सम्भोग से आत्मदर्शन-17

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मेरी इस कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि आंटी की कामुक चुदाई कैसे आगे बढ़ रही है. अब आगे..

मैंने आंटी को एक अलग ही अंदाज से कहा- अब ड्राइवर सीट आपकी! आंटी ने एक बार धीरे से नहीं कहा. मैंने जानबूझ कर फिर से पूछा- क्या कहा आंटी जी? तब उन्होंने हाँ कहा. आखिर छोटी को भी आंटी की खुशी और समर्पण दिखाना था।

और अब तक मेरा लंड पहले से भी ज्यादा विकराल होने लगा था, खुद के और आंटी के रस में नहा कर उसकी चमक और आभा भी देखने लायक हो गई थी, आंटी अभी-अभी झड़ी थी, और उनकी उम्र को देखकर वो अच्छा ड्राइव कर पायेंगी इस बात की मुझे ज्यादा उम्मीद नहीं थी। पर आंटी ने मेरी सोच के उलट काम किया, उन्होंने सने हुए लंड को एक बार में ही अपने मुंह में भर लिया और उनके दो-चार बार चूसने से ही मेरा लंड पूरा साफ हो गया, अब तक चुदाई की वजह से फूला हुआ गुलाबी सुपारा लाल हो चुका था।

और अब आंटी ने अपनी बेहतरीन कला का प्रदर्शन करते हुए मेरे उस लाल सुपारे को सांस अंदर खींचे जैसा करते हुए, मुंह में खींचा, हाय राम.. क्या लंड इतने मजे और इतने अच्छे से भी चूसा जाता है, मैं तो अवाक रह गया।

तभी आंटी ने एक और हरकत की, उन्होंने मेरी गोलियों को सहलाया और लंड के आसपास के हर हिस्से को चूमा चाटा, ऐसा शायद वो मुझे जल्दी झड़ाने के लिए कर रही थी। आखिर मेरा पाला भी एक अनुभवी औरत से पड़ा था और उन्होंने अपने अनुभव का लोहा मनवा दिया. उन्होंने ये सब उपक्रम लगभग दस मिनट कर दिये होंगे, और इस तरह की लंड चुसाई में दस मिनट भी ठहर पाना सेक्स में महारथी होने की निशानी माना जाना चाहिए।

अब मैं उत्तेजना के चरम पर पहुंच ही रहा था कि तभी आंटी मेरी हालत समझ के मेरे ऊपर चढ़ गई और अपनी चूत को लंड के ऊपर टिका दिया और पहले तो उन्होंने अपनी चूत में लंड को तरीके से घिसा और फिर एक ही बार में लंड की जड़ तक अपनी चूत को पहुंचा दिया, इस मुद्रा में मेरे लंड का एक प्रतिशत भाग भी कहीं नजर नहीं आ रहा था।

अब आंटी ने अपनी स्पीड बढानी शुरू की, हालांकि वो चवालीस की थी, पर उनकी शारीरिक रचना और फिटनेस की वजह से वो किसी नौयौवना से भी ज्यादा उर्जा अपने कामुक खेल में दिखा रही थी। अब आंटी के चेहरे पर हवस… हवस… और केवल हवस नजर आ रही थी, आंखें अब पूरी तरह से लाल हो चुकी थी और मानो उनमें अंदर देवी आ गई हो. उस तरह वो बाल फैलाये मेरे लंड पर कूदती रही, और अपने भारी उरोजों को मेरे मुंह पर टिका दिया और इस तरह जोर से दबा दिया कि मेरा सांस लेना मुश्किल होने लगा।

आंटी पर अब सेक्स का भूत सवार हो चुका था, अब मुझे लग रहा था कि मैंने आंटी को खुद पर चढ़ा कर बहुत बड़ी गलती कर दी, उन्हें मैंने ही जिद की थी इसलिए यह ‘आ बैल मुझे मार’ वाली हरकत हो गई थी।

इस तेजी और इस कामुकता को मेरा लंड ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पाया, और मेरे शरीर में अकड़न हुई पर मुझे आंटी ने जकड़ रखा था इसलिए मुझे ऐसे ही झड़ना पड़ा. पर आंटी ने जान कर भी अपनी गति एक पल के लिए भी कम नहीं की और ना ही मुझे विराम दिया। ऐसी कुछ हरकत तनु ने भी मेरे साथ पहली चुदाई के वक्त की थी, पर वो आंटी जितना भयानक नहीं था, मैं सोचने लगा कि इनमें ये आदत वंशानुगत तो नहीं है।

हालांकि मेरा लंड अब भी बड़ा ही था लेकिन पहले वो लोहे की तरह था फिर बाद में फाईबर की तरह हो गया था और अब अब वो मोम की तरह था, सिर्फ आकार ही बड़ा था कड़ापन नहीं रह गया था।

अब आंटी ने जो कहा और किया उसे देख और सोच कर मेरी गांड फट गई। उन्होंने मुझे तेजी से चोदते हुए ही छोटी से कहा- देख छोटी, सेक्स ऐसी चीज है कि जब औरत चुदने पे आ जाये तो कोई मर्द उसकी भूख नहीं मिटा सकता और अब देख कि एक औरत अगर चाहे तो वो एक मर्द का भी रे…प कर सकती है। और यह कहते हुए वो जोर जोर से मेरे ऊपर कूदने लगी, मुझे दर्द हो रहा था, और अब डर के मारे मेरी सांसें भी अटकने लगी. तब मुझे अहसास हुआ कि औरत का दर्द क्या होता है, और हम मर्दों को उन्हें रूलाते हुए चुदाई करने में मजा आता है।

लेकिन ये तो अभी शुरुआत ही थी।

आंटी ने मेरे सीने कंधे और पेट में अपने नाखून गड़ाने, नोचने शुरू कर दिये, मेरी कामुक आहें अब चीखों में बदल गई और आंटी ने घातक रूप धारण करते हुए मेरे मुंह से अपना मुंह लगा दिया, और जीभ को चूसने लगी जिसे ऐसा चुम्बन पसंद भी ना हो, वो ऐसी हरकत करे तो आपका डर और भी बढ़ जाता है।

तभी उन्होंने मेरे होंठों को जोर से काटा और वहाँ से खून निकल आया, मैं चीख उठा, पहले जब मजाक होता था तब मैं कहता था कि मैं चुदाई करते हुए मरना पसंद करूंगा. और सच में आज वो दिन वो पल मुझे नजर आने लगा। और अब तो मेरा लंड है भी या नहीं… मुझे पता भी नहीं चल रहा था, उधर आंटी और भी भयानक होती जा रही थी, आंटी ने अपनी गति के साथ ही अपनी हरकतें भी बढ़ा दी.

तभी छोटी खुशी से उछल पड़ी और ताली बजाने लगी- शाबाश माँ, और करो… हमेशा ये मर्द ही औरतों को नोचते हैं, आज इसे भी नोंच डालो। मुझे खुशी थी कि छोटी पर आंटी के इस अनूठे इलाज का असर हो रहा है, पर मेरी सांसें यह सोच कर रुक गई कि अगर आंटी ने छोटी की बात मान ली तो मेरा क्या होगा।

अब मैं रोने और गिड़गिड़ाने लगा, पर आंटी ने थोड़ा भी रहम नहीं किया, पर भगवान का शुक्र है कि आंटी के शरीर में भी कंपकंपी आने लगी, उनकी आवाज लहराने लगी, वो अकड़ने लगी और कुछ ही धक्कों बाद वो झड़ गई और मुझ पर यूं ही पसर गई। अगर आंटी कुछ देर और टिक जाती तो मेरा रामनाम सत ही हो जाता।

आंटी को मुझ पर लेटा देख छोटी ने कहा- माँ, तुम ठीक तो हो ना? आंटी ने हाँ में सिर्फ सर हिलाया और ‘मुझे माफ कर देना संदीप…’ कहते हुए मेरे बगल में मुझसे लिपट कर लेट गई। उनका शरीर पसीने से भीगा हुआ था और मुझे तो थकाव और डर दोनों के कारण ही पसीने आ रहे थे। पर अब डर का दौर थम गया था फिर भी हृदय गति अभी संयत नहीं हुई थी। मुझे ये भी लगा कि शायद आंटी अपने महरूम पति को याद कर रही हो, आखिर आज उन्होंने उनका सपना जो पूरा किया था।

मैंने उनके माथे को सहलाते हुए चूम लिया, जैसे मैं कहना चाह रहा हूं कि मैं आपकी इस भयानक हरकत की वजह और मन की व्यथा जानता हूं। और मैंने उन्हें पास रखी चादर भी ओढ़ा दी, वो थकी हुई भी थी और नजरें भी नहीं मिलाना चाहती थी, आंटी वहाँ से उठ भी सके इतनी ताकत उनके अंदर बची ही नहीं थी, इसलिए मैंने उन्हें सोने दिया और छोटी को लेकर उसके पुराने कमरे में आ गया.

मैं अभी भी नग्न था, मैंने सोचा था कि छोटी को वहाँ लिटा कर वापस आकर अपने कपड़े पहनूँगा। लेकिन वहाँ कुछ अलग ही बात हो गई, छोटी को जैसे ही मैंने उसके कमरे में ले जाकर लिटाया उसने बच्चों जैसे स्वर में कहा- माँ के साथ मन नहीं भरा क्या? अब मुझे लिटा रहे हो, भगो यहाँ से! अभी मेरा कुछ भी मन नहीं है। मैंने ‘कोई बात नहीं, छोटी मैं जाता हूं!’ कहा और चौथे कमरे में लौट आया।

छोटी की बात सुन कर मुझे कितनी खुशी हुई, मैं आप लोगों को बता नहीं सकता, यह खुशी सिर्फ इसलिए नहीं थी कि छोटी भी संभोग का सोचने लगी है, बल्कि ये खुशी उससे भी ज्यादा इस बात के लिए थी क्योंकि छोटी के ऊपर इलाज का असर अब स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। नहीं तो पहले छोटी को खुद का होश नहीं रहता था, तो इतनी बातें कहाँ से कर लेती।

यह बात तो तय थी कि छोटी के अंदर इस बदलाव में सबसे ज्यादा हाथ आंटी के अनोखे प्रयोग का नतीजा था। इसलिए अब मेरे दिमाग में कुछ और उपाय सूझने लगे, आज तक मैं केवल हवा में हाथ पैर चला रहा था, पर अब वक्त आ रहा था कि मैं छोटी का सही इलाज कर सकूं और उसे ठीक कर सकूं।

मैंने अपने कपड़े पहने और आंटी को कुछ देर के लिए जगाते हुए कहा- छोटी अपने कमरे में साई है, हमें इस कमरे में आये तीन घंटे हो चुके हैं, आप कहो तो मैं खाने का कुछ बना दूं। तो आंटी ने यूं ही लेटे हुए कहा- अररे नहीं, मैं बना लूंगी। तुम खा कर जाओगे या… उनके कहने से पहले ही मैंने कहा- नहीं.. आंटी जी, अब मैं जा रहा हूं, आप आराम से फ्री होकर अपना काम करिए।

मैंने आंटी जी के मस्तक में चुंबन करके थैंक्स कहा, तो आंटी भी बोल पड़ी- दर्द सह कर भी जो थैंक्स कहे, उसे ही तो संदीप कहते हैं। और फिर कहा- ठीक है, अब तुम जाओ, पर मुझे तुमसे बहुत सी बातें करनी है, पर अभी शर्म के मारे मुझसे नजरें नहीं मिलाई जा रही हैं।

मैं हंसते मुस्कराते वहाँ से लौट आया.

मेरे जीवन का वह विशेष दिन मेरे मानस पटल पर खूबसूरत स्मृति बनकर हमेशा अंकित रहेगा। उस दिन मुझे सिर्फ आंटी ही याद आती रही, मुझे कुछ और नहीं सूझता था। और आंटी की वो भयानक हरकत ‘बाप रे बाप…’ वो पल तो बहुत ही खतरनाक था, पर अब मैं उस अनोखे सेक्स अनुभव को सोच कर हंस रहा था।

जैसे तैसे बचा हुआ आधा दिन कटा और पूरी रात छटपटाहट में कटी, दूसरे दिन मैं आंटी के पास जल्दी तो जाना चाहता था पर जान बूझकर कर नहीं गया, मेरा भरोसा था कि अगर मैं नहीं गया तो आंटी मुझे फोन जरूर करेगी. पर ऐसा नहीं हुआ, दोपहर के दो बज रहे थे, पर आंटी का फोन नहीं आया. तब मुझसे रहा नहीं गया और मैं दौड़ कर उनके पास पहुंच गया, ऐसे भी मैंने दो बजे तक इंतजार कैसे किया था वो मैं ही समझ सकता हूं।

उनके घर पहुँचा तो आंटी ने मुझे बैठने को कहा, वो थोड़ी निराश सी लग रही थी, मैं भी नाराज था तो बातें कम ही हुई, और मैं जहां रोज बैठता हूं वहीं जाकर बैठ गया. मैंने देखा कि उस चेयर के आस पास चाय के पांच खाली कप रखे थे। तो मैंने पूछा- कौन आया था आंटी? फिर अपने शब्दों को सुधारते हुए कहा- मेरा मतलब है कि कौन कौन आया था आंटी जी?

आंटी ने रुखे स्वर में जवाब दिया- कोई नहीं आया था, यहाँ तुम्हारे अलावा कभी कोई आता है क्या? मैंने फिर कहा- वो मुझे इतने सारे खाली कप दिखे तो मैंने पूछ लिया। अब आंटी ने और कड़े तेवर में कहा.. मैंने खुद पी है सारी चाय, तुम्हें कोई तकलीफ?

अब मैं समझ गया कि आंटी का मूड मेरी वजह से ही खराब है, लेकिन क्यों ये मुझे नहीं पता था। मैंने कहा- नहीं आंटी, मुझे कोई तकलीफ नहीं है, पर आप मुझसे किस बात पर नाराज हैं ये तो बता दीजिए, और नाराज तो हम खुद थे आपसे… पर हमारी नाराजगी आपके सामने कोई मायने थोड़े ना रखती है।

मैंने मन में सोचा कि ऐसे भी औरत जब देवी का रूप धर ले तब खुद को शांत रखकर उसे शांत करने में ही भलाई होती है। ऐसा रूप पहली बार ही आंटी ने अख्तियार किया था. मैं सहम गया.

आंटी ने फिर तमक कर कहा- तुम क्यों नाराज थे? कल मैंने तुम्हारे साथ किया, उतना भी हक नहीं है क्या मेरा तुम्हारे ऊपर? और उसके लिए मैंने माफी भी तो मांगी थी ना। और नाराज होना ही था तो कल आना था ना नाराज होने, या रात तक भी आ सकते थे तुम्हें किसी ने रोका है क्या यहाँ आने से। और नहीं आ सके तो आज सुबह से आना था, मैं ही बेवकूफ हूं दरवाजे पर टकटकी लगाये तुम्हारा इंतजार कर रही हूं, तुम्हारी याद में कभी चाय नहीं पीने वाली, अब तक पांच पांच चाय पी चुकी हूं। ‘साथ नाश्ता करेंगे’ सोच कर खाली पेट इंतजार कर रही हूं। और तुम हो कि अब आ रहे हो, अरे बंद करो डींगें हाँकना कि तुम सेक्स के बारे में सब जानते हो, फोर प्ले अच्छा किया तो आफ्टर प्ले का पता नहीं। कभी अंतर्वासना में बता रहे हो कि मैं ये करता हूं मैं वो करता हूं कभी किसी को चैट करके बता रहे हो कि मैं ऐसा हूं मैं वैसा हूं, क्या एक औरत को कभी समझे हो?

मुझे हंसी भी आ रही थी, आंटी की ये मासूम सी झिड़की मुझे बार बार सुनने का मन कर रहा था, आंटी के इन शब्दों में उनका भरपूर प्यार झलक रहा था। एक बात आप भी ध्यान रखियेगा कि कोई औरत जब आपके साथ बिस्तर पर सो जाये मतलब कि संभोग कर ले तब वो आपके साथ भावनात्मक रुप से बहुत मजबूती से जुड़ जाती है। बहुत से लव मैरिज या सेक्स संबंधों के बाद प्यार की दीवानगी इसी वजह से होते हैं।

अब आंटी को शांत करना भी जरूरी था, लेकिन कुछ कहने से अच्छा मुझे ये लगा कि ‘कुछ किया जाये!

इसलिए मैं उनके पास गया और उनके होंठों को बुरी तरीके से चूमने लगा, उनका बोलना बंद हो गया और उन्होंने भी दो चार पल ही खुद को मुझसे छुड़ाने का प्रयास किया. पर कुछ ही देर में सामान्य हो गई, और मेरे सीने से जोरों से चिपक कर रोने लगी।

आंटी ने रोते हुए ही एक उलझन भरी आवाज में कहा- संदीप, कल तुमने मिलन का सुख दिया और आज ही जुदाई का अहसास करा दिया। तुम बहुत गंदे हो! कह कर अपने नाजुक हाथों से मेरे सीने को पीटने लगी, ऐसी हरकतें कोई अधेड़ महिला शायद नहीं करती। मुझे उनके बारे में ज्यादा पता नहीं है इसलिए दावा भी नहीं कर सकता कि करती हैं या नहीं पर ये हरकतें नये जोडों पर बहुत सूट करटी हैं।

लेकिन आंटी अधेड़ होते हुए भी अपने जीवन की दूसरी पारी की शुरुआत में थी, मैंने चोट लगने जैसा ‘आहहह…’ किया, आंटी तड़प उठी और रोनी सूरत बना के पूछा- ज्यादा लग गई क्या? मैं हंस पड़ा और कहा- आज से ज्यादा कल लगी थी. उन्होंने शरमा के अपना चेहरा छुपा लिया।

तब मैंने बात को बदलते हुए कहा- हमारी प्यारी सुमित्रा देवी जी, हमने भी सुबह से कुछ नहीं खाया है, चलो कुछ खिला दो। तब आंटी ने बड़ा सा मुंह फाड़ के कहा- अरररे… तुमने भी नहीं खाया है, और मुझे देखो मैं अपना ही दुखड़ा लेकर बैठ गई थी। तुम बैठो, मैं दो मिनट में नाश्ता लगाती हूं।

आंटी का सारा गुस्सा फुर्र हो गया था, सही कहो तो वो गुस्सा थी ही कहां, वो तो बस प्यार जताने का एक तरीका ही था, जो मुझे बहुत पसंद आया।

आंटी ने नाश्ता लगाया, उन्होंने बड़े पकौड़े और टमाटर इमली की चटनी बना कर रखे थे, जो गरमा गर्म खाने में ज्यादा सुहाते हैं पर हम दोनों ने एक दूसरे को अपने हाथों से खिलाया तो ठंडा नाश्ता गर्म नाश्ते से भी कहीं ज्यादा अच्छा और स्वादिष्ट लग रहा था क्योंकि नाश्ते में प्यार जो घुला हुआ था।

अब मैंने आंटी को नाश्ता ज्यादा खिलाते हुए और खुद कम खाने के कारण का सच बता देना सही समझा. मैंने कहा- आंटी मैंने नाश्ता कर लिया था, पर मैं आपका साथ देने के लिए खा रहा हूं। तब आंटी ने कहा- मैं जानती थी संदीप कि तुम नाश्ता कर चुके हो, पर मैंने तुम्हारी खुशी के लिए अनजान बने रहना सही समझा।

अब मैं आंटी का और भी दीवाना हो गया, सच कहूं तो मैं समझ नहीं पा रहा था कि अपने से बारह तेरह साल बड़ी औरत के साथ मेरा ऐसा संबंध रखना किस श्रेणी में आयेगा। फिर मैंने सोचा कि ये सब सोचने और जानने से क्या होता है, एक महिला मुझसे सुख पा रही है और मुझे सुख दे रही है इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है, उसे मुझसे अच्छे व्यवहार के अलावा कुछ चाहिए भी नहीं था तो किसी बात का डर भी नहीं था।

अब मैंने आंटी को गंभीरता से उबारने के लिए कहा- मैं फोर प्ले तो जानता था, ये आफ्टर प्ले क्या होता है? तो आंटी ने शरमाते हुए पर मुझसे नजर मिला के एक अंदाज के साथ कहा- हमारे जमाने में ये सब होता तो था पर हम इन चीजों का नाम नहीं जानते थे, ये सब तुम नये जमाने वाले ही ऐसा कहते हो। और ये शब्द मैंने अंतर्वासना पर ही कहानियों में पढ़ी हैं, तुम खुद भी इसके महारथी हो, मैं जानती हूं कि कल हमारे हालात आफ्टर प्ले के लायक नहीं थे। पर भी मैंने तुम्हें गुस्से में ऐसे ही कह दिया।

मैंने कहा- हम्म, तो ये बात है। और दोनों हंस पड़े। वास्तव में फोर प्ले और आफ्टर प्ले अच्छी चीजें तो हैं पर इनका भी एक समय मूड और तरीका होता है। आगे की कहानियों में मौका मिलने पर इस बात का भी जिक्र करूंगा।

कहानी जारी रहेगी. आप अपनी राय मेरे इन ई मेल पते पर दे सकते हैं. [email protected] [email protected]

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