बस यात्रा में पटी लड़की को उसके घर में चोदा

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मेरा नाम रणबीर उर्फ़ रॉकी है। मेरी उम्र 35 साल है। मैं भी अपनी आपबीती अन्तर्वासना के ज़रिए आप लोगों से शेयर करना चाहता हूँ। बात एक साल पहले की है.. मैं चंडीगड़ काम के सिलसिले में गया था, शाम 5 बजे देहरादून के लिए बस का इंतज़ार कर रहा था।

एक 45-50 साल के सज्जन एक बहुत ही खूबसूरत 22-23 साल की लड़की के साथ मेरे पास आए.. वो बोले- क्या आप देहरादून जा रहे हैं? मेरे ‘हाँ’ कहने पर वो बोले- यह मेरी साली है.. और इसे भी देहरादून जाना है.. प्लीज़ इसे अपने साथ बिठा लें। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा.. गदराया बदन.. उसके सुडौल उरोज़.. स्वेटर से बाहर आने को बेताब थे।

मैंने तुरंत उन्हें बाहर से ही अपनी सीट नंबर बताई.. वो दोनों बस में मेरी सीट के बगल वाली सीट पर पहुंचे और अपना बैग रख कर लड़की बैठ गई। वो सज्जन नीचे उतर कर मेरे पास आए और थैंक्स कहने लगे। वो कुछ और बात करना चाहते थे.. परंतु बस स्टार्ट हो गई.. तो मैं तुरंत बस में चला गया।

मुझे आता देख उस लड़की ने अपना बैग अपनी गोद में रख लिया। मैंने उसका बैग लेकर ऊपर रख दिया। बैग लेते वक़्त मेरा एक हाथ उसकी चूचियों को और दूसरा हाथ उसकी जाँघ को छू गए। मैंने उसको देखा तो वो मुस्करा रही थी। मैंने सोचा- हँसी तो फंसी..

बस चल पड़ी थी.. थोड़ी देर में लड़की ने बातें शुरू कर दीं- मेरा नाम रीता है.. मैं रामनगर में रहती हूँ अभी मेरे पापा का का ट्रान्स्फर देहरादून में हुआ है.. वो एफसीआई में गोदाम इंचार्ज हैं। मैं पहली बार उनके पास जा रही हूँ। मेरे जीजा जी चंडीगढ़ में प्राइवेट कंम्पनी में मैनेजर हैं।

मैं भी उससे खुलने के लिए बातें करता रहा। बस पूरी भरी थी.. लोग खड़े होकर भी जा रहे थे। बस हिचकोले खाती.. तो खड़े हुए लोग मेरे ऊपर झुक जाते थे और मैं भी रीता की तरफ झुक जाता।

उसके भाव से नहीं लगा कि उसे बुरा लग रहा था। मैं भी अपनी टाँग और कुहनी फैला कर बैठ गया। मेरी कुहनी उसकी चूचियों को छू रही थी। पहली बार तो वो सिकुड़ कर बैठ गई.. मैंने देखा कि एक खड़ी सवारी हमें घूर रही थी.. तो मैं भी ठीक से बैठ गया। फिर भी हमारी जांघें आपस में रगड़ खा रही थीं और उत्तेजना पैदा कर रही थीं। इस रगड़ा-रगड़ी में कब मेरी आँख लग गई.. मुझे पता नहीं चला।

यमुनानगर आने पर रीता ने मुझे जगाया.. तो देखा अधिकतर सवारी उतर गई थीं और अंधेरा भी हो गया था। रीता ने चाय पीने की इच्छा ज़ाहिर की.. तो मैं बस से उतर कर चाय और चिप्स ले आया। दस मिनट बाद बस चल पड़ी.. अब बस में सिर्फ दस बारह सवारियाँ रह गई थीं। ठंड भी ज़्यादा लगने लगी.. रीता ठंड के मारे सिकुड़ कर बैठ गई। मैं खिड़की बंद करने लगा.. तो देखा कि खिड़की का शीशा टूटा हुआ था। मैंने पीछे देखा तो आखिरी सीट खाली थी। मैंने रीता को पीछे वाली सीट पर चलने के लिए कहा और हम आखिरी सीट पर शिफ्ट हो गए। खिड़की बंद करने के बाद भी रीता को ठंड लग रही थी।

उसने बोला- मेरे बैग से मेरा शाल निकाल दीजिए।

मैंने शाल निकाल कर उसके पैरों पर डाल दिया। थोड़ी देर तक हम इधर-उधर की फालतू बातें करतें रहे। उसने अपना शाल मेरे पैरों पर भी ढक दिया और अपने गले तक ढक लिया। मैं समझ गया कि रीता गरम हो रही है।

मैं कन्फर्म करने के लिए उसकी चूचियों को अपनी कोहनी से दबाने लगा। उसने कोई एतराज नहीं किया.. तो मेरा उत्साह बढ़ा और मैंने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा। उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया।

मैंने उसके गालों को चूम लिया.. तो उसने अपने होंठ मेरी तरफ कर दिए, मैं धीरे-धीरे उसके होंठ चूसने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

फिर मैं धीरे-धीरे उसकी चूचियाँ दबाने लगा। मौका देख कर मैं उसके स्वेटर और टॉप ऊपर कर उसकी गठीली चूचियाँ दबाने लगा.. रीता को मज़ा आ रहा था। उसने मुझे पागलों की तरह चूमना शुरू कर दिया।

हमारी चुम्मा-चाटी की आवाज़ सुनकर अगली सीट पर बैठे बुजुर्ग साहब पीछे मुड़ कर देखने लगे, हम दोनों सीधे हो कर बैठ गए। थोड़ी देर बाद मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने तन्नाए हुए लंड पर रख दिया। उसने एकदम से अपना हाथ हटा लिया। मैंने दोबारा उसका हाथ अपने लंड के ऊपर रख दिया। इस बार उसने अपना हाथ नहीं हटाया और पैंट के ऊपर से ही दबाने लगी।

मैंने उत्तेजना में उसके निप्पल को उंगली और अंगूठे से जोरों से दबा दिया, उसके मुँह से ‘उईईईई..’ निकल पड़ी। हमारे आगे बैठे बुज़ुर्ग सो रहे थे.. सो इस बार उन्होंने आवाज़ नहीं सुनी।

इतने में सहारनपुर आ गया.. कंडक्टर ने बुजुर्ग साहब को जगाया और सहारनपुर आने की सूचना दी। वो उतरते वक़्त हम को घूर के देख रहे थे।

सहारनपुर से चलते बस में हम दोनों को मिला कर सिर्फ़ 5 सवारियां बची थीं.. बाकी 3 आगे बैठी थीं।

अब तक हम दोनों बहुत उत्तेजित हो चुके थे.. मेरे सब्र का बाँध टूट चुका था। जैसे ही बस शहर से बाहर आई.. ड्राइवर ने लाइट्स बंद कर दीं। मैं बिना वक़्त गंवाए उसकी ठोस चूचियों को चूसने लगा.. और एक हाथ उसकी सलवार के ऊपर से ही चूत को रगड़ने लगा।

रीता ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी सलवार के अन्दर कर दिया और मेरी पैन्ट की ज़िप खोल कर मेरा 7 इंच का लंड बाहर निकाल कर ऊपर-नीचे करने लगी।

उसकी चूत से रस नदी की तरह बह रहा था। मैंने उसके क्लाइटॉरिस को रगड़ा.. तो उसके मुँह से कामुक सिसकारियाँ निकल रही थीं ‘सीईईई सीईईई.. आप ये क्या कर रहे हो.. मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा..’

मैंने उसकी रसीली चूत में अपनी उंगली घुसा दी और अन्दर-बाहर करने लगा। ‘फ़चा-फ़च्छ..’ की आवाज़ से हम दोनों ही बहुत उत्तेजित हो रहे थे।

रीता बहुत उत्तेजित हो गई थी, वो अपने चूतड़ उचका-उचका कर पूरा मज़ा ले रही थी ‘ओह्ह्ह्ह.. ओह्ह्ह्हहैई.. हाय.. रॉकी.. और जल्दी-जल्दी करो.. फाड़ दो मेरी चूत..’

मैं अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में और तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगा। थोड़ी देर में रीता झड़ गई और निढाल होकर अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया। मैंने अपना हाथ उसकी सलवार से पोंछ लिया।

रीता अपनी सलवार ठीक करने लगी.. तो में बोला- तेरा तो काम हो गया.. पर मेरी आग कैसी शांत होगी। यह सुनकर रीता हँसने लगी और मेरी पैन्ट की ज़िप खोल मेरे लंड को पकड़ कर ऊपर-नीचे करने लगी।

मैंने रीता की गर्दन पकड़ कर अपने लंड की तरफ़ झुका दिया। उसने पहले लंड का सुपारा चूसा.. फिर आधा लंड मुँह में लेकर अन्दर बाहर करने लगी।

‘रीता लगता है जीजा जी से बहुत सीखा है?’ ‘अरे एक दिन मैंने जीजा जी-जीजी को चुदाई करते देख लिया और जीजा जी को पता लग गया.. तो उन्होंने मौका देख रसोई में मुझे पकड़ लिया और अपना लौड़ा पजामे से निकाल मुझे पकड़ा दिया। मेरे हाथ का स्पर्श पाते ही उनका लौड़ा तन गया। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती.. उन्होंने लौड़े को मेरे मुँह में डाल दिया और खुद ही अन्दर-बाहर करने लगे। इतने में जीजी की आवाज़ आई तो तुरंत लौड़ा पजामे में करके खिसक गए। तब से जब उनको मौका लगता वो मेरी चूचियाँ दबा देते या लौड़ा चुसवाने लगते थे। एक दिन जब में रसोई में उनका लौड़ा चूस रही थी.. तो जीजी ने देख लिया। जीजी ने तुरंत जीजाजी को मुझे देहरादून भेजने के लिए कहा। बस अब मैं वहाँ से वापस घर जा रही हूँ।’

मैं उसको अपना गन्ना चुसवाता रहा.. रस निकल भी नहीं पाया कि थोड़ी देर में देहरादून आ गया.. उस वक्त रात के 12 बज गए थे। हम ISBT से पहले ही उतर गए। हमें मेन रोड पर ही नई कॉलोनी थी.. उधर जाना था।

कॉलोनी में 5-6 मकान ही थे.. इसलिए मकान ढूँढने में दिक्कत नहीं हुई। मैं सोच रहा था कि अब तो मुठ्ठ मारके ही काम चलाना पड़ेगा।

मकान पर लॉक लगा था। मकान-मलिक से पूछा तो पता चला कि घर वाले किसी रिश्तेदार की मौत पर नगीना गए हैं.. कल आएँगे।

उनको रीता के आने की खबर थी.. तो चाभी देकर गए थे। यह सुनकर मेरी तो बाँछे खिल गईं। हम दोनों फटाफट घर खोलकर अन्दर आ गए। दरवाजा बंद करके मैंने रीता को दबोच लिया और उसके होंठ चूसने लगा। मुझसे और इंतज़ार नहीं हो रहा था और रीता भी गरमाने लगी थी।

मैंने उसके सारे कपड़े उतार फेंके। रोशनी में उसका दूधिया बदन ग़ज़ब ढा रहा था। मुझे घूरता देख वो शर्मा गई और अपनी चूचियाँ हाथों से छिपाने लगी। मैंने उसे वहाँ पड़े बिस्तर पर लेटा दिया और चूचियों को चूसने लगा।

अपना एक हाथ उसकी जाँघों पर फेरता हुआ चूत सहलाने लगा। रीता भी गरमाने लगी और मुझे अपने कपड़े उतारने को कहा। मैं तुरंत अपने कपड़े उतार कर उसके बगल में लेट गया।

‘रॉकी अब मैं तुम्हारी आग ठंडी करती हूँ।’ ये कह कर मेरा लंड चूसने लगी।

मैंने उसे 69 की स्थिति में लेटने को कहा तो उसने लंड बिना मुँह से निकाले अपनी चूत मेरे मुँह पर कर दी। चूत के दाने को जीभ से चाटने के बाद मैंने जीभ उसकी चूत में घुसा दी। रीता के मुँह से सिसकारियाँ तेज़ हो गईं। मैं भी पागल होता जा रहा था। मैंने उसे सीधा लेटा कर उसकी टाँगों के बीच बैठ कर अपना लंड उसकी चूत में एक ही झटके में घुसा दिया और दो मिनट तक ऐसे ही लेटा रहा।

रीता बोली- क्या सारी रात ऐसे ही पड़े रहना है। मैंने बैठ कर उसकी चूत में जोरदार धक्के मारने शुरू कर दिए। फ़चा-फ़च.. और बिस्तर की चूँ-चूँ की आवाज़ से कमरा गूँज रहा था।

‘हाय.. हाय.. उहह उहह.. और जोरों से चोदो रॉकी.. फाड़ डालो आज मेरी चूत..’ यह सुनकर मैं और तेज़ी से चोदने लगा। ‘अहह अहह… बहुत मज़ा आ रहा है.. मैं झड़ने वाली हूँ.. रॉकी!’ और 5-6 धक्कों में रीता झड़ गई।

‘रीता मैं भी झड़ने वाला हूँ.. कहाँ झाड़ू.. तेरे अन्दर कि बाहर..?’ ‘बाहर ही निकालो अपना माल..’ रीता बोली।

मैंने झट से लंड चूत से निकाल कर चूचियों के ऊपर करके अपना सारा माल निकाल दिया। रीता ने मेरे लंड को चाट-चाट कर साफ़ कर दिया। थोड़ी देर तक हम ऐसे ही लेटे रहे।

मैंने कपड़े पहने और रीता बाथरूम चली गई। बाथरूम से निकल कर उसने कपड़े पहनने की कोई जल्दी नहीं की और मेरे गले लग गई। मेरा मन तो हुआ कि एक बार फिर चुदाई कर लूँ.. पर देर बहुत हो गई थी। मैंने रीता का मोबाइल नंबर लिया और दोबारा मिलने का वादा कर उसके होंठों को चूम कर बाय किया और चल दिया।

मेरी यह सत्य घटना कैसी लगी। रॉकी [email protected]

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