ये दिल … एक पंछी-2

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प्रेषिका : निशा भागवत

“ओह्ह्ह ! मैं तो गई…”

“प्लीज निशा …”

निशा की चूत से पानी निकल चुका था।

पर उनका लण्ड ठोकना बन्द नहीं हुआ … कुछ देर और चुदी फिर एक और आह निकली- बस करो विवेक… मैं तो फिर झड़ने वाली हूँ।

पर उसकी कौन सुनता ? उन्हें तो पूरी कसर निकालनी जो थी। दोनों के लयबद्ध शॉट चलते रहे। फिर दोनों के लण्ड चरमसीमा को छूते हुये यौवन रस को त्यागने लगे। निशा के पांव थरथराने लगे। तीनों फिर से झड़ चुके थे।

निशा को तीन बार झड़ने से कमजोरी सी आ गई थी। उसके पैर थरथराने लग गये थे। वो नीचे बैठने सी लग गई थी। दोनों ने उसे सहारा दिया। विवेक ने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किये और विक्रम ने निशा को अपनी गोदी में ले लिया। विक्रम ने जल्दी से निशा का पायजामा अपने हाथों में समेटा और नीचे उतरने लगे। कार तक उन्हें देखने वाला कोई ना मिला। विक्रम ने कार का दरवाजा खोला और विवेक निशा को लेकर सावधानी से कार में घुस गया। निशा अपने आप को सम्हालते हुये ठीक से बैठ गई और अपना पायजामा ठीक करके पहन लिया। विक्रम ने उन्हे आगे जाकर एक एक कोल्ड ड्रिंक पिलाई और होटल की तरफ़ बढ़ चले।

होटल तक पहुँचते पहुँचते निशा सामान्य हो गई थी। कमरे में जाकर तीनों ने स्नान किया और भोजन के लिए वापिस नीचे डायनिंग हॉल में आ गये। भोजन के बाद निशा में तरोताजगी आ गई थी। अब वो चहक रही थी।

“कितने खराब हो तुम दोनों … देखो तो मेरा कैसा हाल कर दिया।” निशा ने शिकयती स्वर में कहा।

“और हमारा जो हाल हुआ उसका कुछ नहीं…” विवेक शरारत से बोल उठा।

“देखो ना, मुझे तो जोर से पेल दिया… बेशरम कहीं के…” निशा ने भी ठिठोली की।

“अब कैसे रोके भला… तुम हो ही इतनी सेक्सी… क्या तो तुम्हारे बम… और क्या तो…”

“ऐ… चुप… चुप, खाना हो गया हो तो उठो…” अब चलें।

तीनों अपने कमरे में आ गये।

“आज तो राम जी… मैं तो नंगी हो कर सोऊंगी … मेरी मन में बहुत इच्छा थी कि मर्दों के साथ मैं नंगी होकर सो जाऊँ।” निशा ने चहकते हुये कहा।

“तो फिर हम भी कपड़े क्यों पहने ? चलो नंगे ही सो जाएँ !”

“पर एक ट्रिप तो बनता है ना?” निशा ने शरारत से कहा।

सभी ने कपड़े उतार दिये।

“अब विवेक तुम पास आओ…”

निशा ने विवेक का झूलता हुआ लण्ड जैसे ही पकड़ा… उसमें तो जैसे जान आ गई। उधर विक्रम का लण्ड भी फ़ूल कर कुप्पा हो गया।

“सुनो … कहते हुये तो शरम आती है पर प्लीज … अब मुझे वो सब करना है जो मैं या मेरे पति मेरे साथ नहीं कर सकते हैं।” निशा ने झिझकते हुये कहा।

“सच निशा जी … हम भी तो नहीं कर पाते है ना … प्लीज आज शरम-वरम छोड़ कर वो सब कर ले जो मन में है।” विक्रम ने भी निशा की बातों में राजीनामा दे दिया।

“तो निशा जी घूम जाईये, मुझे आपकी मस्त गाण्ड का छेद चाटना है।” विवेक ने चहकते हुये कहा।

“और निशा जी, प्लीज आप मेरी गाण्ड में अंगुली घुसा कर मुझे आनन्दित कीजिये।”

“तुम मुझे अपना लण्ड चुसाओगे। ठीक है ना?” निशा ने भी अपनी छोटी सी ख्वाहिश उनके सामने रख दी।

विवेक नीचे लेट गया, उसके ऊपर निशा अपनी गाण्ड को इस तरह से रख कर बैठ गई कि उसकी गाण्ड का छेद उसके मुख के समीप आ गया। विवेक ने लपालप निशा की गाण्ड का छेद चाटना शुरू कर दिया। निशा मस्ती से झूमने लगी। विवेक का लण्ड 120 डिग्री पर तन गया। इतना सख्त लण्ड निशा को चूस कर आनन्द आ गया। निशा ने अपनी एक अंगुली विक्रम की गाण्ड में पिरो दी और अन्दर-बाहर करने लगी। कुछ ही समय पश्चात तीनों का स्खलन हो गया। अपने अपने मन की सबने कर ली थी। तीनों उठे और बाथरूम में पेशाब त्यागने जाने लगे।

निशा के बाथरूम जाते ही दोनों ने कुछ इशारा किया और शरारत के मूड में निशा के पीछे पहुँच गये। निशा नीचे बैठी ही थी कि उसकी पीठ पर विवेक ने पेशाब करना शुरू कर दिया।

“अरे रे रे … विवेक, ये क्या कर रहे हो?”

“कुछ नहीं बस नहला रहा हूँ !” विक्रम ने भी लण्ड हिलाते हुये पेशाब की बौछार कर दी और निशा के सर पर मूतना आरम्भ कर दिया। निशा को इस तरह से भीगने का पहला अहसास था … पर गर्म-गर्म पेशाब की धार उसे मोहने लगी थी। वो कभी अपना मुख धार के समक्ष करके अपना मुख भिगाने लगती तो फिर अपने ही हाथों से उसे शरीर पर मलने लगती। खारा खारा उनका पेशाब उसके मुख में भी प्रवेश कर रहा था।

“अरे और करो ना … मजा आ रहा है … हाय राम प्लीज और करो ना …।”

“अरे यह लण्ड है कोई पानी की टंकी नहीं है… बस हो गया ना।”

“तो अब चलो तुम मेरी जगह बैठ जाओ…”

“क्यों … भई क्यों?”

“अरे बैठो तो सही…”

उनके बैठते ही निशा ने अपनी टांगे फ़ैलाई और मूत्र द्वार खोल दिया। निशा के मूत्र की मोटी धार च्छुर-च्छुर करती हुई दोनों के चेहरे भिगोने लगी। निशा अपनी चूत को हिला हिला कर मूत्र को उनके शरीर पर बिखेरती रही। तीनों ही हंसते हुए मस्ताने लगे। जब निशा मूत चुकी तो दोनों ने उसे अपनी गोदी में लेटा लिया और शॉवर खोल दिया।

दूसरे दिन सवेरे देर से उनकी आँखें खुली। पर चेक आऊट का समय तो 12 बजे तक का था। ब्रेड बटर वो शाम को ही सामने की शॉप से ले आये थे। सो बस चाय मंगा ली। नाश्ता करके एक एक करके स्नान को चले गये। जैसे ही विक्रम स्नान करने गया तो निशा ने अपनी चड्डी नीचे सरका कर विवेक से बोली- आ जाओ, जल्दी से एक राऊण्ड ले लो।

“ओह्ह… जरूर… तुम हमारा कितना ख्याल रखती हो।”

निशा जल्दी से पलंग पर हाथ टिका कर घोड़ी सी बन गई और अपनी गाण्ड विवेक के सामने उभार दी। विवेक ने जल्दी से अपना लण्ड का सुपारा खोला और क्रीम लगा कर अपने लण्ड को उसकी गाण्ड में घुसेड़ दिया। उसके शॉट आराम से, पर एक लय के साथ चल रहे थे। जब तक विक्रम स्नान करके बाहर आया तब विवेक अपना लण्ड बाहर निकाल कर वीर्य निकालने ही वाला था। निशा ने आज मौका नहीं छोड़ा… उसने विवेक का लण्ड अपने मुख में भर लिया और उसका वीर्य पूरा ही पी लिया।

“आओ विक्रम… तुम भी अपना माल निकाल लो…” निशा ने विक्रम का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

विक्रम तो उन्हें देख कर पहले ही जोश में आ गया था। उसने भी जल्दी से अपना लण्ड निशा की गाण्ड में फ़ंसाया और लगा चोदने…

जब झड़ने की बारी आई तो विक्रम ने स्वयं ही अपना लण्ड निशा के सुकोमल मुख में दे दिया। उसे भी निशा ने पूरा पी लिया और चूस चूस कर उसका लण्ड साफ़ कर लिया।

निशा ने विक्रम से कहा कि अब वो उसे शान्त कर दे…

विवेक तो स्नान के लिये चला गया था। विक्रम नीचे बैठ गया और उसकी चूत को दोनों अंगुलियों से खोल दिया। उसकी जीभ लपड़ लपड़ करके चूत को चाटने लगी। दाने को चूस चूस कर निशा को मस्त कर दिया। फिर का का ढेर सारा पानी छूट पड़ा, जिसे विक्रम अच्छी तरह से चाट कर पी गया।

तीनों स्नान आदि करके सामान को कार में रख दिया। विक्रम ने सारा पेमेन्ट कर दिया और घर के लिये निकल पड़े। सब कुछ अच्छा था … परीक्षा तीनों ने अच्छी तरह से दी थी … चुदाई भी शानदार थी, जी भर कर तीनों ने मज़े किए थे… तीनों बहुत खुश थे।

दो घन्टे में वो अपने घर पहुँच चुके थे। निशा के पति राजेश्वर उनका इन्तज़ार ही कर रहे थे, उन्हें निशा की मदद करने पर आभार जताया।

अगले मंगलवार को बाकी की परीक्षा के लिये तीनों ने बात कर ली थी कि वे सोमवार को निकल जायेंगे और बाकी के पांच पेपर शनिवार तक निपट जायेंगे।

रात को राजेश्वर के मुख के सामने अपनी चूत को सटा कर उसे चाटने को मजबूर कर रही थी। पर वो अनमने भाव से बस यहाँ वहाँ चाट लेते थे। किसी तरह निशा ने अपने आप को झड़ा लिया और राजेश्वर से चिपक कर लेट गई।

“तुम्हें बहुत बुरा लगता है ना…?” राजेश्वर ने पूछा।

“अब सो जाओ… सब ठीक है…” निशा ने निराशाजनक भाव में कहा।

“नहीं निशा, मैं समझता हूं … जब तक लण्ड चूत में जाकर चोदता नहीं है … मन में तो रह ही जाती है ना।”

“तो क्या करूँ ? किससे फ़ड़वाऊँ अपनी फ़ुद्दी ! कौन ठूंसेगा अपना लण्ड मेरी चूत में…?” निशा कुछ क्रोध में बोली।

“किसी से भी चुदवा लो… मुझे मत बताना बस… तुम कहोगी तो मैं उस दिन घर से बाहर ही रहूँगा !”

निशा ने अपने पति को कातर भाव से देखा फिर उनकी मजबूरी को देखा तो एक दया भाव जाग उठा- मुझे रण्डी या छिनाल समझ रखा है क्या…?

फिर दया से वशीभूत होते हुये बोली- … जानू … ऐसा मत बोलो … मैं तो ऐसे ही जैसे तैसे आपके प्यार के सहारे जी लूंगी… बस मुझे तो आपका प्यार चाहिये। लण्ड तो बस जवानी भर का है … आगे तो आपका प्यार ही है ना …।

राजेश्वर ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और उसके बालों पर प्यार से हाथ फ़ेरता हुआ अपनी प्यारी पत्नी को चूमने लगा।

मन ही मन में निशा अपनी आने वाली रंगीन दिनों की आस में सपने बुनने लगी। कुछ नये स्टाइल, कुछ और नयापन … और कुछ जोरदार चुदाई … उसका मन गुदगुदा उठा था।पाँच पेपर जब तक पूरे होंगे, तब तक तो वो जी भर कर चुदवा चुकी होगी।

निशा भागवत

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