दोस्त की सौतेली माँ-1

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सभी दोस्तों को ढेर सारा प्यार … खासतौर पर लड़कियों को दोहरा प्यार … दोहरा मतलब मेरा भी और मेरे पप्पू (लंड) का भी। एक बात तो है इंसान को बड़ा नहीं होना चाहिए। बड़ा होते ही जिम्मेदारी शुरू और फिर मस्ती कम होती चली जाती है। आपका दोस्त राज फिर भी अपने बिजी समय में से कुछ समय निकाल कर आ ही जाता है अपनी एक सेक्सी सी दास्तान लेकर।

आज की कहानी मेरे दोस्त की सौतेली माँ और आपके राज की कहानी है। संजय साहनी नाम था उसका, देहरादून का रहने वाला था, उम्र उसकी कोई बाईस या तेईस साल, मेरी ही कंपनी में मेरा जूनियर था वो। थोड़े ही दिन में वो मेरा बढ़िया दोस्त बन गया था। उसी ने मुझे देहरादून में रहने के लिए कमरा दिलवाया। मेरे हर काम में मेरी मदद करने के लिए तैयार रहता था वो।

एक दिन शाम को पेग लगाने का मन हुआ तो मैंने संजय को बुला लिया। इससे पहले हम कम से कम दारू पीने के लिए तो कभी साथ नहीं बैठे थे। मुझे तो ये भी नहीं पता था कि संजय पीता भी है या नहीं।

संजय आया तो बड़ा परेशान सा नजर आ रहा था। मैंने वजह पूछी तो पहले तो वो टाल गया पर फिर अचानक रोने लगा तो मुझे बड़ा अजीब सा लगा। मैंने एक पेग बना कर उसको दिया तो वो बिना पानी डाले ही गटक गया और जोर जोर से खाँसने लगा। मामला कुछ संगीन लग रहा था।

मैंने संजय को किसी तरह शांत किया और उसको वजह बताने को कहा तो उसने बताना शुरू किया:

संजय की माँ चार साल पहले मर चुकी थी। बाप ने इसी गम में शराब पीनी शुरू कर दी थी। घर में सिर्फ बाप बेटा ही थे पर शराब के चक्कर में संजय का बाप दीनदयाल अक्सर घर नहीं आता था। संजय इन्तजार करके खा पी के सो जाता। कभी कभी तो यह भी होता कि तीन-तीन चार-चार दिन दीनदयाल का कोई अता-पता नहीं होता था।

फिर एक दिन संजय के ताऊ और चाचा घर पर आये तो संजय ने सब हाल सुना दिया। ताऊ और चाचा ने दीनदयाल को समझाया और संजय की शादी कर देने की सलाह दी। संजय वैसे तो उम्र में अभी छोटा था पर पहाड़ी लोग कम उम्र में भी शादी कर देते हैं। अपनी शादी की बात सुन संजय के मन में लड्डू फूटा।

पर दीनदयाल के दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था। एक हफ्ते बाद ही दीनदयाल एक तीस बत्तीस साल की लड़की के साथ घर आया और संजय को बोला- बेटा, आज से ये तुम्हारी नई माँ है।

कहाँ तो संजय अपनी शादी के सपने बुन रहा था पर उसके बाप ने उसके सपनो तो तोड़ा सो तोड़ा … उल्टा खुद शादी करके संजय पर वज्रपात कर दिया था। टूट सा गया था संजय … अपने बाप से नफरत सी हो गई थी उसको।

इस बात को लगभग छ: महीने होने को आये थे पर वो अपने बाप की करतूत को भूल नहीं पा रहा था।

मैंने संजय को समझाया कि जो हो गया उसको भूल जाओ और अपने भविष्य का सोचो और अपने काम में दिल लगाने की कोशिश करो। दो पेग और लगाने के बाद उस दिन संजय मेरे कमरे पर ही सो गया।

अगले चार पाँच दिन संजय अपने घर नहीं गया और हर रात मेरे कमरे पर ही आ जाता। मुझे संजय के लिए बहुत बुरा लग रहा था कि उसके बाप ने सच में उसके साथ ज्यादती की है। छठे दिन मैंने संजय को घर जाने के लिए समझाया पर वो जाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था तो मैंने कहा- चलो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ और तुम्हारे बाप से बात करता हूँ।

मेरे कहने से वो तैयार हो गया। असल में मैं भी चाहता था कि संजय अपने घर चला जाए क्योंकि उसके मेरे साथ रहने से मेरी प्राइवेसी खत्म होती जा रही थी। उसके होते ना तो मैं कहीं जा पा रहा था और ना ही खुल कर रहने का आनन्द ले पा रहा था।

शाम को करीब सात बजे मेरी गाड़ी से संजय और मैं उसके घर पहुँचे। दरवाजा संजय की नई माँ पूजा ने खोला। बेशक वो तीस बतीस साल की होगी पर एकदम पतली सी कमसिन सी बीस साल की लड़की लग रही थी। कद भी पाँच फीट से कम ही था उसका। मैं तो हैरान हो गया की इस लड़की के माँ बाप ने कैसे एक 48 साल के आदमी से अपनी लड़की ब्याह दी।

संजय गुस्से में अन्दर चला गया। मैं कुछ देर तो दरवाजे पर खड़ा सोचता रहा कि संजय मुझे बिना अन्दर बुलाये ही चला गया। मैं जैसे ही वापिस जाने के लिए मुड़ा तो पूजा (संजय की सौतेली माँ) की मधुर सी आवाज कानों में पड़ी- प्लीज अन्दर आ जाईये … चाय पी कर जाना!

मन तो संजय के व्यव्हार से थोड़ा खराब हो गया था पर ना जाने क्यों … फिर भी पूजा को ना नहीं कर पाया और उसके साथ अन्दर चला गया। संजय अपने कमरे में जा चुका था, मैं ड्राइंग रूम में बैठा इधर उधर देख रहा था, ड्राइंग रूम से रसोई सामने ही नजर आ रही थी, रसोई में पूजा चाय बना रही थी।

जब कुछ और नजर नहीं आया तो मेरी नजर पूजा पर चिपक गई। चिपकती भी क्यों ना … मैं ठहरा चूत का रसिया।

मन में घूमने लगा कि दीनदयाल किस्मत का कितना धनी है जो ऐसा मस्त माल मिला है उसको और वो भी इस उम्र में। तब तक पूजा चाय लेकर आ गई। मैंने उसके चेहरे पर नजर डाली। पूजा खूबबसूरत तो थी पर ना जाने क्यों उसका चेहरा कुछ मुरझाया हुआ सा लगा।

वो चाय देकर जाने लगी तो मैंने उसको भी बैठने के लिए कहा तो वो चुपचाप मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गई। कहते है ना कमीने लोगों की नजर में ही एक्सरे होता है। मेरी नजर पूजा के अंग अंग पर घूम गई। पूजा पतली सी थी। चुचियाँ शरीर के हिसाब से मस्त थी। पतली कमर, कूल्हे थोड़े उठे हुए थे गोल गोल।

“क्या बात आप कुछ परेशान सी लग रही हैं?” मैंने बातचीत चालू करने के मकसद से पूछा। “नहीं … ऐसी कोई बात नहीं है … बस …” “बस …” पूजा के बात अधूरा छोड़ने पर मैंने उससे पूछा। “बस संजय को लेकर थोड़ा परेशान रहती हूँ … वो ना तो मुझसे बात करता है और ना ही मुझे पसंद करता है। मुझे ये सब बुरा लगता है।” “आप परेशान ना हों … मैं समझाऊंगा संजय को …” “आप सोचिये … इसके अलावा अब मेरा है ही कौन … इसके पापा का तो आपको पता ही है …”

मुझे समझते देर नहीं लगी कि पूजा की अपने पति को पसंद नहीं करती और संजय उससे नफरत करता है तो वो परेशान है। पहली मुलाक़ात थी तो मैंने ज्यादा बात करना ठीक नहीं समझा और चाय पी कर दुबारा आने और संजय को समझाने की कह कर वापिस कमरे पर आ गया।

उस रात बार बार पूजा का ख्याल आता रहा। वैसे भी देहरादून आये बहुत दिन हो गए थे और कोई परमानेंट चुत का जुगाड़ नहीं हुआ था। कमीने दिमाग में घूम गया कि क्यों न पूजा को ही पटा कर चोदा जाए। बस ख्याल आया तो रात को सपनों में पूजा की जम कर चुदाई की।

अगले दिन से ही सोचने लगा कि कैसे पूजा की चुत का मजा लिया जाए। वो तो संजय हरदम मेरे साथ या आसपास रहता था तो प्लान पर काम करने का मौका नहीं मिल रहा था।

एक हफ्ते बाद कंपनी की मीटिंग थी दिल्ली में। उसमें देहरादून ब्रांच से भी किसी एक को जाना था। सीनियर होने के नाते मुझे ही जाना था पर मैंने गेम खेली और बहाना बना कर अपनी जगह संजय का नाम मीटिंग के लिए भेज दिया। संजय को भी समझा दिया कि तीन दिन की मीटिंग है तो दिल्ली जा आओ। मीटिंग भी अटेंड कर लेना और तीन दिन घूमना फिरना भी हो जाएगा तो मन बहल जाएगा। संजय मान गया।

मीटिंग बारे सब कुछ समझा कर मैंने एक दिन पहले ही रात को संजय को भेजने का प्रबंध कर दिया। उस रात करीब दस बजे मैं संजय को लेने के लिए उसके घर गया तो उस दिन भी दरवाजा पूजा ने ही खोला। अन्दर गया तो देखा दीनदयाल सोफे पर ही नशे में धुत लुढ़का हुआ था। पूजा ने बताया- ये तो इनका हर रोज का काम है।

पूजा ने संजय को आवाज दी तो संजय अपना बैग लेकर आ गया और बिना पूजा से बात किये बाहर आकर गाड़ी में बैठ गया। “पूजा जी, संजय तीन चार दिन बाद आएगा अगर आपको किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे याद कर लीजियेगा.” मैंने अपना विजिटिंग कार्ड उसको देते हुए कहा। वो कुछ नहीं बोली बस कार्ड को ले लिया।

रात को करीब ग्यारह बजे संजय को दिल्ली की वॉल्वो में बैठा कर मैं वापिस अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। पर अचानक पता नहीं दिमाग में क्या सूझी मैंने गाड़ी संजय के घर की तरफ मोड़ दी। संजय के घर पहुँच कर मैंने जैसे ही बेल बजाई, करीब दो मिनट बाद पूजा ने आकर दरवाजा खोला।

वो अपने कपड़े बदल चुकी थी और अब एक ढीली सी मेक्सी पहने हुए थे। मुझे दरवाजे पर देख वो हैरान हुई। मैं गाड़ी में बैठा बैठा ही सोच चुका था कि क्या कहना है और क्या करना है। “पूजा जी … वो संजय शायद अपनी फाइल भूल गया है … आप उसके कमरे में देख कर बता दीजिये।” मैंने पूजा को कहा। दीनदयाल अब भी सोफे पर ही था बस उसके ऊपर अब कम्बल आ गया था जो पूजा ने ही उसके ऊपर डाला होगा।

पूजा मुझे वहीं छोड़ संजय के कमरे में गई और कुछ देर बाद ही वापिस आ गई और बोली- उसके कमरे में तो कोई फाइल नहीं है। “ओह्ह … फिर शायद संजय को भूल लग गई होगी … हो सकता है वो फाइल उसके बैग में ही हो.” “जी!” पूजा ने इससे ज्यादा कुछ नहीं कहा।

मैंने चलने को कहा तो और जैसे ही दरवाजे की तरफ चला तो पूजा की मीठी सी आवाज कानों में पड़ी- प्लीज आप थक गए होंगे … चाय पी कर जाइये. मैंने एक बार पूजा की तरफ देखा और एक बार दीनदयाल की तरफ। शायद वो मेरी मनोभावना समझ गई थी। “ये अब सुबह से पहले नहीं उठने वाले!” “ये हर रोज पीते है क्या …” “जी … हर रोज नहीं, हर समय नशे में ही रहते हैं …”

“एक बात पूछ सकता हूँ … अगर बुरा ना मानें तो?” “पूछिये … बुरा क्यों मानूँगी!” “फिर भी … आपकी पर्सनल लाइफ से सम्बंधित प्रश्न है तो!” “बेझिझक पूछिये!” “आप इतनी खूबसूरत हैं … जवान हैं … फिर आपने इस बूढ़े से शादी क्यों कर ली?” “बस … किस्मत का खेल ही कह सकते हैं.” “फिर भी अगर आप बताना पसंद करें तो मैं जानना चाहूँगा?”

“मेरे पिता जी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी … तो उन्होंने इनसे कुछ कर्जा ले लिया था. दूसरे मांगलिक होने के कारण मेरी शादी नहीं हो पाई थी, उम्र भी तीस से ज्यादा हो गई थी तो अब रिश्ता होने के चान्स भी कम ही रह गये थे. बस उसी का फायदा उठा इन्होंने मेरे बाप से मेरा हाथ मांग लिया. वो लाचार बेचारा क्या करता … बाँध दिया मुझे इस खूंटे से!” कहते कहते पूजा की आँखों से आँसू टपक पड़े।

“ओह्ह … बहुत बुरा हुआ … आपके खुद के भी सपने होंगे … उनका क्या?” “गरीब के भी कभी सपने होते हैं भला …” कह कर पूजा सुबकने लगी।

मैं उसके चुप करवाने के इरादे से उसके पास गया और उसके आँसू पौंछते हुए उसको चुप होने के लिए बोला। पूजा उठ कर रसोई में चली गई। दो मिनट बाद वो अपना मुँह धोकर वापिस आई और मुझ से पूछा- आप चाय लेंगे या कॉफ़ी बना दूँ? “कुछ भी बना लीजिये … जिसमे आप मेरा साथ दे सकें।”

पूजा कॉफ़ी बनाने लगी। कॉफ़ी बन कर आई और हम दोनों ने साथ में बैठ कर पी। कॉफ़ी पीने के बाद मैं उठा और अपने कमरे पर जाने के लिए खड़ा हुआ तो पूजा की प्यास उसकी जुबान पर आ ही गई- रात बहुत हो गई है … अगर आप यही रुक जाएँ तो! “रुक तो जाऊं पर कोई हक़ से रोके तो …” “मतलब?” “मतलब ये …” “बोलिए ना?”

“पूजा जी … आपको देखकर और आपकी बातें सुनकर मेरा भी दिल नहीं कर रहा जाने का … पर मेरे रुकने से आपकी बदनामी या आपके जीवन में कोई परेशानी ना हो इसीलिए मुझे जाना होगा.” “तो रुक जाइए ना … मैं भी अकेले सोते सोते परेशान हो चुकी हूँ … आज आपके साथ जागने से शायद मेरी रात का अकेलापन भी दूर हो जाये …” पूजा की तरफ से खुला न्यौता मिल चुका था तो अब भला मैं चुत का रसिया कैसे आपने आप को रोकता।

मैंने बिना देर किये पूजा को अपनी बाँहों में ले लिया और उसके चेहरे को ऊपर कर अपने होंठ पूजा के होंठों से मिला दिए। पूजा के होंठ कांप रहे थे, पूजा के हाथ भी मेरी कमर से लिपट गए। “बेडरूम कहाँ है …” मैंने पूछा तो पूजा ने हाथ के इशारे से बताया।

कहानी जारी रहेगी. लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दी जा रही है. कहानी का अगला भाग: दोस्त की सौतेली माँ-2

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