मां की चुपचाप चुदाई

अभी मैं 25 साल का हूँ.. और दिल्ली में रहता हूँ. मैंने कई सेक्स कहानी पढ़ी हैं, लेकिन सच्ची घटना बताने के लिए कहानी लिख रहा हूँ क्योंकि आज तक ये बात मैंने किसी को नहीं बताई है. ये बात उस समय की है, जब मैं स्कूल में पढ़ता था. तब मैं अपने माँ और पापा के साथ ही सोया करता था.

मेरी माँ उस समय 38 और पापा की 42 साल के थे. मां सुंदर और अत्यंत गोरी हैं, पापा भी अच्छे दिखते हैं.

जाड़े के दिन थे, मैं और माँ एक ही रजाई में थे. पापा दूसरी रजाई में सोते थे. उन दिनों मेरी परीक्षाएं चल रही थी. जिस कारण एक शाम मैं जल्दी सो गया कि सुबह उठ कर पढ़ाई करूँगा.

उस रात को करीब 12-1 बज रहे होंगे कि मेरी नींद खुल गई. खिड़की खुली थी और बाहर ठंडी हवा चल रही थी, जिससे पत्तियों के सरसराने की आवाज के बीच एक चुप्पी सी छाई थी.

मैं उठने को था कि अचानक मेरे जांघों से मां की जांघें टकरा गईं. मैंने महसूस किया कि उनकी जांघें नंगी थीं. अचानक मेरी सांसें तेज हो गईं और दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस खामोश रात में पहली बार मैंने मां को लम्बी सांसें लेते हुए महसूस किया. वो जोर जोर से सांसें ले रही थीं. मैंने करवट लेने के अंदाज में पलटते हुए अपने हाथ सीधे मां के ऊपर रख दिया तो भौंचक्का रह गया. पापा माँ के ऊपर नंगे चढ़े हुए थे.

मां ने झट से मेरा हाथ नीचे कर दिया और मैं नींद में होने का बहाना कर लेटा रहा. अब मेरे हाथ सीधे थे और माँ की जांघों से सटे थे. कमरे में घुप्प अंधेरा था और ये लोग कुछ बात भी नहीं कर रहे थे.. बस जोर जोर से सांसें ले रहे थे. अचानक माँ की जांघें हिलने लगीं और हल्की सी आह की आवाज आई. मेरा लंड भी उस समय तक खड़ा हो चुका था और ये अपने आप झटके ले रहा था.

उस सन्नाटे से भरी रात में अचानक से धप्प धप.. धप.. धपा धप्प.. धपप्प और आह्ह आह्ह आह्ह आह.. की आवाजें गूंज उठीं. अचानक सब कब कुछ बदल गया, मेरी सोच मेरी नीयत और मैं भी..

जब सब कुछ शांत हो गया तो पापा उठ कर बाहर चले गए. मम्मी ने सुबकियां भरना शुरू कर दीं. कुछ देर बाद माँ भी उठीं और बाहर चली गईं. माँ की सुबकियों ने मुझे ये समझने पर मजबूर कर दिया कि पापा माँ की आग को नहीं बुझा पाते हैं, वे अपनी वासना शांत करके हट जाते हैं. उनको माँ की इच्छा की कोई चिंता नहीं रहती है, या शायद वे इस मामले में कुछ भी नहीं कर पाते हैं. मतलब मेरी समझ में ये आया कि मेरी माँ वासना की आग से जल रही थीं.

उस रात शायद पापा को कहीं शहर के बाहर जाना था. वे चले गए, कुछ देर बाद मां आईं और मेरे साथ सो गईं. मेरी नींद तो कब की गायब हो गई थी.

मां पेटीकोट साड़ी ब्लाउज़ पहन कर सोती थीं. उस रात भी उन्होंने वही सब कुछ पहना था. हमेशा की तरह उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और सोने लगीं. उनके लिए कुछ बदला नहीं था लेकिन मेरे लिए मानो सब कुछ बदल गया था. आज माँ के हाथ मुझे बड़े सुकून दे रहे थे. माँ ने मुझे पीठ की तरफ से पकड़ा था, जिस कारण उनके स्तन मेरी पीठ से चिपके हुए थे और चूत का हिस्सा मेरे गांड से सटा था.

जब मुझे लगा कि माँ सो गई हैं, तो मैं पलट गया और मैंने उनके पैर के ऊपर अपना पैर रख दिया. उस समय उनकी साड़ी घुटनों तक उठी थी, जांघों के स्पर्श के एहसास ने मुझे रोमांचित कर दिया और मैं किसी तरह उसी स्थिति को पाने के लिए आतुर हो उठा.

धीरे धीरे मैंने उनकी साड़ी को ऊपर खिसकाना शुरू किया. ये सारे काम मैं ऐसे कर रहा था, जैसे मैं नींद में हूँ. साथ ही मुझे इस बात का डर भी लग रहा था कि कहीं आज कुछ गलत न हो जाए.

मेरे लगातार प्रयासों के बाद भी माँ ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं दी तो मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं अपने काम में आगे बढ़ने का प्रयास करता रहा.

अब तक मां की साड़ी कमर तक उठ चुकी थी. इस बीच माँ ने ऐसी कोई भी प्रतिक्रिया नहीं की.. जिससे मुझे लगे कि वो जग गई हों. मैं भी ऐसे ही सोया रहा और खुद को उनकी जांघों से सटा लिया. फिर मैंने एक हाथ से मां को पकड़ लिया. मेरी सांसें बहुत तेजी से चल रही थीं. मैंने इतना ही करने का सोचा था, पर मन नहीं मान रहा था, कुछ समझ भी नहीं आ रहा था क्योंकि उस समय तक मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं थी.

इस बीच मां ने करवट ली और मेरे सामने हो गईं. अब उनके मम्मे मेरी छाती से बहुत करीब हो गए थे. उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भर लिया था. मेरे हाथों ने भी माँ को जकड़ लिया और मेरे हाथ उनकी कमर से नीचे सरकते हुए उनके चूतड़ों पर टिक गए. माँ के चूतड़ों की उस मदमस्त छुअन के अहसास ने मेरे अन्दर जैसे आग सी लगा दी. मैं हाफ पैंट पहने था, उसे मैंने नीचे कर दिया. उनके चूतड़ों की मुलायमियत ने मेरे लंड को कड़क करना शुरू कर दिया जो कि माँ की चुत से टच होने लगा था. अब मेरा लंड माँ की चूत से सटा था.

तभी मैंने महसूस किया कि माँ का पेटीकोट भी ऊपर तक चढ़ चुका था और उनकी चूत में बहुत बाल थे, जो मेरे लंड को चुभ रहे थे.

अब मैं माँ से जोर से चिपक गया. इतनी जोर से की मेरी ही सांसें दबने लगीं और मैंने अपना नियंत्रण खुद से ही खो दिया.

तभी माँ ने अपने हाथ चलाने शुरू कर दिए और मेरे खड़े और लम्बे मोटे लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया. मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. यकीन मानिए अगले कुछ पल मेरी जिन्दगी के वो पल थे, जिनका मैंने कभी सपने में भी गुमान नहीं किया था. माँ ने एक पल के लिए अलग होकर अपने सभी कपड़ों को मुक्ति दे दी और मेरे कपड़ों को भी खींचते हुए अलग कर दिया.

अब मेरी नंगी माँ मुझसे चिपकी हुई थीं. मैंने माँ को चूमना शुरू कर दिया. माँ ने मेरी चुम्मियां लेनी शुरू कर दीं.

उन्होंने मेरी जुबान को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगीं. मैंने भी अपने हाथों से उनके मम्मों को मसलना शुरू कर दिया और उनकी चूचियों के निप्पलों को मींजना शुरू कर दिया. माँ की सीत्कारें निकलना शुरू हो गईं. उन्होंने चित लेटते हुए मुझे अपने ऊपर आने के लिए अपने हाथों से मुझे इशारा सा दिया और मैं अपनी को चोदने के लिए उनके ऊपर चढ़ गया. मैं माँ की चुत के ऊपर अपने लंड को घिस रहा था और वे आँखें बंद करने लगातार सीत्कारें ले रही थीं.

मैंने लंड के सुपारे को चुत की फांकों में घिसना शुरू किया, मुझे नहीं मालूम था कि चुत का छेद किधर होता है, बस यूं ही लगा था.

तभी माँ ने मेरे लंड को हाथ से पकड़ा और उसको दिशा दे दी. मेरा लंड माँ की चुत में घुस गया और मुझे बहुत दर्द हुआ, ऐसा लगा जैसे मेरे लंड कहीं से कट गया हो, कुछ टूट गया हो.

मैं लंड को बाहर खींचना चाहता था, पर माँ ने मुझे अपनी टांगों की कैंची से दबा रखा था. मेरी कमर माँ की टांगों में जकड़ी हुई थी. मैं चाह कर भी खुद को नहीं निकाल सकता था. माँ ने इसी स्थिति में खुद को मेरे ऊपर कर लिया और मेरे होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और मेरे होंठों के रस को चूसने लगीं. कुछ ही पलों में मेरे लंड को अच्छा लगने लगा और मैं उसी स्थिति में झटके देने लगा.

अब मुझे बहुत मजा आ रहा था. मैंने कस कर माँ के चूतड़ों को पकड़ लिया था और जोर जोर से झटके दे रहा था. मेरा लंड माँ की चूत में रगड़ रगड़ कर मुझे मदहोश करने लगा. इस बीच न तो मां ने कुछ कहा और न ही आह्ह आह्ह की आवाजें निकली.

मैंने सोचा कि मुझे भी पापा की तरह ऊपर आना होगा. मैंने माँ की सीधा बैठाया और उनको अपने लंड के नीचे लेते हुए उन्हें चित कर दिया. ऐसा करते समय एक पल के लिए भी मेरी माँ ने मेरे लंड को अपनी चुत से जुदा नहीं होने दिया.

अब मैं माँ के ऊपर चढ़ कर उनकी चुत में लंड के झटके देने लगा. लंड को चुत में पेलने से मुझे मजा बहुत आ रहा था. बीच बीच में ये मजा कई गुना बढ़ जाता था. ऐसा तब तब होता था, जब चूत में से लंड निकलने जैसा हो जाता था. तभी एक तेज झटके से मेरा लंड आधा घुस जाता और मजा आने लगता.

इस बीच मां की आह्ह हल्की सी सुनाई दी, मैं रोमांचित हो उठा और मेरे झटके तेज हो गए… धप धप धप धप.. की आवाज फिर से कमरे में छा गई और मैं बस झटके दिए जा रहा था. मां शायद झड़ गई थीं और चुपचाप लेटी थीं.. बस उनकी सांसें तेज हो गई थीं. मेरे मुँह से उम्म्ह… अहह… हय… याह… की आवाज और धप धप धप की आवाज ने मिलकर कमरे के माहौल में चुदास भर दी थी.

मेरा लंड पूरा गीला हो गया था और सर्र सर्र अन्दर जा रहा था, मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. मेरे तेज झटके ने लंड को चूत की गहराई तक पहुंचा दिया था. मेरे मुँह से आह्ह.. आह्ह.. की आवाजें निकल रही थीं, लेकिन माँ चुपचाप लेटी थीं. इस बीच कुछ अजीब सा महसूस होने लगा और मैं बेतहाशा माँ को चूमने लगा. उनके होंठों को चूसना शुरू कर दिया और गले को भी दांतों से काटने लगा. मैंने माँ की चूचियों को कस कर दबाना शुरू किया, फिर माँ ने धीरे से आह्ह किया.

इस तेज झटके के बीच अचानक लगा जैसे मेरी मूत निकल गई और मैं धड़ाम से माँ के ऊपर गिर पड़ा. फिर मुझे नींद आ गई. उसके बाद सुबह मुझे डर लगने लगा, पर माँ ने कुछ नहीं कहा.

सुबह जब उठा तो मैं नंगा पड़ा था. माँ बाजू में नहीं थीं. वो जल्दी उठ कर अपने काम में लग गई थीं. मुझे इस वक्त काफी सुकून मिल रहा था. मैंने उठ कर कपड़े पहने और बाथरूम में घुस गया. बाथरूम में पानी की आवाज सुन कर माँ ने मुझे आवाज दी- उठा गया बेटा. मैंने कुछ नहीं कहा. मेरे मन में अजीब से झंझावात चल रहे थे. एक तरफ लग रहा था कि माँ के साथ ये सब नहीं करना चाहिए था. दूसरी तरफ ये भी लग रहा था कि घर में ही माँ की दबी हुई वासना को शांत करके ठीक किया. हो सकता था कि माँ अपने जिस्मानी सम्बन्ध किसी दूसरे के साथ बना लेती तो क्या होता.

खैर.. मैं बाहर आ गया. खामोशी छाई हुई थी लेकिन माँ प्रसन्न दिख रहीं थीं. इस घटना ने उन पर क्या असर किया, मुझे नहीं पता… लेकिन आज तक उस बारे में बात नहीं हुई. हालांकि अब महीने में एकाध बार मेरा उनसे मिलन होने लगा था. मैं माँ की चुदाई कर लेता था.

कमाल की बात ये थी कि उस दौरान हम दोनों मां बेटा के बीच में कोई बातचीत नहीं होती थी और बस खेल खत्म होने के बाद हम दोनों माँ बेटा की तरह सो जाते थे.

माँ की चुदाई का यह मेरी ज़िंदगी का पहला ऐसा सेक्स अनुभव है कि आज तक इसका एक एक पल मेरे जेहन में बसा हुआ है. [email protected]