शादी में चूसा कज़न के दोस्त का लंड-6

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दोस्तो, पाठकों द्वारा रवि के साथ मेरे रिश्ते के बारे में बार-बार पूछे जाने को लेकर मुझे यह गे सेक्स स्टोरी आगे बढ़ानी पढ़ रही है क्योंकि पाठकों की इच्छा है कि मैं रवि और मेरे रिश्ते का हर पहलू आप अंतर्वासना पर उजागर करूं इसलिए यह कहानी वहीं पर खत्म नहीं हुई थी… पाठकों की मांग पर मैं फिर से इसको बढा़ने जा रहा हूँ.

तो अभी तक आपने पढ़ा… वो चला गया… वो चला गया.. सोच सोच कर दिमाग की नसें फट रहीं थीं। बड़ी मुश्किल से आँसुओं को छुपाता हुआ नीचे उतरा और बाहर निकलकर पास की नहर के किनारे जाकर चीख चीख कर रोया.. रवि… रवि… आ जा यार…

लेकिन वो कहाँ आने वाला था! वो तो जा चुका था… मैं घंटा भर वहीं बैठकर उसकी याद में आंसू बहाता रहा… समझ नहीं आ रहा था कि ये मेरे साथ हो क्या रहा है… मैं क्यूं उसके लिए इतना रोए जा रहा हूँ… ऐसा क्या दे गया वो मुझे जो उसके बिना रहना अब नामुमकिन सा लगता है.

इसी उधेड़बुन में मैं घर वापस आया तो मौसी ने पूछा- अरे तू कहाँ चला गया था? मैंने अपनी भावनाओं को सीने में दफन करते हुए आँसुओं को आँखों के अंदर ही कैद रखकर कहा- नहर तक टहलने चला गया था… मौसी ने कहा- ये भी कोई टहलने का वक्त है, दोपहर होने को आई है.

अब मौसी को क्या पता था कि उनके लिए तो दोपहर होने को आई है लेकिन मेरे लिए तो गम की काली रात शुरु हो चुकी है जिसका ना कोई ओर है और ना कोई छोर… अगले ही पल मौसी ने कहा- अरे हिमांशु, एक बात तो मैं बताना भूल ही गई कि रवि ने तेरे लिए अपने घर का पता लिखकर मुझे दे दिया था. वो कागज़ मेरे पास ही है, जब तू जाए तो ले जाना.

यह सुनकर मेरे मन में आई पतझड़ में जैसे उमंग के गुलाब खिल गए, मुझे ना तो मौसी की बातों पर यकीन हो रहा था और ना ही अपने कानों पर… मैं आंखें फाड़कर उनकी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे कोई बरसों का प्यासा चिलचिलाती धूप में रेगिस्तान में भटक रहा हो और अचानक उसको दूर कहीं पानी का समुद्र दिखाई दे जाए… मेरी सांसें वहीं अटक गई.

मौसी ने पूछा- तू ऐसे पागलों की तरह मेरी तरफ क्यों देख रहा है? मैंने कहा- मौसी आपने क्या कहा, ज़रा दोबारा बताना… मौसी- तू बहरा हो गया है क्या, मैंने कहा कि आकाश का दोस्त रवि तेरे लिए अपने घर का पता लिखकर मेरे पास छोड़कर गया है, और कह रहा था कि ये हिमांशु को दे देना!

हे भगवान… ये मैं क्या सुन रहा हूँ… एक तो रवि का नाम किसी के होठों पर आते ही मेरे मन लड़्डू वैसे ही फूट जाते थे… और आज वो जवान बांका देसी मर्द, मेरे सपनों का राजकुमार मेरे लिए अपना पता देकर गया है… मतलब उसके दिल में भी मेरे लिए कुछ है… ये सुनकर मैं दौड़कर छत पर गया और जो आंसू पहले उसके जाने के गम में निकल रहे थे अब वो उससे दोबारा मिलने की आस और उम्मीद के रूप में खुशी बनकर फिर से आँखों से बहने लगे, साथ ही साथ होठों पर मुस्कान तैर गई जो मेरे आखों से निकले आँसुओं में भीगती ही जा रही थी… ये कैसा अहसास था… खुशी इतनी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही… मैं वहीं उछलता हुआ छत पर जाकर उसी कमरे में अंदर चला गया और उसी गद्दे पर बैठकर उससे दोबारा मिलने के सपने पिरोने लगा.

हाय… मैं फिर उससे मिलूंगा… फिर उसकी वही कातिलाना स्माइल को देखूंगा… उससे प्यार करूंगा… उसके लंड से खेलूंगा… उसके जिस्म को चाटूंगा… उसके बालों में हाथ फिराऊँगा… यही सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे नज़र गद्दे के कोने पर पड़ी जहाँ कोई कपड़ा दबा हुआ सा दिख रहा था. मैंने गद्दे को सरकाया तो उसके नीचे रवि की वही ब्लैक कलर की फ्रेंची दबी हुई थी. मेरी खुशी का ठिकाना न रहा, मैंने झट से उसे निकाला और अपने चेहर पर रखकर लेट गया. हाय क्या खुशबू थी उसमें. उसके लौड़े का स्वाद महक बनकर मेरी सांसों में घुल रहा था. मैंने फ्रेंची को पलटकर देखा तो उसमें उसका सफेद वीर्य जो सूख चुका था, वो भी लगा हुआ था.

मेरी हवस सातवें आसमान पर पहुंच गई और मैं उसकी फ्रेंची को वहीं पर बैठकर अपनी जीभ से चाटने लगा और उसके सपनों में खो गया… मेरी वासना अपने चरम पर थी क्योंकि वो रवि का अंडरवियर था… एक मर्द का अंडरवियर जिसकी मर्दानगी का स्वाद मैंने उसके होठों का रस पीकर और उसके लंड का अमृत पीकर चखा हुआ था… क्या भारी भरकम लंड है यार उसका… मूसल जैसा ठोस… क्या आंड हैं उसके… चाटने में कितना आनन्द आता है… ऊपर से उसके लंबे-लंबे काले और मोटे झाँटों में से आती खुशबू… काश वो अभी यहाँ पर होता!

रात को कितना मज़ा आया था उसके साथ… मैं अपनी इन्हीं कल्पनाओं में इतना खो गया था कि मुझे पता ही नहीं चला कि कमरे की खिड़की के सामने वाले घर की छत पर कोई मुझे ये सब करते हुए देख रहा है.

सामने वाली छत से दो लड़के मुझे रवि की फ्रेंची को चाटते हुए देख रहे थे. जब मैं फ्रेंची लेकर उठकर चलने लगा तो मेरी नज़र उन पर पड़ी. वो तब भी मुझे ही देखे जा रहे थे और दोनों लड़के आपस में एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्करा रहे थे.

उनको देखकर मुझे भी उनके चेहरे कुछ-कुछ याद आने लगे, ये मेरी मौसी के घर के पड़ोसी के यहाँ आए हुए रिश्तेदार थे जो शादी में भी आए हुए थे.

इनको मैंने दो-तीन बार खाने के समय देखा भी था… हाँ ये वहीं लड़के हैं… मुझे याद आ गया. लेकिन ये मुझे देखकर ऐसे क्यों मुस्करा रहे हैं? मैं नज़रें चुराता हुआ फ्रेंची को अपने हाथों में दबोचकर दोनों हाथ कमर के पीछे से छुपाता हुआ नीचे चला गया और जाकर अपने सामान के बैग को उठा लिया और एकांत में जाकर उसमें सामान को व्यवस्थित करने लगा.

अब घर में ज्यादा लोग नहीं बचे थे, मौसी की कुछ करीबी सहेलियां और दो चार रिश्तेदार… जिनमें हम भी थे, को छोड़कर बाकी सब लोग जा चुके थे. मैंने चुपचाप रवि की उस ब्लैक फ्रेंची को किस किया, उसको एक दो बार फिर से सूंघा और बड़े ही प्यार से फोल्ड करते हुए प्यार से अपने बैग में रख ली और बैग को संभाल कर घर में एक सुरक्षित जगह पर रख दिया ताकि कोई मेरे बैग में हाथ न मारे और रवि द्वारा छोड़े गए मेरे लिए बेशकीमती तोहफों को किसी और के हाथ न लगें.

मैं उसकी खुशबू उसके अंदर ही रखना चाहता था ताकि जब तक मैं उससे दोबारा न मिलूं मैं उसकी इस निशानी से अपने दिल और वासना को शांत करता रहूँ…

खैर, दिन में खाना वाना खाकर मैंने थोड़ा टाइम पास किया और उसके बाद मैं सो गया और उठा तो शाम के 6 बज चुके थे. मैंने हाथ मुंह धो लिया, शादी में अक्सर लोग बोर ही हो जाते हैं, टाइम पास करना मुश्किल हो जाता है, मैंने सोचा घर पर रहकर क्या करूंगा, कुछ देर बाहर घूम आता हूँ. वैसे भी रवि के जाने के बाद मेरा मन कहीं लग ही नहीं रहा था इसलिए मैं वहीं पास नहर के किनारे पर चला गया और 7 बजे तक वहीं बैठकर बहते पानी को देखता रहा और उसमें कंकर फेंकता रहा.

रवि की यादों के सिवा दिमाग ने और कुछ भी सोचना जैसे बंद ही कर दिया था. सूरज डूबने के बाद धीरे-धीरे अंधेरा अपने पैर पसार रहा था और रात की आहट आना शुरु हो ही गई थी. मैंने सोचा कि मुझे चलना चाहिए… मैं उठकर चलने के लिए पीछे मुड़ा तो देखा कि दो लड़के मुझसे थोड़ी सी दूरी पर मेरी तरफ ही बढ़े आ रहे थे.

मैंने सोचा कि शायद ये लोग भी मेरी तरह ही टहलने आए होंगे क्योंकि गांव में अक्सर जवान लड़के शाम को घूमने फिरने शौच आदि करने या फिर दारू-वारू पीने नहर जैसी जगहों पर ही जाते हैं. इसलिए मैंने अपना रास्ता थोड़ा सा बदला और नहर की पटरी से नीचे उतरने ही वाला था कि वो दोनों मेरी ही नाक की सीध में फिर से मेरी तरफ बढ़ने लगे.

मैं थोड़ा घबरा गया… रात होने वाली है, आस-पास कोई है भी नहीं… कहीं चोर उचक्के तो नहीं हैं… कहीं मुझे चाकू वाकू मार दें? मैं सोचकर डर गया और पटरी पर वापस चढ़़ कर दूसरी दिशा में जाने लगा… मेरी स्पीड तेज हो गई थी… मुझे यहाँ से जल्दी ही निकलना था. पीछे मुड़कर देखने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी लेकिन फिर भी मैंने हौसला रखते हुए पीछे मुड़कर देखा तो वो दोनों मेरे पीछे ही आ रहे थे.

अब मेरा शक यकीन में बदल गया कि ये दोनों मेरा ही पीछा कर रहे हैं… मैं और तेज-तेज चलने लगा, कच्चे रास्ते में ऊंचे नीचे गड़ढों में बैलेंस करना मुश्किल हो रहा था क्योंकि रास्ते में अंधेरा छाने लगा था और नहर की पटरी पर उगे घास-फूस में झींगुरों की झीं झीं की आवाजें तेज़ हो रही थीं जिससे माहौल में और भय फैलता जा रहा था.

कुछ सेकेण्ड्स बाद मैंने फिर से मुड़कर देखा तो वो दोनों लड़के लगभग मेरे करीब ही पहुंचने वाले थे… मैं डर के मारे दौड़ने लगा… पैर भारी होने लगे… सीने में दम भरने लगा… दोबारा से पीछे देखा तो वो भी मेरे पीछे दौड़ रहे थे. अब मैं भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान बचा ले… ये मेरे पीछे क्यों पड़े हैं और मुझसे क्या चाहते हैं… मेरे पास तो कुछ ऐसा है भी नहीं.

और यह सब सोचते हुए मैं पटरी से नीचे उतरने ही वाला था कि पीछे से एक मजबूत हाथ ने मेरी टी-शर्ट का कॉलर पकड़ लिया…मैं आगे की तरफ और ज़ोर लगाने लगा और चंगुल से छूटने की कोशिश में टी-शर्ट का बटन टूट गया और गला घुटने लगा.

अचानक से वो दोनों हंसने लगे और एक ने कहा- भागती कहाँ है जाने-मन… थोड़ा सा प्यार हमें भी दे दे! यह गे सेक्स स्टोरी जारी रहेगी. [email protected]

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