बहूरानी के मायके में चुदाई-3

“हां हां वही पापा … नाम कोई भी ले लो इसका. अब जल्दी से मिलवा दो इसे मेरी पिंकी से … टाइम कम है!” “अदिति मेरी जान, लंड को लंड ही कहो न और तुम्हारी पिंकी नहीं चूत कहते हैं इसे!” “धत्त, मैं नहीं कहती ऐसे गंदे शब्द!” बहू ने नखरे दिखाए. “प्लीज मान जा न मेरी गुड़िया रानी!” मैंने बहू के होंठ चूमते हुए कहा. “ऊं हूं” वो मुस्कुराते हुए गुनगुनाई.

“अच्छा ठीक है मत बोलो. मैं भी देखता हूं कैसी नहीं बोलती. अब तुम्हें ये लंड तभी मिलेगा जब तुम लंड लंड चिल्लाओगी और कहोगी कि पापा जी मेरी चूत मारो अपने लंड से!” मैंने बहू को चैलेन्ज दिया. “हां हां ठीक है देख लेंगे हम भी. मैं तो कभी न बोलूं ऐसी बात!” बहू भी पूरे आत्मविश्वास से बोली.

तो मैंने बहू के मम्में फिर से पकड़ के उन्हें कस के दबाना शुरू किया और उनका पेट चूमता हुआ नाभि में जीभ घुमाने लगा. फिर मैं बैठ गया और बहू के तलवे चाटने लगा और पांव की उंगलियाँ अंगूठा सब चूसने लगा. बहू बेचैनी से अपना सिर दायें बाएं घुमाने लगी. कुछ देर यूं ही पांव चूमने के बाद मैंने उसकी पिंडलियां चूम डालीं और घाघरे को थोड़ा सा घुटनों के ऊपर कर, उनके दोनों चूचुक चिकोटी में भर कर उनकी चिकनी जांघें चाटने लगा.

बस यही मेरी बहूरानी का वीक पॉइंट है. चूचुक दबाते हुए उसकी जांघें चाटते ही बहू की कामाग्नि भड़क उठती है और उनकी चूत में रस की बाढ़ सी आ जाती है; यह राज मैंने उसे कई कई बार चोद कर जाना. अतः मैं उसकी दोनों नंगी जांघें किसी चटोरे की तरह लप लप करते हुए चाटने लगा.

जल्दी ही बहूरानी अधीर हो उठी और अपने पांव एक दूसरे पर लपेटने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैं जब उन्हें ऐसा करने दूं तब न! “मत सताइए पापा जी, तरस खाइए मुझ पर!” बहूरानी ने जैसे आर्तनाद किया. “तो फिर बोलो जो मैंने कहा था?” “न नहीं … बिल्कुल नहीं बोल सकती वो शब्द मैं!” वो कमजोर सी आवाज में बोली.

फिर मैंने उसका घाघरा सामने से उठा कर उसके पेट पर पलट दिया. ये क्या … बहू ने पैंटी तो पहनी ही नहीं थी तो उसकी रसीली नंगी चूत मेरे सामने थी. उसकी चूत नंगी करते ही बहूरानी का चेहरा लाज से लाल पड़ गया और उसने अपना मुंह अपनी हथेलियों से छिपा लिया. हां अपनी चूत छिपाने की उन्होंने कोई कोशिश नहीं की.

मैंने बहू की चूत को मुग्ध भाव से निहारा; बहूरानी की चूत के दर्शन मुझे सदा से ही अत्यंत प्रिय रहे हैं. मैंने भाव विभोर होकर उसकी चूत को चूम लिया और धीरे से चूत के पट खोल कर इसकी भगनासा और भगान्कुर को झुक कर चूम लिया और जीभ से छेड़ने लगा. बहूरानी की बुर की वो विशिष्ट गंध मेरे भीतर समा गयी और उनके मुंह से एक गहरी निःश्वास निकल गयी.

तीन चार दिन पहले जब हम लोग बैंगलोर से साथ चले थे तो बहू की चूत एकदम चकाचक सफाचट क्लीन शेव्ड थी पर आज चूत के चहुँ ओर नाखून के बराबर झांटें उग आयीं थीं. हल्की हल्की झांटों वाली चूत का भी एक विशिष्ट सौन्दर्य होता है जैसे हमारे सिर के केश हमारे चेहरे को सुन्दरता प्रदान करते हैं, ठीक वैसे ही छोटी छोटी झांटों वाली चूत भी मुझे अत्यंत मनोरम लगती है देखने और चोदने में.

अब मैंने पूरे जोश के साथ चूत को अच्छे से बाहर से चाटा, फिर इसकी फांकें खोल कर भीतर से चाटना शुरू किया साथ साथ अनारदाने को दांतों से हल्के हल्के चूसने और कुतरने लगा तो बहूरानी के जिस्म में जैसे भूकम्प आ गया, उसका पूरा बदन थरथरा उठा, उसने अपना एक पैर मोड़ कर मेरा सर अपनी चूत में कस के दबा दिया और मेरे सिर के बाल अपनी मुट्ठियों में भर लिए; चूतरस का नमकीन स्वाद मेरे मुंह में घुलने लगा. मैंने ऐसे ही कोई एक मिनट तक उसे चाटा होगा कि उसकी कमर किसी खिलौने की तरह अपने आप उछलने लगी जैसे उसे कोई दौरा पड़ा हो और उसके मुंह से अत्यंत कामुक और उत्तेजना पूर्ण कराहें निकलने लगी- पापाऽऽ जी ईऽऽ जल्दी जल्दी चाटो!

बस तभी मैं उनके ऊपर से हट गया. “नहींऽऽपापा जी …” बहूरानी के मुंह से निकला और वो मुझे फिर से अपने ऊपर लिपटाने लगी. लेकिन मैं उठ कर खड़ा हो गया और अपने सारे कपड़े उतार के फेंक दिये; मेरा लंड आजाद होकर बहू के सामने अपना सिर उठा के तन गया. बहूरानी झट से उठीं और मेरा लंड पकड़ कर अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी, इसकी चमड़ी पीछे कर फूला हुआ सुपारा निकाल कर जीभ से चाटने लगी और फिर उसे गप्प से मुंह में भर लिया और चाकलेट की तरह चूसने लगी.

“पापा जी… अब जल्दी से कर दो प्लीज!” बहूरानी ने लंड मुंह से बाहर निकाल कर अपनी नजर ऊपर उठा कर कहा.

“क्या कर दूं मेरी गुड़िया रानी … बोलो?” मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा और अपना लंड फिर से उसके मुंह में दे दिया और दो तीन धक्के लगा दिए. “ओफ्फो … पापाजी … आप भी न, चलो मैं हारी और आप जीते. अच्छा अब आपका लंड मेरी चूत में घुसा दो और चोद डालो अपनी बहू रानी को. अब तो खुश न?” बहूरानी लंड मुंह से बाहर निकाल कर अत्यंत कामुक स्वर में बोलीं और पीछे हाथ लेजाकर अपनी चोली की डोरियों की गांठ खोल कर चोली उतार फेंकी और घाघरा भी निकाल दिया और मादरजात नंगी होकर मेरे सामने बिछ गयी, अपने दोनों पैर ऊपर की ओर मोड़ लिए और अपनी चूत की फांकें अपने हाथों से पूरी तरह से खोल दी.

उहकी चूत के लघु भगोष्ठ अभी भी आपस में चिपके हुए नजर आने लगे थे जैसे नो एन्ट्री का साइन हो.

बहू की साढ़े पांच फीट की गदराई नंगी जवानी मेरे सामने बिछी थी; उसने अपनी चूत की फांकें अपने दोनों हाथों की उंगलियों से खूब चौड़ी खोल रखीं थीं; उसके मम्में किसी सपोर्ट के बगैर तन के खड़े थे और निप्पल फूल कर छोटे बेर के जैसे हो रहे थे. उसके बाल खुल के बिखर गये थे और उसका सुन्दर गुलाबी मुख काले बालों के बीच जैसे पूनम का चन्द्रमा हो, उसकी भरी भरी पुष्ट जंघाओं के जोड़ पर मध्य में उसकी फूली हुई चूत जिसे वो दोनों हाथों से खोले हुए मेरी ओर लाज भरी आंखों से मन्द मन्द मुस्कान सहित देख रही थी.

मैं कुछ देर उनके इस अत्यंत कामुक रति-रूप का रसास्वादन करता रहा. मेरी आंखें बहूरानी की ऐसी रूपराशि के दर्शन कर शीतल हो गयीं, तृप्त हो गयीं. स्वर्ग में भी क्या ऐसा ही सुख और आनन्द मेनका, रम्भा, उर्वशी जैसी अप्सराएं रतिकाल में देती होंगी?

“क्या देख रहे हो पापा जी, पचासों बार तो देख चुके हो मुझे और इस चूत को पहले भी. आपकी इकलौती बहू आपके सामने पूरी नंगी होकर, अपनी चूत अपने हाथों से पसार कर बेशर्मी से लेटी है; अब आ भी जाओ और चोद और डालो अपनी अदिति डार्लिंग को … प्यास बुझा दो मेरी मेरे राजा!” बहूरानी तड़पती सी बोली. उसकी आंखें वासना और चुदास से सुर्ख गुलाबी हो चलीं थीं.

मैंने लंड को बहूरानी की चूत के मुहाने पर टिकाया और उनकी आंखों में झाँकने लगा. “अब और मत देर लगाओ पापा. मैंने आपकी बात मान ली न … देखो आठ बजने वाले हैं. कोई भी कभी भी आ सकता है!” बहूरानी जल्दबाजी से बोली. उसकी बात भी ठीक थी.

“अभी लो मेरी जान … मेरी प्यारी प्यारी गुड़िया. तेरे ही लिए तो खड़ा है ये!” मैं बोला और अपना फनफनाता लंड अपनी कुलवधू की चूत के मुहाने पर रख कर घिसने लगा. जिससे उनके लघु भगोष्ट स्वतः ही खुल गये और स्वर्ग का द्वार दिखने लगा. “पापा जीऽऽस्स्स्स स्स्स्स बस अब घुसेड़ भी दो ना, चोदो जल्दी ई …ऽऽ से मुझे!” “हां … ये लो बहू अपने ससुर का लंड अपनी चूत में … संभालो इसे!” मैंने कहा और अपने दांत भींच कर, पूरी ताकत से लंड को उनकी बुर में धकेल दिया. मेरा लंड उसकी चूत की मांसपेशियों के बंधन ढीले करता हुआ पूरी गहराई तक घुस गया और मेरी झांटें बहूरानी की झांटों से जा मिलीं.

“हाय रामजी, मर गयी रे … पापा… धीरे … आराम से क्यों नहीं घुसाते आप … आह… मम्मीं … ओ माँ ऽऽ.. मर गयी … बचा लो आज तो!” बहूरानी तड़प कर बोली और मुझे परे धकेलने लगी. पर मैंने उनकी दोनों कलाइयां कस के पकड़ीं और अपने लंड को जरा सा पीछे खींच के फिर से पूरे दम से बहू की चूत में पहना दिया.

इस बार उन्होंने अपना मंगलसूत्र अपने दांतों के बीच दबा लिया और बेड की चादर अपनी मुट्ठियों में कस के पकड़ ली और दांत भींच लिए. इस तरह बहू की चूत में अपने लंड को अच्छे से फिट करके मैं उसी के ऊपर लेट के सुस्ताने लगा. “अब कैसा लग रहा है बहू?” मैंने कुछ देर बाद बहूरानी के बालों में प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा.

“मार डालो आप तो मुझे ऐसे ही पेल के आज … न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. सारी जान एक बार में ही निकाल लो आप तो!” वो रुआंसे स्वर में बोली. “अदिति बेटा, मेरा बांस तुम्हारी बांसुरी में हमेशा बजेगा जब तक दम में दम है; तू ऐसे क्यों बोलती है?” मैं उसे चूमते हुए पुचकारा. “रहने दो पापा, धीरे से नहीं घुसा सकते क्या? बस आपको तो जरूरी है एकदम से आक्रमण कर देना. चाहे कोई मरे या जिये आपकी बला से!” “ऐसे नहीं न कहते मेरी जान … अच्छा चलो मेरी सॉरी; आगे से बड़े प्यार से एंटर करूंगा. बस?” मैंने बहू को सांत्वना दी. “हम्म्म्म … ठीक है पापा जी. बट आगे से याद रखना अपनी ये वाली प्रॉमिस?” “ओके बेटा जी … पक्का याद रखूंगा” मैंने कहा.

अन्तर्वासना के मेरे प्रिय पाठको और प्रशंसको, अभी देखा आपने कि मैंने अपनी बहूरानी की गीली रसीली चूत में अपना लंड एकदम से पेल दिया था तो बहूरानी जी कैसे कैसे एट्टीट्यूड दिखा रही थी, कितनी हाय तौबा मचा रही थी? जैसे आसमान टूट पड़ा हो उसपे; मुझे कसाई सिद्ध करने पर तुली थी. पर आप लोग अभी देखना बहू कैसे हंस हंस कर मजे मजे ले ले कर चुदती है इसी लंड से.

इन हसीनाओं की ये भोली अदाएं ही तो चुदाई का आनन्द दोगुना कर देतीं हैं; इनका ये रोना धोना, नखरे कर कर के चुदना, एक प्रकार का कॉम्प्लीमेंट, उत्साहवर्धक ही है हम चोदने वालों के लिये. सभी हसीनाओं की ये सांझी आदत होती है कि लंड को उनकी चूत के छेद से छुला भर दो और ये ‘धीरे से करना जी, ऊई माँ … हाय राम हाय राम … मार डाला … फट गयी …’ जपना शुरू कर देंगी… नहीं तो इनकी चूतों की कैपेसिटी कितनी और कैसी होती है वो तो हम सब जानते ही हैं. आप सबने ऐसी स्थिति को अनुभव तो किया ही होगा. मेरे अजीज पाठको और मेरी प्यारी पाठिकाओ मैंने सच कहा न?

चलिए अब स्टोरी आगे बढ़ाते हैं; आप सब भी अपने अपने हाथों से मेरे साथ साथ मजे लेना शुरू करो.

“ओके माय डार्लिंग बेबी … प्रॉमिस बाई यू!” मैंने बहू का गाल चूमते हुए उसे आश्वासन दिया और अपने लंड को अन्दर बाहर करने का हल्का सा प्रयास किया. उसकी चूत अब तक खूब रसीली हो उठी थी और लंड अब सटासट, निर्विघ्न चूत में अन्दर बाहर होने लगा था. फिर तो मैंने रेल चला दी. उधर बहू को भी चुदाई का जोश चढ़ने लगा और वो मुझसे लिपट लिपट के चूत देने लगी.

“पापा जी… नाउ ड्रिल मी डीप एंड फास्ट विद आल योर माईट!” बहूरानी भयंकर चुदासी होकर बोली और अपने नाखून मेरी पीठ में जोर से गड़ा दिए.

“या बेबी, हेअर आई कम मोर डीप इनटू यू!” मैंने कहा और उसके दोनों पैर और ऊपर उठा कर उसी के हाथों में पकड़ा दिए जिससे उसकी चूत खूब अच्छे से ऊँची होकर लंड के निशाने पर आ गयी. फिर मैंने पूरे दम से और बेरहमी से बहूरानी की चूत की चटनी बनाना शुरू की.

बहू की चूत से फचाफच फच्च फच्च फचाक जैसी आवाजें आने लगीं और ऐसी चुदाई से बहू पूरी तरह से मस्ता गयी. “आई लव यू पापा … मेरी जान … मेरे राजा … फाड़ के रख दो मेरी चूत अपने लंड से. बहुत ही ज्यादा तंग करती है मुझे ये!” बहूरानी मिसमिसा कर बोली.

“हां बेटा जी, अभी लो!” मैंने कहा और लंड को उनकी चूत से बाहर निकाल कर पास पड़े घाघरे से अच्छे से पौंछा और फिर उनकी चूत को भी बाहर भीतर से अच्छे से पौंछ दिया और फिर से उनकी दहकती बुर में धकेल दिया. चिकनाहट थोड़ी कम हो जाने से लंड अब टाइट जा रहा था चूत में.

बहूरानी ने अपने पैर सीधे कर लिए थे और अब एड़ियों पर से उचक उचक कर मेरा लंड अपने चूत में दम से लील रही थी और मेरे धक्कों के साथ ताल में ताल मिलाती हुई अपनी जवानी मुझ पर लुटा रही थी.

ऐसे कोई तीन चार मिनट तक मेरी बहू अपने ससुर से चुदाई का मज़ा लेती रही, फिर … “पापा जी, अब मैं आपके ऊपर आऊँगी. अपना मज़ा मैं अपने हिसाब से लूंगी और चुदाई का कंट्रोल मैं अपने पास रखूंगी आप तो चुपचाप लेटे रहना!” बहूरानी मुझे चूम कर बोली. “ठीक है मेरी गुड़िया बेटा … आजा अब मेरी सवारी कर तू!” मैंने कहा और बहू के ऊपर से उतर कर लेट गया और मिठाई का एक डिब्बा अपने सिर के नीचे तकिये की तरह लगा लिया.

बहूरानी मेरे ऊपर झट से सवार हो गयी और मेरे लंड को मेरे पेट पर लिटा कर अपनी चूत से दबा लिया और आगे पीछे होकर इस पर अपनी चूत घिसने लगी या यूं कह लो कि वो अपनी चूत से मेरे लंड की मालिश करने लगी; उसकी चूत से लगातार रस की नदिया बहे जा रही थी और मेरा लंड, झांटें, जांघें सब भीग रहे थे.

दो तीन मिनट ऐसे ही मजे लेने के बाद बहूरानी ने थोड़ा सा ऊपर उठ कर लंड को अपनी चूत के छेद पर सेट किया और उसे भीतर लेते हुए मेरे ऊपर बैठ गयीं और उनकी चूत सट्ट से मेरा लंड निगल गयी.

फिर बहूरानी मेरे ऊपर झुक गयी; उसके खुले बाल मेरे मुंह पर आ गिरे जिसे उसने मेरे सिर के पीछे करके मेरे मुंह पर एक घरोंदा सा बना दिया और अपनी कमर चलाते हुए मुझसे आंख मिलाते हुए मुझे चोदने लगी. उसके मम्में मेरी छाती पर झूल रहे थे जिन्हें मैंने पकड़ कर झूलने से रोक दिया और उन्हें दबाते हुए बहू के धक्कों का आनन्द लेने लगा.

मेरे ऊपर चढ़ कर गजब की चुदाई की मेरी बहू ने … अपनी चूत से उसने आड़े तिरछे खड़े लम्बवत शॉट्स लगा लगा कर मेरे लंड को निहाल कर दिया.

ऐसे करते करते वे कुछ ही देर में थक गयी- पापाजी बस … अब नांय है मेरे बस का. मुझे अपने नीचे लिटा लो! वो उखड़ी सांसों से बोली. “आजा बेटा, बहुत मेहनत कर ली मेरी प्यारी बहू ने!” मैंने अदिति को चूमते हुए कहा और उसे अपने नीचे लिटा कर उस पर छा गया.

बहूरानी ने झट से अपने पैर ऊपर उठा लिये और अपनी चूत हवा में उठा दी. मैंने देखा कि उसकी चूत का छेद पांच रुपये के सिक्के के बराबर खुला हुआ दिख रहा था और उसके आगे अंधेरी गुफा की सुरंग सी दिख रही थी. मेरे ऐसे देखने से बहूरानी थोड़ा लजा गयी और उसने मेरा सिर अपने मम्मों पर दबा दिया और लंड पकड़ कर उसे ज़न्नत का रास्ता दिखा दिया.

मैंने भी लंड को धकेल दिया अन्दर की तरफ और ताबड़तोड़ शॉट्स लगाने लगा; बहूरानी भी किलकारियां निकालती हुयी चुदने लगी और जल्दी ही वो मेरी पीठ ऊपर से नीचे तक सहलाते हुए, मुझे अपने से लिपटाते हुए अपनी चूत मेरे लंड पर जोर जोर से मारने लगी; उसके इन संकेतों से मैं भलीभांति परिचित था; वो झड़ने की कगार पर आ चुकी थी.

“पापा, संभालो मुझे, कस के पकड़ लो मुझे. मैं तो आ गयी!” वो बोली और मुझसे जोंक की तरह लिपट गयी और अपने पैर मेरी कमर में लॉक कर दिए और उसकी चूत में बाढ़ जैसे हालात हो गये चूत से जैसे झरना बह निकला. इधर मैं भी चुक गया और मेरे लंड ने भी रस की पिचकारियां छोड़नी शुरू कर दीं.

हम ससुर बहू यूं ही झड़ते हुए एक दूजे की बांहों में कुछ देर समाये रहे. उसकी चूत संकुचन कर कर के मेरे लंड से वीर्य निचोड़ने लगी. कितना सुखद अनुभव होता है ये जब चूत की मांसपेशियां लंड को जकड़ती और रिलीज करती हैं. ऐसा लगता है जैसे चूत लंड को दुह रही हो.

दीन दुनिया से बेखबर हम दोनों यूं ही कुछ देर और पड़े रहे.

फिर बहूरानी अचानक मुझसे खुद को छुडाने लगी- पापाजी … देखो आठ चालीस हो गये, चाचा जी आने वाले ही होंगे. हटो जल्दी से कपड़े पहनो!

बहूरानी बेसब्री से बोलीं और बेड से उतर कर खड़ी हो गयी, उसकी चूत से मेरे वीर्य और उनके रज का मिश्रण उनकी जांघों पर से बह निकला जिसे उसने जल्दी से अपने घाघरे से पौंछ डाला और अपना घाघरा चोली पहनने लगी. ब्रा पैंटी तो उसने पहले भी नहीं पहन रखी थी, एक मिनट से भी कम टाइम में उसने वही बंजारिन वाली ड्रेस पहन ली.

मैंने टाइम देखा सच में आठ चालीस ही हो रहे थे. मतलब हमें इस कमरे में एक सवा घंटा हो गया था. मैंने फटाफट अपने कपड़े पहने. फिर हमने पलंग का सारा सामान … कपड़े, मिठाई के डिब्बे जैसे रखे थे वैसे ही रख दिए. गहनों वाले संदूक में ताला बंद किया और बाहर आकर रूम को भी लॉक कर दिया.

मैं खुश था कि शादी के इस भीडभाड़ वाले माहौल में भी मुझे अपनी बंजारिन बहू को चोदने का परम सुख मिल गया था. चुदने के बाद बहूरानी पता नहीं कहां गायब हो गयी और मैं वापिस हाल में जाकर बैठ गया.

कोई नौ बजे के क़रीब अदिति बहू के चाचा और चाची मार्केट से आते दिखे. आते ही मेरे पास बैठ गये और शादी, चढ़ावे के सामन वगैरह की बातें करने लगे. अदिति ने उन्हें फोन कर दिया था तो वे होने वाली बहू की पायल दूसरी खरीद लाये थे.

कुछ ही देर बाद अदिति और कम्मो भी आकर वहीं बैठ गयी. मैंने देखा बहूरानी खिली खिली सी प्रसन्न लग रही थी, यह तो होना ही था. औरत जब चुदाई से पूर्णतः तृप्त हो जाती है तो उसका बदन उसे फूल की तरह हल्का फुल्का और चित्त प्रसन्न लगने लगता है.

“चलो सब लोग अब डिनर कर लेते हैं. सवा नौ हो गये. मुझे तो जोर से भूख लगी है अब!” अदिति बोली. “हां हां अदिति क्यों नहीं. चलिए आप सब भी!” अदिति के चाचा जी बोले.

फिर हम लोग बाहर पंडाल में डिनर करने लगे. मैं थोड़ा सा खाना लेकर भीड़ से हट के कुर्सी पर बैठ कर खाने लगा. “अंकल जी दही बड़े लाऊं आपके लिए?” मैंने देखा कम्मो मेरे पास खड़ी मुझसे पूछ रही थी. “हां हां ले आ कम्मो!” मैं बोला.

इसके बाद कम्मो ने मुझे रसगुल्ले भी लाकर दिए. मैंने देखा कि कम्मो अब मुझमें विशेष रूचि ले रही थी. उसकी आंखों में कोई चाहत झिलमिला रही थी. कल उसे मार्केट ले जाकर नया मोबाइल जो दिलवाना था, शायद इसलिए…

तो अन्तर्वासना के मेरी प्रिय पाठिकाओ और पाठको. यह कहानी बस यहीं तक.

आप सबसे विनम्र निवेदन है कि नीचे लिखी मेरी मेल आई डी पर इस कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे अवश्य अवगत कराएं. आपके सुझाव और कमेंट्स मुझे व सभी रचनाकारों को और अच्छा लिखने को प्रेरित करते हैं. आपके विचारों को जानने की प्रतीक्षा रहेगी.

अरे हां … एक बात और. आप सबको लग रहा होगा कि कम्मो का क्या हुआ उसे मोबाइल दिलवाया कि नहीं. तो मित्रो कम्मो की कथा भी आपको पढ़ने को मिलेगी. जल्दी से जल्दी; बस थोड़े से इन्तजार के बाद. धन्यवाद [email protected]