Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 74

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

क्या खूब सुहाना सफर रहा क्या सुबह हुई क्या शाम ढली। धीरे धीरे किसी की औरत मैंने कैसे अपनी करली। जो फिरती थी मानिनी बन कर उसको मैंने पकड़ा कैसे? जाँ का भी दाँव लगा कर के बाँहों में उसे जकड़ा कैसे?

जो प्यार किसी से करते हैं वह मौत से कभी नहीं डरते हैं। जब मौत से वह बच जाती है तो खुद चल कर चुदवाती है।

सुनीता के बड़े प्यार और दुलार से जस्सूजी का लण्ड एक हाथ में पकड़ कर सहलाना और साथ साथ में मुंह में जीभ को हिलाते हुए लण्ड को अपने मुंह की लार से सराबोर करते हुए चूसवाने का अनुभव महसूस कर जस्सूजी खड़े खड़े आँखें मूँद कर मजे ले रहे थे।

कुछ ही पलों में जस्सूजी का बदन जैसे ऐंठ सा गया। उनकी छाती की पसलियां सख्त हो गयीं और वह मचलने लगे। इतनी बार सुनीता की चुदाई करते हुए झड़ ने के बाद भी जस्सूजी एक बार फिर अपना वीर्य सुनीता के मुंह या हाथ में छोड़ने के लिए तैयार हो रहे थे।

सुनीता ने यह महसूस किया और फुर्ती से जस्सूजी का लण्ड हिलाने और बड़े प्यार से चूसने लगी। जस्सूजी का सख्त बदन कुछ अजीब सा रोमांचित होते हुए हलके से झटके खाने लगा।

सुनीता ने जब लण्ड को हिलाने की रफ़्तार और तेज की तब जस्सूजी से रहा नहीं गया और एक झटके से उनके लण्ड के छिद्र से फिर एक बार उनकी मर्दानगी भरा वीर्य उनके लण्ड से फुट पड़ा।

सुनीता ने इस बार जस्सूजी के वीर्य के कुछ हिस्से को अपने मुंहमें पाया। शायद पहली बार सुनीता उसे निगल गयी। हालांकि वीर्य निगलने में उसे कोई ख़ास स्वाद का अनुभव तो नहीं हुआ, पर सुनीता अपने प्रियतम को शायद यह अहसास दिलाना चाहती थी की वह उन्हें कितना प्यार करती थी। एक औरत जब अपने प्रिय मर्द का लण्ड मुंह में डाल कर चुस्ती है तो वह अपने मर्द को यह अहसास दिलाना चाहती है की उसका प्यार कितना गहरा और घना है।

मर्द होने के नाते मेरा यह मानना है की अपना लण्ड चुसवाने में मर्द को औरत को चोदने से ज्यादा मजा नहीं आता। पर हाँ लण्ड चुसवाने से उसका अहम् संतुष्ट होता है। इसमें औरत की मर्द के लण्ड को चूसने की कला में कितनी काबिलियत है यह भी एक जरुरी पहलु है।

हालांकि औरत का उलटा है। अपनी चूत अपने मर्द से चुसवाने में औरत को कहीं ज्यादा रोमांच और आनंद की अनुभूति होती है ऐसा मुझे मेरी सारी सैया भागिनिओं ने कहा है। जब जब मैंने अपना मुंह उनकी टांगों के बिच में रखा है, तब तब वह इतनी मचल जातीं हैं की बस, उन्हें मचलती देख कर ही मजा आ जाता है।

सुनीता हैरान रह गयी की काफी समय तक जस्सूजी का गाढ़ा वीर्य उनके लण्ड के छिद्र से निकलता ही रहा। जस्सूजी के वीर्य का घनापन देखते हुए सुनीता के जेहन में एक सिहरन सी फ़ैल गयी।

उसे लगभग यकीं हो गया की जब ऐसा गाढ़ा वीर्य जितनी मात्रा में उसकी चूत के सारे कोनों में फ़ैल गया था तो वह कहीं ना कहीं सुनीता के स्त्री बीज से मिलकर जरूर फलीभूत होगा। क्या सुनीता को जस्सूजी गर्भवती बना पाएंगे? यह प्रश्न सुनीता के मन में घूमने लगा।

खैर कुछ देर वैसे ही खड़े रहने के बाद जस्सूजी ने सुनीता को पकड़ कर खड़ा किया और उसे कस कर अपनी बाँहों में लिया। सुनीता और जस्सूजी के नग्न बदन एक दूसरे से रगने लगे। सुनीता के गोल गुम्बज जस्सूजी के घने बालों से भरे सीने से पिचक कर दब गए थे।

सुनीलजी यह दृश्य कुछ दूर हट कर खड़े रह कर देख रहे थे। सुनीता अपना मुंह जस्सूजी के मुंह के पास लायी और अपने होँठ जस्सूजी के होँठों से मिला दिए।

एक बार फिर दोनों प्रेमी प्रमिका घने आलिंगन में बंधे एक दूसरे के होँठों और जिह्वा को चूसने और एक दूसरी के लार चूसने और निगलने में जुट गए।

जस्सूजी अपनी प्रेमिका और अपने दोस्त सुनीलजी की पत्नी को अपने आहोश में लेकर काफी देर तक उसे गहरा चुम्बन करते रहे। फॉर थोड़ा सा हट कर सुनीता के गालों पर एक हलकी सी पप्पी देकर हल्का सा मुस्करा कर बोले, “सुनीता, आज तुमने मुझे जिंदगी की बहुत बड़ी चीज दी है। मुझे तुमने एक अमूल्य पारितोषिक दिया है। मैं तुम्हारा यह एहसान कभी भी नहीं पाउँगा।”

सुनीता ने फ़ौरन जस्सूजी के होँठों पर अपनी पतली सी हथेली रखते हुए कहा, “जस्सूजी, यह पारितोषिक मैंने नहीं, आपने मुझे दिया है और उसमें मेरे पति का बहुमूल्य योगदान रहा है। यदि वह मुझे बार बार प्रोत्साहित ना करते तो मुझमें यह हिम्मत नहीं थी की मैं थोडीसी भी आगे बढ़ पाती। और दूसरी बात प्यार में प्रेमी कभी भी एक दूसरे का धन्यवाद नहीं करते। मैं सदा आपकी हूँ और आप सदा मेरे रहेंगे।” यह कह कर सुनीता ने अपने पति की और देखा।

सुनीलजी ने अपना सर हिलाते हुए कहा, “बिलकुल। अब हम चारों एक दूसरे के हो चुके हैं। हम चारों में कोई भेद या अन्तर का भाव नहीं आना चाहिये। मैं ज्योतिजी भी इसमें शामिल कर रहा हूँ।”

अपने पति सुनीलजी की बात सुनकर सुनीता भावविभोर हो गयी। उसे अपने पति पर गर्व हुआ। वह आगे बढ़कर अपने पति को लिपट गयी और उनके गले में बाँहें डाल कर बोली, “मुझे आप की पत्नी होने का गर्व है।

शायद ही कोई पति अपनी पत्नी को इतना सम्मान देता होगा। अब तक मैं पुरानी रूढ़िवादी विचारों में खोई हुई थी। मैं अब भी मानती हूँ की पुराने विचारों में भी बुराई नहीं है। पर आज जो हमने अनुभव किया वह एक तरहसे कहें तो अलौकिक अनुभव है। आज हम दो जोड़ियाँ एक हो गयीं।” ———————– तीनों प्रेमी शारीरिक थकान के मारे कुछ देर सो गए। कुछ देर सोने के पश्चात उन्हें बाहर कुछ हड़बड़ाहट महसूस हुई। सबसे पहले सुनीता फुर्ती से उठी और भाग कर बाथरूम में जाकर अपने बदन को साफ़ कर उसने अपने कपडे पहन लिए।

जब सुनीता बाहर निकली तो उसने देखा की सुनीलजी और जस्सूजी भी उनके पास जैसे भी कपडे थे वह पहन कर कमरे का दवाजा खोलकर बाहर खड़े थे और कुछ सेना के अधिकारियों से बातचीत कर रहे थे। दरवाजे के पीछे खड़े हुए सुनीता ने देखा की घर के बाहर भारतीय सेना की कई जीपें खड़ी हुई थीं।

जस्सूजी सेना के कोई अधिकारी से बातचीत कर रहे थे। कुछ ही देर में जस्सूजी और सुनीलजी उन से फारिग होकर कमरे के अंदर आये और बोले, “हमारी सेना ने हमारा पता लगा लिया है और वह हमें यहां से ले जाने के लिए आये हैं। उन्होंने हमें बताया की सेना ने आतंकियों का वह अड्डा जहां की हम लोगों को कैद किया था उसे दुश्मन की सरहद में घुस कर उड़ा दिया है। पिछले दो दिनों से दोनों पडोसी की सेनाओं में जंग से हालात बन गए थे। पर हमारे बहादुर जवानों ने दुश्मनों को खदेड़ दिया है और अब सरहद पर शान्ति का माहौल है।”

कुछ ही देर में बादशाह खान साहब भी आ पहुंचे। जस्सूजी और सुनीलजी ने उन्हें झुक कर अभिवादन किया और उनका बहुत शुक्रिया किया। बादशाह खान की दो लडकियां और बीबी भी आयीं और उनकी विदाय लेते हुए, जस्सूजी, सुनीता और सुनीलजी सेना के जीप में बैठ कर अपने कैंप की और रवाना हुए। ———————– कैंप में सारे सैनिक जवान, अफसर, महिलायें और कर्मचारियों ने जस्सूजी, सुनीलजी और सुनीता के पहुँचते ही उनका बड़े जोश खरोश से स्वागत किया और उन्हें फूल की मालाएं पहनायीं। सब जगह तालियोंकी गड़गड़ाहट से उनका अभिवादन किया गया। उस शामको एक भव्य भोज का आयोजन किया गया, जिसमें उन तीनों को मंच पर बुलाकर तालियों की गड़गड़ाहट के बिच बहुत सम्मान किया गया और उनके पराक्रम की सराहना की गयी।

सुनीता वापस आने के फ़ौरन बाद मौक़ा मिलते ही ज्योतिजी के पास पहुँच कर उनसे लिपट गयीं। सुनीता के शर्मिंदगी भरे चेहरे को देख कर ज्योतिजी समझ गयीं की उनके पति जस्सूजी ने सुनीता की चुदाई कर ही दी थी।

ज्योतिजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में जकड कर पूछा, “क्यों जानेमन? आखिर मेरे पति ने तुम्हारी बिल्ली मार ही दी ना? तुम तो मुझसे बड़ी ही बनती फिरती थी। कहती थी मैं राजपूतानी हूँ। मैं ऐसे इतनी आसानी से किसीको अपना बदन नहीं सौपूंगी। अब क्या हुआ जानेमन? मैं ना कहती थी? मेरे पति ठान ले ना, तो किसी को भी अपने वश में कर लेते हैं। ऐसी आकर्षण की शक्ति है उनमें।”

औरतों में ऐसी कहावत है की जब कोई मर्द किसी औरत की भरसक कोशिशों के बाद चुदाई करनेमें कामियाबी हासिल करता है तो कहा जाता है की उसने आखिर में बिल्ली मार ही दी। मतलब आखिर में भरसक कोशिशों करने के बाद उस मर्द ने उस औरत को अपने वश में कर ही लिया और उसे चुदवाने के लिए राजी कर के उसे चोद ही दिया।

सुनीता समझ गयी की ज्योति जी का इशारा किस और था। सुनीता ने भी अपनी मुंडी हिला कर कहा, “ज्योतिजी, आपके पति ने आखिर में मेरी बिल्ली मार ही दी।” और यह कह कर भाव मरे गदगद होकर रोने लगी।

ज्योतिजी ने सुनीता को गले लगाकर कहा, “मेरी प्यारी छोटी बहना। बस अब शांत हो जा। जो हुआ वह तो होना ही था। मेरे पति को मैं भली भाँती जानती हूँ। वह जो कुछ भी ठान लेते हैं वह कर के ही छोड़ते हैं। तेरी बिल्ली तो मरनी ही थी।”

दोनों बहने एक दूर के गले मिलकर काफी भावुक होकर काफी देर तक एक दूसरे की बाँहों में लिपटे हुए खड़ी रहीं।

फिर सुनीता ने ज्योतिजी के गालों में चिमटी भरते हुए कहा, “मेरी बिल्ली मरवाने में आपका भी तो बहुत बड़ा योगदान है। आप भी तो दाना पानी ले कर मेरे पीछे ही पड़ गयीं थीं की मेरे पति से चुदवाले। अब मैं करती भी तो क्या करती? एक तरफ आप, दूसरी तरफ मेरे पति और बाकी कसर थी तो वह तुम्हारे रोमांटिक पति जस्सूजी ने पूरी कर् ली। उनका तो माशा अल्ला क्या कहना? सब ने मिलकर मेरी बेचारी बिल्ली को कहीं का नहीं छोड़ा।”

ज्योतिजी और सुनीता दोनों कुछ देर ऐसे ही लिपटे रहे और बाद में अलग हो कर दोनों ने यह तय किया की उसके बाद वह एक दूसरे से कोई पर्दा नहीं करेंगे।

सुनीता ने जब अपनी सारी कहानी सुनाई तो सुनकर ज्योति जी तो दंग ही रह गयीं। कैसे सुनीता को वह राक्षशी मोटू परेशान करता रहा और आखिर में जस्सूजी ने उन्हें कैसे मार दिया और कैसे सुनीता को जस्सूजी ने बचाया, यह सुनकर ज्योति भी भावुक हो गयी। आखिर में सुनीता ने अपने आपको कैसे जस्सूजी को समर्पण किया वह सुनीता ने विस्तार पूर्वक अपनी बड़ी बहन को बताया।

बाकी के उनदिनों की याद सब के लिए जैसे एक मधुर सपने के समान बन गयीं। हर रात, ज्योतिजी सुनीलजी के बिस्तर में और सुनीता जस्सूजी की बाँहों में सम्पूर्ण निर्वस्त्र होकर पूरी रात चुदाई करवाते।

कभी दोनों ही बिस्तर पर लेट कर एक दूर के सामने ही एक दूसरे के पति से या फि अपने ही पति से चुदवातीं। कभी दोनों बहनें अपने प्रेमियों के ऊपर चढ़ कर उनको चोदतीं तो कभी दोनों बहने एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे को घना आलिंगन कर एक दूसरे में ही मगन हो जातीं।

दिन में काफी चल कर पहाड़ियों में घूमना। रास्ते में जब आसपास कोई ना हो तो एक दूसरे से की छेड़छाड़ करना और शामको थक कर वापस आना। पर रात में मौज करने का मौक़ा कभी नहीं चूकना। यह उनका नित्यक्रम बना हुआ था।

देखते ही देखते हफ्ता कहाँ बीत गया कोई पता ही नहीं चला। आखिर में वापस जाने की घडी आगयी। वापस जाने के लिए तैयार होने पर सब निराश दिख रहे थे। जो आनंद, उत्तेजना और रोमांच उन सबको सेना के उस कैंप में आया था वह अब एक ना भूलने वाला अनुभव बन कर इतिहास बन गया था।

वापस जाने के लिए तैयार होते हुए ज्योतिजी, सुनीलजी, जस्सूजी और सुनीता सब के जेहन में एक ही बात थी की जो समय उन्होंने उन वादियों, झरनों, घने बादलों, और जंगल में बिताया था वह एक अद्भुत रोमांचक, उत्तेजना पूर्ण और उन्मादक इतिहास था। रोमांच, उत्तेजना और उन्माद के वह दिन वह दोनों जोड़ियां कभी भी नहीं भूल पाएंगीं।

समाप्त!!!

मैं अपने सारे पाठकों का बहुत बहुत कृतज्ञ हूँ। मैं जानता हूँ आपने मेरी कहानियों को बहुत चाव से पढ़ा है। मैं क्षमा प्रार्थी हूँ की मैं समय के अभाव के कारण नियमित रूप से लिख नहीं पाया। आशा है आप सब मुझे इसके लिए क्षमा करेंगे। जयहिंद। भारत माता की जय।

[email protected]

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000