मेरी अन्तर्वासना हिन्दी सेक्स स्टोरी की फ़ैन की चूत-2

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अब तक आपने पढ़ा.. कविता मेरे साथ बाथरूम में थी। अब आगे..

मैंने उससे कहा- हम पहले नहा लें.. साथ-साथ मस्ती भी कर लेते हैं।

उसने शावर ऑन कर दिया और हम दोनों शावर लेने लगे। मैं बाथटब में बैठ गया और उसे अपने ऊपर बिठा लिया। उसके जिस्म पर सिर्फ पैंटी थी और मेरे शरीर पर भी केवल अंडरवियर ही था।

मैं उसके पूरे शरीर पर साबुन लगा रहा था, बाद में उसने मेरे जिस्म पर साबुन लगाया, हम दोनों के ऊपर साबुन का झाग फ़ैल गया था और हम दोनों बाथ टब में मस्ती कर रहे थे। उसके बाद हमने एक-दूसरे के जिस्म को खूब सहलाया। फिर हमने साफ़ पानी से अपने शरीर को साफ़ किया।

मैंने उसके मम्मों को दबाने को सहलाने के बाद उसके नाज़ुक अंग, उसकी चूत की तरफ रुख किया। मैंने उसको खड़ा होने के लिए कहा और जैसे ही वो खड़ी हुई, तो मैंने उसकी पैंटी को अपने दांतों से पकड़ लिया और उसकी पैंटी को उतारना शुरू कर दिया।

जैसे ही मैं उसकी पैंटी अपने दांतों में लेकर उतार रहा था.. उसकी कामुकता और बढ़ती जा रही थी। मैं अपने दोनों हाथों से उसकी गांड को भी थपथपाता जा रहा था। जैसे ही उसकी पैंटी घुटनों से नीचे हुई तो उसने एक बार अपनी दोनों टांगों के बीच योनि को कस लिया।

मैंने उसकी पैंटी वहीं छोड़ दी और कहा- साली कुतिया, अब तुझे फिर शर्म आ रही है।

इतने में ही बाथरूम का दरवाजा खड़का, तो कविता बोली- हाँ जी.. क्या हुआ? बाहर से रोहित की आवाज़ आई- अरे एक बार दरवाजा तो खोलो।

कविता ने उठ कर थोड़ा सा दरवाजा खोला और बाहर झांक कर कहा- हाँ जी.. अब क्या हुआ? रोहित बोला- यार मुझे तुम्हें चुदते देखना है.. मैं गेट लॉक कर आया हूँ। मैंने कहा- दरवाजा खोल दो कविता।

कविता ने पूरा दरवाजा खोल दिया, कविता अभी भी थोड़ा-थोड़ा शर्मा रही थी।

मैंने कविता की पैंटी को एक झटके में नीचे उतार दिया और कविता अब पूरी तरह नंगी थी। मैंने भी अपना अंडरवियर उतार दिया, अब हम दोनों ही नंगे थे। सामने रोहित खड़ा देख रहा था, तो मैंने कविता का मुँह अपनी तरफ कर लिया। मेरा मुँह रोहित की तरफ था। मैंने रोहित को देखते हुए कविता की चूत में अपनी उंगली पेल दी। कविता सिसकने लगी और कविता की उत्तेजना बढ़ गई।

तभी पीछे खड़ा रोहित बोला- रवि इस साली की आज डर्टी चुदाई कर दे। ये साली जब तक आपके नाम से गालियाँ सुन कर न चुदे.. इसे मज़ा नहीं आता।

कविता फिर शर्मा गई.. तो मैंने कहा- ओह तो ये बात है.. कोई बात नहीं.. इस साली को तो अब बहुत मज़ा देंगे। बोल कविता कितना डर्टी कर दूँ? कविता उत्तेजना में थी, परन्तु पीछे खड़े रोहित की वजह से फिर भी थोड़ा शर्म महसूस कर रही थी।

फिर अंत में आखिर कविता बोल ही पड़ी- जानू तुम जाओ न.. मैं अपने आप ही देख लूँगी। मैंने कहा- अरे डार्लिंग, अब उन्होंने भी तो तुम्हारा अंग-अंग चोदा हुआ है.. उनसे कैसी शर्म.. घबराओ नहीं यार.. अब खुल कर मज़ा लो।

यह कहते हुए मैंने उसकी चूत में तेज-तेज उंगली चलानी शुरू कर दी, जिससे कविता की चूत पूरी तरह से गर्म हो गई और वो सिसकने लगी ‘उन्ह आह सी सी सी आह.. अह जानू उई..’ यह कहते हुए वो मेरे साथ चिपक गई।

मैंने कहा- बताओ न.. कैसे चुदना पसंद है जानेमन? तभी रोहित बोला- इसको गालियाँ देते हुए चोदो.. फिर मज़ा आएगा। तभी सिसकती हुई कविता बोली- उन्ह.. आह सी सी आप.. डायरेक्शन देने के लिए खड़े हो क्या.. उन्ह सी सी..?

मुझे हँसी आ गई। अब मैंने कविता की चूत को अपने मुँह में ले लिया और बोला- ले साली.. अब कर पेशाब, तू फोन पर हर बार बोलती थी न कि जब आओगे तो मुँह में पेशाब की धार मारूंगी। ले साली मार अब.. पेशाब कर कुतिया मेरी जानेमन। वो बोली- उई आह.. ले चाट न इसे.. ओई अह.. सी सी सी उई..’

मैं उसकी चूत में तेज-तेज अपनी जीभ चलाने लगा और उसकी गांड को भी पीछे से थपथपाता जा रहा था।

ये सारा सीन कविता का पति यानि रोहित सामने खड़ा देख रहा था। रोहित का लौड़ा भी खड़ा था, परन्तु वो देखकर ही मज़ा लेना चाहता था। मैंने अपने दोनों हाथों से कविता के मम्मों को भी सहलाना शुरू कर दिया था।

जब कविता बहुत ज्यादा गर्म हो गई तो वो सीत्कारने लगी ‘उन्ह आह उन्ह उई सी सी.. अह बस बस.. अब डाल दो उई..’ मैंने कहा- क्या डाल दूँ बेबी? वो मेरे लंड को हाथ में लेकर बोली- ये डाल दो यार.. उई आह.. ज़ल्दी डाल दो उई.. मैं गई आह.. ज़ल्दी उई..’ मैंने कहा- फिर बता साली, इसका नाम क्या है.. बोल?

कविता अब अपनी पूरी उत्तेजना में आ चुकी थी, उसकी चूत का फुव्वारा कभी भी फूट सकता था। परन्तु मैं उसको पूरा बेशर्म करने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, मैंने फिर पूछ लिया- मादरचोदी.. बता न क्या डालूँ कुतिया भोसड़ी की। तो वो बोली- उई आह लंड डाल डे साले.. नहीं तेरी ये कविता बाहर ही छूट जाएगी.. आह सम्भाल ले इसे.. आह उई उई उई गई..’

अब वो पूरी तरह खुल चुकी थी। मैंने उसकी गांड को थोड़ा पीछे किया और उसे बाथटब की दीवार पर बिठा कर उसकी दोनों टांगों को ऊपर उठा कर उसकी चूत पर लंड की टोपी रख कर एक हल्का सा झटका लगाया। जब लंड उसकी चूत के अन्दर हो गया.. तो मैंने उसकी चूत में जोरदार शॉट लगाया.. जिससे मेरा आधा लंड उसकी चूत में घुसता चला गया।

वो मादकता से सिसकारने लगी और उसे मज़ा आने लगा, जब मैं धक्का मारता तो वो पीछे को चली जाती थी।

लेकिन पीछे कोई सपोर्ट न होने की वजह से दिक्कत आ रही थी, तो रोहित ने आगे बढ़ कर उसे पीछे से पकड़ लिया और बोला- अब चोदो इस साली को।

मैंने तीन-चार जोरदार झटके लगाए और अपना पूरा लंड उसकी चूत में उतार दिया। अब मैं उसके मम्मों को भी सहलाने लगा, उसको होंठों को अपने होंठों में ले लिया और नीचे से तेज-तेज झटके लगाने लगा।

तभी रोहित बोला- मेरी कुतिया.. अब अपने हीरो से लंड डलवाकर कैसा लग रहा है भोसड़ी की.. तेरी चूत हर रोज़ इस हीरो का लौड़ा मांगती थी न.. ले अब बड़े प्यार से खा साली।

यह सुनकर कविता और मस्त हो गई और उसका शरीर अकड़ने लगा, मैंने उसे कस कर पकड़ लिया और अपना लंड थोड़ा बाहर करके अन्दर को एक जोरदार झटका लगाया।

मेरे झटका लगाते ही कविता के मुँह से बस कामुक सिसकारियाँ और अस्पष्ट शब्द निकलने लगे ‘उई अंह.. अंह.. सी सी ई ई..’

यह कहते ही वो अकड़ उठी और उसकी चूत से धार मेरे लंड पर गिरने लगी.. उसकी गरम धार मेरे टट्टों को भी भिगोने लगी। उसकी चूत में मैंने एक और जोर से झटका लगाया और उसके मम्मों को अपनी छाती से लगा लिया। अब उसकी चूत से पानी की नदिया बह निकली, कविता की जवानी का रस फूटकर लंड को भिगोता हुए नीचे गिर रहा था।

पीछे खड़ा रोहित ये नज़ारा देखते हुए कविता को गालियाँ देते हुए उत्साहित कर रहा था, वो कह रहा था- ले साली कुतिया, मादरचोद.. चुद.. चुद ले साली अपने यार से.. कुतिया देख तेरी जवानी का रस फूट पड़ा।

कविता बस सिसकार रही थी, मेरी भी मादक सिसकियाँ ही निकल रही थीं ‘ओह्ह.. आह.. आह आह..’ ऐसे ही हम दोनों माल छूटने की सिसकारी भरते हुए बस चुदाई के उन पलों का मज़ा ले रहे थे।

अब तो मेरे लंड ने भी कविता की जवानी के रस को न झेलते हुए अपना रस छोड़ने की तैयारी कर ली।

मैंने चरम पर पहुँचते हुए चीख मारी- उई आह.. आह उई सी सी.. ले साली.. मैं भी आने वाला हूँ.. बहन की लौड़ी.. ले.. कहाँ गिराऊँ कुतिया.. उई सी..

तभी पीछे खड़ा रोहित बोला- अरे अन्दर ही डालो रवि.. तुम्हारा पहला रस ये चूत में ही लेना चाहेगी।

मैं झड़ने के बहुत करीब था परन्तु फिर भी एक बार इशारा करके मैंने कविता से पूछा- उन्ह उन्ह.. कुतिया.. बोल साली कहाँ लेगी? कविता ने मुझे कसते हुए कहा- उई.. उम्म्ह… अहह… हय… याह… साले चूत में ही छोड़ दे कुत्ते आह.. यार..’

तभी मैंने एक और जोर से झटका लगाया और मेरे लौड़े की धार उसके अन्दर गिरने लगी। इसी के साथ हम दोनों ने एक-दूसरे को कस लिया। अब हम दोनों एक-दूसरे की आगोश में आँखें बंद करके झड़ने का मज़ा ले रहे थे। हम दोनों कुछ देर तक ऐसे ही बैठे रहे, उसके बाद हम उठ कर बाथटब में बैठ गए और कविता ने पानी चालू कर दिया। हम दोनों ने एक दूजे को अच्छी तरह से नहलाया और इस दौरान कविता ने मेरा लंड भी चूसा.. उसने काफी देर तक मेरा लौड़ा चूसा.. यहाँ तक कि उसने मेरे टट्टों की गोटियों को भी चूसा।

उसकी इस मदमस्त चुसाई से मेरा लंड दुबारा खड़ा हो गया। हमने एक-दूसरे को किस किया और नहा कर बाहर आ गए।

हम दोनों नंगे ही बाहर आ गए। मैंने अपना बैग खोला और वहाँ से कपड़े निकाल कर पहने। कविता ने भी अपने कपड़े पहने और हम बैठ गए।

इस धकापेल चुदाई में आपको भी मजा आया होगा। इन्तजार किस बात का है दोस्तो.. मुझे ईमेल लिखिए न.. मुझे इन्तजार है। [email protected] कहानी जारी है।

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