मेरा गुप्त जीवन- 179

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नंदा भाभी की जम कर चुदाई करने के बाद हम सब थक हार कर बड़ी गहरी नींद सो गए।

लखनऊ स्टेशन पर गौरी को लेने उसका छोटा भाई आया हुआ था, उसको देख कर दोनों भाभियों ने फ़ौरन कहा- वाकई, यह तो सोमू की कॉपी है रे!

मैं दोनों भाभियों को टैक्सी में बिठा कर अपनी कोठी ले आया जहाँ कम्मो मेरी सहेली, मेरी गाइड और मेरी मास्टरनी हमारे स्वागत के लिए तैयार थी।

भाभियों को मेरे साथ वाले कमरे में टिका दिया और मैं नहा धोकर कॉलेज के लिए रवाना हो गया।

वापस आया तो दोनों भाभियाँ चहक रही थी और काफी खुश लग रही थी।

कम्मो ने खाना परोसते हुए बताया कि दोनों ने अपनी समस्याएँ बताई थी और उसने उनको ठीक करने का उपाय भी बता दिया है। मैंने पूछा- क्या उपाय बताया है तुमने?

कम्मो बोली- वही कि उनको गर्भाधान की ज़रूरत है अगर वो दोनों माँ बनना चाहती है क्यूंकि वो दोनों शारीरिक तौर से बिल्कुल ठीक है, जो भी कमी है वो उनके पतियों में है।

मैं बोला- तो फिर आगे क्या?

कम्मो मुस्कराते हुए बोली- आगे तो तुम पर निर्भर करता है.

मैं थोड़ा परेशान होते हुए बोला- कम्मो रानी, हर बार मुझको ही क्यों सरकारी सांड बना देती हो तुम, कोई दूसरा सांड ढूंढ लो ना?

कम्मो हँसते हुए बोली- मेरे प्यारे नन्हे से सांड के होते हुए मैं कहाँ जाऊँगी नया सांड ढूँढने? मेरी आपसे दरखास्त है छोटे मालिक इन दोनों भाभियों को हरा कर दो और इनके दिलों की मुराद पूरी कर दो, सारी उम्र दुआएँ देंगी तुमको!

मैंने कम्मो को इशारे से अपने पास बुलाया और उसकी साड़ी के ऊपर से उसके गोल और मोटे चूतड़ों पर हाथ फेरा और फिर उससे कहा- ठीक है कम्मो महारानी, जैसा तुम कहो वैसा ही कर देंगे। वास्तव में दोनों भाभियाँ हैं बहुत बड़ी चुदक्कड़! और उनको चोद कर बहुत ही मज़ा आ जाता है। उनका गर्भाधान कब करने का इरादा है?

कम्मो बोली- आज रात को उन दोनों का काँटा खींच देते हैं फिर तो उन्होंने गोरखपुर भी जाना है ना! कम्मो जो अब सीधी मेरे साथ जुड़ कर खड़ी थी अपनी चूत को साड़ी के ऊपर से मेरे कंधे से रगड़ रही थी।

कम्मो भी बेचारी 3 दिन से लौड़े की भूखी थी और उसकी चूत में शायद खुजली हो रही थी। उसके चूतड़ों को मसलने के बाद मैंने अपना एक हाथ उसकी धोती के ऊपर से चूत पर रख दिया और धीरे धीरे से उसकी चूत को मसलने लगा।

कम्मो ने मेरे हाथ को अपनी जांघों में रख कर ज़ोर से दबा कर यह ज़ाहिर कर दिया कि वो लण्ड की कितनी प्यासी है।

रात को दोनों भाभियों को कम्मो ने बड़े स्वादिष्ट पकवान और साथ में बकरे के पाये का सूप परोसा ताकि उनकी जिंसी भूख और उभर आये और वो अच्छी तरह से गर्भाधान के लिए पूरी तरह से तैयार हो कर चुदा सकें।

उस रात मैंने दोनों भाभियों को पूरा नंगी करके कम्मो के कहने के अनुसार कई बार चोदा और हर बार अपनी पिचकारी का रस उन दोनों की गर्भदानी के बीच में छोड़ने की कोशिश की।

अगली रात भी यह कार्यक्रम उन दोनों के साथ दोहराया गया ताकि शक की कोई गुंजाइश ना रहे। इस तरह मैंने और कम्मो ने भाभियों की दिली इच्छा को पूरा करने की भरसक कोशिश की।

दो दिन बाद जब भाभियाँ गोरखपुर के लिए रवाना होने लगी तो कम्मो ने उनका चेक अप करके उनको भरोसा दिला दिया कि उनकी दिली तमन्ना ज़रूर पूरी होगी और साथ में यह भी कह दिया कि अगर ज़रूरत समझें तो वो दोनों लखनऊ आकर अपनी प्रॉब्लम बता सकती हैं जिसको सुलझाने की कम्मो ज़रूर कोशिश करेगी।

भाभियों के जाने के बाद मैं कॉलेज में बहुत बिजी हो गया और मुझको ज़रा भी समय नहीं मिल पा रहा था।

एक दिन मेरे कॉलेज का अभिन्न मित्र सूरज मुझको एक कोने में ले गया और कहने लगा- सोमू यार, मेरे मोहल्ले में एक लड़की नई आई है, बड़ी ही सुंदर और नखरीली है, मेरा दिल उस पर बहुत फ़िदा है लेकिन वो मुझको घास ही नहीं डालती। तुम ही बताओ क्या करूं?

मैंने कुछ सोच कर कहा- मुझको उसको दिखा सकते हो क्या? उसको देखने के बाद ही फैसला करेंगे कि कैसे उसको पटाया जाए। सूरज मान गया और अगले दिन वो मुझको उससे मिलवाने के लिए ले गया।

उस लड़की के साथ खड़ी एक दूसरी लड़की को देखने के बाद मुझको ख्याल आया कि उसको शायद मैंने पहले भी कहीं देखा है। कब और कहाँ… यह याद नहीं आ रहा था।

वो लड़की होगी कोई 19-20 की लेकिन एक साधारण शक्ल सूरत वाली थी पर साड़ी के ऊपर से मम्मे और चूतड़ काफी सेक्सी दिख रहे थे।

वो लड़की मुझको देख कर ज़रा मुस्कराई और बोली- आइये छोटे मालिक, आज इधर कैसे आना हुआ? मैं उसकी यह बात सुन कर हैरान हुआ और उससे पूछा- तुम मुझको कैसे जानती हो?

वो फिर वैसे ही मुस्कराते हुए बोली- क्या आपने मुझको पहचाना नहीं? मैं आपके ही गाँव की रहने वाली हूँ और आपके यहाँ काम करने वाली बिंदु की छोटी बहन हूँ।

अब हैरान होने की बारी मेरी थी, मैं बोला- तभी कहूँ, शक्ल तो पहचानी हुई लगती है। अच्छा क्या हाल है बिंदु का? तुम्हारा नाम क्या है?

उसने कहा- बिंदु दीदी तो ठीक है। मेरा नाम इंदु है। आपको मालूम है कि बिंदु दीदी के घर 4 साल बाद लड़का पैदा हुआ है, बड़ा ही गोरा चिट्टा और प्यारा लड़का है।

मैं भी खुश होते हुए बोला- चलो अच्छा हुआ बिंदु के घर बच्चा हो गया! और सुनाओ यहाँ क्या कर रही हो? इंदु बोली- मेरी भी शादी हो चुकी है लेकिन मेरे पति को काम के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहना पड़ता है. मैं और मेरी ननद बसंती साथ साथ रहते हैं।

तब मुझको याद आया कि मैं तो सूरज के साथ आया हुआ हूँ और मैंने झट से सूरज का परिचय कराया और पूछा- बसंती कहाँ है? इंदु ने आवाज़ दे कर बसंती को भी बुला लिया जो अंदर रसोई में काम कर रही थी।

बसंती वाकयी में ही काफी सुंदर लड़की दिख रही थी और सूरज का उस पर आशिक होना जायज़ ही था। हालांकि बसंती ने बड़ी साधारण सी धोती पहन रखी थी फिर भी उसका हुस्न और जवानी उस में से साफ झलक रही थी। बसंती ने सूरज की तरफ एक उड़ती हुई नज़र ही डाली और उसकी तरफ कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया जिससे मैं समझ गया कि बसंती का सूरज की तरफ कोई ख़ास झुकाव नहीं है।

इंदु हम दोनों के लिए चाय बना लाई जिसको पीने के बाद हम दोनों चलने के लिए तैयार हो गए।

तब इंदु बोली- छोटे मालिक अगर हो सके तो बसंती के लिए कोई घर का काम काज वाली नौकरी ढूंढ दीजिये क्यूंकि हम पैसे के मामले में काफी तंगी में हैं।

मैं झट से बोल पड़ा- अरे तुम ने पहले क्यों नहीं बताया? हमारे साथ वाले घर में एक काम वाली लड़की की ज़रूरत थी, अगर तुम कहो तो मैं बसंती को बाइक पर बिठा कर अपनी कोठी में ले जाता हूँ, वहाँ कम्मो उसकी नौकरी का सारा इंतज़ाम कर देगी।

हम बाहर आये और सूरज तो अपने घर चला गया और मैं बसंती को अपनी बाइक पर बिठा कर अपनी कोठी में ले आया। रास्ते में ब्रेक मारते हुए या फिर गड्ढों से बचते हुए उस के ठोस और गोल मम्मे मेरी पीठ पर लग रहे थे।

घर में ला कर बसंती को कम्मो के हवाले कर दिया और मैं फ्रेश हो कर खाने के लिए बैठ गया।

तब कम्मो बसंती को बैठक में ले आई और बोली- वाह छोटे मालिक, आपने इंदु की ननद को यहाँ लाकर बहुत अच्छा किया। बसंती को हम अपने ही घर में रख लेते हैं क्यूंकि हमारी पारो कुछ दिनों में गाँव जाने वाली है, वो बसंती को खाना बनाना सिखा देगी और हम को खाना बनाने वाली ढूंढनी नहीं पड़ेगी।

मैं बोला- जैसा तुम ठीक समझो। असली घर की मालकिन तो तुम ही हो।

कम्मो ने मुझको खाना खिलाने के बाद बसंती को रिक्शा में बिठा कर उसके घर ले गई और थोड़ी देर में उसका सामान लेकर वापस आ गई। बसंती को पारो की कोठरी में ही सुला दिया और मैं और कम्मो रात भर एक दूसरे को चोदते रहे।

जैसा कि मेरा रोज़ाना का दस्तूर है जब मेरे घर में कोई और नहीं होता तो मैं रात को सिर्फ चादर करके ही सोता हूँ और नीचे कुछ नहीं पहनता और मेरा लौड़ा सुबह जब अपनी पूरी शान और शौकत में चादर के नीचे एकदम खड़ा होता है तो मुझको पहली बार देखने वाली स्त्री एकदम भौंचक्की रह जाती है, और यह एकदम स्वाभाविक ही है।

यही हाल बसंती का हुआ जो मुझको सुबह चाय देने आई।

वो मेरे लण्ड को चादर के नीचे मस्त खड़ा देख कर एकदम से बौखला गई और बड़ी मुश्किल से चाय के कप को गिरने से बचा पाई। मैं भी बसंती की अनछुई ख़ूबसूरती का रसपान करना चाहता था लेकिन मैं जल्दी में ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता था कि जिसको करने पर वो मुझसे बिदक जाए।

अगले दिन सुबह मैं उसका चाय ले कर आने का इंतज़ार करता रहा और उस के आने से पहले ही मैंने अपनी चादर का थोड़ा सा हिस्सा खिसका दिया ताकि मेरे नंगे लण्ड की एक झलक उसको दिख जाए।

आज जब बसंती आई तो मेरे खड़े लण्ड की झलक को देखा तो उसके हाथ ज़्यादा नहीं डगमगाए लेकिन वो थोड़ी देर मेरे लण्ड को तिरछी नज़र से देखती रही।

वापस जाने से पहले वो फिर मुड़ कर एक बार मेरे खड़े लण्ड पर नज़र डाल गई। यह सिलसिला कुछ दिन चलता रहा और अब मेरा लण्ड बिल्कु नंगा ही खड़ा हुआ मिलता था बसंती को।

कम्मो ने एक रात में चुदाई के दौरान बताया कि बसंती तो कुंवारी कली और उसने कभी भी आदमियों को नंगा नहीं देखा है। तब मैंने कम्मो को बताया को कैसे मैं बसंती को तैयार कर रहा हूँ और मेरे मन में बड़ी इच्छा है कि इस कुंवारी कली को पूरी नंगी देखूं लेकिन बगैर उसको पता चले!

कम्मो बोली- ठीक है छोटे मालिक, मैं इस कच्ची कली को आप के लिए तैयार करती हूँ लेकिन आपको बड़े धैर्य से इसको पटाना होगा। सबसे पहले मैं इस को रात को अपने साथ ही सुलाया करू।ञगी और सुबह जब यह मेरे वाले बाथरूम में नहाने जायेगी तो आप इस को रोशनदान से देख लिया करना। क्यों ठीक हैं ना?

मैंने कम्मो को एक कामुक जफ्फी मारते हुए उसको चूम लिया।

अगले दिन सुबह जब बसंती चाय दे कर जा रही थी तो उसकी निगाहें मेरे खड़े और नंगे लण्ड पर ही टिकी हुई थी।

चाय पीने के बाद कम्मो मेरे पास आई और बोली- बसंती नहाने गई है, आप उसका नज़ारा देख सकते हो!

मैं पजामा पहन कर अपने कमरे के कारिडोर के अंत में कम्मो के कमरे की ओर बढ़ गया और उसकी साइड में बने हुए रोशनदान को हल्का सा ऊपर कर के अंदर का दृश्य देखने लगा।

बसंती धीरे धीरे अपने कपड़े उतार रही थी, पहले अपनी धोती और ब्लाउज उतार दिया और फिर पेटीकोट का नाड़ा खींच कर खोल दिया।

बसंती कच्ची कली का शरीर एकदम साँचे में ढला हुआ था, उसके मोटे और गोल मम्मे सर उठाये खड़े थे और उसकी चूचियाँ भी अपना सर उठाये हुए शान से खड़ी थी।

उसका स्पॉट पेट और उसके नीचे उसकी अनछुई चूत पर छाईं काली ज़ुल्फ़ें गज़ब ढहा रही थी। उसके चूतड़ मोटे और गोल मटोल थे और काफी उत्तेजक दिख रहे थे।

मेरे देखते हुए ही उसने अपनी उंगली से अपनी चूत के भग को रगड़ना शुरू कर दिया और इधर मैंने भी अपने लण्ड को अपने हाथ में लेकर मसलना शुरू कर दिया।

उधर बसंती अपनी आँखें बंद करके ऊँगली चोदन का मज़ा ले रही थी और उसके चूतड़ काम उत्तेजना से बार बार ऊपर उठ रहे थे। यह अति कामुक दृश्य देख कर मेरे हाथ की लौड़ा मंथन की गति और भी तेज़ हो रही थी।

बसंती जब स्खलन के निकट पहुँच रही थी तो उसके होंठ खुले हुए थे, उसकी टांगें एकदम चौड़ी हो चुकी थी और वो अब बड़ी तेज़ी से अपनी उंगली चला रही थी।

उसके मुंह से अस्फुट शब्द निकल रहे थे और फिर ‘आहा ओह्ह्ह्ह…’ करती हुई अपनी दोनों टांगों में अपने हाथ को भींच कर हल्के हल्के कांपने लगी।

बसंती के पानी के छूटने और मेरे लंड की पिचकारी का छूटना दोनों तकरीबन एक साथ ही हुआ।

इस बीच बसंती का एक हाथ अपने मम्मों की चूचियों को मसल रहा था और मेरा हाथ मेरे अंडकोष को मसलने में लगा हुआ था।

उसके झड़ने के बाद मैं चुपचाप अपने बिस्तर पर आ लेटा लेकिन मेरा लौड़ा अभी भी आसमान की ओर मुख करके एक चूत के लिए गुहार लगा रहा था।

तभी प्यारी कम्मो रानी वहाँ आ गई और मेरे खड़े लण्ड की हालत को देख कर अपनी धोती पेटीकोट उतार कर मेरे ऊपर चढ़ बैठी।

मैं आँखें बंद किये हुए बसंती के नंगे शरीर के दृश्य को सामने रख कर कम्मो द्वारा चुद रहा था।

तभी मेरी नज़र कमरे के दरवाज़े पर गई जहाँ बसंती नहाने का बाद अपने गीले बालों के साथ एकदम फैली आँखों से कम्मो और मेरी चुदाई का नज़ारा देख रही थी।

मैंने झट आँखें बंद कर ली ताकि उसको यह अंदाजा ना हो कि मैंने उसको देख लिया है।

कम्मो काफी तेज़ी से मेरे लौड़े के ऊपर नीचे हो रही थी और मेरे दोनों हाथ कम्मो के चूतड़ों को अपने हाथों में थाम कर दबा रहे थे।

बसंती भी बड़े ही गौर से हम दोनों को चोदते हुए देख रही थी और उसका एक हाथ अब फिर अपनी धोती के ऊपर से उसकी चूत पर टिका हुआ था।

थोड़ी देर की तीव्र चुदाई के बाद कम्मो काफी शोर मचाती हुई झड़ गई और वो मेरे ऊपर एकदम से पसर गई। हम दोनों एक दूसरे में गुत्थम गुत्था हुए चुदाई के बाद की थकान को मिटा रहे थे।

जब कम्मो अपने कपड़े पहन कर जाने लगी तो मैंने उसको बताया कि बसंती हम दोनों को चोदते हुए देख गई है तो बात सम्भाल लेना।

जब नहा धोकर मैं नीचे बैठक में आया तो बसंती ही मेरा नाश्ता लगा रही थी और मुझको देख कर हल्के से मुस्करा भी रही थी।

मैंने उससे पूछा- क्यों बसंती यहाँ दिल लगा क्या? बसंती ने मुस्कराते हुए कहा- दिल क्यों नहीं लगेगा छोटे मालिक, जहाँ आप जैसे कारीगर शहज़ादे होंगे वहाँ दिल क्या सब कुछ लगेगा।

कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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