सास विहीन घर की बहू की लघु आत्मकथा-4

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लेखिका: दिव्या रत्नाकर सम्पादिका एवं प्रेषक: तृष्णा लूथरा

मेरी गर्म स्टोरी के तीसरे भाग सास विहीन घर की बहू की लघु आत्मकथा-3 में आपने पढ़ा कि मेरी एक सहेली मुझे अपने प्रसव के समय क्या हुआ, उसके ससुर ने कैसे एक नर्स की भान्ति सेवा की, बता रही है. आप भी मेरी सखी के शब्दों में पढ़ें!

दोपहर को दो बजे के बाद जब मैं बाथरूम से वापिस आकर ससुर जी के पास गयी, तब उन्होंने मुझे खाने की मेज़ पर लेटने को कहा और बाथरूम में चले गए, वहां से वह एक मग में गर्म पानी तथा शेविंग का सामान लेकर आये. तब मैंने पूछा- डैडी, अब यह सब किस लिए लाये हैं? ससुर जी बोले- टांके काटने से पहले वहां के सभी बाल साफ़ करने पड़ेंगे, तभी तो टाँके ठीक से दिखने पर ही काट पाऊंगा।

मैंने कहा- क्या पाँच छह दिनों में बाल इतने बड़े हो गए होंगे जो उनमें टाँके भी छिप गए होंगे? ससुर जी ने झट से अपना फोन निकाल कर कल खींचे चित्र मुझे दिखाते हुए कहा- लो, खुद ही देख लो कितने बड़े हो गए हैं। अपनी योनि के चित्र देखकर मुझे बहुत लज्जा आई इसलिए मैंने अपनी आँखें बंद कर के लेट गयी।

ससुर जी ने तुरंत मेरे गाउन को कमर तक ऊँचा कर के मेरी टांगें फैला दी और उनके बीच में खड़े हो कर ब्रश से मेरे जघन-स्थल और योनि पर शेविंग क्रीम की झाग बनाने लगे। दो मिनटों में उन्होंने खूब झाग बना कर यथा स्थान पर फैलाई और रेजर से पहले जघन-स्थल के बाल साफ़ किये तथा उसके बाद योनि के दोनों तरफ एवं होंठों को पकड़ कर उनके ऊपर के और अंत में नीचे टाँके वाले क्षेत्र के।

जब सभी बाल साफ़ हो गए तब ससुर जी ने गर्म पाने में कुछ बूँदें डिटोल की डाली और उसमें रुई डुबो कर मेरी चमकते जघन-स्थल और योनि को साफ़ करके अपने फ़ोन पर उसके कुछ चित्र खींच लिये। उसके बाद उन्होंने मुझे हिलने के लिए बिल्कुल मना किया और नीचे झुक कर सर्जिकल कैंची से एक टांकें को काट कर उसका धागा बाहर खींचा। धागा खींचने से मुझे एकदम से पीड़ा हुई और मेरे मुंह से हल्की चीख निकल गयी. तब ससुर जी ने खड़े होकर मुझे देखा और बोले- बहू, इतनी दर्द तो सहनी पड़ेगी। अगर चीखोगी तो तुम्हारा बेटा जाग जायेगा और टाँके काटने का कार्यक्रम रद्द करना पड़ेगा।

मैंने उनकी बात सुनकर अपने हाथों को अपने मुंह पर रख लिए और आँखें बंद कर के स्थिर लेटी रही। ससुर जी ने फिर नीचे झुक एक और टाँके को सर्जिकल कैंची से काट कर धागा खींचा तब मुझे कुछ भी पता नहीं चला। जब तीसरा टांका काटने की बारी आई तब उन्होंने अपने एक हाथ की उँगलियों और अंगूठे से मेरी योनि को फैला कर उसे काट कर धागा खींचा तो एक बार फिर दर्द हुई।

आखिरी टाँके को काटने से पहले उन्होंने अपने हाथों से मेरी योनि और टांकों वाली जगह की थोड़ा मसला और उसे फैला कर उसे काट दिया। आखिरी टांकें के धागे को खींचने से पहले उन्होंने गर्म पानी से भीगी रुई को योनि के नीचे वाले भाग में रख कर उसे खींचा तो मुझे बहुत दर्द हुई लेकिन मैंने होंठ भींच कर उसे दबा दिया।

सभी टाँके काटने के बाद ससुर जी ने गर्म पानी से भीगी रुई के मेरी योनि के अंदर डाल कर अच्छे से साफ़ किया तथा योनि के होंठों को फैला कर भगान्कुर और उसके आसपास के क्षेत्र को साफ़ किया। इतना सब करने के बाद उन्होंने फिर डिटोल वाले पानी से गीली करी हुई रुई से मेरे पूरे जघन-स्थल और योनि को पौंछ कर अपने फ़ोन से कुछ चित्र लेने के पश्चात उस पर सैनिटरी पैड लगा दिया। जब ससुर जी मेरी टांगों के बीच से बाहर निकले तब मैं उन्हें सीधी करके उठी और सीधा अपने बिस्तर पर जा कर लेट गयी।

एक घंटे आराम करने के बाद जब मेरा बेटा रोया तब मैं गाउन के ऊपर के चार बटन खोल कर अपने स्तनों की बाहर निकाल कर उसे दूध पिलाने लगी. तभी ससुर जी आये और मेरे स्तनों की ओर देखते हुए और बोले- बहू, अगले दो तीन दिन जब भी बाथरूम होकर या नहाकर आओ तो टांकों वाली जगह पर मुझसे मरहम ज़रूर लगवा लेना।

क्योंकि मेरी योनि से रक्त प्रवाह तेरह दिनों तक होता रहा था इसलिए हर रोज़ चार से पाँच बार बाथरूम से वापिस आने पर ससुर जी से योनि पर मरहम लगवा कर सैनिटरी पैड पहनने में मुझे बहुत परेशानी महसूस होती थी क्योंकि वह हमेशा मुझे लिटा कर मेरे गाउन को कमर से ऊपर कर देते थे और डिटोल के पानी में भिगोई हुई रुई से योनि के बाहर एवं अन्दर तथा भगान्कुर को रगड़ साफ़ करने पश्चात ही मरहम लगाते थे।

कई बार तो वह पानी के सूखने की प्रतीक्षा में काफी देर तक नग्न योनि को निहारते रहते थी अथवा फ़ोन पर उसकी फोटो खींचते रहते। मेरे अनुमान के अनुसार मेरे प्रसव के दिन से लेकर उन तेरह दिनों में मेरे ससुर मेरी योनि की लगभग सौ से अधिक फोटो तो खींच चुके थे।

तेरह दिनों बीतने के बाद जब मेरी योनि में से रक्त स्राव बंद हो गया तब मैं और बेटा दोनों लेडी डॉक्टर के पास जांच कराने गए। वहाँ पर डॉक्टर ने मेरे ससुर जी के सामने ही मुझे पूर्ण नग्न करके मेरे स्तनों को दबा कर तथा मेरी योनि को फैला कर भरपूर जांच करने उपरान्त मुझे स्वस्थ घोषित कर दिया।

उस दिन के बाद मेरा और ससुर जी का आमना-सामना कम हो गया क्योंकि मैं अधिकतर अपने को बेटे और घर के काम में व्यस्त रखती तथा ससुर जी का हर काम नौकरानी ही करती।

एक माह बीतने पर मेरे सामने यह समस्या आ गयी कि मेरे स्तनों में से जितना दूध बेटा पीता था उससे बहुत अधिक मात्रा में दूध उनमें बनने लग गया था। ज़रूरत से ज्यादा दूध बनने के कारण जब स्तन क्षमता से अधिक भर जाते थे तब वे फूल कर बहुत बड़े हो जाते थे तथा उनमें तनाव आ जाने की वजह से मुझे दर्द होने लगता था। लेडी डॉक्टर से पूछने पर उनसे चूचुकों को दबा कर उनमें से अतिरिक्त दूध निकाल देने की सलाह दी लेकिन मैं वह ढंग से कर नहीं सकी।

मेरे कहने पर नौकरानी ने भी मेरी चूचुकों की दबा कर दूध निकलने की कोशिश करी लेकिन तब भी दूध तो बहुत कम निकला लेकिन मुझे पीड़ा अधिक झेलनी पड़ी। सबसे विस्मय की बात यह थी कि जब मैं बेटे को स्तनपान कराती तब मुझे कोई कष्ट नहीं होता था और दूध अपने आप ही निकलने लगता था। कई बार तो जब बेटा एक स्तन से दूध पी रहा होता था तब दूसरे स्तन में से अपने आप ही दूध की धारा बहने लगती थी।

जब मैंने यह बात लेडी डॉक्टर को बतायी तो उसने कहा- यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसका उपाय सिर्फ अतिरिक्त दूध को निकाल देना ही है। मेरे से बात करने के बाद लेडी डॉक्टर ने मेरी इस समस्या का उल्लेख ससुर जी से भी कर दिया क्योंकि उसी शाम क्लिनिक बंद कर के घर आते ही ससुर जी मुझे आवाज़ लगायी। उस समय अपने कमरे में बेटे को स्तनपान करा रही थी इसलिए उनकी आवाज़ सुन कर मैंने कहा- डैडी, मैं बेटे को दूध पिला रही हूँ।

मेरा उत्तर सुनने के कुछ देर बाद ससुर जी मेरे कमरे में आकर बोले- बहू, अगर तुम्हारी कोई समस्या है तो तुम मुझे क्यों नहीं बतायी? मुझे आज लेडी डॉक्टर ने बताया है कि तुम्हें स्तनों में तकलीफ है। क्या तकलीफ है और कब से है यह बताओ। अगर तकलीफ गंभीर है तो हम किसी विशेषज्ञ से परामर्श कर लेते हैं। अब तो तुम्हें अपनी कोई भी बात मुझे बताने में संकोच नहीं करना चाहिए।

ससुर जी की बात सुन कर मैंने सोचा कि ये उचित ही कह रहे हैं क्योंकि प्रसव के समय तो उन्होंने मेरा वह सब कुछ देख लिया था जिसे मैंने अपने माता, पिता और पति के अलावा सबसे परदे में रखा था। मैंने धीरे से कहा- डैडी, जितना दूध बेटा पीता है उससे कहीं अधिक दूध मेरे स्तनों में बनता है जिस कारण मेरे स्तन फूल जाते हैं और उनमें बहुत दर्द होने लगता है। ससुर जी बोले- तुम बेटे को दूध पिलाने के बाद उनमें बचा अतिरिक्त दूध निकाल क्यों नहीं देती? मैंने उत्तर दिया- मैंने लेडी डॉक्टर के कहे अनुसार चूचुकों को दबा कर दूध निकालने की कोशिश कई बार करी और नौकरानी से कह कर भी करवाई। लेकिन पन्द्रह मिनट तक दबाने के बाद भी बिल्कुल ना के बराबर दूध निकला और चूचुक भी लाल होगे और उनमें भी पीड़ा होने लगी थी।

मेरा उत्तर सुनने के बाद उन्होंने पूछा- क्या अभी भी पीड़ा हो रही है? मैंने कहा- अभी चूचुकों में तो कोई पीड़ा नहीं हो रही है। लेकिन जब दोनों स्तनों में अधिक दूध भर जाता है तब उनमें बहुत तनाव और दर्द भी महसूस होता है।

मेरी बात सुन कर वे थोड़ी देर चुप बैठे रहे लेकिन उनके चेहरे से लगता था कि वे कुछ कहना चाहते थे परन्तु कहने से हिचकिचा रहे थे। इतने में नौकरानी शायद ससुर जी के कहने पर उनके और मेरे लिए एक ट्रे में चाय नाश्ता ले कर आई और बिस्तर के पास रखी मेज़ पर रख कर चली गयी।

ससुर जी ने उस ट्रे में से चाय उठाकर पीते हुए कहा- बहू, मुझे नहीं पता कि मेरी यह बात तुम्हें कैसी लगे लेकिन अगर तुम सहमत हो तो क्या मैं एक बार तुम्हारी चूचुक दबा कर उसमें से दूध निकाल कर देख सकता हूँ? मैंने उनकी बात सुन कर सोचा कि मेरी सास नहीं होने के कारण अभी तक तो ससुर जी ने ही दोनों ज़िम्मेदारी निभाई है और शायद उसी हक से वे यह कह रहे हैं।

क्योंकि मुझे बहुत पीड़ा होती थी और मैं उससे शीघ्र राहत पाना चाहती थी इसलिए कह दिया- आप भी कोशिश कर के देख लीजिये, शायद सफलता मिल जाए। लेकिन अभी नहीं नौकरानी के अपने घर जाने के बाद। चाय पीकर ससुर जी ने अपने कमरे की ओर जाते हुए कहा- ठीक है, तुम बेटे को दूध पिला कर सुलाने के बाद मुझे बुला लेना या फिर तुम खुद ही मेरे कमरे में आ जाना।

ससुर जी के जाने बाद मैं सोचने लगी कि जो हो रहा है या फिर जो मैं करने जा रही हूँ वह ठीक है या गलत है लेकिन जब किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची तब आँखें बंद कर के अपने बिस्तर पर लेट गयी।

रात का खाना खाने के बाद बेटे को दूध पिला कर सुलाने में मुझे दस बज गए तब मैं ससुर जी के कमरे यह देखने के लिए गयी कि वे जाग रहे थे या सो गए थे। मैंने धीरे से अन्दर झाँक के देखा तो उन्हें पढ़ाई की मेज़ पर बैठे कोई किताब पढ़ते हुए देख कर सोच रही थी कि उन्हें परेशान करूँ या नहीं कि इतने में उन्होंने बिना मुड़े ही कहा- बहू, बेझिझक ही अन्दर आ जाओ, मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था। अगर तुम चाहती हो तो मैं तुम्हारे कमरे में आ जाता हूँ?

मैंने धीरे से कहा- उधर कमरे में बेटा अकेला सो रहा है और अगर जाग कर रोने लगेगा मुझे पता नहीं चलेगा। मेरी बात सुनते ही उन्होंने किताब बंद कर के उठते हुए कहा- मैं तुम्हारी बात समझ गया। तुम चलो, मैं तुम्हारे कमरे में ही आता हूँ।

मैं उलटे पाँव अपने कमरे में आई और बिस्तर पर बैठ कर अपने गाउन के ऊपर से ही स्तनों को दबा कर उनमें हो रही पीड़ा को कम करने की कोशिश करने लगी। दो मिनट के बाद ससुर जी कमरे में आये और मुझे अपने स्तनों को दबाते देख कर बोले- बहू, बहुत दर्द है क्या? तुम चिंता मत करो मैं कुछ ही देर में तुम्हारी सब पीड़ा दूर कर दूंगा।

उसके बाद वह मेरे पास आ कर बैठ गए और एक हाथ को मेरे कन्धों पर रखा और दूसरे हाथ से मेरे गाउन के बटन खोलने लगे। चार बटन खोलने के बाद वह रुके और बोले- क्या तुमने पैंटी पहनी हुई है? मैंने दबी आवाज़ में कहा- जी हाँ।

मेरा उत्तर सुन कर वह बोले- तो फिर तुम यह गाउन उतार ही दो, नहीं तो यह बार बार बीच में आता रहेगा और तुम्हें इसे ठीक करने में दिक्कत होती रहेगी।” इससे पहले कि मैं कोई उत्तर देती वह उठ खड़े हुए और मेरे गाउन को पकड़ कर ऊँचा करके उतारने लगे। गाउन उतारने में मैंने उन्हें सहयोग दिया और कुछ ही क्षणों में मैं अपने दोनों स्तनों को हाथों से छिपाए उनके सामने सिर्फ पैंटी में बैठी थी।

ससुर जी ने मेरी ओर मुस्कराते हुए देखा और मेरे दोनों हाथों को स्तनों के ऊपर से हटाते हुए मुझे बिस्तर पर बिठा कर पूछा- किस स्तन में अधिक पीड़ा हो रही है? मैंने बिना बोले अपने हाथ से बाएं स्तन की ओर संकेत किया तो वह तुरंत बिस्तर पर लेटते हुए अपना सिर को मेरी गोदी में इस तरह रखा कि उनका मुंह मेरे बाए स्तन के नीचे हो। फिर उन्होंने कहा- अब इस स्तन को अपने हाथ में पकड़े हुए इसकी चूचुक मेरे मुंह में दो जैसे बेटे के मुंह में देती हो।

उस समय पीड़ा के कारण मैं सभी शर्म और संकोच भूल गयी थी और एक कठपुतली की तरह जैसे ससुर जी ने कहा वैसे उनके मुंह में अपने स्तन को डाल दिया। ससुर जी ने मेरी चूचुक को अपने होंठों में लेकर पहले उस पर जीभ से सहलाया और फिर उसे होंठों में दबा कर चूसने लगे।

कुछ क्षण के लिए तो मुझे बहुत पीड़ा हुई और मैं अपनी चूचुक को उनके मुंह से बाहर खींचने की सोच ही रही थी कि तभी उसमें से दूध की धारा ससुर जी के मुंह में जाने लगी। जैसे ही मेरे स्तन से दूध निकला वैसे ही उसमें तनाव एवं पीड़ा में कमी आने लगी और मैं बड़े ही सहज भाव से ससुर जी को अपना दूध पिलाने लगी।

दस मिनट के बाद जब बाएं स्तन में दूध समाप्त हो गया तब ससुर जी ने अपने सिर को मेरे दायें स्तन के नीचे करने के लिए अपनी करवट बदल ली। जैसे ही उनका सिर मेरे दायें स्तन के नीचे आया मैंने तुरंत अपने स्तन की चूचुक उनके मुंह में डाल दी।

ससुर जी ने पहले की तरह मेरी चूचुक को अपने होंठों में ले कर उसे जीभ से सहलाया और फिर उसे होंठों में दबा कर चूसने लगे। इस बार भी कुछ ही क्षणों के बाद मेरे दायें स्तन में से भी दूध की धारा ससुर जी के मुंह में जाने लगी जिससे उसमें भी तनाव एवं पीड़ा में कमी आने लगी।

दस मिनट के बाद जब दायें वाले स्तन का दूध भी समाप्त हो गया तब ससुर जी उठ कर अपने कमरे में चले गए और मैं दोनों स्तनों में दर्द एवं तनाव से बहुत राहत महसूस करने लगी। अगली दस रातें इसी प्रकार ससुर जी सोने से पहले मेरे कमरे में आते और मुझे अर्धनग्न करके मेरी गोदी में अपना सिर रखकर स्तनपान करते और चले जाते।

इन दस दिनों में मैंने महसूस किया कि ससुर जी को दूध पिलाते समय जब तक मैं उनके सिर पर हाथ नहीं फेरती थी तब तक मेरे स्तन में से दूध नहीं निकलता था। एक बार दूध निकलना शुरू हो जाता था तब वह स्तन में से दूध समाप्त होने तक निकलता ही रहता था चाहे उनके सिर पर हाथ रखूं या न रखूं। उन दस रात मुझे बहुत ही अच्छी नींद आती रही तथा सुबह जब उठती तब अपने को अत्यंत तरोताजा भी महसूस करती थी।

दस दिनों के बाद जब बेटे की खुराक बढ़ गयी और मुझे स्तनों में तनाव एवं पीड़ा महसूस होनी बंद हो गयी तब मैंने ससुर जी को स्तनपान कराना बंद कर दिया। उसके बाद मैंने घर के और काम भी संभाल लिए तथा कुछ ही दिनों में सब कुछ पहले जैसा सामान्य चलने लगा।

प्रसव के सैंतीस दिनों के बाद जब मुझे फिर से माहवारी आई उसी दिन मेरे पति ने बताया कि उन्हें एक माह की छुट्टी मिल गयी है और वह अगले सप्ताह आ रहे हैं। यह समाचार सुन कर मेरा मन ख़ुशी से प्रफुल्लित हो उठा और शीघ्र ही पिया मिलन की आस में मेरे पाँव थिरकने लगे।

पाँच दिनों के बाद जब माहवारी बंद हो गयी तब मैंने योनि को साबुन मल कर बहुत ही अच्छे से धोया और फिर उस पर क्रीम लगा कर मालिश भी कर दी। दो दिनों के बाद पति के आने पर अत्यंत हर्षोल्लास से उनका स्वागत किया और उनकी अमानत यानि उनका बेटा उनके गोद में देते हुए उन्हें चूम कर अपना प्यार व्यक्त किया।

उस रात मैं और पति सिर्फ कुल तीन घंटे ही सोये क्योंकि बाकी का समय हम दोनों एक दूसरे की सुनते सुनाते रहे तथा सम्भोग करते रहे। मेरी प्यासी योनि को एक वर्ष के बाद लिंग मिला था जिसे वह पूरा निचोड़ना चाहती थी लेकिन उस रात तीन बार संसर्ग करने के उपरांत भी वह अतृप्त ही रही।

दिन में ससुर जी के क्लिनिक जाने के बाद भी मैंने और पति ने दो बार सम्भोग किया तब जाकर मेरी योनि की कुछ प्यास बुझी।

पति के साथ दिन रात सम्भोग करते हुए तीन सप्ताह कैसे बीत गए पता ही नहीं चला लेकिन चौथे सप्ताह में जब माहवारी आ गयी तब मन बहुत खिन्न हो गया। लेकिन पति के वापिस जाने से तीन दिन पहले जब माहवारी बंद हुई तब उन तीन दिनों में हम दोनों पूरा पूरा दिन यौन क्रीड़ा में लिप्त रहते थे, यहाँ तक कि जिस समय पति तैयार हो कर वापिस जाने वाले थे तब भी मैंने उन्हें जाने से पहले मेरे साथ सम्भोग करने का आग्रह किया था। वे भी शायद यही चाहते थे इसलिए मुझे मना नहीं कर सके और मेरे साथ संसर्ग करने लगे, तभी ससुर जी उन्हें चलने के लिए आवाज़ लगायी।

मैंने जब आवाज़ सुनी और दरवाज़े की ओर देखा तो वहाँ ससुर जी पर्दा हटा कर हमें यौन क्रीड़ा में मग्न देख रहे थे। जब मैंने पति से संसर्ग बंद करने के लिए कहने ही वाली थी तब उन्होंने अपने होंठों पर उंगली रख मुझे चुप रहने का संकेत किया और मुस्कराते हुए अपने हाथों से संसर्ग जारी रखने का इशारा करके वहां से चुपचाप चले गए।

एक सास विहीन घर की बहू होने के कारण ही मेरे अभी तक के जीवन के सब से अधिक लज्जाशील, संकोचशील एवं असहज पचहतर दिन थे जिनका उल्लेख मैंने उपरोक्त सूक्ष्म आत्मकथा में किया है। अगर मेरी सासु माँ जीवित होती तब शायद उस समय ऐसे हालत ही पैदा नहीं होते जिससे विवश हो कर मुझे समझौता करना पड़ता। लेकिन फिर भी उन विषम दिनों में जिस तरह ससुर जी ने मेरे साथ एक सास के जैसा धैर्यपूर्ण एवं सहनशीलता तथा कर्तव्य प्रणयता का व्यवहार किया उसके लिए मैं उनकी अत्यंत आभारी हूँ।

मैं तृष्णा दीदी का भी अत्यंत आभार व्यक्त करना चाहूंगी जिन्होंने मुझे उपरोक्त लज्जाशील, संकोचशील एवं असहज लघु आत्मकथा को लिखने के लिए प्रेरित किया। तृष्णा दीदी द्वारा मुझे समय समय पर दिशा निर्देश देते हुए इस रचना को सम्पादित करके अन्तर्वासना पर प्रकाशन हेतु प्रेषित करने के लिए भी बहुत धन्यवाद व्यक्त करना चाहूंगी।


मुझे आशा है कि अन्तर्वासना की पाठिकाओं एवं पाठकों को श्रीमती दिव्या रत्नाकर की उपरोक्त पचहतर दिनों की लघु आत्मकथा पढ़ कर अवश्य आनंद आया होगा। रचना के पढ़ने के उपरान्त अगर आपकी ओर से इसके प्रति कोई विचार या टिप्पणी हो तो आप उसे मेरी ई-मेल आई डी [email protected] पर अग्रसर कर सकते हैं।

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