कमसिन कुंवारी सोनू की बुर चुदाई -1

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दोस्तो, आज मैं आपको अपनी कामवाली लड़की सोनू की चुदाई का किस्सा सुनाता हूँ। सोनू की उम्र सिर्फ 18 साल है, पंजाबी है और वो हमारे घर अपनी दादी के साथ झाड़ू बर्तन की सफाई का काम करने आती है। वो अपनी दादी के साथ लम्बे समय से आ रही है मगर तब मैंने कभी उस पर ध्यान ही नहीं दिया था। और वैसे भी बीवी के अलावा और भी बहुत सी सुंदरियाँ मेरे कांटैक्ट में हैं, तो अगर बीवी की ना सही किसी और की भी मिल जाती है। तो इतनी मामूली सी लड़की पर कौन ध्यान देता।

कद करीब 5 फीट, पतली दुबली सी लड़की, साँवले से भी ज़्यादा गहरा रंग, काली ही कह लो, कोई ढंग का चेहरा मोहरा नहीं, मतलब शक्ल देख कर भी आप उसे छोड़ दो कि यार इसमें तो कोई दम नहीं। तो यह समझ लो कि इसी वजह से वो मेरे से बची रही। मेरी बीवी से वो बहुत प्यार करती थी, उसे बिल्कुल माँ की तरह इज्ज़त देती थी, कहती बेशक भाभी थी, मुझे भी भैया बुलाती थी।

ऐसे ही एक दिन छुट्टी थी, मैं सो कर देर से उठा, बीवी चाय दे गई, सोनू कमरे में झाड़ू लगा रही थी। जब उठा तो पाजामा तम्बू हो रहा था, मैंने अपने लंड को पकड़ के सीधा किया और बाथरूम में चला गया, मगर मैंने देखा कि सोनू ने झाड़ू लगाते लगाते मुझे लंड सेट करते देख लिया था। मैंने इगनोर किया और जब बाथरूम कर के वापिस आया तो सोनू कमरे में नहीं थी।

मैं फिर से बेड पे लेट गया, टीवी ऑन किया और बेड पर ही बैठ कर चाय पीने लगा। सोनू पोंछे वाली बाल्टी उठा कर अंदर आई, हम दोनों ने एक दूसरे को देखा। मैंने फिर टीवी की तरफ अपना ध्यान लगा दिया।

जब सोनू पोंछा लगाते लगाते मेरी साइड वाली खिड़की के पास पोंछा लगा रही थी, तो मेरा ध्यान अचानक ही उसकी तरफ चला गया। मैंने देखा, कमीज़ के नीचे से उसने कोई ब्रा या अंडर शर्ट नहीं पहनी थी। वो झुक कर पोंछा लगा रही थी और उसकी कमीज़ के गले के अंदर मैंने उसके दो छोटे छोटे साँवले से बोबे देखे। बोबे कहना शायद गलत होगा, क्योंकि वो सिर्फ किसी छोटे से संतरे या मौसम्बी जैसे थे, या शायद उससे भी छोटे। पहली बार मुझे लगा कि लड़की जवान हो गई है।

मैं उसको पोंछा लगाते हुये देखता रहा। पहले तो उसके गले के अंदर से उसकी छोटी छोटी चूचियाँ, हाँ चूचियाँ ठीक है, देखी। मगर जब वो बिल्कुल मेरे बराबर आ कर पोंछा लगा रही थी, तो खिड़की से आती रोशनी उसकी कमीज़ के अंदर से छन कर आ रही थी, और तब मैंने उसकी कमीज़ के अंदर उसकी दोनों चूचियाँ देखी, एकदम सॉलिड, कोई झोल नहीं, बिल्कुल सीधी खड़ी, निप्पल जैसे चने की दाल का दाना, सच कहो तो मेरा दिल किया कि इसकी कच्ची कच्ची चूचियाँ दबा कर देखूँ।

मगर मैं ऐसा नहीं कर पाया। मगर जब मैं उसकी चूचियाँ घूर रहा था, तब सोनू ने मेरी तरफ देखा, मगर वो बोली कुछ नहीं। मुझे भी थोड़ा सा महसूस हुआ कि लड़की क्या सोचेगी ‘मैं इन्हे भैया कहती हूँ और यह कैसे मुझे घूर रहा है।’ मगर इतनी बात तो थी, कि मेरा उस लड़की पर दिल मैला हो गया, मैं यह सोचने लगा कि अगर मैं इसे चोद दूँ, तो कितना मज़ा आए। बिल्कुल कच्ची कली। बस दिमाग में कमीनापन आ गया और मैं अब इसी फिराक में था कि कैसे और कब मैं इस लड़की को सेट करूँ। उसके बाद मैं जो पहले कभी नमस्ते से ज़्यादा उस से बात नहीं करता था, उससे उसके स्कूल और और इधर उधर की बातें भी करने लगा। बीवी के सामने हमेश उसे बच्ची बच्ची कह कर बात करता कि बीवी को मेरे अंदर चल रहे दूषित विचारों का पता न चल सके।

एक दिन मैंने देखा सोनू, मेरी बीवी के सर में तेल की मालिश कर रही थी। बस मैंने भी कह दिया- अरे सोनू, तू तो बहुत बढ़िया मालिश करती है, मेरे भी कर देगी। वो बोली- जी भैया। तेल मालिश तो बहाना था, दरअसल मैं तो उसके स्पर्श का चाहवान था।

उसने मेरे सर की तेल से मालिश की, इस दौरान वो मेरे पीछे बैठी थी तो उसका पेट कई बार मेरी पीठ को लगा, एक बार उसकी नाज़ुक सी मगर सॉलिड चुची भी मेरी पीठ को लगी, मेरे तो मन के तार झनझना उठे।

खैर उसके बाद मैं अक्सर उसके साथ बातचीत या ऐसे ही किसी काम की वजह से खुद को जोड़ता रहा। एक दिन वो नीचे आँगन में पोंछा लगा रही थी और मैं ऊपर चौबारे में खड़ा था, अकेला। न जाने मेरे मन में क्या आया, मैंने अपने लोअर और कच्छे को नीचे खिसकाया और अपना लंड निकाल के सहलाने लगा।

सोनू ने नीचे पोंछा लगाते लगाते जब ऊपर को देखा तो मैं खिड़की में खड़ा उसे घूर रहा था। दुपट्टा उसने ले नहीं रखा था, तो कमीज़ के गले से उसके कच्ची मौसम्बी जैसी चूचियाँ मुझे दिख रही थी। अब खिड़की बड़ी थी, वो ज़ाहिर है मैं भी उसे पूरा ही दिख रहा था, और वो भी उसे देख कर लंड को सहलाता हुआ। उसने 5-6 बार मुझे देखा, मैं भी ढीठ, बेशर्मो की तरह उसे देख कर मुट्ठ मारता रहा। मतलब मैं उसे यह साफ तौर पे बता देना चाहता था कि बच्ची इस घर में तेरी इज्ज़त सुरक्षित नहीं है, तेरी चढ़ती जवानी ने एक अधेड़ को घायल कर दिया है।

यह सिलसिला यहीं पे नहीं रुका, मैं अक्सर उस से कोई न कोई अपना काम करवाता, ताकि वो मेरे और करीब आए। अपनी बीवी से चोरी उसको कभी कभी 100-50 रुपये भी दे देता, और बहाने से उसका सर या पीठ सहला देता। वो भी खुश थी और मैं भी।

मगर अब बात को और आगे बढ़ाना ज़रूरी था, और इसके लिए ज़रूरी था कि या तो वो मेरे सामने नंगी हो या मैं खुद उसे नंगा होकर दिखाऊँ। उसके तो नंगी होने के चांस नहीं थे, सो मुझे ही नंगा होना था।

तो इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुये एक दिन जब मैं नहा रहा था और सोनू कमरे में झाड़ू लगा रही थी, मैंने जान बूझ कर अपना तौलिया बाहर छोड़ दिया। पहले मैंने अपने लंड को सहलाया और थोड़ा सा खड़ा किया, पूरा नहीं, और फिर धीरे से थोड़ा सा दरवाजा खोल कर सोनू से कहा- सोनू, ज़रा वो तौलिया तो देना!

उसने झाड़ू रखा और तौलिया उठा कर मेरी तरफ आई, तो मैंने बाथरूम का दरवाजा पूरी तरह से खोल दिया। जब उसने मुझे पूरा नंगा देखा तो उसकी तो आँखें मेरे लंड पर ही अटक गई। मैंने देखा उसने बड़े ध्यान से मेरे नंगे बदन को देखा था और तौलिया देकर वो मुड़ गई।

मैंने दरवाजा बंद कर लिया। पहले तो एक बार मेरी गान्ड फट गई कि अगर इसने जाकर मेरी बीवी को बता दिया? मगर उसने ऐसे कुछ नहीं किया तो मेरी जान में जान आई।

उसके कुछ दिन बाद तक मैं उसके साथ बिल्कुल साधारण बातचीत करता रहा, वो भी हर बात का ठीक ठीक जवाब देती रही। जब मुझे लगा कि इसको कोई फर्क नहीं पड़ा मुझे नंगा देख कर तो अगले हफ्ते मैंने उससे भी बड़ी बात की। मैं नहा रहा था, सोनू कमरे में सफाई कर रही थी, तौलिया बेड पे पड़ा था, मैंने वैसे ही अपने लंड को खड़ा किया और दरवाजा खोल कर सीधा बेडरूम में ही चला गया, और सोनू के सामने ही तौलिया उठा कर अपना नंगा भीगा बदन पोंछने लगा, सोनू अपना काम करती रही और मुझे कनखियों से चोरी चोरी देखती रही।

जब वो उठ कर मेरे पास से जाने लगी तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। वो रुक गई, मैं उसके पीछे से गया और उसको अपनी बाहों में ले लिया। वो सर झुकाये चुप चाप खड़ी थी। मैंने जैसे ही अपना लंड उसके छोटे छोटे चूतड़ों से लगाया वो एकदम से छिटक कर भाग गई।

अब इस हालत में मैं उसे आवाज़ लगाने लायक भी नहीं था। मगर इस बात का ज़िक्र भी उसने किसी से नहीं किया तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई। ऐसे ही एक संडे को जब वो कमरे में झाड़ू लगा रही थी, तो मैं उसे पीछे से दबोच लिया, और उसके गोल, नाज़ुक, छोटी छोटी चूचियों को पकड़ लिया। वो कसमसाई ‘छोड़ दो भैया, छोड़ दो…’ मगर उसकी यह विनती किसने सुननी थी- नहीं सोनू, तेरी इस चढ़ती जवानी ने मुझे घायल कर दिया है, आई लव यू सोनू! कह कर मैंने उसके गाल पर 4-5 चुम्बन जड़ दिये। वो सिर्फ मेरी बाजुओं में छटपटाती रही और मैंने उसकी दोनों चूचियों को खूब मसला और अपना लंड उसकी नन्ही सी गाँड पे घिसाया।

सिर्फ दो मिनट के इस काम में ही मेरा लंड अकड़ के लोहा हो गया। मैंने अपना लोअर नीचे कर के अपना लंड बाहर निकाल लिया और सोनू का हाथ पकड़ के उसमें अपना लंड पकड़ा दिया- इसे पकड़ के देख सोनू, ये तुमसे क्या कहता है। उसने लंड तो पकड़ लिया मगर बोली कुछ नहीं।

अब जब उसकी चूचियाँ उसकी कमीज़ के ऊपर से दबा ली और वो कुछ नहीं बोली तो मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कमीज़ के अंदर डाल दिये- अरे वाह, क्या बात है। मेरे मुँह से अपने आप ही निकल गया। सच में बहुत ही नर्म मगर तनी हुई चूचियाँ थी उसकी… मैंने उन्हे दबा कर सहला कर देखा, उंगली से उसके निप्पल टटोले, मगर कहीं भी मुझे उन पर कोई विशेष उभार महसूस नहीं हुये। कितना कुँवारा, अन छूआ और पवित्र जिस्म था उसका।

मैंने अपना हाथ उसकी पाजामी में डाल दिया, वो तड़पी, मगर मैंने उसे नहीं छोड़ा, उसकी नर्म नर्म झांटों में से घुसा कर मैंने अपने हाथ की बड़ी उंगली उसकी कुँवारी चूत के होंठों में फिरा दी। एक हाथ में मेरे एक कुँवारी चूची, दूसरे में एक अनचुदी चूत, मैं तो स्वर्ग में घूम रहा था।

मगर मेरे इस भुक्खड़पन से सोनू को तकलीफ हो रही थी, जिसने कभी मर्द को न छूआ हो, उस पर ऐसे कोई टूट पड़े तो, मुश्किल तो होगी ही। उसने बड़े रूआँसे स्वर में कहा- छोड़ दो भैया, जाने दो मुझे! मुझे भी लगा के हालत काबू से बाहर हो सकते हैं, इसलिए मैंने उसे जाने दिया।

मेरी गिरफ्त से वो ऐसे भागी, जैसे चिड़िया पिंजरे से आज़ाद होती है। मगर इसके बाद अक्सर ऐसी घटनाएँ होती रही और एक दिन मैंने जब उसे पकड़ा तो उसकी शर्ट उठा कर दोनों चूचियाँ बाहर निकाल ली।

उस दिन मैंने पहली बार उसकी चूचियों को अपने मुँह में लेकर चूसा। सच में मेरे चूसने के बाद उसकी चूचुक थोड़ी सी बाहर को उभरी, मैंने अपनी उंगली पर थूक लगा कर उसके चूचुक को घिसाया। ‘इस्स…’ सोनू के मुँह से आवाज़ आई, मतलब उसे मज़ा आया। मैंने फिर से उसके निप्पल मुँह में लिए और चूसे, उसने मेरा सर पकड़ लिया। कभी ये तो कभी वो, मैं बारी बारी से उसकी दोनों चूचियों को चूसता रहा। उसके मुँह से कभी कभी ‘इस्स… उफ़्फ़… आह…’ जैसे शब्द निकाल जाते!

मैंने मौका देखकर उसकी स्लेक्स नीचे को खिसका दी, पहले भी उसकी स्लेक्स उतार देता था तो उसने कोई हरकत नहीं की। मैंने अपनी उंगली से उसकी चूत के दोनों होंठों को खोल कर देखा, अंदर से गुलाबी रंग नज़र आया। मैं घुटनों के बल नीचे बैठ गया, उसको पीछे दीवार से सटा दिया, थोड़ी सी टाँगें खोली और अपना मुँह उसकी कुँवारी चूत से लगा दिया।

वो तो तड़प गई, मगर मैंने उसे संभाल कर फिर से सीधा खड़ा कर दिया और उसकी चूत को फिर से मुँह लगाया। हल्के हल्के रेशमी बालों वाली झांट, और नीचे प्यारी सी, चाहे साँवली सी, मगर एक कुँवारी चूत। मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत के आस पास चाटा, हल्की सी पेशाब की गंध और स्वाद मेरे मुँह में आया मगर मुझे इससे कोई प्रोब्लम नहीं थी। जब मैंने अपनी जीभ उसकी चूत के अंदर घुमाई तो वो फिर से तड़पी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

उसका बेशक पहली बार था, मगर मैं तो पुराना चावल था, 5-7 बार जब मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत चाटी तो खुद ही सीधी खड़ी हो गई, और मज़ा लेने लगी। मेरे मुँह से भी उसके पेशाब का स्वाद चला गया, अब मुझे सिर्फ उसकी चूत के अंदर से आने वाले पानी का स्वाद आ रहा था, और वो मुझे बहुत अच्छा लगता है।

जब वो टिक गई तो मैंने उसकी चूत चाटनी छोड़ी और उसे लेजा कर बेड पे लेटा दिया, सीधा लेटाने के बाद मैंने अपना लंड उसकी चूत पे घिसाया। वो सीधा मेरी आँखों में देख रही थी, उसके चेहरे पे कोई भाव नहीं थे, मगर जब भी मेरे लंड का टोपा उसकी चूत के दाने पे रगड़ लगाता, उसके चेहरे से आनन्द के भाव स्पष्ट नज़र आते थे।

पहले मैंने सोचा कि अब ये सोनू पूरी गरम है, क्यों न पेल दूँ, डाल दूँ अपना लंड इसकी कुँवारी चूत में। मगर यह जगह इसके लिए सही नहीं थी… घर में नहीं। मैंने उसे पूछा- सोनू, कहीं बाहर मिल सकती है मुझे तू, अब बर्दाश्त नहीं होता, मैं तुझे चोदना चाहता हूँ। वो बोली- हाँ, मगर कब? ‘जब तू फ्री हो घंटे दो घंटे के लिए?’ मैंने कहा। ‘ठीक है, मैं बता दूँगी।’ उसने कहा। ‘छुट्टी वाला दिन देख ले तो और भी बढ़िया…’ मैंने कहा।

‘ठीक है, अब जाऊँ?’ उसने पूछा। मैंने कहा- नहीं, अभी न तो मेरा पानी छूटा है न तेरा, बोल अगर कहे तो चाट चाट के तुझे तो मैं पूरा मज़ा दे सकता हूँ। ‘ठीक है!’ उसने कहा तो मैं फिर से उसकी चूत चाटने लगा और मैंने अपना लंड निकाल के उसके हाथ में पकड़ा दिया। वो मेरे लंड को मेरे बताए मुताबिक सहलाने लगी।

मैंने भी अपनी पूरी कार्यकुशलता दिखाई उसकी चूत चाटने में, 2 मिनट बाद ही वो तो तड़प कर मुझसे लिपट गई और बिना मेरे कहे मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर चूस गई, थोड़ा काट भी लिया उसने दाँतों से मगर इतना तो चलता है।

जब वो शांत हो गई तो उसने मेरा लंड अपने मुँह से निकाल दिया। मैंने भी मौके संभालते हुये झट से अपना लंड उसकी चूत पे रखा और अंदर धकेलने की कोशिश की, मगर कुँवारी चूत में इतनी आसानी से कहाँ घुसता है, हाँ मगर उसने हल्की सी चीख मारी। मैंने हंस कर उसके होंठ चूमें और उसे जाने दिया। उसने अपनी स्लेक्स ऊपर की, शर्ट नीचे की और चुपचाप कमरे से बाहर चली गई। मैं अपना लंड हाथ में पकड़े उसे जाते देखता रहा, फिर बाथरूम में गया और जो कुछ हुआ था, उस सारे प्रकरण को याद करते हुये मैंने मुट्ठ मार के अपना भी पानी निकाल दिया। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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