरी ने अपना टॉप उतार दिया।

अब इनका कार्यक्रम चालू हो गया।

उधर देखें क्या हो रहा है ज़न्नत के साथ-

अब मन्त्री जी का हाथ धीरे धीरे नीचे और नीचे जाने लगा, और उनका हाथ उसके पैर के तलवे तक पहुँच गए थे। अब उन्होंने उसकी साड़ी के नीचे अपना हाथ डाल कर उसकी टाँगों को सहलाना शुरू किया।

जैसे जैसे हाथ अंदर जाता, वो हर पल उत्तेजित होती जा रही थी।

अब उनका हाथ उसकी जांघों पर था और साड़ी भी ऊपर सरकती जा रही थी।

जब मन्त्री जी ने उसके जांघों को सहलाना शुरू किया। ज़न्नत दोनों हाथों से बेडशीट पकड़ रखी थी, और वो अपनी एड़ियाँ बिस्तर पर रगड़ रही थी।

अब उसकी पैंटी नजर आने लगी, काली जालीदार, जिसके नीचे से उसकी खूबसूरत दूधिया चूत नजर आ रही थी।

मन्त्री जी अब उसकी साड़ी को उतार चुके थे और वो अब पैंटी में थी।

ब्लाऊज उतर गया, ब्रा उतर गई, साड़ी जाघों तक उठ गई तो पेटिकोट उतरने में कौन सी देर लगनी थी, मन्त्री ने जल्दबाज़ी दिखाते हुए उसे भी नाड़ा खींच कर नीचे सरका दिया।

उसकी छुई मुई सी प्यारी चूत पैंटी में अपना रस छोड़कर अपनी हालत का अहसास करवा रही थी।

जैसे ही मन्त्री जी ने अपना हाथ पैन्टी से ढकी उसकी चूत पर रखा, ज़न्नत ने अपने होठों को दांतों से भींच लिया।

अब उसके बस में नहीं था खुद पर काबू करना !

मन्त्री जी भी कैसे सब्र कर सकते थे, बेपनाह हुस्न की मल्लिका आँखों के सामने, लगभग निरावृत लेटी थी।

तो उन्होंने ज़न्नत की पैंटी उतार दी।

ज़न्नत शर्म से पेट के बल लेट गई।

पास में फूलों के गुलदस्ते में गुलाब था, मन्त्री जी ने उसे उठाया और उसके पैरों से गुलाब को धीरे धीरे ऊपर ले जाने लगे, गुलाब ज़न्नत की खूबसूरत जिस्म को चूम रहा था और गुलाब के ठीक पीछे मन्त्री जी का हाथ।

अब गुलाब उसके हिप्स से होता हुआ ज़न्नत के कन्धों पर था, ज़न्नत अभी भी वैसे ही लेटी थी।

मन्त्रीजी ने उसके कन्धों को पकड़ कर उसे सीधा लिटा दिया, ज़न्नत ने अपनी आँखों को दोनों हाथों से ढक लिया।

मन्त्री जी उसके हाथों को हटाते हुए बोले- मेरी तरफ देखो, और मुझे अपनी आँखों से इस खूबसूरती को देखने दो।

अब दोनों एक दूसरे की आँखों देख रहे थे, मन्त्री जी के हाथ उसके प्यारी सी मखमली चूत पर थे और वो धीरे धीरे सहला रहे थे।

ज़न्नत की साँसें तेज चल रही थी।

मन्त्री जी ने आनन-फानन में अपने कपड़े निकाले तो उसका 7″ का लौड़ा आज़ाद हो गया जिसकी मोटाई भी अच्छी खासी थी।

मन्त्री जी भी अब नंगे हो चुके थे, और वो ज़न्नत के बगल में लेट गए, उन्होंने अपने पैर ज़न्नत के चेहरे की तरफ किये तो उनका मुंह ज़न्नत के हसीं मखमली प्यारी सी चूत के करीब था।

उन्होंने ज़न्नत को करवट करके उसकी चूत अपनी तरफ किया और ज़न्नत के कूल्हों को अपने हाथों से पकड़ कर उसकी चूत को अपने मुंह के करीब लाए।

मन्त्री जी का तगड़ा मोटा लंड ज़न्नत के चेहरे के करीब था, लेकिन वो बस उसे देख रही थी पर मन्त्री जी ने उसकी चूत को चूमना शुरू कर दिया था।

उनके लौड़े से पानी की बूंदें आने लगी।

अचानक से मन्त्री जी ने अपने हाथ से ज़न्नत का हाथ पकड़ा और उसके हाथ में अपना लंड दे दिया और बोले- शरमाओ नहीं, आओ एक दूसरे में खो जाएँ, आज की रात मुझे ज़न्नत नसीब होने दो, पूरी तरह।

मन्त्री जी के इतना बोलने से ज़न्नत, जो उत्तेजित तो पहले ही थी, अब साथ देने लगी, वो लंड हाथ में लेकर उसे धीरे धीरे ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर सहलाने लगी। ज़न्नत पर अब वासना हावी हो चुकी थी, उसने झट से लौड़ा अपने मुख में ले लिया और मज़े से चूसने लगी।

मन्त्री जी भी पूरी तरह मदहोश हो चुके थे, उन्हें तो वो मिल गया था, जिसके लिए वो तब से तड़प रहे थे, जब से उसे रुपहले परदे पर, गीली साड़ी में देखा था।

यकीं नहीं हो रहा था कि आज वही बिना किसी आवरण के पूरी तरह निरावृत लेटी थी, ये सोच कर उन्हें और जोश आ गया।

अब दोनों पूरी तरह तैयार थे, मन्त्री जी ज़न्नत की चूत चाट कर ज़न्नत का नशा महसूस कर रहे थे, वो अपनी जीभ की नोक से चूत को चोदने लगे, उनको बड़ा मज़ा आ रहा था, ज़न्नत की चूत पानी पानी हो गई थी।

नूरी और चमचे का हाल भी जान लें एक बार-

ये दोनों एक दूसरे को चूसने में लग गये थे, थोड़ी देर बाद दोनों 69 के पोज़ में हो गये और रस का मज़ा लेने लगे।

दोनों काफ़ी उत्तेज़ित हो गये थे, अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था तो चमचे ने उसकी दोनों टाँगें फ़ैला दी और फच की आवाज़ के साथ पूरा लौड़ा एक धक्के में नूरी की फ़ुद्दी में घुसा दिया।

नूरी- आह… मार डाला रे… जालिम… उई!

चमचा- अभी कहाँ जानेमन… ले अब और मज़ा ले!

वो दे दनादन लौड़ा नूरी की खुली चूत में पेलने लगा। नूरी भी कूल्हे उछाल उछाल कर चुदने लगी थी। दोनों ने कमरे का माहौल काफ़ी सेक्सी बना दिया था क्योंकि उनके मुँह से ‘आ… आईई… उफ़फ्फ़…’ की सी आवाज़ें चारों और गूंजने लगी थी।

10 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद दोनों शांत हो गये, उनका वीर्य निकल कर मिक्स हो गया और वो अब बेड पे एक दूसरे की ओर देख कर बस मुस्कुरा रहे थे।

इधर तो खेल खत्म, मन्त्री जी का देखें क्या हाल है-

अब उन्माद चरम पर था, मन्त्री जी के जीभ जो ज़न्नत की चूत पर घूम रही थी, वो ज़न्नत के शरीर में बिजली जैसी हलचल मचा रही थी, और एक रोमांच पैदा कर रही थी, अब मन्त्री जी और ज़न्नत दोनों एक दूसरे में समां जाने को तैयार थे।

मन्त्री का लौड़ा भी बेकाबू हो गया तो मन्त्री जी ने ज़न्नत को सीधा लिटाया और उसके ऊपर जाकर बैठ गए, और दोनों हाथों से उसकी चूचियों को पकड़ लिया और उसके बीच लंड रख कर चूचियों की चुदाई करने लगे।

ऐसा करने से ज़न्नत और उत्तेजित हो रही थी, उसकी आँखें ऐसे बंद हो रही थी, जैसे उसे नशा छाया हो, अब मन्त्री जी ने सोच कि अब देर नहीं करना चाहिए।

अब मन्त्री जी अपने लक्ष्य के पास थे, उन्होंने अपना लंड ज़न्नत की चूत पर रखा और उसकी चूत वाकई प्यारी थी, उसे दो उँगलियों से फैलाया और उसके बीच में लंड रखा और धीरे धीरे गहराइयों में उतरने लगे, गहराइयों में उतरने का सफर काफी हसीं, मदमस्त था, जैसे जैसे गहराइयों में उतरते गए, नशा बढ़ता गया।

अब ज़न्नत कोई कच्ची कुँवारी तो थी नहीं जो उसकी सील टूटती… शोहरत की इस ऊंचाई तक पहुँचने के लिए ना जाने कितने लौड़ों पर चूत टिका टिका कर आगे आई है, अब वो भी मन्त्री जी के लौड़े की चोट के मज़े लेने लगी।

ज़न्नत के हाथ तकिये पर थे, जैसे ही मन्त्री का धक्का पड़ता, वो तकिये जो जोर से भींच लेती थी।

धीरे धीरे रफ़्तार बढ़ती जा रही थी और हर झटके के साथ वक्ष एक लय में हिलते, जैसे झटका लगता चूचियाँ ऊपर की तरफ जाती, और फिर जैसे ही वापस खीचते फिर वापस अपने जगह पर आ जाती।

जैसे जैसे तेजी बढ़ती गयी रोमांच बढ़ता गया, दोनों एक दूसरे में खोते गए, श्रम के निशान उनके शरीर पर पसीने की बून्द बनकर दिख रही थी।

दोनों की सांसें तेज चल रही थी, अचानक तबसुम की साँसे धीमी होने लगी और वो शिथिल पड़ने लगी।

मन्त्री जी की सांसें और गति दोनों अभी तेज थी, वो और तेज और तेज गहराइयों उतरते जा रहे थे, हर झटका उन्माद की चरम की ओर ले जा रहा था, ज़न्नत की आँखें बंद थी और हाथ मन्त्रीजी के कमर पर थी।

आखिर वो लम्हा भी आया जब मन्त्रीजी की साँसे उखड़ने लगी और फिर गहराइयाँ कम होती गयी और उसमे प्यार की निशानी गरम गरम सा लावा भरता चला गया।

ज़न्नत की चूत ने भी एक वी आई पी लौड़े के सम्मान में अपना रज त्याग दिया, दोनों के पानी का मिलन हो गया एक फिल्म हिरोइन और दूसरा राजनेता, दोनों के पानी का मिलन एक अलग ही दास्तान ब्यान कर रहा था।

अब दोनों शिथिल पड़ गए।

मन्त्रीजी ज़न्नत को महसूस कर चुके थे और उसके ऊपर लेटे थे, कुछ देर के बाद नीचे उतरकर ज़न्नत के बगल में लेट गए, और अपना पैर ज़न्नत के पैरों पर रख दिया और हाथों से उसके वक्ष सहलाने लगे।

आखिर उनकी सपनों की राजकुमारी जो उनके पास लेटी थी और उसे वो पूरी तरह पा चुके थे।

दोनों अब अलग अलग होकर बेड पे लंबी साँसें ले रहे थे। कहानी जारी रहेगी…

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