कामना की कामवासना -2

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

लेखिका : कामना रस्तोगी प्रेषिका : टी पी एल

रात का एक बज चुका था और ससुरजी जब मेरे कमरे की लाईट बंद करके अपने कमरे में सोने के लिए जाने लगे तब मैंने उन्हें कहा– पापाजी, रात में मुझे बाथरूम में जाने एवं पैंटी उतरवाने के लिए आपकी ज़रूरत पड़ सकती है इसलिए आप मेरे कमरे में मेरे साथ वाले बिस्तर पर ही सो जाइए।

ससुरजी मेरी बात सुन कर थोड़ा झिझके लेकिन फिर बोले- अच्छा, मैं अपने कमरे की लाईट बंद करके आता हूँ।

लगभग पांच मिनट के बाद वह आ कर मेरे साथ वाले बिस्तर पर मेरी ओर पीठ कर के सो गए।

रात में मुझे दो बार बाथरूम जाना पड़ा जिसके लिए मैंने ससुरजी का सहारा लिया और अपनी वासना की तृप्ति के लिए उनसे हर बार अपनी योनि में उंगली डलवा कर सफाई भी करवाई।

क्योंकि मेरी उत्तेजना एवं वासना की तृप्ति हो चुकी थी इस कारण मैं भी निश्चिन्त हो कर नींद की गोद में खो गई और सुबह बहुत देर तक सोई रही।

ससुरजी मेरे कमरे से कब उठे कर गए मुझे पता ही नहीं चला और मेरी नींद तब खुली जब कामवाली मेरे कमरे की सफाई करने के लिए आई थी!

मुझे इतनी गहरी नींद आई थी कि मुझे कामवाली के आने का और ससुरजी के काम पर जाने का पता भी नहीं चला था।

दिन तो दो-तीन बार कामवाली बाई के सहारे सामान्य रूप से बीत गया लेकिन रात कैसे बीतेगी, मुझे इसकी चिंता सताने लगी थी।

रात को दस बजे जब ससुरजी सोने जाने से पहले मुझे देखने तथा मेरे कमरे की लाईट बंद करने आये तब मुझसे पूछा- कामना, मैं सोने जा रहा हूँ। अगर तुम्हे कुछ चाहिए तो बता दो, मैं अभी दे जाता हूँ।

मैंने कहा- पापाजी, सब कुछ तो कामवाली रख गई है। अभी तो मुझे बाथरूम के लिए आपका सहारा चाहिए है। आप रात की तरह यहीं मेरे साथ वाले बिस्तर पर सो जाइए क्योंकि रात को भी तो बाथरूम जाने के लिए मुझे आपकी ज़रुरत पड़ेगी। एक बार तो अभी ही जाना पड़ेगा।

मेरी बात सुन कर ससुरजी ने मुझे उठा कर खड़ा किया और मेरी कमर को पकड़ कर सहारा देते हुए मुझे बाथरूम में ले गए।

वहाँ मेरे कहे अनुसार उन्होंने मेरी नाइटी को ऊँचा करके मेरी पैंटी को उतरा और मुझे पॉट पर बिठा दिया।

फिर उन्होंने मेरी पैंटी में से सैनिटरी नैपकिन उतार कर डस्ट-बिन में और पैंटी को धोने वाले कपड़ों में डाल दिया।

इसके बाद वह कमरे में जा कर एक साफ़ पैंटी पर नया सैनिटरी नैपकिन चिपका कर ले आये।

उनके आने पर मैंने अपनी टाँगें चौड़ी करके उन्हें मेरी योनि की सफाई के लिए संकेत दिया।

मेरे संकेत को समझ कर वह मग में पानी भर कर ले आये और पानी के छींटे मार कर अपने हाथ से मेरी योनि को मल मल कर साफ़ कर दिया।

फिर मेरे बिना कहे ही उन्होंने अपनी बड़ी उंगली मेरी योनि के अन्दर आठ-दस बार डाल कर उसे साफ़ किया और फिर बाहर से उसे धो कर उसमें से निकला खून और योनि रस भी साफ़ कर दिया।

इसके बाद उन्होंने मुझे सेंट्री नैपकिन लगी हुई साफ़ वाली पैंटी पहना कर मुझे सहारा देते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और कमरे की लाईट बंद खुद भी साथ वाले बिस्तर पर सो गए।

पिछली रात की तरह उस रात को भी मैंने दो बार ससुरजी के सहारे से बाथरूम में जा कर अपनी वासना की तृप्ति के लिए उनसे हर बार अपनी योनि में उंगली डलवा कर सफाई भी करवाई।

उस रात भी मुझे बहुत अच्छी नींद आई और मैं सुबह तक एक ही करवट सोती रही तथा कामवाली ने ही मुझे जगाया था।

यही सिलसला अगले तीन दिनों तक यानि की मेरे मासिक धर्म के आखिरी दिन तक चलता रहा और मैं उन सभी दिनों में बहुत ही संतुष्ट एवं खुश रहती थी।

पांचवीं रात यानि की मासिक धर्म बंद होने की आखरी रात को जब ससुरजी ने मेरी योनि की सफाई करी और उन्होंने अपनी उंगली पर खून नहीं लगा पाया तब उन्होंने मुझे वह उंगली दिखाते हुए कहा- कामना, अब तो तुम्हारा मासिक धर्म बंद हो गया है क्योंकि आज तो तुम्हारी योनि से खून नहीं निकला है।

उनकी बात का उत्तर देते हुए मैंने कहा- हाँ पापाजी, मासिक धर्म को होते हुए आज पांच दिन पूरे होने को है इसलिए बंद तो हो जाना चाहिए, लेकिन फिर भी आज की रात तो सफाई करनी ही पड़ेगी।

मेरी बात सुन कर ससुरजी ने अपनी उंगली कई बार मेरी योनि में डाल कर घुमाते रहे जब तक की मेरा रस नहीं निकल गया।

फिर उन्होंने उसे अच्छी तरह से मल मल कर धोया ओर साफ़ करके मुझे पैंटी पहना कर सहारा देते हुए बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और मेरे साथ वाले बिस्तर पर सो गए।

जल्द ही ससुरजी के खराटे सुनाई देने लगे लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी क्योंकि मैं आगे आने वाले दिनों के बारे में सोच रही थी।

मुझे चिंता थी की मेरे मासिक धर्म बंद होने के बाद जब मैं पैंटी पहनना बंद कर दूंगी तब तो मैं बाथरूम आदि के लिए ससुरजी से सहारा भी नहीं मांग सकूँगी और उस स्थिति में मेरी कामवासना की आग की संतुष्टि कैसे होगी?

मेरे मस्तिष्क में अगले दिन से फिर कामवासना की आग में तड़पने का ख्याल आते ही मेरा शरीर काम्प उठा और मैं उठ कर बैठ गई तथा मुझे पसीने आने लगे।

तभी ससुरजी ने करवट बदली और मुझे बैठे हुए पाया तो उन्होंने समझा कि मुझे बाथरूम जाना है इसलिए तुरंत लाईट जला कर मुझे देखने लगे।

मेरे चेहरे और बदन पर पसीना देख कर वह घबरा उठे और चिंतित स्वर में पूछा- क्या हुआ कामना, तुम ठीक तो हो? तुम्हें इतना पसीना क्यों आ रहा है?

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूँ इसलिए कह दिया- मैं ठीक हूँ पापाजी, ऐसी कोई बात नहीं है! बस थोड़ी गर्मी से परेशान हूँ और समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ।

जब ससुरजी ने पूछा- पंखा चला दूँ क्या?

तब मैं समझ गई कि उनकी तरफ से बात आगे नहीं बढ़ेगी और मुझे ही कुछ कहना तथा करना होगा।

इसलिए मैंने कहा- नहीं, यह गर्मी पंखे की हवा से दूर होने वाली नहीं है। आप सो जाइए क्योंकि मुझे लगता है कि आपसे इसका कोई भी इलाज़ नहीं हो सकता।

ससुरजी ने फिर पूछा- अगर इसका इलाज़ मुझसे नहीं हो सकता तो डॉक्टर तो कर सकता है। मैं अभी डॉक्टर को फ़ोन करके पूछ लेता हूँ।

जब मैंने देखा की वह उठ कर डॉक्टर को फ़ोन करने के जाने लगे थे तब मैं बोल पड़ी- डॉक्टर से पूछ कर क्या मिलेगा? वह अपनी फीस झाड़ने के लिए आ जायेगा और कुछ महंगी दवाइयाँ लिख कर दे जाएगा।

फिर थोड़ा रुक कर अपनी सांस को नियंत्रण में रखते हुए कहा- पापाजी आप तो शादीशुदा रह चुके हो, आपको तो पता ही होगा कि स्त्रियों की गर्मी का इलाज़ कैसे करते हैं। क्या आप मेरा वैसा इलाज़ नहीं कर सकते? कहानी जारी रहेगी। कामना की कामवासना-3

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000