जिस्मानी रिश्तों की चाह-28

सम्पादक जूजा

अब तक आपने पढ़ा.. आपी जब आनन्द के शिखर की तरफ़ बढ़ने लगी तो मैंने उन्हें अपने काबू में लिया और उनकी चूत चाट कर उन्हें उस ऊपरी मुकाम तक ले गया.. लेकिन जब उन्हें होश आया तो आपी रोने लगी, कहने लगी कि यह गलत हुआ है.. अब आगे..

‘आपी प्लीज़ जो कुछ हुआ उससे हम मिटा नहीं सकते, आपको अपने सीने के उभारों को मसलते.. निप्पल्स को झंझोड़ते और अपनी टाँगों के दरमियान वाली जगह में ऊँगली अन्दर-बाहर करते देख कर मेरी भी सोचने-समझने की सलाहियत खत्म हो गई थी। आपकी टाँगों के बीच से उठती माशूरकन खुश्बू ने मेरे होश भी गुम कर दिए थे और मैंने जो किया उसकी आपको उस वक़्त शदीद जरूरत थी.. लाज़मी था कि आपको संतुष्टि मिले.. वरना आप का नर्वस ब्रेक डाउन भी हो सकता था।’

मैं यह कह कर आपी के साथ ही सोफे पर बैठ गया। मैं वाकयी ही बहुत दुखी हो गया था, मैं अपनी प्यारी बहन को रोता नहीं देख सकता था।

मैंने अपने एक हाथ से उनके सिर को नर्मी से थामते हुए अपने सीने से लगा लिया और अपना दूसरा बाज़ू आपी के पीछे से उनकी नंगी कमर से लगते हुए हाथ आपी के कंधों पर रख दिया।

मैं आपी को चुप कराने लगा- आपी प्लीज़.. अब बस करो.. मैं आपको रोता नहीं देख सकता.. मेरा दिल फट जाएगा.. चुप हो जाओ।

आपी ने अभी भी अपने चेहरे को दोनों हाथों में छुपा रखा था और उनकी आँखों से मुसलसल आँसू निकल रहे थे। मैंने आपी के कंधे से हाथ हटाया और बिला इरादा ही उनकी नंगी कमर को सहलाने लगा।

आपी के गाल मेरे सीने और कंधे के दरमियानी हिस्से के साथ चिपके और उनके सीने के खूबसूरत और बड़े-बड़े उभार मेरे सीने में दबे हुए थे।

आपी के निप्पल्स बहुत सख्ती से अकड़े हुए मेरे सीने के बालों में उलझे पड़े थे और मेरे खड़े लण्ड की नोक..! आपी की नफ़ से ज़रा नीचे.. साइड पर उभरे खूबसूरत तिल को चूम रही थी।

आपी ने रोना अब बंद कर दिया था लेकिन उनके मुँह से सिसकियाँ अभी भी निकल रही थीं। मैंने आपी के दोनों हाथों को अपने हाथ में लिया और उनके चेहरे से हटा कर आपी की गोद में रख दिया। मैंने आपी का चेहरा अपने हाथ से ऊपर किया.. उन्होंने आँखें बंद कर रखी थीं।

मैंने अपने हाथ से आपी के आँसू साफ करने शुरू किए.. तो आपी ने आँखें खोल दीं। मैं उनके आँसुओं को साफ कर रहा था और आपी बिना पलक झपकाए मेरी आँखों में देख रही थीं, उनकी आँखों में बहुत तेज चमक थी। उस वक़्त पता नहीं क्या था आपी की आँखों में.. मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं अब हमेशा के लिए इन आँखों का गुलाम हो गया हूँ। उनकी आँखों में देखते-देखते मेरी आँख में भी आँसू आ गए।

आपी ने वैसे ही मेरे सीने से लगे-लगे अपना एक हाथ उठाया और मेरे आँसू साफ करने लगीं।

मैंने उस वक़्त अपनी बहन के लिए अपने दिल-ओ-दिमाग में शदीद मुहब्बत महसूस की और बेसख्तगी में अपना चेहरा नीचे किया.. तो पता नहीं किस अहसास के तहत आपी ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और मैंने अपने होंठ आपी के होंठों से मिला दिए।

आपी के होंठ बहुत नर्म थे, मैंने आपी के ऊपर वाले होंठ को चूसना शुरू किया तो मुझे ऐसे लगा जैसे मैं गुलाब की पंखुड़ी को चूम रहा हूँ.. कुछ देर ऊपर वाले होंठ को चूसने के बाद मैंने आपी के नीचे वाले होंठ को अपने मुँह में दबाया तो मेरा ऊपरी होंठ आपी ने अपने मुँह में ले लिया और मदहोश सी मेरे ऊपरी होंठ को चूसने लगीं।

चुम्बन एक ऐसी चीज़ है कि आप अगर पहली मर्तबा भी करें तो आपको सीखने की जरूरत नहीं पड़ती.. नेचर हमें खुद ही समझा देती है कि हमने क्या करना है।

आपी ने अपने जिस्म को मेरे हाथों में बिल्कुल ढीला छोड़ दिया था। मैंने आपी के दोनों होंठों के दरमियान अपने होंठ रख कर उनके मुँह को थोड़ा सा खोला और आपी की ज़ुबान को अपने होंठों में खींचने की कोशिश करने लगा।

आपी ने मेरे इरादे को समझते हुए अपनी ज़ुबान को मेरे मुँह में दाखिल कर दिया। आपी की ज़ुबान का रस चूसते-चूसते ही मैंने अपना हाथ उठाया और आपी के सीने के उभार को नर्मी से थाम लिया और आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और मसलने लगा..

मैंने आपी के निप्पल को अपनी चुटकी में मसला तो आपी के मुँह से ‘सस्स्स्सीईईईई..’ की आवाज़ निकली और मेरे मुँह में गुम हो गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

मैं अपना हाथ आपी के दोनों उभारों पर फिराता हुआ नीचे की तरफ जाने लगा।

आपी के पेट पर हाथ फेरते हुए मैंने अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और जैसे ही मेरा हाथ अपनी बहन की टाँगों के दरमियान पहुँचा और मैंने उनकी चूत के दाने को छुआ ही था कि उन्होंने एकदम से मचल कर आँखें खोल दीं और एक झटके से अपने जिस्म को मेरे जिस्म से अलग करते हुए कहा- नहीं सगीर.. नहींईई.. ये नहीं होना चाहिए नहीं.. नहीं..

‘नहीं.. नहीं..’ की गर्दन करते हुए आपी उठीं और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं। मैंने आपी की कैफियत को समझते हुए उनको कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा कि उनको अपनी इस हरकत पर बहुत गिल्टी फील हो रहा था और मेरा कुछ कहना हमारे इस नए ताल्लुक के लिए अच्छा नहीं साबित होना था।

मैं और फरहान चुपचाप आपी को कपड़े पहनते देखते रहे.. आपी ने अपने कपड़े पहने और तेज क़दमों से चलती हुई कमरे से बाहर निकल गईं।

मैं अपने ऊपर छाए नशे को तोड़ना नहीं चाहता था, आपी के जिस्म की खुश्बू अभी भी मेरी साँसों में बसी थी और मैं उससे खोना नहीं चाहता था.. इसलिए फरहान से कुछ बोले बिना उससे सोने का इशारा करते हुए बिस्तर पर लेट गया और अपने लण्ड को हाथ में पकड़े.. आँखें बंद करके आपी के साथ हुए खेल को सोचते हुए लण्ड सहलाने लगा।

जल्दी ही मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया और अब मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि मैं अपनी सफाई कर सकता। उसी तरह लेटे-लेटे ही मैं नींद की वादियों मैं खो गया।

सुबह जब मेरी आँख खुली तो 9 बज रहे थे, मैं फ्रेश हो कर नीचे पहुँचा तो अम्मी टीवी लाऊँज में ही बैठी थीं। मैंने उन्हें सलाम किया और आपी का पूछा.. तो अम्मी बोलीं- बेटा रूही यूनिवर्सिटी गई है.. और तुम्हारे छोटे भाई बहन अपने स्कूल गए हैं। तुम आज कॉलेज क्यों नहीं गए हो.. अपनी पढ़ाई का भी कुछ ख़याल किया करो..

फरहान और हनी के स्कूल शुरू हो चुके थे।

अम्मी ने हमेशा की तरह सबका ही बता दिया और मुझे भी लेक्चर पिलाने लगीं।

वो ज़रा सांस लेने को रुकीं.. तो मैं फ़ौरन बोला- अम्मी नाश्ता तो दें दें ना.. मुझे आज कॉलेज लेट जाना था.. इसलिए देर से ही उठा हूँ।

अम्मी बोलते-बोलते ही किचन में गईं और पहले से तैयार रखी नाश्ते की ट्रे उठाए हुए बाहर आ गईं। मैंने भी नाश्ता किया और कॉलेज चला गया।

दिन में जब मैं कॉलेज से वापस आया तो फरहान और हनी नानी के घर जाने को तैयार खड़े थे और अम्मी उनको कुछ सामान देते हो नसीहतें दे रही थीं।

‘सीधा नानी के घर ही जाना.. कोई आइसक्रीम-वाइसक्रीम के चक्कर में मत पड़ जाना.. सुन रहे हो ना.. मैं क्या कह रही हूँ..’ वगैरह वगैरह..

फरहान, हनी को भेजने के बाद अम्मी वहीं सोफे पर बैठ गईं और टीवी पर मसाला चैनल (कुकरी शो) देखने लगीं। मैंने अम्मी को कहा- अम्मी बहुत भूख लगी है.. खाना तो दे दें। अम्मी ने टीवी पर ही नज़र जमाए हुए कहा- रूही किचन में ही है.. उससे कहो.. दे देगी।

आपी का जिक्र सुनते ही लण्ड ने सलामी के तौर पर झटका खाया और मैं किचन की तरफ बढ़ ही रहा था कि किचन के दरवाज़े पर आपी खड़ी नज़र आ गईं, वो बाहर ही आ रही थीं.. लेकिन अम्मी की बात सुन कर वहाँ ही रुक गईं और मेरी तरफ देख कर कुछ शर्म और कुछ झिझक के अंदाज़ में मुस्कुरा दीं।

उन्होंने हमेशा की तरह सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और चादर के बजाए बड़ा सा कॉटन का दुपट्टा सीने पर फैला रखा था।

मैंने आपी को देख कर सलाम किया और नॉर्मल अंदाज़ में कहा- आपी खाना दे दें.. बहुत सख़्त भूख लगी है। ‘तुम हाथ-मुँह धो कर टेबल पर बैठो.. मैं खाना लेकर आती हूँ।’ आपी ने किचन में वापस घुसते हुए जवाब दिया।

मैं हाथ-मुँह धोते हुए यही सोच रहा था कि कल रात जो आपी को बहुत गिल्टी फीलिंग हो रही थीं.. शायद अब वो धीमी पड़ गई है।

वाकयी ही ये लण्ड और चूत की भूख ऐसी ही है कि जब जागती है.. तो गलत-सही.. झूठ-सच कुछ नहीं देखती.. बस अपना आपा दिखाती है।

मैं ज़रा फ्रेश होकर टेबल पर बैठ ही रहा था कि आपी ट्रे उठाए किचन से निकलीं और मेरे सामने खाना रख कर सोफे पर अम्मी के पास ही बैठ गईं।

मैं खाना खाने लगा और अम्मी और आपी आपस मैं बातें करने लगीं। मैं खाना खाते-खाते नज़र उठा कर आपी के सीने के उभारों और पूरे जिस्म को भी देख लेता था। आपी ने मेरी नजरों को महसूस कर लिया था, लड़कियों की सिक्स सेंस्थ इस मामले में बहुत तेज होती है, वो अपनी पीठ पर भी नजरों की ताड़ को महसूस कर लेती हैं।

अब जब मैंने नज़र उठाई.. तो आपी ने भी उसी वक़्त मेरी तरफ देखा और गुस्सैल सी शकल बना कर आँखों से अम्मी की तरफ इशारा किया.. जैसे कह रही हों कि दिमाग ठिकाने पर नहीं है क्या..?? अम्मी देख लेंगी..

जारी है। [email protected]