कामना की कामवासना -3

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लेखिका : कामना रस्तोगी प्रेषिका : टी पी एल मेरी बात सुन कर ससुरजी का मुख खुला का खुला ही रह गया और धम्म से बिस्तर पर बैठते हुए बोले- कामना, तुम यह क्या कह रही हो? तुम मेरी बहू हो, मैं तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी करने की सोच भी नहीं सकता और ना ही करना चाहूँगा।

मैं रोष दिखाते हुए कहा- जब आप कुछ करना नहीं चाहते तो फिर यह चिंता का ढोंग किस किये कर रहे हैं? मेरे लिए चिंतित दिखने का झूठा नाटक क्यों कर रहे हैं?

मेरी बात सुन कर वह बोले- नहीं कामना, तुम गलत सोच रही हो। मुझे तुम्हारी चिंता है इसीलिए रात के समय तुम्हे इस हालत में देख कर मैं परेशान हो गया था। जो बात तुमने स्त्रियों के बारे में कही है वह मैं जानता हूँ लेकिन तुम्हारे परिपेक्ष में मैं वह सोच ही नहीं सकता हूँ।

मैं भड़क उठी और कह दिया- क्यों नहीं सोच सकते? क्या आप एक पुरुष नहीं हो? क्या आपको पता नहीं की जब एक स्त्री उत्तेजित हो जाती है तब उसकी क्या हालत होती है? जब सासू माँ जिन्दा थी तब क्या उन्हें भी आप इस तरह पसीने में भीगे देख कर डॉक्टर को बुलाने जाते थे?

मेरे कथन के उत्तर में उन्होंने कहा- मैं यह सब जानता और समझता हूँ लेकिन तुम्हारी सास मेरी पत्नी थी।

मैंने तुरंत कह दिया- लेकिन सासू माँ भी एक स्त्री थी इसीलिए तो वह आप की पत्नी बनी थी। आप अपनी पत्नी की नहीं एक स्त्री की कामवासना का इलाज़ करते थे और उसको संतुष्टि देते थे। मैं भी एक स्त्री हूँ जो उसी तरह की गर्मी और जलन से तड़प रही हूँ तो फिर आप मेरी कामवासना का इलाज़ करके मुझे संतुष्ट क्यों नहीं कर देते?

इसके बाद ससुरजी ने बहुत से तर्क दिए लेकिन मैंने उनकी एक भी तर्क को स्वीकार नहीं किया और सरकते हुए उनके पास पहुँच गई तथा उनकी जाँघों पर अपना सिर रखने लगी।

अब चौंकने की बारी मेरी थी… क्योंकि जैसे ही मैं सिर नीचे रखने के लिए झुकी तभी ससुरजी झटके से उठ कर खड़े हुए और उनकी लुंगी आधी मेरे नीचे बिस्तर पर थी और बाकी की आधी फिसल कर फर्श पर गिर पड़ी थी।

हुआ ऐसे था कि मेरे उनके पास सरकते समय उनकी लुंगी का कुछ अंश मेरे शरीर के नीचे आ गया था और जब ससुरजी झटके से उठे तब उनकी लुंगी की गाँठ खुल गई और वह उनके शरीर से अलग हो गई।

हड़बड़ाते हुए नग्न ससुरजी अपने एक हाथ से अपने तने हुए लिंग को छुपाते हुए और दूसरे हाथ से मेरे नीचे से अपनी लुंगी खींचने लगे।

उनकी झल्लाहट देख कर मैंने उनसे कहा- पापाजी, शायद ऊपर वाला भी यही चाहता है कि आप मेरी अन्तर्वासना की संतुष्टि करें। तभी तो उसने आपकी लुंगी को आपके तन से अलग कर दी है।

मैंने आगे कहा- आप इस तने हुए लिंग को अभी बाथरूम में लेजा कर हस्त-मैथुन करके शांत करें लेंगे लेकिन वह नहीं करेंगे जिस एक ही क्रिया से हम दोनों को कामवासना को शांति एवं संतुष्टि मिल जाए।

मेरी दलील सुन कर ससुरजी का ह्रदय परवर्तन हो गया और उन्होंने लुंगी का छोर और अपने लिंग को छोड़ दिया और बनियान उतारते हुए पूर्ण नग्न मेरे नज़दीक आ कर खड़े हो गए।

मेरे दोनों हाथ प्लास्टर में बंधे होने के कारण मैं तो ससुरजी के किसी भी अंग को छू नहीं सकी लेकिन उनके तने हुए लिंग को हसरत भरी नजरों से देखती रही।

उनके लिंग और मेरे पति के लिंग में इतनी समानता थी कि कुछ क्षण के लिए तो मैं समझी कि मेरे पति ही मेरे सामने खड़े है क्योंकि दोनों लिंगों का रंग, रूप, आकार और नाप बिल्कुल समरूप था।

मेरे पति की तरह मेरे ससुर का लिंग भी साढ़े छह इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा था तथा दोनों के सुपारे की त्वचा का रंग, रूप एवं आकार भी एक जैसा ही थी

फिर ससुरजी ने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर बिठा दिया और मेरी नाइटी को ऊपर कर के मेरे शरीर से अलग कर दी तथा मेरी टांगों से मेरी पैंटी भी उतर कर मुझे पूर्ण नग्न कर दिया।

इसके बाद वे मेरे बहुत पास आ गये तथा मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों मे ले कर मेरे होंठों पर अपने होंठों को रख दिया।

अगले दस मिनट तक हम दोनों चुम्बन का आदान प्रदान करते रहे और साथ में ससुरजी अपने हाथों से मेरे स्तनों को दबाते और चुचूकों को उँगलियों से मसलते रहे।

दस मिनट के बाद उन्होंने मेरे दोनों स्तनों पर हमला कर दिया और उन्हें बारी बारी चूसने लगे जिसके कारण मुझे अपने शरीर में चींटियाँ रेंगती महसूस होने लगी थी।

मेरे स्तनों और चुचुकों में बहुत तनाव आ गया और वे एकदम सख्त हो गये थे एवं उनका आकार भी बढ़ गया था।

ससुरजी जब मेरी चुचूकों को चूस रहे थे तब मेरे स्तनों में से उत्तेजना की तरंगें मेरी नाभि से होती हुई मेरी योनि तक पहुँच रही थी जिसके कारण मेरी योनि पूर्व-रस के रिसाव से बिल्कुल गीली हो गई थी।

दस मिनट तक मेरे स्तनों को चूसने के बाद जब ससुरजी ने खड़े हो कर अपने तने हुए लिंग को मेरे ओर बढ़ाते हुए मेरे होंठों के पास लाये … कहानी जारी रहेगी।

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