घर की सुख शांति के लिये पापा के परस्त्रीगमन का उत्तराधिकारी बना-7

मैंने उन्हें उत्तर देते हुए कहा- आंटी, आप कह रही थी कि मेरा लिंग अधिक मोटा है इसलिए आप ही मेरे ऊपर आकर आराम से इसे खुद ही अपने अन्दर डाल लो। इससे आपको कोई तकलीफ नहीं होगी तथा आप जितना अन्दर डालना चाहेंगी उतना ही डाल कर संसर्ग शुरू कर सकती हैं। मेरी बात ख़त्म होते ही आंटी फुर्ती से उठ और मुझे सीधा करके मेरी कमर के दोनों ओर टांगें फैला कर नीचे हुई और मेरे लिंग को पकड़ कर अपनी योनि के छिद्र पर रख कर उसके ऊपर बैठने लगी।

जब आंटी मेरे लिंग पर आहिस्ता आहिस्ता नीचे की ओर बैठ रही थी तब उनके चेहरे पर असुविधा के लक्षण दिखने लगे और जैसे ही लिंग मुंड अन्दर गया उनके मुख से हल्की चीत्कार निकल गयी।

मैंने जब उनकी ओर प्रश्न भरी दृष्टि से देखा तो उन्होंने सर हिला के मुस्कराई तथा नीचे की ओर बैठना जारी रखा और फिर मेरे लिंग को अपनी योनि में समेटते हुए एक झटके के साथ नीचे बैठते हुए मेरे ऊपर लेट गयी। कुछ देर मेरे ऊपर लेटने के बाद वह उठ बैठी और मेरी ओर फिर से मुस्करा कर देखते हुए उचक उचक कर लिंग को अपनी योनि के अंदर बाहर करने लगी।

दस मिनट तक कभी धीरे और कभी तीव्र गति से संसर्ग करते रहने के कारण जब वह हांफने लगी तथा उनके माथे पर पसीना आ गया तब वह ऊपर से उतर कर मेरे बगल में लेट गयीं और मुझे उनके ऊपर आ कर संसर्ग करने को कहा। तब मैंने उठ कर आंटी को लेटने दिया और फिर उनकी टांगें चौड़ी करके उनके बीच में बैठ कर अपने लिंग से उनके भगांकुर पर रगड़ने लगा।

कुछ देर में ही आंटी मुझे लिंग को उनकी योनि में डालने के लिए आग्रह करने लगी लेकिन जब मैंने ऐसा करने से आनाकानी करी तब उन्होंने अपने हाथ से मेरे लिंग को अपनी योनि के मुंह पर रख कर नीचे से धक्का लगा कर उसके मुंड को अन्दर डालने का प्रयास करने लगी। जब वह अपने प्रयास में असफल रहीं तब बहुत ही दयनीय शक्ल बना कर कहा- अनु यार, बहुत मज़ा आ रहा था अब देर कर के उसे क्यों खराब कर रहे हो। मुझसे अब इंतज़ार नहीं किया जा रहा है इसलिए जल्दी से अन्दर डाल कर तुम भी आनंद लो और मुझे भी संतुष्टि प्रदान करो।

उनकी लिंग लेने की तड़प देख कर मैं जोश में आ गया और एक ही तीव्र धक्के में अपना पूरा साढ़े छह इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा लिंग उनकी योनि के पाताल तक पहुंचा दिया। झटके से मेरा लिंग उनकी योनि को चीरता हुआ जब उनके गर्भाशय से टकराया तब उन्हें योनि में हो रही हलचल के साथ थोड़ी पीड़ा भी हुई और वह जोर से चिल्लाई- ऊई माँ, उम्म्ह… अहह… हय… याह… तुमने तो मुझे मार ही डाला है। क्या मेरी जान लेनी है? क्या आराम से नहीं कर सकते? मैंने दो तीन और तेज़ धक्के लगते हुए कहा- आप ही ने तो कहा था कि जल्दी कर मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती इसलिए मैंने तेज़ी से अन्दर धकेल दिया था।

इसके बाद मैंने बिना कोई बात किये लगातार बीस मिनट तक पहले धीरे धीरे फिर तीव्र गति से और उसके बाद बहुत तीव्र गति से संसर्ग किया। इन बीस मिनटों में आंटी भी लगातार सिसकारियाँ एवं सीत्कारियों मारती रही और बीच बीच में जब उनका शरीर अकड़ता तथा उनकी योनि में खिंचावट के कारण सिकुड़ती तब वह चीत्कार मार कर मुझे जकड़ लेती थी।

जब उनकी योनि खिंचावट के कारण तीसरी बार सिकुड़ी तब मैंने अत्यंत तीव्र गति से संसर्ग करके आठ-दस धक्कों में ही उन्हें कामोन्माद के शिखर पर पहुंचा कर दोनों एक साथ ही स्खलित हो गए। मैं थक कर हांफता हुए आंटी के ऊपर ही लेट गया तथा उन्होंने मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ कर मेरे होंठों को चूमते हुए बार बार धन्यवाद कहने लगी।

लगभग पन्द्रह मिनट तक उनके ऊपर लेटे रहने के बाद जब मैं उठा तब आंटी भी मेरे साथ उठ गयी और बोली- अनु मेरी जान, तुमने मुझे अपने जीवन का सब से बेहतरीन यौन आनंद एवं संतुष्टि दी है। आज तक तुम्हारे पापा के साथ किये सहवास के दौरान मेरी योनि में दो बार से अधिक खिंचावट एवं संकुचन कभी भी नहीं हुआ है लेकिन तुमने तो पाँच बार खिंचावट एवं संकुचन करवा कर मेरी योनि की खूब कसरत करवा दी।

उसके बाद दो मिनट तक मुझे और मेरे लिंग को चूमने के बाद वह बोली- एक बात बताऊँ कि आज मुझे आखिरी खिंचावट एवं संकुचन के समय कामोन्माद के उच्चतम शिखर में पहुँचने का अवसर पहली बार मिला है। मुझे पूर्ण विश्वास था कि जिस आनंद और संतुष्टि की मुझे वर्षों से तलाश थी वह तुमसे ही मिलेगी और तुमने मुझे बिल्कुल निराश नहीं किया।

आंटी की बात सुनकर मैंने भी उनको चूमा और कहा- आंटी, मैं भी एक बात कहना चाहता हूँ कि मुझे भी पहले कभी इतना आनंद एवं संतुष्टि नहीं मिली जितनी आज आपके साथ सहवास करके मिली है। आज से पहले मैंने सिर्फ अनुभवहीन युवतियों के साथ ही सहवास किया है इसलिए शायद उन्हें और मुझे असली यौन आनंद एवं संतुष्टि का पता ही नहीं था। लेकिन आज आपने मुझे इसकी भी अनुभूति करवा दी जिसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूँ।

मेरी बात सुन कर आंटी ने कहा- अरे यार, तुम मेरे आभारी हो और मैं तुम्हारी आभारी हूँ इसलिए हिसाब बराबर हुआ। अब यह बताओ कि इस सफल परीक्षण के बाद क्या तुम्हें मेरे द्वारा दिया गया विकल्प तुम्हें मंजूर है या नहीं? उनके प्रश्न के उत्तर में मैंने कहा- मुझे आपके द्वारा दिया विकल्प मंजूर तो है लेकिन आपसे एक पक्का आश्वासन चाहिए कि आप अब मेरे पापा को सहवास के लिए कभी भी नहीं बुलाएंगी।

मेरी बात सुनते ही आंटी ने मेरे लिंग को अपने हाथ से अपनी योनि के मुंह से लगाये हुए बोली- अनु मेरे राजा, मैं तुम्हारे लिंग को अपने हाथ में लेकर अपनी योनि से लगाते हुए तुम्हें आश्वस्त करती हूँ कि मैं अब से तुम्हारे पापा का हमेशा के लिए त्याग करती हूँ तथा उनसे जीवन भर कभी एवं किसी भी हालात में यौन सम्बन्ध स्थापित नहीं करूँगी।

इसके बाद जब हम अपने अंगों को साफ़ करने के लिए बाथरूम की ओर चलने लगे तब आंटी की नज़र बिस्तर पर एक बहुत बड़े गीले धब्बे पर पड़ी। उन्होंने झुक कर उसे ध्यान से देखा और फिर हाथ लगा कर पहले सूंघा तथा फिर उसे अपनी जिह्वा से चाटते हुए बोली- जानू यह तो तेरे और मेरे रस का मिश्रण है। इसका स्वाद तो चाशनी की तरह बहुत ही मीठा है। लगता है कि संसर्ग के बाद जब मैं उठ कर बैठी थी तब यह मेरी योनि में से बह कर बाहर निकला होगा।

फिर उन्होंने बैड से चादर उतार का धोने के लिए बाथरूम में ले जा कर मैले कपड़ों की टोकरी में रख कर नल के पास जा कर अपनी योनि को धोने लगी।

आंटी के पीछे चलते हुए जब मैं नल के पास पहुंचा तब उन्होंने अपनी योनि को छोड़ कर मेरे लिंग को बहुत प्यार से धोने लगी। मेरे लिंग को धोते हुए जब आंटी ने उसकी ऊपर की त्वचा को पीछे सरका कर लिंग मुंड को बाहर निकाला तब उन्होंने उसे धोने के बजाय अपने मुंह में ले कर चूसा और चाट कर साफ़ किया। उनकी इस क्रिया के कारण मेरे लिंग में फिर से जान आ गयी और वह एक क्षण में ही कठोर होते हुए तन कर खड़ा हो गया और आंटी की आँखों के सामने लहराने लगा।

मेरे लहराते हुए लिंग को ललचाई नज़रों से देख कर आंटी ने मेरी ओर देखा और बोली- मेरे जानू, अब इसका क्या इरादा है? मैंने अपने लिंग को उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा- यह तो आप खुद ही इससे पूछ लीजिये। मुझे लगता है कि अब यह आपकी योनि का दीवाना हो गया है और आपने इसे चाट कर साफ़ करते समय संसर्ग का निमंत्रण दे दिया है। अब यह आपकी योनि से कबड्डी खेले बिना बैठने वाला नहीं।

आंटी की मंशा पूरी होते देख कर तुरंत ही झुक कर मेरी और पीठ करके घोड़ी बनते हुए बोली- बिस्तर पर तो नई चादर बिछाने में समय लगेगा इसलिए आओ इससे यही पर कबड्डी करने देते हैं। आंटी की बात समाप्त होने से पहले ही मैं उनके नितम्बों को फैला कर अपने लिंग को उनकी योनि के छिद्र पर स्थित करके एक धक्का लगा दिया। उस धक्के से मेरे लिंग का मुंड योनि के अंदर चला गया और आंटी के मुंह से आह.. की आवाज़ निकल गयी।

मैंने आंटी के नितम्बों को कस के पकड़ते हुए एक जोरदार धक्का लगाया और अपना आधे से ज्यादा लिंग उनकी योनि में उतार दिया। आंटी ने उस धक्के को सिर्फ एक लम्बी सिसकारी लगा कर सह लिया और अपने नितम्बों को पीछे की ओर धकेल कर मेरा बाकी का बाहर बचा लिंग अपनी योनि में समां लिया।

उसके बाद तो मैं आगे की ओर तथा आंटी पीछे की ओर धक्के लगाने लगे जिस से आंटी की योनि में से निकल रहे रस के कारण बाथरूम में छप छप छपा छप का स्वर गूंजने लगा। उस मधुर ध्वनि से हम दोनों मस्त हो कर लगभग पचीस मिनट तक संसर्ग करते रहे जिस अवधि में आंटी ने तीन बार कामोन्माद की ऊँचाइयों पर पहुँच कर सीत्कार किया। जब वह चौथी बार कामोन्माद के शिखर पर पहुँचने वाली थी तब उन्होंने कहा- मेरी जान, अब मेरी योनि में अत्यंत तीव्र खिंचावट एवं संकुचन होने वाला है इसलिए अब तुम भी जल्दी से अपने शिखर पर पहुँच कर मेरे अंदर रस विसर्जन कर दो।

मेरे कानों के आंटी के मधुर शब्द पड़ते ही मैंने अपनी गति अत्यंत तीव्र कर दी तथा अगले दस धक्कों में आंटी को कामोन्माद के उच्चतम शिखर पर पहुंचा दिया। जैसे ही आंटी की योनि में हो रहे संकुचन ने मेरे लिंग पर दबाव डाला वैसे ही मेरा लिंग मुंड फूलने लगा जिसे महसूस करते ही आंटी की योनि में से गर्म रस की नदी बहने लगी। उस गर्म रस के स्पर्श में आते ही मेरे लिंग ने अपने उबलते लावे की पिचकारी छोड़ दी तथा आंटी की योनि को एक आग की भट्टी बना दिया। जब भट्टी पूरी तरह से भर गयी तब उसमें से दोनों के गर्म रस का मिश्रण बाहर रिसना शुरू हो गया।

जब मैंने अपने लिंग को आंटी की योनि से बाहर खींचा तब उनकी टाँगे कांप रही थी और लिंग के बाहर निकलते ही वह धम से जमीन पर बैठ गयी। उस समय हम दोनों के रस के मिश्रण की बाढ़ उनकी योनि में से उमड़ कर बाहर निकल रही थी तथा उनकी जांघों एवं टांगों से लिपट कर फर्श पर बहने लगी थी।

जैसे ही आंटी के शरीर की कंपकंपी कम हुई और जब उन्होंने फर्श पर बहती हुई रस मिश्रण की धारा देखी तब हँसते हुए पूछा- यार, मेरे पति और तुम्हारे पापा ने मिल कर एक वर्ष में भी इतना रस मेरे अंदर नहीं डाला होगा जितना तुमने पहले दिन ही डाल दिया है। सच में मुझे आज गर्व है कि मैंने सहवास के लिए सब से उत्तम व्यक्ति को चुना है ओर मुझे पूर्ण विश्वास है कि हर सम्भोग में तुमसे आनंद एवं संतुष्टि मिलेगी।

तदुपरांत हम दोनों ने एक साथ नहाते हुए एक दूसरे को खूब मल मल कर नहलाया तथा कपड़े पहन कर जब मैं अपने घर जाने लगा तब आंटी ने मुझे खाने के लिए रोक लिया। खाना खाने के बाद मैंने और आंटी ने एक दूसरे का बहुत लम्बा चुम्बन ले कर दोबारा सहवास के लिए जल्द मिलने का वादा करके विदाई ली।

उस दिन से ले कर लगभग अगले चार वर्षों के दौरान मैं हर सप्ताह दिन में समय मौका मिलने पर दो या तीन बार तो आंटी को आनंद एवं संतुष्टि प्रदान करने उनके घर जाता था। इसके अलावा जब भी अंकल टूर पर जाते तब आंटी मेरी मम्मी से यह बहाना बना कर कि रात के समय उन्हें अकेले में डर लगता मुझे अपने घर सोने के लिए बुला लेती थी। तब हम दोनों रात भर सोते कम थे और सम्भोग अधिक करते थे।

पिछले दो वर्षों में हर माह मैं दो तीन दिनों के लिए जब भी अपने घर गया हूँ तब मैंने मौका देख कर आंटी के साथ सम्भोग कर के यौन क्रिया का आनंद एवं संतुष्टि प्राप्त करते हैं तथा हम दोनों को आशा है की यह सिलसिला अनंत समय तक चलता रहेगा।

ऋतु आंटी ने पिछले छह वर्षों के दौरान जिस प्रकार अपनी प्रतिज्ञा का भरपूर पालन किया है उस पर मुझे बहुत गर्व है और यही कारण हैं की भोपाल आने के बाद भी मैं हर माह उनको यौन आनंद एवं संतुष्टि देने घर जाता हूँ।

अन्तर्वासना के सम्मानित श्रोताओं मैं इस प्रकार अपने घर की सुख शांति की खातिर पापा के परस्त्रीगमन का उत्तराधिकारी बना।


सिद्धार्थ वर्मा की ओर से अन्तर्वासना के सभी श्रोताओं को इस रचना को पढ़ने के लिए बहुत धन्यवाद। मुझे आशा है कि आप सब को अनुराग द्वारा लिखे उसके जीवन के अनुभव पढ़ कर अवश्य आपके आनंद में अवश्य वृद्धि हुई होगी। [email protected]