मुख चोदन कहानी: दूध वाला राजकुमार-5

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मेरी गांडू कहानी के पिछले भाग गे कहानी: दूध वाला राजकुमार-4 में आपने पढ़ा कि

अब तक का शायद ये पहला मर्द था जिसने मुझे अपने जिस्म से इतना खेलने दिया था, वर्ना मर्द बस अपने लन्ड तक ही सीमित रखते है छाती और मुँह तक तो आने ही नहीं देते। वैसे मैंने भी उनका नाज़ायज़ फायदा नहीं उठाया और उनके चेहरे से कोई छेड़खानी नहीं की, वैसे चेहरा भी मस्त महाराजाओं वाला और सेक्सी लुक वाला था. खैर…

रत्नेश भैया बहुत गर्म हो चुके थे मानो उन्हें बुखार हो और इतनी कड़ाके की ठंड में वो पसीने से भीगने लगे थे और उनकी सांसें बहुत ज़्यादा तेज़ी से बहुत गर्म चल रही थी। इसके अलावा मुँह से भी बहुत ज़्यादा गर्म हवा निकल रही थी और मेरी मुट्ठी में पकड़ा हुआ लन्ड अब बहुत ज़ोर ज़ोर से झटके मारने लगा था।

सबसे बड़ी दिक्कत तो मुझे यही थी कि रत्नेश भैया कुछ बोलते ही नहीं थे ना कुछ अपने आप करते… बस मेरी गांड मसले जा रहे थे… मुझे ऐसा लगा कि कहीं रत्नेश भैया को कुछ हो तो नहीं गया… तबियत ख़राब या सेक्स सम्बन्धित कुछ… क्योंकि सेक्स के समय ऐसी हालत मैंने कभी नहीं देखी थी किसी की।

लन्ड की नसें बहुत ज़्यादा कड़क हो चुकी थी, वैसे भी लन्ड काफी मोटा था मतलब मेरी मुट्ठी में नहीं आ पा रहा था और लम्बा भी अच्छा था. हालांकि अभी तक मैंने पूरे लन्ड के दर्शन नहीं किये थे और 1 घण्टा बीत चुका था, ऊपर से उनकी हालत…

मैंने फटाफट मामला निपटने का सोचा और उनके हाथों से गांड छुड़ाते हुए नीचे घुटनों के बल बैठ गया। बैठकर उनके अंडरवियर को झटके से नीचे करते हुए पहली बार उनके लन्ड को आज़ाद कर दिया और बिना देर किये लन्ड का सुर्ख गुलाबी सुपारा अपने मुँह में भरते हुए लम्बी गर्म हवा छोड़ी और लन्ड को अपने गले तक जितना घुस सकता था घुसा लिया।

रत्नेश भैया के मुँह से बहुत ज़ोर की आह निकली… ‘आह… आह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआआहहह… स… स… स…’ और उन्होंने मेरे कानों के पास से मेरा सिर पकड़ लिया और मेरे बाल और चेहरा अपनी उंगलियों से सहलाते हुए मुझे लन्ड को तेजी से चूसने के लिए प्रेरित करने लगे।

मैं भी गपागप उनके लन्ड को गले तक उतारे जा रहा था… क्योंकि मेरी तो पुरानी ट्रिक थी लन्ड चूसने की जिसमें मैं गिनती गिनते हुए लन्ड चूसता हूँ और टारगेट पूरा होने के पहले चाहे दम घुट जाए लेकिन लन्ड मुँह से बाहर नहीं निकालता।

ऐसे ही मेरा पहली बार का 200 बार लन्ड अंदर बाहर करने का टारगेट पूरा हुआ। मैं थक गया और मेरे होंठ भी काफी खिंचने लगे थे क्योंकि लन्ड मोटा था और लम्बा भी, जिसे गले तक भरने के बाद भी 25% हिस्सा बाहर ही छूट जाता था।

अब मैंने लन्ड बाहर निकाला और आराम करने के उद्देश्य से उसे ज़ोर ज़ोर से सहलाने लगा और अब मैंने लन्ड को सही ढंग से निहारा। वाह… मस्त गोरा चिट्टा लन्ड… बिल्कुल रत्नेश भैया के जिस्म की तरह ही लेकिन ताकत बिल्कुल किसी ताबड़तोड़ चुदाई वाले घोड़े जैसी।

लन्ड का सुपारा बिल्कुल गुलाबी था और काफी चमक थी। इसके अलावा लन्ड बिल्कुल सीधा था और किसी मोटे खीरे की तरह था जो लोहे की तरह मज़बूत लग रहा था।

अब मैंने लन्ड को पकड़ा और लन्ड के सुपारे को अपनी नाक और पूरे चहरे और आँख पर चलाने लगा और लम्बी सांसों से लन्ड की महक को सूंघने लगा… लन्ड से लगातार प्री कम निकल रहा था जिसे मैं चेहरे पर चुपड़ लेता या चाट लेता।

लेकिन यार… रत्नेश भैया अब बहुत तड़प से रहे थे और मैं अब उन्हें तड़पाना नहीं चाहता था। उनकी भलाई तो यह थी कि उन्होंने एक बार भी मेरे साथ कोई जबरदस्ती नहीं की थी, जो कुछ किया था मैंने खुद किया था। वो मुझे अपना मानने लगे थे शायद… लेकिन मैं भी उन्हें पूरा मज़ा और आनन्द देना चाहता था।

इसीलिए अब मैं फाइनल राउंड खेलने वाला था। अब मैं एक छोटे से स्टूल की साइज़ की दूध की टंकी पर बैठ गया और मेरे पीछे दो बड़ी दूध की टंकियाँ रख ली और उन बड़ी टंकियों के सहारे टिक गया. लेकिन टंकियाँ अलुमिनियम की थी इसलिए मैंने रत्नेश भैया के कपड़े अपने पीठ और सिर के पीछे रख लिए ताकि मुझे टंकियाँ पीठ में चुभे नहीं।

अब मैं मुँह चुदाई के लिए तैयार था और टिक हुआ आराम की मुद्रा में था, लेकिन मैंने अपने मुँह को थोड़ा ऊपर की ओर किया हुआ था जिससे लन्ड मुख में डालने में आसानी रहे।

अब महाराजा रत्नेश राजपूत को अंतिम आनन्द प्रदान करने की बारी थी और इसमें मैं जी जान लगा देना चाहता था. हालांकि मुझे पता था कि इस लन्ड के सिर्फ 10 झटकों से ही मेरी हालत खराब हो जाने वाली है.

अब मैंने रत्नेश भैया को अपने मुँह के सामने खड़ा किया और मुँह में लन्ड घुसा देने के लिए इशारा किया। उन्होंने एक बहुत ही सेक्सी स्माइल दी और मेरी नाक के आगे अपना तम्बू खड़ा कर दिया और लन्ड नाक से रगड़कर शरारत करने लगे… भाई ने अब जाकर कोई प्रतिक्रिया की थी जिसे देखकर मैं खुश था… लेकिन गर्मी में कोई कमी नहीं, अब भी वो पसीने से लतपथ हो रहे थे और पूरा जिस्म तप रहा था।

मैंने तुरंत हिलते हुए लन्ड को अपने मुँह में कैद कर लिया और रत्नेश भैया को मेरी पीठ के पीछे की दूध की टंकी पर अपने हाथ टिका लेने और मेरे मुँह के सामने अपने लन्ड वाले भाग को थोड़ा झुककर बिल्कुल मुख चुदाई की पोजिशन बनाने का इशारा किया।

उन्होंने बिल्कुल वैसी हो पोज़िशन बना ली… मतलब अब मेरे मुँह में रत्नेश भैया का कड़क लौड़ा फंस चुका था और वो मेरे मुँह पर अब थोड़ा दबाव बना रहे थे क्योंकि वो मेरे पीछे रखी दूध की टंकी पर मेरे सामने से ही अपना हाथ रखकर मेरे मुँह पर ही निशाना बना रहे थे और अब मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था सामने क्योंकि उनका शरीर मेरी आंखों के सामने था।

उम्मीद करता हूँ कि आपको पॉज़िशन समझ में आ गयी होगी। अब तो मेरी मौत पक्की थी क्योंकि मेरे पीछे बड़ी टंकियाँ और आगे खुद टेंकर जितने दमदार रत्नेश भैया और मुँह में दम घोट देने वाला उनका मोटा ताज़ा लौड़ा। सब कुछ जानते हुए भी मैं ये रिस्क लेना चाहता था।

अब मैंने अंदर ही अंदर लन्ड पर जुबान चलाई जिससे लन्ड में फिर से झटके आना शुरू हो गए और अब रत्नेश भैया धीरे धीरे अपने लन्ड को मेरे मुँह में अंदर बाहर करने लगे… लेकिन वो मेरे गले तक अपना लन्ड नहीं पहुँचा रहे थे, उनको बड़ी परवाह थी मेरी।

मैंने अपने दांटों को थोड़ा अंदर करते हुए होंठों को लन्ड पर टाइट किया जिससे उन्हें होंठों पर ही चूत जैसा एहसास होने लगे और लन्ड को गले तक ज़्यादा अंदर घुसाने की ज़रूरत ही ना पड़े, जिससे मेरी दम घुटने से मौत ना हो।

अब झटके थोड़े तेज होने लगे थे और सपड़ सपड़ की आवाज़ मेरे मुँह से आ रही थी। बिल्कुल सीधा लन्ड आधा मेरे गले तक जाता और होंठों के बीच दबा हुआ बाहर आता… अंदर में जुबान से लन्ड को सपोर्ट करता।

अब उस राजपूती पहलवान का जोश बढ़ने लगा था और उन्होंने अपना एक हाथ टंकी से हटाकर मेरे कान को पकड़ लिया और अपना मुँह आसमान की तरफ करते हुए आहें भरने लगे। और मैंने अपना मुँह और भी टाइट कर लिया लेकिन इनके बावजूद रत्नेश भैया का लन्ड मेरे गले में जाने लगा था और हर झटके के साथ मानो मेरी सांस रुक जाती।

अब तकलीफ होते हुए भी मैं इस पल को यहीं रोक देना चाहता था और अब मैं अपना चेहरा ऊपर करके रत्नेश भैया का कसरती जिस्म और कातिलाना चेहरा देख रहा था, जो चुदाई करते हुए बहुत ही सेक्सी लग रहा था।

मैं अपने हाथों को ऊपर उठाकर चुदाई करने से उनके बाईशेप और छाती की मांसपेशियों के ऊपर नीचे होने वाले उभारों को छूकर महसूस कर रहा था।

लगभग 20 मिनट हो चुके थे लेकिन अभी तक रत्नेश भैया का लन्ड खाली नहीं हुआ था… अब मेरी आंखें भी बन्द सी होने लगी थी और रत्नेश भैया गज़ब की ताबड़तोड़ चुदाई करने में लगे हुए थे. मैं बिल्कुल किसी लाश की तरह टंकियों से टिका हुआ था और मेरे मुँह में मानो लोहे की मोटी रॉड अंदर बाहर की जा रही थी।

मैं बेसुध सा हो चुका था लेकिन मैं रत्नेश भैया के मज़े को किरकिरा नहीं करना चाहता था इसलिए पड़ा हुआ सब कुछ सह रहा था।

हालांकि रत्नेश भैया मेरा बहुत ख्याल रख रहे थे चुदाई करते हुए ताकि मुझे तकलीफ ना हो… लेकिन अब चुदाई के खतरनाक जोश में अब उनका लन्ड मेरा दम घोटने लगा था, अब लन्ड मेरे गले के आखिरी छोर जहाँ तक जगह मिल रही थी पूरी रफ्तार से पहुँच रहा था और हर झटके के साथ ढेर सारा थूक मेरे मुँह से टपक जाता जिससे मेरी छाती पूरी गीली हो चुकी थी।

अब रत्नेश भैया ने कुछ हरकत की… और आह… आह… सी… सी… की आवाज़ करने लगे और उनके झटके और भी तेज हो गए. अब उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा मुँह पकड़ लिया और बाल तो कभी कान खींचने लगे, मैं समझ गया और मैंने भी अपना जोश बढ़ाया और उनकी कड़क छाती को मसलने लगा।

इसके अलावा यह ध्यान भी रखना था कि छोटे भाई सर्वेश की तरह अंत में वीर्य निकलते समय रत्नेश भैया भी अपना लन्ड बाहर ना निकाल ले। मैंने अपना एक हाथ लन्ड के पास ही लगा लिया था। 10-12 बड़े झटकों के बाद मेरे गले में गर्म नमकीन वीर्य की लम्बी पिचकारी निकली जो इतनी तेज़ थी कि गले से कुछ वीर्य सीधे पेट में चला गया।

4-5 छोटी पिचकारियों ने मेरा मुँह कामरस से भर दिया जो मेरे होंठों से टपकने लगा, और रत्नेश भैया अपना लन्ड मेरे मुँह में ही लिए टंकी और मुझ पर अपना वजन डालते हुए खड़े हो गए।

कुछ लोगों का वीर्य थोड़ा कड़वा सा होता है लेकिन यह वीर्य काफी नमकीन और टेस्टी था, इसके अलावा एक राजपूती पहलवान का वीर्य था इसलिये में चाटते हुए पूरा वीर्य पी गया और मोटे ताज़े लन्डराज को भी चाटकर बिल्कुल साफ कर दिया और चड्डी पहना दी।

अब सेक्स होने के बाद भी महाराजा रत्नेश जी कुछ भी करने को तैयार नहीं थे। अंडरवियर मैंने पहनाई, जीन्स पहनाई, बनियान, शर्ट और जैकिट पहनाकर तैयार किया।

इसके बाद उन्होंने दुकान में ताला लगाया और उन्होंने मुझे घर छोड़ दिया। लेकिन अब रात भर मुझे बस यही चिंता थी कि रत्नेश भैया को उस बिल्डिंग वाली लड़की की चूत आखिर कैसे दिलाई जाए।

कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्तो… रत्नेश भैया और उस बिल्डिंग वाली लड़की को मैंने कैसे मिलवाया और कैसे चुदाई हुई, जानने के लिये कहानी का अगला भाग लेकर लौटूंगा।

आपके और अन्तरवासना के प्यार के लिए धन्यवाद। अपनी प्रतिक्रियाएँ मुझे इस मेल पर दें!! आपका लव !! [email protected]

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