मैं अपने जेठ की पत्नी बन कर चुदी -9

अन्तर्वासना के पाठकों को आपकी प्यारी नेहारानी का प्यार और नमस्कार। अब तक आपने पढ़ा..

मैं खड़े-खड़े ही जेठ के लण्ड को पकड़ कर मस्ती भरी सिसकारी लेकर चूत पर रगड़ते हुए फनफनाते लौड़े का आनन्द ले रही थी और जेठ जी मेरी चूचियाँ और चूतड़ों को दबा सहला रहे थे। वे बोले- नायर से चूत चुदाने पर कैसा लगा?

अब आगे..

‘नायर से चुदने में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा.. मैंने तो बस बात को आगे बढ़ने से रोकने के लिए उसके लण्ड से अपनी चूत का सामना कराया था.. नहीं तो नायर के लण्ड पर मैं मूतती तक नहीं..’

तभी जेठ बोल उठे- लेकिन जानू मैं जब खिड़की से देख रहा था.. तो लग रहा था कि तुम भी पूरी तरह अपनी चूत को नायर को देकर खुलकर नायर के लण्ड से अपनी चूत की ऐसी-तैसी करा रही हो? ‘मैं बस उसका दिल रखने के लिए ऐसा कर रही थी और मैं खुल नायर के लण्ड से इसलिए खेल रही थी ताकि जल्दी उसका लण्ड वीर्य उगले और उससे पीछा छुड़ा कर मैं आपके पास आकर आपके मस्त लौड़े से अपनी बुर का कचूमर निकलवाऊँ।’

जेठ जी ने इतना सुनते ही मेरी चूचियों को कस कर भींच लिया। ‘आहह्ह.. सिईईई.. थोड़ा धीरे हार्न बजाओ ना.. उफ्फ्फ्फ आहसी!’ मैं भी जेठ जी के लौड़े से खेलती हुई बात कर रही थी।

तभी जेठ मेरी चूत पर हाथ फेरते हुए मुझे लेकर बिस्तर पर बैठ गए और मेरे अधरों का रसपान करने लगे। मैं बस जेठ की चौड़ी छाती से चिपकी हुई जेठ द्वारा किए जा रहे यौन आनन्द का सुख ले रही थी। फिर जेठ ने मुझको अपनी गोद में लिटा लिया और झुक कर मेरे नाभि वाले हिस्से पर अपने तेज दांत गाड़ते हुए मेरी नाभि को चाटने लगे.. ‘आहह्ह्ह्.. उफ्फ..’ करते हुए मैं बस जेठ की गोद में मचल रही थी।

‘उइअम्म्मा.. सिइइइईई.. क्या आज आपका इरादा मेरी जान लेने का है.. जानू मेरी चूत भभक रही है.. आपके लौड़े को अन्दर लेने के लिए.. और आप मुझे केवल तड़पा रहे हो..’ ‘मेरी जान, तुम्हारे जिस्म को बस चूमने चाटने का मन कर रहा है.. और वैसे भी अभी रात तो पूरी बाकी है मेरी जान..’ कहते जेठ जी मेरी नाभि को चाटते हुए मेरी बुर से लेकर नाभि तक जीभ घुमा रहे थे। जब उनकी जीभ मेरी बुर तक पहुँचती तो मैं कमर को और ऊपर उठा रस छोड़ती बुर को ज्यादा से ज्यादा उनकी जीभ पर रगड़ना चाहती.. पर जेठ जी मेरी फड़कती योनि को तड़पाने की कसम खा हुए थे।

तभी जेठ धीरे-धीरे चूमते हुए.. जब वो मेरी चूत तक पहुँचे और मेरी चूत पर जीभ घुमाते हुए मेरी चिकनी बुर को बेदर्दी से चाटने लगे। मैं तड़प उठी और फिर जैसे ही जेठ जी मेरी बुर से मुँह हटाना चाहा.. मैं जेठ के सर पर हाथ रख कर अपनी बुर पर दबा कर सिसियाने लगी। ‘आआआ आआअहह.. ओह माय गॉड.. चूसो मेरी बुर.. आआअहह..’

मेरी मस्ती से अब जेठ ने भी मेरी चूत के निकलते रस को चाटते हुए जैसे ही मेरी चूत के फांकों को मुँह में भर कर खींचकर चूसा.. मैं दोहरी हो उठी। ‘आहसीईई.. ऐस्स्स्से.. ही चाटो आहह्ह.. खा जाओ.. मेरी बुर..’ मैं सिसयाते हुए जेठ का हाथ पकड़ कर अपने चूचियों पर रखकर दबाने लगी।

मेरा इशारा समझ कर जेठ मेरी चूचियाँ भींचते हुए मेरी बुर को पूरी तरह खींच खींचकर चाट रहे थे। मेरी वासना चरम पर थी.. आज जेठ के प्यार का अंदाज कुछ निराला था, वे मुझे पलटकर मेरे चूतड़ों और गांड के चारों तरफ चाटते हुए पीछे से मेरी योनि को जब चाटते.. तो मैं सीत्कार उठती और उनका हाथ मेरी पीठ को सहलाता.. तो कभी मेरी छाती को दबाते और नीचे मेरी बुर के निकलते योनि रस का पान करते।

अब उन्होंने मुझे उठने का इशारा किया… मैं जैसे ही उनकी गोद से उठी.. वह बिस्तर पर पीठ के बल लिटाकर मेरे ऊपर लेटकर अपने शरीर से और नीचे लौड़े से मेरी गाण्ड और बुर की मालिश करने लगे। मैं बोली- भाई सा.. अब आप मेरी बुर को चोद दीजिए.. मैं चुदने के लिए पागल हो गई हूँ.. बस अब आप अपने मोटे लण्ड को मेरी बुर में फंसाकर मेरी योनि को कुचल दीजिए.. अब नहीं रहा जाता.. मेरी बुर को आपके लण्ड की सख्त जरूरत है।

जेठ ने अपना हाथ नीचे ले जाकर मेरी चूचियों को पकड़ कर दबाते हुए कहा- मेरी जान.. अभी कुछ देर पहले नायर ने तुम्हारी चूत का पानी निकाल दिया था और तुम भी नायर के लण्ड पर झड़ गई थीं.. पर साली तेरी चूत फिर से लण्ड के लिए फड़फड़ा रही है.. मैं बोली- जी भाई सा.. मेरी चूत फड़फड़ा रही है.. अपने जेठ का लण्ड लेने को.. वो- मेरी बहू रानी.. जरूर.. मैं तेरी बुर में लण्ड पेलूँगा.. क्योंकि तू तो अब मेरी रखैल है..

यह कहते हुए जेठ जी ने अपना लण्ड पीछे से ही मेरी चूत में लगा कर मुझे चूतड़ों को उठाने को कहा और मैंने जैसे ही चूतड़ उठाए.. भाई साहब ने एक जोरदार शॉट मार कर अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में उतार दिया।

भाई साहब का लण्ड मेरी योनि को चीरता हुआ मेरी बच्चेदानी से जा टकराया और मैं चीख उठी- आआआ आआहह.. मार डाला रे.. भाई साहब.. आप का लण्ड.. ओह माई गॉड..

और जेठ जी लण्ड जड़ तक पेले हुए मेरी पीठ और गले पर चूमने लगे, अपना मुँह मेरे कान पर लगा कर गरम-गरम साँसें छोड़ते हुए मेरी बुर में लौड़ा ठोकने लगे। मैं भी उनके हर शॉट पर चूतड़ उठा कर जेठ जी का लण्ड चूत में उतार लेती।

जेठ के लौड़े के अंडों की हर मार जब मेरे चूतड़ों और लण्ड की मार चूत पर पड़ती.. तो ‘थपथपथप’ की आवाज से कमरा गूँज उठता। मेरे जेठ जी काफी देर पीछे से लण्ड पेलते रहे और मैं चूतड़ उठाकर लण्ड लेते हुए झड़ती रही। ‘आहह्ह.. उइइइइ.. आहसीईई.. मैं गग्गईईई.. आह राजा.. चोदो..’

लेकिन तभी जेठ जी ने मेरी झड़ती चूत से लण्ड को बाहर खींच लिया.. मेरी चूत अभी पूरी झड़ी नहीं थी। मैं उनकी इस हरकत से बौखला उठी- न..न.. न्नहहीं.. यहह्ह.. क्क्क्क्या कर रहे हैं.. चोदो.. मैं झड़ रही हूँ… पर जेठ को जैसे सुनाई ही नहीं दे रहा था और जेठ जी ने मुझे पीठ के बल पलट दिया।

मैं आधी अधूरी झड़ी बुर को अपने हाथों से भींचकर पूरी तरह झड़ना चाहती थी। तभी जेठ ने मेरा हाथ बुर से हटाकर एक बार फिर लण्ड मेरी चूत पर लगा कर शॉट मारते हुए चूत में लण्ड पेल कर हुमुच-हुमुच कर मेरी अलबेली चूत चोदने लगे।

मैं जेठ से बोलने लगी- आह्ह.. डाल दे जालिम.. मेरी अधूरी झड़ी चूत में लण्ड.. आहह्ह्ह्.. चोद पूरी तरह निचोड़ कर झाड़ दे.. आहह्ह्ह्.. सिईईईई.. उईई आहह्ह.. जेठ शॉट पर शॉट लगाते रहे और बुर फचफचाती रही। एक बार फिर मेरी अधूरी झड़ी बुर झड़ने लगी- ‘आहह्ह्ह.. मेरा हो गया.. लगाओ शॉट आहसीईई.. चोदो.. मारो मेरी बुर.. आह मैं बड़बड़ाती रही और जेठ लण्ड पेलते रहे।

मैं पूरी तरह झड़कर जेठ से लिपट कर झड़ी चूत पर लण्ड की चोट खाती रही, पर आज ना जाने क्यों जेठ झड़ ही नहीं रहे थे। काफी देर तक चूत को रौंदने के बाद भाई साहब भी अपना अनमोल रस मेरी चूत में छोड़ने लगे। उन्होंने मुझे बाँहों में भर कर एक आखिरी शॉट लगाकर लण्ड जड़ तक पेल कर अपने अनमोल खजाने को मेरी बच्चेदानी में डाल दिया।

आज पूरी रात जेठ ने कई बार बुरी तरह चोदा और मैं चुदाई से थककर जेठ की बाँहों में ही सो गई।

कहानी कैसी लग रही है.. जरूर बताइएगा। आप को मेरी जीवन पर आधारित कहानी अन्तर्वासना पर मिलती रहेगी.. मुझे खुशी है कि मेरे कहानी पढ़ कर आपका वीर्य निकलता है। [email protected]