जिस्मानी रिश्तों की चाह -21

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सम्पादक- जूजा अब तक आपने पढ़ा..

मैं फरहान की गाण्ड मारने लगा, मुझे कुछ ज्यादा ही मज़ा आ रहा था। अनोखे मज़े की वजह यह सोच थी कि मेरी सगी बहन जो बहुत बा-हया और पाकीज़ा है.. वो मुझे देख रही है कि मैं अपने सगे छोटे भाई की टाँगों को अपने कंधे पर रखे उसकी गांड में अपना लंड अन्दर-बाहर कर रहा हूँ।

अब आगे..

मेरी पाकीज़ा बहन ये सब देखते हुए मज़े से अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को अपने ही हाथ से मसल रही है और अपने मम्मों को दबा-दबा कर बेहाल हुए जा रही है।

आपी को हक़ीक़तन ही ये सब बहुत अच्छा लग रहा था और वो अपने मम्मों को अपने हाथ से मसलती थीं.. तो कभी उन्हें दबोच लेती थीं.. तो कभी अपने निप्पल्स को चुटकी में लेकर खींचने लगती थीं।

फरहान और मेरी नजरें आपी पर ही थीं.. आपी भी हमें ही देख रही थीं, कभी-कभी हमारी नजरें भी मिल जाती थीं। कुछ देर बाद मैं फरहान की गाण्ड में ही डिसचार्ज हुआ और अब मैं नीचे और फरहान मेरे ऊपर आ गया और फरहान ने मुझे चोदना शुरू कर दिया और हम दोनों ने नजरें आपी पर जमाए रखीं।

आपी अब बिल्कुल फ्री होकर अपने जिस्म को रगड़ रही थीं और मज़े में अपने मुँह से आवाजें भी निकाल रही थीं। फरहान के लण्ड का जूस निकालने तक आपी भी 2 बार डिसचार्ज हो चुकी थीं।

इस तरह नजारा ये रहा कि आपी रोज रात को आ जातीं.. अब उनकी झिझक खत्म हो चुकी थी.. वो बस कमरे में आकर अपनी जगह पर बैठ जातीं और अपनी टाँगों के दरमियान हाथ रख कर हमें हुकुम दे देतीं कि शुरू हो जाओ.. हम एक-दूसरे को चोदते और आपी अपने हाथ से अपने आपको सुकून पहुँचा लेतीं।

जब आपी डिसचार्ज होने लगती थीं तो बहुत वाइल्ड हो जाती थीं और ज़ोर-ज़ोर से आवाजें निकालने लगती थीं। अक्सर ही हम डर जाते कि कहीं नीचे आवाज़ ना चली जाए.. लेकिन आपी की ये आवाजें हमें मज़ा भी बहुत देती थीं।

कुछ रातों तक ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा.. लेकिन अब मैं बोर होने लगा था। अगली रात जब आपी कमरे में आईं और अपनी जगह पर बैठते हुए अपनी टाँगों के दरमियान हाथ रखा और हमें शुरू करने का इशारा किया.. तो मैंने कुछ भी करने से मना कर दिया और कहा- नहीं आपी.. अब मैं ये रोज़ के रूटीन से थक गया हूँ।

‘क्या मतलब है तुम्हारा..?’ आपी ने कहा। मैंने कहा- कम ऑन आपी.. रोज़-रोज़ एक ही चीज़..! अब हम कुछ अलग चाहते हैं।

आपी ने कुछ समझने और कुछ ना समझने वाले अंदाज़ में पूछा- क्या कहना चाहते हो तुम? मैंने आपी को आँख मारते हुए शरारती अंदाज़ में जवाब दिया- क्या ख़याल है अगर आप भी हमारे साथ शामिल हों तो?

‘इसके बारे में सिर्फ़ ख्वाब ही देखो तुम.. ऐसा कभी नहीं हो सकता।’ आपी ने चिल्ला कर कहा। ‘ओके तो फिर हम भी कुछ नहीं करेंगे। ये दुनिया ‘कुछ लो और कुछ दो’ के उसूल पर ही कायम है.. फ्री में कुछ नहीं मिलता।’ मैंने भी अकड़ते हो कहा।

‘ठीक है.. नहीं तो नहीं बस..’ आपी ने ये कहा और जो चादर कुछ लम्हों पहले उन्होंने ठीक की थी.. उससे खोलने लगीं। फरहान ने कहा- भाई छोड़ो ना यार.. चलो शुरू करते हैं..

मैंने फरहान से इशारे में कहा कि सबर करो ज़रा.. और आपी की तरफ देखा जो चादर कंधों पर डाल रही थीं। मैंने कहा- ओके मैं जानता हूँ आपको भी हमें देखने में इतना ही मज़ा आता है.. जितना हमें.. और जाना आप भी नहीं चाहती हो।

यह हक़ीक़त ही थी कि आपी को अब आदत हो चुकी थी और वो सिर्फ़ हमें डराने के लिए ही जाने की धमकी दे रही थीं और जाना खुद भी नहीं चाहती थीं।

आपी को ताकता देख कर मैंने कहा- चलो एक समझौता कर लेते हैं। आपी ने कहा- किस किस्म का समझौता? मैंने कहा- चलो ठीक है.. आप हमारे साथ शामिल ना हों.. बल्कि हमसे दूर वहाँ सोफे पर ही बैठो.. लेकिन अपने कपड़े उतार कर बैठो।

फरहान मेरे इस मशवरे पर बहुत उत्तेजित हो गया और फ़ौरन बोला- हाँ आपी.. हम लोगों को तो आपने नंगा देख ही लिया है.. अब हमारा भी कुछ ख़याल करें ना..

आपी का चेहरा शर्म और गुस्से के मिले-जुले तासूर से लाल हो गया और उन्होंने चादर अपने जिस्म के गिर्द लपेटी और खड़े होते हुए कहा- शटअप.. मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी पहले ही तुम्हारे लिए बहुत कुछ कर चुकी हूँ। अगर तुम लोग आपस में कुछ करने को तैयार हो.. तो बता दो.. नहीं तो मैं जा रही हूँ।

आपी के इस अंदाज़ ने मुझ पर ज़ाहिर कर दिया था कि वो वाकयी ही चली जाएंगी.. इसलिए मैं कन्फ्यूज सा हो गया कि क्या करूँ।

फरहान ने मेरी हालत को भाँप लिया और मिनट समजात करते हो आपी से कहने लगा- आपी प्लीज़.. हमने कभी किसी लड़की को रियल में नंगा नहीं देखा.. और आपको देखने से बढ़ कर कुछ नहीं.. क्योंकि मैं कसम ख़ाता हूँ कि मैंने आज तक आप से ज्यादा हसीन लड़की कोई नहीं देखी.. आप बहुत खूबसूरत हैं। सब ही ये कहते हैं.. मेरी कसम पर यक़ीन नहीं तो आप भाईजान से पूछ लें।

‘फरहान सही कह रहा है आपी.. प्लीज़ हमारे साथ ऐसा तो ना करो.. यार ऐसे तो मत जाओ.. आपका यहाँ बैठा होना ही हमें बहुत मज़ा देता है.. कि हमारी सग़ी बड़ी बहन हमें देख रही है.. ये अहसास हमारे अन्दर बिजली सी भर देता है। लेकिन प्लीज़ आपी हमारा भी तो कुछ ख़याल करो ना.. आप अच्छी तरह से जानती हो कि हम ‘गे’ नहीं हैं.. ये सब इसलिए हुआ कि हमें शिद्दत से एक सुराख चाहिए था.. जिसमें हम अपने लण्ड डाल सकें.. जब हमें कोई लड़की नहीं मिली तो हमने एक-दूसरे के साथ शुरू कर दिया।

फिर मैंने भी मिन्नत करते हुए कहा- अच्छा प्लीज़ आपी आप सिर्फ़ अपनी क़मीज़ थोड़ी सी उठा कर हमें अपने सीने के उभार दिखा दें.. प्लीज़ आपी.. आप इतना तो कर ही सकती हो ना.. प्लीज़ मेरी सोहनी आपी..

मुझे देख कर फरहान ने भी मिन्नत करते हुए कहा- प्लीज़ आपी जी.. दिखा दो ना.. मेरी प्यारी आापी जी.. प्लीज़..

कुछ देर बाद आपी ने अपनी चादर उतारी और झिझकते हुए कहा- ओके लेकिन सिर्फ़ देखोगे.. क़रीब मत आना मेरे.. यह कह कर आपी घूमी और चादर सोफे पर रखने लगीं।

‘यसस्स स्स..’ मैंने और फरहान ने एक साथ खुशी से चिल्ला कर कहा। फरहान ने मुझे आँख मारते हुए सरगोशी में कहा- गुड जॉब भाई..

आपी हमारे सामने सीधी खड़ी हुईं और दोनों हाथों से अपनी क़मीज़ का दामन पकड़ा और आहिस्ता-आहिस्ता ऊपर उठाने लगीं।

हमें आपी की काली सलवार नज़र आने लगी.. आपी की सलवार पर बहुत बड़ा सा सफ़ेद धब्बा बना हुआ था.. जो शायद उनकी मोनी थी.. जो सूख चुकी थी।

उनकी सलवार काली होने की वजह से सफ़ेद धब्बा ज्यादा ही वज़या हो गया था.. क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठी तो आपी की सलवार का बेल्ट और फिर उनका ब्लैक एज़ारबंद नज़र आने लगा.. जो कहीं-कहीं से सफेद हो रहा था जो ज़ाहिर कर रहा था कि आपी ने डिस्चार्ज होकर कितनी ज्यादा पानी छोड़ा था कि सलवार से निकल-निकल कर एज़ारबंद को गीला करता रहा था।

आपी ने क़मीज़ थोड़ी और ऊपर उठाई.. तो हमने पहली बार भरपूर नज़र से अपनी सग़ी बहन का नंगा पेट देखा। आपी का गोरा पेट और उस पर उनका खूबसूरत नफ़.. जो काफ़ी गहरी होने की वजह से काली नज़र आ रही थी और उसके नीचे छोटा सा तिल.. जो ऐसे लग रहा था.. जैसे दरबार-ए-हुस्न के दर पर निगहबान बिठा रखा हो।

ये सब नजारा हमारे होश गुम किए दे रहा था।

आपी अपनी नजरें हमारे चेहरों पर जमाए धीरे-धीरे अपनी क़मीज़ को ऊपर उठा रही थीं और हम दोनों बिल्कुल खामोश और बगैर पलकें झपकाए दुनिया के हसीन तरीन नज़ारे के इन्तजार में थे। हम दोनों की साँसें रुक गई थीं और हमारे दिमाग कुंद हो चुके थे।

आपी की क़मीज़ उनके मम्मों तक पहुँच गई थी और हमें उनके मम्मों का निचला हिस्सा.. जहाँ से गोलाई ऊपर उठना शुरू होती है.. दिखाई दे रहा था।

आपी ने क़मीज़ यहाँ ही रोक दी थी लेकिन हम दोनों ही टकटकी बांधे आपी के मम्मों का निचला हिस्सा और उनका गुलाबी पेट देख रहे थे। जब काफ़ी देर तक हमने कोई रिएक्शन नहीं दिया..

तो आपी बोलीं- मेरा नहीं ख़याल है कि मैं इससे ज्यादा कुछ कर सकती हूँ.. बस तुम दोनों के लिए इतना ही बहुत है। आपी ने ये कहा और शरारती अंदाज़ में मुस्कुराने लगीं।

मैं समझ गया था कि आपी हमारी कैफियत से मज़ा ले रही हैं। फिर भी मैंने कहा- प्लीज़ आपी.. अब तड़फाओ मत.. ऊपर उठाओ ना अपनी क़मीज़.. प्लीज़ आपी.. फरहान भी घिघयाने लगा- प्लीज़ आपी.. दिखाओ ना.. मेरी अच्छी वाली आपी प्लीज़..

आपी ने मुस्कुरा कर हमें देखा और एक ही तेज झटके में अपनी क़मीज़ सर से निकाल कर सोफे पर फेंक दी।

‘वॉववववव..’

यह मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन तरीन नज़ारा था… मेरी आपी.. मेरी सगी बहन.. मेरी वो बहन जिसकी हया.. जिसके पर्दे.. जिसकी नज़ाकत.. जिसकी पाकीज़गी.. जिसकी मासूमियत.. जिसकी नफ़ासत.. की पूरा खानदान मिसालें देता था.. वो मेरे सामने बगैर क़मीज़ के खड़ी थीं… उसके मम्मे मेरी नजरों के सामने थे। मेरे लिए वक़्त रुक सा गया था.. मुझे अपने आस-पास का बिल्कुल होश नहीं रहा था और मेरी नजरें अपनी सग़ी बहन के मम्मों पर जम गई थीं।

मेरी बहन के मम्मे बिल्कुल गुलाबी थे, उनकी जिल्द बहुत ज्यादा चिकनी थी.. कोई दाग.. कोई धब्बा या किसी पिंपल का नामोनिशान नहीं था।

मैं अपनी बहन के मम्मों का 1-1 मिलीमीटर पूरी तवज्जो से देख रहा था और इस नज़ारे को अपनी आँखों में हमेशा हमेशा के लिए बसा लेना चाहता था।

यह कहानी एक पाकिस्तानी लड़के सगीर की है.. बहुत ही रूमानियत से भरे हुए वाकियात हैं इस कहानी में.. आप अपने ख्यालात कहानी के अंत में अवश्य लिखें।

ये वाकिया जारी है। [email protected]

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