जवानी का ‘ज़हरीला’ जोश-2

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

मेरी गे स्टोरी के पहले भाग में अभी तक आपने पढ़ा कि मैं रेलवे स्टेशन पर गश्त लगा रहे पुलिस वाले पर लट्टू होकर पीछे-पीछे चल पड़ा। टॉयलेट के सामने से गुज़रते हुए वो अचानक टॉयलेट की तरफ बढ़ने लगा, मैं भी तेज़ी से कदम बढ़ाते हुए यूरीनल में घुस गया..

सामने यूरीनल पर खड़ा हुआ वो सेक्सी गांड वाला मर्द टांगें चौड़ी करके पेशाब कर रहा था, उसका एक हाथ पीछे कमर था और दूसरा हाथ नीचे लंड की तरफ। मैं फटाक से उसके बगल वाले पॉट पर जाकर मूतने की एक्टिंग करते हुए उसके लंड की तरफ झांकने की कोशिश करने लगा। उसकी गर्दन हल्की सी ऊपर छत की तरफ उठी हुई थी और आंखें बंद, मैंने मौके का फायदा उठाकर उसके लंड को देखने की पूरी कोशिश की। कुछ सफल भी हुआ, उसके लंड पर नज़र गई तो बदन में सिरहन सी दौड़ गई। हाथ में लटका हुआ उसका 5 इंच का सोया हुआ मोटा-गोल हल्का सांवला लंड जिससे पेशाब की धार तेज़ शोर करती हुई नीचे पॉट से टकरा रही थी।

लेकिन कमबख्त आंखें बंद करके खड़ा था। मैं इंतज़ार में था कि ये आंखें खोले और देखे कि मैं इसके लंड को देख रहा हूं। उस तक मन की बात पहुंचाने का यही एक तरीका और आखिरी मौका था मेरे पास। उसका लंड पेशाब गिराए जा रहा था और वो ऐसे ही आनंद में आंखें बंद किए हुए खड़ा था। क्या करूं… कैसे बात बने, कैसे इसका ध्यान खींचूं… बेचैनी बढ़ रही थी और झुंझलाहट भी।

मैंने गले की खराश की आवाज़ की तो उसकी आंखें खुल गईं, उसने नीचे देखा और मैंने उसके लंड की तरफ देखना जारी रखा लेकिन इतने में मेरी बगल में एक और अंकल आकर खड़े हो गए। इससे पहले कि मैं और कुछ पैंतरा चलता, पुलिसवाला अपने लंड को झड़काने लगा, उसके हाथ में हिलते हुए उसके मस्त गोल शेप वाले लंड को देखकर मेरी हालत खराब हो रही थी। लेकिन अंकल ने आकर सारा प्लान चौपट कर दिया और उस सेक्सी जवान ने मेरी तरफ ध्यान ही नहीं दिया।

लंड को झड़काकर उसने गांड को थोड़ा पीछे करते हुए अपने मोटे औज़ार को जिप के अंदर डाल दिया और जिप बंद करके यूरीनल से उतर गया। वो वॉशबेसिन की तरफ बढ़कर हाथ धोने लगा। हल्का सा झुकने के बाद उसकी गांड और उभर कर आई। मेरे मन में आह्ह्ह..निकल गई… क्या माल था यार!

अपने प्लान में फेल होने के बाद मैं भी वहां से उतर गया। पुलिसवाला बाहर निकल गया था। मैंने बाहर निकल कर फिर से उसको फॉलो करना शुरु कर दिया। वो चलता हुआ प्लेटफॉर्म पर दूर जाने लगा और पूछ-ताछ काउंटर के साथ बने रूम में अंदर घुस गया। मैंने हथियार डाल दिए। वो हाथ नहीं आने वाला। कोशिश करना बेकार है।

मैं वापस मुड़ा तो वो अंकल मेरा पीछा कर रहे थे। मैंने उनको देखा और उन्होंने मुझे। लेकिन मुझे उनमें कोई इंटरेस्ट नहीं था। इसलिए मैंने उनको अनदेखा कर दिया। मेरा लंड अभी भी खड़ा हुआ था। मैं वापस यूरीनल के ठीक सामने वाले बैंच पर जाकर बैठ गया जहां ज्यादा रोशनी नहीं थी।

कुछ देर में वो अंकल भी मेरे पास आकर बैठ गए। बैठते ही उन्होंने मेरी पैंट के ऊपर से मेरे लंड पर हाथ रख दिया। मुझे मज़ा आया। वो मेरे लंड को मसलने, दबाने लगे, हाथ में लेकर पकड़ने की कोशिश करने लगे।

उन्होंने चुपके से मेरे कान में कहा- चलो अंदर चलते हैं। मैं भी वासना के वश होकर उनके कहने पर उठकर चल पड़ा। हम यूरीनल की तरफ फिर से बढ़ने लगे। अंदर जाकर वो टॉयलेट केबिन में घुस गए और दरवाज़ा खुला छोड़ दिया। मैंने यहां-वहां देखा और मैं भी अंदर घुस गया।

अंदर जाते ही अंकल ने मेरी जिप खोल दी और पैंट को नीचे उतार कर मेरा अंडरवियर भी नीचे कर दिया। मेरा लंड तना हुआ था। अंकल ने मेरे लंड को मुंह में भरकर चूसना शूरू कर दिया। आह्ह्ह्ह… मैंने अंकल के सिर पर हाथ रख लिए और मज़े से लंड चुसवाने लगा। पहली बार किसी के मुंह में लंड दिया था मैंने। बहुत मज़ा आ रहा था। अंकल भी पूरे मज़े से लंड को चूस रहे थे। उनकी स्पीड भी काफी तेज़ थी। मैंने उनके सिर को पकड़ा और उनके मुंह को चोदना शुरू कर दिया।

अंकल मेरे लंड को पूरा गोटियों तक अंदर ले जाकर रोक लेते थे। इस्स्स… अम्म्म्म… आह्ह्ह करते हुए मैं अंकल के मुंह में लंड को पेल रहा था। मेरी पैंट सरक कर नीचे घुटनों तक पहुंच गई थी। अंकल अचानक उठ खड़े हुए और अपनी पैंट खोलने लगे। लेकिन तभी यूरीनल में कोई आ टपका, अंकल वापस नीचे बैठ गए, मैं भी चुपचाप खड़ा रहा। किसी ने हमारे वाले टॉयलेट डोर को हाथ से एक बार खटखटाया लेकिन अंकल ने चुप रहने का इशारा कर दिया।

शायद टॉयलेट का गार्ड था जो चैकिंग के लिए आया था। जब कुछ देर हो गई और हमें किसी तरह की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी तो अंकल ने फिर से मेरे आधे सोए हुए लंड को मुंह में ले लिया और टोपी को मुंह के अंदर ही पीछे खोलते हुए मेरे लंड को चूसने लगे। लंड फिर से तन गया। दो मिनट तक चूसने के बाद उन्होंने थूक से सने मेरे लंड को बाहर निकाला और गोटियों को मुंह में भर लिया। ओह्ह्ह माय गॉड… मैं तो आनंद में डूब गया। वो मेरी गोटियों को मुंह में भर कर चूसने लगे। मेरा लंड उनकी नाक पर रगड़े खाता हुआ माथे तक पहुंच रहा था।

आनंद में मेरी आंखें बंद हो रही थीं। मेरे अंदर चस्का उठा और मैंने लंड को अंकल के मुंह में देकर धक्का पेल शुरु कर दी। लंड अंकल के दांतों के बीच से तालू तक पूरा घुसने लगा और मैं मुंह को चोदने लगा। एक मिनट में ही लंड ने अकड़ कर अंकल के मुंह में वीर्यपात करते हुए मेरे शरीर में झटके देना शुरू कर दिया और मैंने सारा माल अंकल के मुंह में छोड़ दिया जिसे अंकल अंदर ही अंदर पी गए।

मेरा शरीर पसीना-पसीना हो चुका था। मैंने जल्दी से अंडवियर ऊपर करते हुए पैंट को ऊपर किया और पैंट की फ्लाई में शर्ट को सेट करके हुक बंद कर लिया। अंकल नीचे ही बैठे हुए मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे।

मैंने धीरे से दरवाज़ा खोला और एकदम से बाहर निकल कर यूरीनल से बाहर आ गया। मैंने मुड़कर देखा तो अंकल निकलकर दूसरी तरफ चले गए। लंड से वीर्य निकलने के बाद अब कुछ ज्यादा ही थकान हो रही थी। अब मन कर रहा था कि बस बिस्तर मिल जाए तो उस पर गिर जाऊं।

मैं वहीं पास पड़े हुए बैंच पर बैठ गया, फिर बैग का तकिया बनाया और लेट गया। लेकिन मच्छरों ने टिकने नहीं दिया। सिर भी दर्द कर रहा था। तभी अनाउंसमेंट हुई कि ट्रेन कुछ ही देर में प्लेटफॉर्म पर पहुंचने वाली है। मेरी जान में जान आई और 5 मिनट बाद ट्रेन प्लेटफॉर्म पर पहुंच गई। टाइम पूछा तो रात के 9 बजने वाले थे शायद।

ट्रेन में भीड़ भी ज्यादा नहीं थी। सबसे पीछे वाले डिब्बे में घुसा और ऊपर बने बिना गद्दे वाले बर्थ पर जाकर लेट गया। ट्रेन चली और सब सेट हो गए। मेरे सामने वाले बर्थ पर एक और लड़का लेटा हुआ था। देखने में तो ज्यादा अच्छा नहीं था लेकिन शरीर से मस्त था। मैंने उसकी तरफ देख ही रहा था कि वो करवट बदल कर लेट गया, अब उसकी गांड मेरी तरफ थी। लेकिन सिर दर्द होने के कारण अब मैं कुछ और करने के मूड में नहीं था। कुछ देर बाद मुझे भी नींद आ गई और जब आंख खुली तो ट्रेन एक स्टेशन पर रूकी हुई थी। मैंने नीचे वालों से पूछा तो उन्होंने बताया- सोनीपत। मैं झट से उठा और बैग लेकर नीचे कूद गया।

डिब्बे से बाहर निकलकर प्लेटफॉर्म की घड़ी में देखा तो रात के 10 बज चुके थे। प्लेटफॉर्म निर्जन हो चुका था लेकिन काले आसमान में तारों की भीड़ जुट गई थी। बाहर सड़क पर आया तो इक्का दुक्का गाड़ियां ही चलती दिखाई दीं लेकिन ट्रकों का ज़ोर हो गया था। सोचा गांव की तरफ जा रहे किसी ट्रक वाले से लिफ्ट ले लूं क्योंकि इस वक्त गांव के लिए साधन मिलना मुश्किल था। रात को ट्रक वालों का भी भरोसा नहीं रहता क्योंकि ये लोग भी अक्सर पीकर ही चलाते हैं। कहीं ठोक दिया तो लेने के देने न पड़ जाएँ।

सोचा कि किसी गाड़ी वाले से ही लिफ्ट ले लूँ। वैसे भी रात बढ़ती जा रही है और सुबह ऑफिस टाइम पर पहुंचना है। हर 10-15 मिनट में मुश्किल से एक गाड़ी आ रही थी। कईयों को हाथ दिया लेकिन किसी ने नहीं रोका क्योंकि ज्यादातर लोग फैमिली वाले ही थे और जो कोई बगैर फैमिली था तो वो अपने यारों के साथ था। शायद दारू पार्टी भी चल रही हो। रात को हरियाणा में अक्सर गाड़ियों में ही दारू पार्टी चलती है। मन ही मन कहा- कोई तो रोक दो यार…

आधा घंटा हो गया लेकिन किसी ने लिफ्ट नहीं दी। अब सोचा कि जो होगा देखा जाएगा, मेरे पास रिस्क लेने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा था। गोहाना रोड की तरफ जाने वाले ट्रकों को हाथ देना शुरू किया मैंने। कई ट्रक गुजर गए लेकिन उन्होंने भी नहीं रोका।

फिर एक टैम्पो वाले को हाथ दिया तो उसने टैम्पो साइड में लगा दिया। मैं दौड़कर टैम्पो की तरफ भागा… उसने खिड़की खोल दी थी और मैं अंदर बैठ गया। देखने में कोई मजदूर नौजवान लग रहा था। मैंने उसको धन्यवाद बोला और उसने टैम्पो के क्लच से पैर हटा दिया।

मैं मन ही मन सोच रहा था कि लोकल लोगों से ज्यादा संवेदनशील दिल तो इनके सीने में है जबकि अक्सर होता ऐसा है कि लोकल लोग लिफ्ट दे देते हैं लेकिन शहरी लोग कभी लिफ्ट देने का कष्ट नहीं करते। उनको किसी की परेशानी से कोई इत्तेफाक नहीं रहता। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि शहर में चोरी डकैतियां और लूट-पाट की घटनाएँ ज्यादा होती हैं। यहां तो दिन में ही कोई लिफ्ट नहीं देता तो रात की बात तो सोचना ही बेकार है। खैर, समाज है… किसी की मानसिकता को बांधा नहीं जा सकता। और वैसे भी समय के साथ धारणाएँ भी बदल जाती हैं।

मैं अपने गाँव की तरफ बढ़ रहा था, टैम्पो वाले ने पूछा- कहां जाओगे भैया..? मैंने अपने गाँव का नाम बता दिया, उसने फिर पूछा- इतनी रात को कहां से आ रहे हो? मैंने कहा- काम से आ रहा हूं। उसके बाद उसने कुछ नहीं पूछा और सीधा टैम्पो चलाने लगा।

मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने एक बनियान और नीचे लुंगी पहन रखी थी। जो उसके घुटनों से ऊपर जांघों को भी आधा ही कवर कर पा रही थी। और जहां तक मेरा अंदाज़ा था उसकी जांघों पर फंसी अंडरवियर की लाइन भी मुझे दिखाई दे रही थी। शक्ल सूरत से मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन जब उसकी अधनंगी जांघों को देखा तो वासना के शांत हो चुके तालाब में कामना की मछली ने फिर से डुबक करके गोता लगाया और तालाब में कामनाओं की हल्की लहरें पैदा कर दीं जिनको इन्द्रियों का साथ मिलने से वो किनारे तक आते-आते काफी बड़ी हो रही थीं।

कंट्रोल तो बहुत करना चाहा लेकिन बार-बार नज़रें उसकी जांघों पर जा रही थीं। रात का समय था, सुनसान सड़क और टैम्पो में हम दोनों ही अकेले। लंड तो खड़ा होना ही था, सो हो गया। मैंने पूछा- तुम्हारी शादी हो गई है क्या? उसने कहा- हां भैया, मेरे तो 2 बच्चे भी हैं। उन्हीं के लिए तो ट्रक चला रहा हूं वरना अकेले इंसान को क्या ज़रूरत है दिन रात सड़कें काली करने की।

उसकी बातों में जिंदगी की गहराई छुपी हुई लग रही थी लेकिन इस वक्त मेरी बुद्धि पर उसकी अधनंगी जांघों ने हवस का पर्दा डाल दिया था। मैंने फिर बात छेड़ते हुए कहा- तो परिवार कहां पर रहता है? उसने कहा- बिहार में.. मैं समझ गया कि ये बिहारी बाबू है। वैसे भाषा से भी पता चल रहा था लेकिन उसके बताने के बाद कंफर्म हो गया।

ट्रेन में जाते हुए मैं बिहारियों (बिहार के मजदूर लोगों) को रेल की पटरियों पर शौच करते हुए रोज़ ही देखता था। उनके लंड जो लंबे और मोटे होते थे, लौकी की तरह लटके हुए दिखाई देते थे। उसकी लुंगी के भीतर अंडरवियर में बड़ी-बड़ी गोटियों पर पर पसरे मोटे लंड की तस्वीर बनाते दिमाग को देर नहीं लगी। सोच-सोचकर मेरा लंड भी तनता जा रहा था।

मैंने उससे पूछा- तो बीवी के बिना कैसे काम चलता है? वो मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरा दिया जैसे मुझसे शरमा रहा हो। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने फिर पूछा- बता ना यार.. शरमा क्यों रहा है? उसने कहा- भैया कभी मन करता है तो हाथ से हिला लेते हैं और क्या…

ये कहते ही मैंने उसकी जांघ के नंगे हिस्से पर हाथ रख दिया। उसने मेरे हाथ की तरफ देखा, फिर मेरे चेहरे की तरफ मुड़ा। उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई। थोड़ा घबराया और उचक कर बैठ गया। जैसे मेरा हाथ हटवाना चाह रहा हो लेकिन उसकी मजबूत जांघों को छूकर मेरे अंदर की कामाग्नि भड़क उठी थी।

उसको सहज करने के लिए मैंने बात-चीत आगे बढ़ाना जारी रखा और कहा- तो फिर तुम घर कितने दिन बाद जाते हो? उसने कहा- साल-छह महीने में एक बार… मैंने कहा- तब तक हाथ से ही काम चलाते हो क्या?

उसने हां में सिर हिला दिया लेकिन मुंह से कुछ नहीं बोला। मैंने एक और सवाल का तीर छोड़ा- रूम पर रहते होगे? उसने फिर से हां में सिर हिलाया। उसकी नज़रें सीधी रोड पर ही देख रही थीं। जबकि मेरी नज़रें अब उसकी लुंगी पर जम गई थीं। मेरे सवालों के साथ-साथ अब मेरा हाथ भी उसकी जांघ पर चलने लगा था। उसकी जांघें जो पहले एक दूसरे के करीब थीं अब धीरे-धीरे फैलना शुरू हो गई थीं। मैं समझ गया कि बात बन रही है। अगले सवाल में मैंने पूछा- तुम्हारे और साथी भी तो रहते होंगे तुम्हारे रूम पर… उसने कहा- हां हम 4 लोग रहते हैं।

अब मेरा फाइनल वार था… मैंने पूछा- तो कभी उनकी गांड ही चोद लिया करो… सुनकर उसने मेरी तरफ देखा और फिर से गर्दन सीधी कर ली। मेरे हाथ की हरकत उसकी जांघों पर जारी थी जिसे वो बार-बार नीचे नज़रें झुकाकर देखता हुआ टैम्पो चला रहा था। मैं उसके चेहरे के एक्सप्रेशन और जांघों की हरकत दोनों को आज़माते हुए आगे बढ़ रहा था।

अब मैंने कोई सवाल नहीं किया और बस जांघ सहलाना जारी रखा। मेरा हाथ उसकी लुंगी से बाहर निकल रही अंडरवियर की पट्टी को अब पीछे तक ले जाने की कोशिश कर रहा था। अगले कुछ पल में ही लुंगी के अंदर एक चीज़ ने फुदकना शुरू कर दिया। उस चीज़ का साइज़ लगभग 7-8 इंच के करीब लग रहा था। उत्तेजना तो मेरी भी चरम पर पहुंच चुकी थी लेकिन मैं बस मज़े ले रहा था उसके।

मैंने हाथ को थोड़ा और अंदर की तरफ बढ़ाया तो मेरी उंगलियां उसकी गोटियों को छूने लगीं। उसका लंड तन तनाककर लुंगी को बार-बार ऊपर उछाल रहा था… उसके उफनते लंड को देखकर अब मुझसे ही कंट्रोल नहीं हुआ और मैंने उसके लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया। आह्ह्ह… मोटा, लंबा और सख्त लंड लुंगी के ऊपर से ही पूरी फील दे रहा था।

मैंने उसकी लुंगी को जांघों से हटा दिया। अंडरवियर में बना तंबू मेरी आंखों के सामने था। बेशर्मों की तरह मैंने अब अंडरवियर के कट से अंदर हाथ डालकर उसके लंड को बाहर निकाल लिया। तभी उसने ब्रेक लगा दिए। मैंने सामने देखा तो पुलिस चैक पोस्ट के बैरीकेड लगे थे। वहीं से मेरे गांव की सीमा शुरू हो रही थी, उसने कहा- भैया आपका गांव आ गया। मैंने उसको देखा, वो अब मुझे शायद और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। उसने खुद ही खिड़की खोल दी और मेरे उतरने का इन्तजार करने लगा, उसने अपने खड़े हुए लंड को लुंगी से ढक लिया. मैं समझ गया वो उतरने के लिए कह रहा है।

मैं टैम्पो से नीचे उतर कर गांव में अंदर बढ़ गया.

कहानी जारी रहेगी. [email protected]

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000