मेरा गुप्त जीवन- 178

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नंदा भाभी जो अभी तक ट्रेन में मेरे द्वारा चुदाई प्रोग्राम में शामिल नहीं हो पाई थी और एक रेगिस्तान में प्यासे व्यक्ति की तरह तड़फ रही थी, अपनी सीट से उठी और एकदम से मेरे लण्ड पर झपट पड़ी और उसको मुंह में लेकर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी।

गौरी भाभी भी आगे बढ़ कर नंदा भाभी के चूतड़ों और चूत को सिर्फ मुंह से चूसने और चाटने लगी पर वृंदा भाभी अपनी सीट पर लेट कर मेरे द्वारा चुदाई के बारे में सोच कर मंद मंद मुस्करा रही थी।

मैं भी काफी थकान महसूस कर रहा था तो मैं नंदा भाभी से खुद को छुड़ा कर उनके साथ ही सीट पर लेट गया और बड़े ही मज़े से गौरी भाभी को नंदा को मुंह से चूसते चाटते हुए देखता रहा।

एक बार जब नन्दा भाभी का स्खलन हो गया तो वो अपनी दोनों टांगों को मेरे पेट पर रख कर आराम करने लगी लेकिन गौरी भाभी कहाँ छोड़ने वाली थी, नंदा भाभी के मम्मों को चूसते हुए बोली- क्यों री नंदी, चूत चुसाई से पेट भर गया हो तो कहानी शुरू कर ना साली? हम सब तेरा ही मुंह और भोसड़ा देख रही हैं।

और फिर हँसते हुए गौरी भाभी बोली- देखो ना बहनो, जब हम सब एक साथ मिल कर चोदम चुदाई करती हैं तो अपने आप ही हमारे भी मुंह से वो गन्दी गालियों वाले शब्द निकलने लगते हैं जैसे कि चुदाई, चोदम, भोसड़ा इत्यादि। यानि गन्दा काम करो तो अपने आप ही जुबां भी गन्दी हो जाती है। क्यों ठीक कह रही हूँ ना?

हम तीनों ने एक साथ ही कहा- सत्य वचन गोरी चिट्टी भाभी।

फिर हम सब ज़ोर से हंस पड़े और मैंने नंदा भाभी को जो मेरे साथ लेटी हुई थी, को अपनी बाहों की गिरफ़्त में ले लिया और एक कड़ाकेदार जफ्फी मार दी।

वो चिल्ला पड़ी- हाय रे मार ही डाला इस साले सांड के बच्चे ने… उफ़ एक एक हड्डी का कचूमर निकाल दिया इस सरकारी सांड ने! हाय रे…

वृंदा और गौरी भाभी बोली- हड्डियों को छोड़ और कहानी शुरू कर नंदी की बच्ची, चल जल्दी कर ना?

नंदा ने एक हाथ में मेरे आधे खड़े लण्ड को ले लिया और उसके शिश्न की चमड़ी को ऊपर नीचे करने लगी। उसके ऐसा करते ही मेरा लण्ड फिर से एकदम खड़ा हो गया लेकिन दोनों भाभियों ने मुझको रोक दिया और कहा- खबरदार अगर नंदा को कहानी सुनाने के पहले चोदा तो!

अब नंदा भाभी मजबूरी में अपनी कहानी सुनाने लगी।

मेरा भाई मुझसे कोई 4 साल बड़ा है, हम दोनों एक खुशहाल परिवार में पैदा हुए थे। मेरे पिता की काफी बड़ी ज़मींदारी है और हम सब अपने गाँव की काफी बड़ी हवेली में रहते थे।

मेरा और भाई का अलग अलग कमरा था लेकिन एक साथ जुड़ा हुआ था, आते जाते हम एक दूसरे को अच्छी तरह से देख सकते थे।

जब मैं बड़ी हो गई तो मेरी आँखें भाई को एक अलग दृष्टि से देखने लगी थी, मेरी दृष्टि में भाईचारा कम और कौतूहल ज़्यादा होता था और मैं पूरी तरह से अपने शरीर और भाई के शरीर में हो रही तबदीली को देख भी रही थी और महसूस भी कर रही थी।

एक दिन जब मैं प्रातः उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ रही थी तो रोज़ाना की तरह मेरी निगाह भाई के कमरे में चली गई जहाँ वो टांगें पसारे सो रहा था।

बाकी नज़ारा तो रोज़ाना वाला ही था लेकिन उस दिन चौंकाने वाली जो चीज़ थी वो भाई के पजामे में बना हुआ कुतब मीनार जैसा टेंट था।

मैं ठिठक के एकदम रुक गई और बड़ी तन्मयता से भाई के पजामे में बने टेंट का दूर से नीरीक्षण परीक्षण करने लगी।

गहरी सोच में डूबी हुई थी मैं कि भाई के साथ यह अचानक क्या हो गया, जहाँ कल स्पॉट मैदान था वहाँ यह कुतुब मीनार कहाँ से आ गया।

उस दिन मैंने स्कूल में अपनी ख़ास सहेली पदमा से भैया के पजामे में बने टेंट के बारे में पूछा तो उसने बताया कि मर्दों का अक्सर लण्ड सुबह पेशाब के कारण एकदम अकड़ा हुआ होता है और यह करीब करीब सब मर्दों के साथ होता है तो कोई घबराने वाली बात नहीं है।

अगले दिन सुबह फिर जब मैं भाई के कमरे के सामने से गुज़री तो भाई का लंड फिर खड़ा था और भाई अपने हाथ से उसको हिला रहा था।

दो तीन दिन यही सिलसिला चलता रहा और फिर एक सुबह जब झाँक कर देखा तो भाई का खड़ा लण्ड पजामे से बाहर आया हुआ था और वो उसको धीरे धीरे सोये हुए ही मसल रहा था।

मैं भाई के लंड को देख कर एकदम सकते में आ गई और मैं एकटक उसको थोड़ी देर देखती रही और मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत पर चला गया और उसको नाइटी के बाहर से ही रगड़ने लगा।

थोड़ी देर बाद भाई ने करवट बदली और उस का लंड मेरी नज़रों से ओझल हो गया।

मैं बाथरूम के बाद सीधे अपने कमरे में आ गई और अपनी नाइटी को उतार कर बड़े गौर से अपनी शरीर को निहारने लगी।

मेरा शरीर उस समय काफी सुंदर बन चुका था और सारे उभार धीरे धीरे मेरे शरीर में दिखाई दे रहे थे। मेरी चूत पर भी बालों की लताएँ उभर रही थी और अब वो थोड़ी घनी हो चुकी थी।

मैंने नाइटी पहन ली और फिर पलंग पर आकर लेट गई और जानबूझ कर अपनी नाइटी अपनी जांघों के ऊपर तक कर ली और आँखें बंद कर के लेट गई।

अगले दिन मैं इंतज़ार करती रही कि कब भाई बाथरूम गया और जब भाई वापस आया तो यकलखत उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और मुझ को अस्त व्यस्त कपड़ों में देखकर भाई वहाँ एकदम से ठिठक गया और बड़े गौर से मेरे शरीर के नग्न अंगों को देखने लगा।

उसकी नज़र मेरी झांटों से भरी चूत पर ही टिकी हुई थी और मैंने साफ़ देखा कि उसका लंड पजामे में हिलौरें मारने लगा था।

थोड़ी देर मुझको इस सेक्सी पोज़ में देख कर वो अपने कमरे में चला गया और वहाँ पजामे से लंड निकाल कर वो उसके साथ खेलने लगा।

एक दो दिन इसी तरह का खेल चलता रहा और कभी वो मेरी खिड़की से झाँक रहा होता और कभी मैं उसके दरवाज़े से उसको देखने की कोशिश कर रही होती।

मैं तो अपनी चूत की झलक दिखाने में माहिर हो गई और उसका छुप छुप कर मुझको देखना जारी रहा।

मेरा भाई उन दिनों कॉलेज में पढ़ रहा था और एक दिन उसकी टेबल पर रखी हुई किताबें साफ़ करते हुए मुझको एक छोटी सी किताब मिल गई जिसमें हाथ से बनी हुई ड्राइंग्स थी जिनको देखने के बाद तो मेरा शरीर एकदम तवे की तरह गर्म हो गया।

उस किताब में ड्राइंग्स में चुदाई के सब पोज़ दिखाए हुए थे और लंड को चूत में जाते हुए साफ़ तौर से दिखाया हुआ था।

मैं वो किताब लेकर अपने कमरे में आ गई और सलवार को नीचे खिसका कर चूत में हल्की सी उंगली मारने लगी।

तस्वीरें देखते हुए उंगली करने का कुछ और ही आनन्द है क्योंकि ऐसा लगता है जैसे तस्वीर में दिखाया गया लंड सच में मेरी गीली चूत के अंदर ही जा रहा है।

अब मैं सोचने लगी कि भाई को कैसे पटाया जाए ताकि वो मेरी कुंवारी सील को तोड़ दे।

ना जाने मुझको अपनी सील को सिर्फ अपने भाई से तुड़वाने का ख्याल क्यों आया, यह मैं आज तक नहीं समझ सकी।

उधर भाई शायद मेरी तरह से ही सोच रहा था क्योंकि अब वो मुझ पर बहुत ही मेहरबान हो रहा था और मुझको खूब मिठाई और चॉकलेट वगैरह लाकर दे रहा था।

फिर एक दिन हम दोनों के कॉमन बाथरूम में मैं नहा रही थी कि अचानक बाथरूम का दरवाजा आहिस्ता से खुला और भाई अंदर आ गया लेकिन मैं उसकी उपस्थिति से बेखबर अपने मुंह और सारे जिस्म पर साबुन लगाती रही।

भाई मुझको और मेरे सारे शरीर को देखता रहा और मैं इस बात से बेखबर रही।

जब मैंने साबुन अपने मुंह से साफ़ किया तो भाई वहाँ नहीं था लेकिन बाथरूम का दरवाज़ा आधा खुल हुआ था और मैं समझ गई कि भाई ही आया होगा।

मैं मन ही मन खुश हो रही थी कि भाई आखिर मेरी और आकर्षित हो रहा है और मेरे मन की मुराद जल्द पूरी होने वाली है, ऐसा मैं सोचती रही।

फिर मैंने सोचा कि मैं भाई से मुझको छुप कर नहाते हुए देखने का बदला ज़रूर लूँगी और एक दिन मुझको मौका मिल ही गया।

मैं रोज़ ही ताक में रहती थी कि भाई जब बाथरूम में जाए तो मैं भी उसके पीछे उसमें घुस जाऊँ और उसको जी भर कर देख सकूँ।

एक दिन भाई कॉलेज जाने की जल्दी में बाथरूम में घुसने के बाद उसके दरवाज़े की कुण्डी लगाना भूल गया था और यही अच्छा मौका देख कर मैं भी दरवाज़े को हल्का सा खोल कर देखती रही कि जैसे ही भाई ने अपने मुंह पर साबुन लगाया तो मैं बाथरूम के अंदर चली गई।

भाई का लंड उसकी झांटों के पीछे छुपा हुआ एक मामूली सा शरीर का अंग लग रहा था और उसकी अकड़न और उसका जोश औ खरोश उस वक्त गायब था।

मैं यह देख कर हैरान हो रही थी कि सुबह उठने से पहले जो इतनी शाही शान और शौकत से तना खड़ा था, अब सिर्फ एक चूहे की माफिक उसके बालों के पीछे छुपा हुआ था।

मैंने हिम्म्त करके उस के चूहे नुमा लंड को हाथ से ज़रा छुआ तो भाई एकदम चौंक गया और ज़ोर से बोल पड़ा- कौन है यहाँ? बोलो कौन है?

और आगे बढ़ कर उसने मुझको अपनी बाहों में बाँध लिया और अपना मुंह साफ़ करके बोला- अरे तुम नन्दी? यहाँ क्या कर रही हो?

मैंने बिना घबराए कहा- मैं तो तुमसे मेरे बाथरूम में मुझको नंगी देखने की हिम्म्त करने का बदला ले रही हूँ।

भाई अब हँसते हुए बोला- मुझको मालूम था नन्दी कि तुम ऐसा ही करोगी तो मैंने जानबूझ कर बाथरूम की कुण्डी नहीं लगाई थी।

यह कह कर भाई ने मुझको अपने साबुन लगे शरीर के साथ आलिंगन में ले लिया और ताबड़तोड़ मेरे होंठों पर चुम्मियों की बारिश कर दी और साथ में मेरा हाथ उठा कर अपने लौड़े पर रख दिया।

अब मेरे हैरान होने की बारी थी क्यूंकि भाई का लंड एकदम से अकड़ा हुआ था और मेरी नाइटी के ऊपर से मेरी चूत में घुसने की कोशिश कर रहा था।

मेरे छोटे लेकिन गोल और सॉलिड मम्मों को थोड़ी देर मसलने के बाद भाई ने कहा- नन्दी तुम अब जाओ, आज रात को फिर मिलने की कोशिश करते हैं। क्यों ठीक है ना?

और मैं बहुत ही सहमी हुई भाई के बाथरूम से निकल कर अपने कमरे में आ गई और इस घटना के बारे में सारा दिन सोचती रही।

लेकिन कुदरत की करनी ऐसे हुई कि उस रात भी हम दोनों नहीं मिल पाये क्यूंकि घर में बहुत से अतिथि आ गए थे और काफी दिन मेहमानों की गहमा गहमी रही।

जब मेहमानों से फ़ारिग़ हुए तो मुझको बुखार चढ़ आया लेकिन भाई आकर मेरा हालचाल ज़रूर पूछता और उंगली से मेरे को ज़रूर छूटा देता और मैं भी उसके लंड को मुट्ठी मारना सीख गई थी।

नंदा भाभी थोड़ी रुकी तो मैं उनके मम्मे सहलाता रहा और उनकी चूचियों को चूसता रहा और गौरी भाभी नंदा भाभी की चूत में अपनी जीभ के कमाल दिखाने लगी और वृंदा भाभी नन्दी को होटों पर चुम्बन देने लगी।

हम चारों आपस में इतने लीन हो गए कि हमको ख्याल ही नहीं रहा कि हम एक चलती हुई ट्रेन में बैठे हुए सफर कर रहे हैं।

वो तो हमारी आपसी सेक्सिंग की तन्द्रा तब टूटी जब कूपे का दरवाज़ा खटका और मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला तो सामने एक न्यूली मैरिड जोड़ा खड़ा था, वे अपने लिए सीटें ढूंढ रहे थे।

मैंने अपने कुपे के पूरा भरे होने की स्थिति से उनको अवगत करवा दिया और वो उदास होकर आगे चले गए।

नंदा भाभी अब थोड़ा फड़क उठी और फिर थोड़ा जोश से बोलने लगी- हमारा यह छुप कर एक दूसरे को चूमने चाटने का खेल कुछ दिन और चला और फिर एक दिन हमें मौका मिल गया जब मम्मी और पापा एक रात के लिए किसी रिश्तेदार की मौत के कारण उनके घर गए।

फिर उस रात मुझ को भैया ने दुल्हन की तरह सजाया और मेरे सर पर किनारे गोटे वाली चुनरी उड़ा कर मुझको अपने कमरे में बिठा दिया और फिर उन्होंने बिल्कुल दूल्हे की तरह से मेरा घूंघट हटाया और फिर हम दोनों ने खूब एक दूसरे को प्यार किया।

फिर भैया ने धीरे धीरे से मेरे सारे कपड़े उतार दिए और स्वयं भी निर्वस्त्र हो कर मेरे सामने आकर खड़े हो गए।

फिर उन्होंने मुझको एक बहुत ही कामुक आलिंगन दिया और मुझको बड़े प्रेम से बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी टांगों के बीच में बैठ कर अपने लौड़े को मेरी कुंवारी चूत के मुंह पर रख दिया और पूछा- नंदी अगर आज्ञा हो तो शुभारंभ करें?

मैंने हाँ में सर हिला दिया लेकिन भैया बोले- ऐसे नहीं नंदी, हाँ बोल कर अपनी रज़ा मंदी देनी होगी।

अब मैंने भी शरारती तौर पर कह दिया- नहीं देती मैं तो क्या कर लोगे?

भैया मेरा खेल समझ गए और हाथ जोड़ कर बोले- हे कुंवारी कन्या, मुझको आज्ञा दो ताकि मैं अपना मूसल तुम्हारी ओखली में डाल सकूँ।

मैंने चिढ़ कर कहा- भाई जो कुछ करना है जल्दी करो, मैं और देर बर्दाश्त नहीं कर सकती।

भाई ने अपने लंड का एक ज़ोर का धक्का मारा और लण्ड बिना किसी रुकावट के घप्प से अंदर चला गया।

मेरी एकदम से गीली चूत में इतनी ज़्यादा फिसलन हो रही थी कि भाई का 6 इंच का लण्ड बिना किसी भी रोकटोक के अंदर बाहर होने लगा।

कोई पांच मिनट की धक्का शाही में ही भाई का वीर्य मेरे अंदर छूट गया जबकि मेरी काम तृष्णा अभी थोड़ी सी ही तृप्त हुई थी।

भाई मेरे ऊपर से उठने लगा लेकिन मैंने अपनी टांगों और जांघों की कैंची उसकी कमर में ऐसी डाली कि भाई हिल ही ना सका।

मैं भी अपनी कमर और चूतड़ों को ऊपर उठा कर भाई के आधे खड़े लड़ को अपनी चूत से चोदने लगी और जल्दी ही भाई का लंड फिर से अलमस्त हो गया और वो अब मुझको एक सधे हुए चूत के खिलाड़ी के समान चोदने लगा।

मैं अपनी पहली चुदाई में ही दो बार झड़ गई और भाई भी कम से कम दो बार अपनी पिचकारी मेरी चूत में छोड़ बैठा। एक बार हम दोनों चूत चुदाई में खुल गए तो फिर हम कोई मौका नहीं छोड़ते थे और हम एक दूसरे को खूब चोदते रहते थे।

एक दिन बातों बातों में ही भैया ने अपनी इच्छा बताई कि काश उनकी शादी मेरे साथ हो सकती तो कितना जीवन भर आनन्द आता रहता।

एक साल ऐसे ही हमारे चुदाई का सम्बन्ध बनाए हुए बीत गया और फिर एक दिन मम्मी ने बताया कि वो भैया के लिए लड़की देखने जा रहे हैं और मैं भी ज़िद करके उन के साथ चली गई।

हम सबको लड़की बहुत पसंद आई और जल्दी ही शादी की तारीख पक्की हो गई।

जैसे जैसे ही भाई की शादी की तारीख निकट आने लगी, मेरी घबराहट बढ़ने लगी और मैं रोज़ रात को भाई से अपनी चुदाई करते हुए उसको याद दिलाती कि उसकी शादी के बाद मेरा क्या होगा।

एक रात भाई ने जोश में आकर कह ही दिया- नंदी, तुम घबराओ नहीं, मैं शादी के बाद भी तुमको मौका मिलने पर चोदता रहूँगा।

मैं उदास होते हुए बोली- विश्वास तो नहीं होता, लेकिन मजबूरी है तुम्हारी भी और मेरी भी! तुमको मेरी एक बात माननी होगी भाई?

वो धीरे से बोला- बोलो क्या चाहती हो तुम?

मैंने हिम्म्त कर के कहा- तुम्हारी सुहागरात वाली रात को मैं तुम्हारे ही कमरे में तुम दोनों के साथ रहूंगी। बोलो मंज़ूर है क्या? यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

भाई एकदम से हक्का बक्का रह गया और बोला- यह कैसे संभव हो सकता है नंदी?

मैं भी मुस्कराते हुए बोली- वो तुम मुझ पर छोड़ दो, तुमको तो कोई ऐतराज़ नहीं ना?

भाई चिंतित होते हुए बोला- अगर तुम्हारी भाभी ने पकड़ लिया तो?

मैं भी धड़ल्ले से बोली- वो मैं सम्भाल लूंगी, तुम बेफिक्र रहो! लेकिन उस रात भाभी को चोदने के बाद तुम मुझको आखिरी बार ज़रूर उसी कमरे में चोदोगे, वायदा करो??

हम सब चौंक गए कि यह कैसे सम्भव हो सकता है कि सुहागरात वाले समय में नंदा भाभी कैसे उसी कमरे में अपने भाई को अपनी दुल्हन को चोदने के बाद कैसे अपनी बहन को भी उसी स्थान पर चोद पाएगा।

हम सबने यह संशय नंदा भाभी को बताये और उन्होंने मुस्कराते हुए कहा- यह कर दिखाया मैंने लेकिन इससे पहले मैं इस राज़ को बताऊँ कि कैसे संभव हुआ यह सब, सोमू वायदा करे कि वो मुझको जम कर चोदेगा और तब तक चोदता रहेगा जब तक मैं अपनी हार ना मानूँ और यह न कहूँ कि अब और नहीं तब तक! बोलो मंज़ूर है?

वृंदा और गौरी भाभियाँ मेरी तरफ देखने लगी और मैंने कुछ सोचने का बहाना करने के बाद हाँ कर दी।

नंदी भाभी हँसते हुए बोली- बड़ा ही आसान तरीका था यारो, मैंने अपनी भाभी के दूध में थोड़ी सी नींद की दवाई मिला दी और भाई को समझा दिया कि वो मुझको अपने सुहाग पलंग के नीचे सोने की इजाज़त दे दे। और जब भाई ने भाभी की सील तोड़ दी तो भाई ने भाभी को वो नींद की दवाई मिला दूध पिला दिया और फिर मैंने और भाई ने रात भर एक दूसरे को खूब चोदा। नई भाभी सिर्फ एक बार चुदी और में कम से कम तीन बार चुदी उस रात उस सुहाग बिस्तर पर!

नंदा भाभी की कहानी खत्म होते ही उसने मुझको इशारे से अपने ऊपर आने के लिए कहा लेकिन मैंने भाभी को खड़ी करके और सीट पर हाथ टेक कर चुदने के लिए तैयार कर लिया।

तभी वृंदा भाभी बोल पड़ी- साली नंदी, तू इतनी बेसब्र क्यों हो रही है हम तो दो रात सोमू के घर में ही रुक रहे हैं ना, वहाँ जितना जी चाहे चुदवा लेना सोमू से। क्यों ठीक है ना?

वृंदा भाभी ने मुझसे पूछा लेकिन मैं बोला- नहीं भाभी, वायदा किया है वो तो निभाना पड़ेगा ना! हम सूर्यवंशी ठाकुर है तो वायदे से कैसे मुकर सकते हैं?

नंदा भाभी की जम के चुदाई करने के बाद हम सब थक हार कर बड़ी गहरी नींद सो गए।

कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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