वासना के पंख-8

दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि संध्या और मोहन ने प्रमोद के साथ तिकड़ी जमी और तीनों ने मस्त चुदाई मस्ती की, लेकिन शारदा को ये सब पसंद नहीं आ रहा था इसलिए आखिर प्रमोद ने इस खेल से सन्यास ले लिया। अब आगे …

प्रमोद के इस फैसले के बाद प्रमोद ने तो एक सामान्य जीवन जीने का निर्णय ले लिया था लेकिन मोहन और संध्या की हवस अभी खत्म नहीं हुई थी और उनके लिए ऐसा जीवन बड़ा ही नीरस था। बड़ी मुश्किल से एक ही साल गुज़रा था कि संध्या का दिमाग फिर कोई नई तरकीब ढूँढने में लग गया जिस से वो अपनी जिंदगी में फिर से वासना के नए नए रंग भर सके।

एक बार जब मोहन किसी काम से एक हफ्ते के लिए बाहर गया हुआ था तो दो दिन में ही संध्या की हालत खराब हो गई क्योंकि अब तो वो सीधी सच्ची चुदाई भी उसे नहीं मिल रही थी। रात को उसे नींद नहीं आ रही थी।

काफी देर तक करवटें बदलने के बाद अचानक वो उठ गई और बेचैनी से कमरे में इधर उधर घूमने लगी। फिर ना जाने उसके मन में क्या आया कि उसने दीवार के उस दर्पण को सरकाया और दूसरे कमरे में देखने लगी।

मोहन की माँ दूसरी ओर करवट ले कर सो रही थी। उस खिड़की के एक तरफ़ा कांच से देखते हुए संध्या उन यादों में खो गई जब वो इसी खिड़की से मोहन की माँ को चुदते हुए देखते थे और फिर मोहन उसे दुगनी रफ़्तार से चोदता था। जब वो इन यादों से बहार निकली तो उसकी नज़र एक छोटी सी कुण्डी पर पड़ी। जिज्ञासावश जब संध्या ने उसे खींचा तो दूसरी ओर का कांच भी खुलने लगा। उसे अब तक नहीं पता था कि इस दर्पण को भी हटाया जा सकता है।

इसी बात से संध्या के मन में एक विचार आया कि जिस आग में वो जल रही है, क्या पता वही आग इस खिड़की के दूसरी ओर भी लगी हो। उसने इसी विचार को एक योजना में बदल दिया। अगले दिन संध्या की नज़र मोहन की माँ की एक एक हरकत पर थी और वो समझ गई थी कि शायद मोहन के पापा के बाद जो स्थान प्रमोद के पापा को मिल गया था वो अब खाली है।

संध्या की सासू माँ भले ही अब अधेड़ उम्र की हो गई थी लेकिन जवानी ने जैसे उसके बदन को अब तक नहीं छोड़ा था वैसे ही उसकी हसरतें भी अब तक तो जवान ही थीं। उस रात संध्या, पंकज को सुलाने के बाद अपनी सासू माँ के कमरे में गई।

संध्या- माँ जी … सो गई क्या? माँ- नहीं बहू, इस उमर में इत्ती जल्दी काँ नींद आबे है। संध्या- थोड़ी देर आपके पास सो जाऊं? माँ- हओ … आजा।

संध्या जा कर मोहन की माँ के बाजू में जा कर चिपक कर सो गई।

संध्या- मेरी माँ तो बचपन में ही गुज़र गई थी। ठीक से याद भी नहीं है। माँ- तू जाए अपनोंई घर समझ बहू। संध्या- हाँ तभी तो आपके पास आ गई सोने … ये बता रहे थे कि ये काफी बड़े हो गए तब तक आपने इनको अपना दूध पिलाया था। माँ- हुम्म …

संध्या- मुझे भी पिलाओ ना! माँ- का बात कर रई है। चुप कर! संध्या- बचपन की तो ठीक से याद नहीं है इसलिए सोचा आपको ही माँ समझ के बचपन की कमी पूरी कर लूँ। लेकिन … माँ- ऐसी है तो पी ले … जे ले!

सासू माँ ने बच्चों को पिलाते हैं वैसे अपने ब्लाउज का नीचे से बटन खोल के अपना एक स्तन निकाल कर संध्या की ओर बढ़ा दिया। संध्या भी एक हाथ से पकड़ कर उसे चूसने लगी। एक औरत अच्छी तरह जानती है कि कैसे एक बच्चा दूध पीता है और किस तरह चूसने से उत्तेजना बढ़ती है। मोहन की माँ पहले ही काफी समय से वासना की आग में जल रही थी। संध्या ने उसे और भी भड़का दिया था।

उनकी धड़कन बढ़ गई थी और उनको होश ही नहीं रहा कि कब संध्या ने उनके ब्लाउज का बाकी बटन भी निकाल दिए और अब वो दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसने लगी थी। जिस भी स्तन को वो ना चूस रही होती उसके चुचुक को अपने थूक से गीले किये हुए अंगूठे से सहलाती रहती। जिससे ऐसा आभास होता जैसे उनके दोनों चूचुक साथ में चूसे जा रहे हैं।

माँ- का कर रई है बहू … अब सेन (सहन) नईं हो रओ। संध्या- माँ जी … मैं भी एक औरत हूँ मैं आपकी समस्या समझ सकती हूँ। आप कहें तो कुछ मदद करूँ आपकी इस तड़प को दूर करने में। माँ- कर दे बहू … कर दे …

संध्या ने मोहन की माँ की वासना की उस आग को भड़का दिया था जो इतने समय से वक्त की राख में दबने सी लगी थी। संध्या ने सासू माँ का घाघरा उठाया और उनकी दोनों टांगें मोड़ कर फैला दीं। उन दोनों मुड़ी हुई टांगों को बांहों में भर के संध्या ने अपनी उंगलियों से माँ की चूत की फांके अलग कीं और चूत का दाना अपने होंठों में दबा कर चूसने लगी।

मोहन की माँ, कामोद्दीपन के एक अलग ही स्तर पर पहुँच गई थी। अव्वल तो ये कि उसकी चूत एक साल से भी ज्यादा समय से अनछुई थी, उस पर पहले भी कभी किसी ने उसकी चूत को मुँह नहीं लगाया था। उसकी चूत हमेशा चोदी ही गई थी। जिंदगी में पहली बार ये चूत चूसी जा रही थी। सासू माँ की कमर ऊपर नीचे होने लगी और आनंद के मारे वो छटपटा रही थी। अगर संध्या ने उनकी टांगें अपनी बाहों में कस कर पकड़ी ना होतीं तो शायद संध्या के होंठ अब तक चूत से चिपके ना रह पाते।

काफी देर तक ऐसे ही छटपटाने के बाद आखिर सासू माँ ढीली पड़ गईं। संध्या ने भी अब उनको छोड़ दिया और उनके बाजू में जा कर लेट गई। थोड़ी देर बाद जब सासू माँ की साँस में साँस आई तो उन्होंने संध्या को गले से लगा लिया।

इसके बाद तो सास-बहू ना केवल सहेलियों की तरह रहने लगीं बल्कि सासू माँ ने संध्या को और भी नई नई बातें सिखाने के लिए कहा क्योंकि उन्हें लगा हो सकता है जैसे वो चूत चटवाने के अनुभव से अब तक वंचित थीं वैसे ही और भी कुछ हो जो वो ना जानतीं हों।

संध्या ने मोहन के आने से पहले सासू माँ को आधुनिक काम शास्त्र का पूरा प्रशिक्षण दे डाला जिसमें घर पर सारा समय नंगे रहने से लेकर खुले आसमान के नीचे चुदाई के मज़े तक और मुख मैथुन से लेकर गुदा मैथुन (गांड मराई) तक के सारे गुर शामिल थे। संध्या ने भी समलैंगिक संभोग के सारे प्रयोग जो वो शारदा के साथ नहीं कर पाई थी वो सब अपनी सास के साथ कर लिए। एक रात दोनों सास-बहू एक दूसरे की चूत चाट कर झड़ गईं और नंगी चिपक कर पड़ी पड़ी बातें करने लगीं। माँ- बहू … सच्ची कऊँ … तूने तो अच्छेई मजा करा दए। संध्या- हुम्म … अब साल भर से ऊपर हो गया था आपको चुदवाए हुए तो। माँ- हम्म … जा तो सच्ची कई …

अचानक सासू माँ को होश आया कि उन्होंने गलत बात पर हामी भर दी है। पहले तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई लेकिन फिर थोड़ा साहस जुटा कर सोचा अब इसके साथ इतना सब हो गया तो क्या शर्माना। माँ- तोय काँ से पता के १ सालई हुओ? संध्या- आपको लगता है प्रमोद भाईसाब के बाबूजी के बारे में किसी को नहीं पता? माँ- अब बात करन बाले तो तेरी बी पता नई का का केत थे। संध्या- मेरी जो कहते थे वो तो मैंने सुहागरात पर ही इनको सब बता दिया था।

उसके बाद संध्या ने अपनी सासू माँ को वो सब बातें बता दीं जो उसने सुहागरात पर मोहन के साथ की थीं। उसके बाद ये भी बताया कि कैसे मोहन उनकी ही कल्पना में मुठ मारना सीखा और वो प्रमोद के साथ क्या क्या करता था। लेकिन उसके आगे की सारी बातें वो छुपा गई कि कैसे उसने भी प्रमोद से चुदवाया। लेकिन ये सब सुनने के बाद सासू माँ ने जो कहा उसकी उम्मीद संध्या ने नहीं की थी।

माँ- हम्म … चूत चटावे में मजा तो भोत आबे है, पर लंड की कसर तो लंडई पूरी करे है। संध्या- बात तो सही है। फिर प्रमोद के पापा के बाद कोई और क्यों नहीं ढूँढा? माँ- अब बे घर के जैसेई थे। सबे पता थी कि हम उनको घर को काम कर दें हैं ते बे हमरो बहार को काम कर दें हैं। घर में आनो जानो लगो रेत थो। जा के मारे कभी कोई ने कछु नई कई। अब अलग से चुदाबे के लाने कोइए बुलाएं तो बदनामी ना होए।

संध्या- हम्म … घर की बात घर में ही रहे तो अच्छा है। सोचती हूँ कुछ अगर आपके लिए कोई इंतज़ाम हो सकता होगा तो ज़रूर बताऊँगी। माँ- रेन दे बहू! अब जा उमर में कोन पे भरोसा करूँ। थोड़े दिन बचे हैं। बे बी निकल जे हैं। संध्या- मैं तो बता दूँगी भरोसा करना है कि नहीं आप सोच लेना। चलो छोड़ो … अभी मैं आपको फ्रेंच किस सिखाती हूँ।

फिर बहूरानी की कामशास्त्र की कक्षा शुरू हो गई। ऐसे ही समय कब बीत गया पता ही नहीं चला।

आखिर मोहन वापस आ गया और माँ को वापस अपने कपड़े पहन कर रहना शुरू करना पड़ा। मोहन अपने साथ विडियो कैस्सेट प्लेयर ले कर आया था। दिन में सबने मिल कर प्लेयर पर माधुरी की ‘दिल’ देखी। ये प्लेयर वो प्रमोद की दूकान से ही खरीद कर लाया था। रात को जब सब सोने लगे तब मोहन ने संध्या को बताया कि प्रमोद ने उसे कुछ चुदाई वाली फिल्मो की कैस्सेट भी दिए हैं।

मोहन- प्रमोद बोला जिन जिन फिल्मों पर शारदा भाभी ने प्रतिबन्ध लगा रखा है वो सब तू ले जा तो मैं ले आया। वो यूरोप से लाया था ये सब। संध्या- शारदा ने प्रतिबन्ध लगाया है तो फिर तो मस्त माल होगा। लगाओ लगाओ, देखते हैं। वैसे भी बहुत दिन से तुम्हारे लंड के लिए तड़प रही हूँ। मस्त चुदाई की फिल्म देख कर चुदाई करेंगे।

उन्होंने वही फिल्म लगाई ‘टैबू’ जिसमें माँ-बेटे के काम संबंधों को बड़ी गहराई से दिखाया था। मोहन और संध्या दोनों को ही इंग्लिश समझ नहीं आती थी लेकिन कैस्सेट पर जो नंबर थे उस से ये समझ आ गया था कि ये सब एक ही सीरीज की फ़िल्में हैं। फिर ये इतने गंवार भी नहीं थे कि मॉम, सन, ब्रदर और सिस्टर जैसे शब्द ना समझ पाएं। दोनों चुदाई करते करते फिल्म देख रहे थे। जल्दी ही उनको समझ आ गया कि फिल्म की हेरोइन अपने बेटे से चुदवाने के लिए तड़प रही है। वो उसे मना तो करती है लेकिन फिर एक बार चुदाई शुरू हो जाए तो फिर और चोदने को कहती है।

संध्या- देखो कैसे चोद रहा है मादरचोद अपनी माँ को। मोहन- अरे वो मादरचोद नहीं है। उसकी माँ बेटाचोद है। संध्या- क्या फरक पड़ता है कद्दू दराँती पे गिरे या दराँती कद्दू पे।

संध्या- तुम्हारी माँ भी लंड के लिए तड़प रही है। वो माँगे तो दोगे अपना लंड माँ की चूत में? मोहन- ऐसी बातें ना कर पगली अभी तेरी चूत में झड़ जाऊँगा नहीं तो। बचपन से उसी के सपने देख देख के तो मुठ मारना सीखा था। लेकिन वो नहीं लेगी मेरा। संध्या- मैं दिलवा दूँ तो? मोहन- तो फिर जो तू माँगे वो तुझे दिलाने की ज़िम्मेदारी मेरी।

इतना कह कर मोहन ने संध्या को पूरे जोर के साथ चोदना शुरू किया और उधर फिल्म में बेटा अपनी माँ के मुँह में झड़ा और इधर मोहन संध्या की चूत में। उसके बाद फिल्म में माँ-बेटे की चुदाई के 1-2 सीन और आये और हर बार संध्या यही चिल्लाती रही- चोद ज़ोर से मादरचोद … और ज़ोर से चोद। पता नहीं वो फिल्म के हीरो को कह रही थी या मोहन को लेकिन एक बार और झड़ के दोनों सो गए।

अगले दिन जब मोहन खेत पर गया तो संध्या ने सासू माँ से बात की।

संध्या- एक लंड मिला है आपके लिए। चाहिए तो बताना? माँ- कौन को? संध्या- आपको लंड दिखा दूँगी। पसंद आये तब आगे की बात करेंगे। माँ- तोय काँ से मिल गाओ। कोई भार के अदमी से तो नईं चुदा रइए तू। संध्या- आप फिकर मत करो आपने कहा था ना बदनामी नहीं होना चाहिए, तो आप बेफिक्र रहो।

उस रात मोहन ने फिल्म का अगला पार्ट देखने की पेशकश की तो संध्या ने मना कर दिया।

संध्या- आज आप टीवी पे नहीं लाइव अपनी माँ की नंगी पिक्चर देखो। मोहन- क्या बात कर रही है। माँ ने किसी और से चक्कर चला लिया क्या? संध्या- ऐसा ही कुछ समझो।

इतना कह कर संध्या ने अपनी तरफ के दर्पण को खोला और बाहर चली गई। मोहन ने देखा दूसरी ओर उसकी माँ बिस्तर पर नंगी लेटी हुई थी और एक हाथ से अपनी चूत और दूसरे से अपने चूचुक मसल रही थी। मोहन से उसे ऐसा करते हुए पहली बार देखा था। मोहन को अभी कुछ पता नहीं था कि उसकी पीठ पीछे संध्या ने उसकी माँ को क्या क्या सिखा दिया था।

अचानक माँ के कमरे का दरवाज़ा खुला और नंगी संध्या अंदर आई। मोहन को तो जैसे झटका लग गया। उसके मन में यही आया कि ये संध्या क्या कर रही है है मरवाएगी क्या।

लेकिन अगले ही पल उसकी आँखों से सामने एक अलग ही नज़ारा था। संध्या और मोहन की माँ आपस में गुत्थम गुत्था हो गईं और दोनों की जीभें आपस में एक दूसरे से छेड़खानी करने लगीं। संध्या खींच कर माँ को दर्पण के पास ले आई और उसे दर्पण की ओर खड़ा करके पीछे से उसके स्तनों को मसलने लगी और फिर पीठ पर चुम्मियाँ लेते हुए नीचे की ओर जाने लगी। माँ खुद को दर्पण में नंगी देख रही थी लेकिन दूसरी ओर से मोहन अपनी माँ को पहली बार इतनी करीब से नंगी देख रहा था।

थोड़ी देर बाद संध्या ने सासू माँ को बिस्तर पर धकेल दिया और खुद उनके ऊपर चढ़ गई। दोनों एक दूसरे की चूत चाटने लगीं। संध्या ने माँ को ऐसे लेटाया था कि उनकी चूत सीधे दर्पण की दिशा में ही थी। थोड़ा चूसने के बाद संध्या ने अपने सर ऊपर किया और दर्पण की तरफ इशारा किया कि देखो और फिर माँ की चूत की फांकें खोल के मोहन को दिखाईं।

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