माँ बेटी की मज़बूरी का फायदा उठाया-5

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दीपक से रुका नहीं गया, उसने उठकर मानसी को अपनी बांहों में जकड़ लिया और बोला- तुम चिंता मत करो, मैं सब सम्हाल लूंगा। दो दिन की बात है और तुम पहले जैसी बन जाओगी। यह बोलकर उसने मानसी की चूचियाँ मसलना शुरु कर दी. मानसी क्या करे, वो सोच नहीं पा रही थी और धीरे धीरे कामुकता से उसने सिसकारियां छोड़ना शुरु कर दी.

सुशीला वैसे ही खड़ी होकर ये सारा नजारा देखती रही. वो अभी नहा कर आयी थी. मैंने जाकर उसे जकड़ लिया और बेड पर पटक दिया, उसकी चूचियाँ मसलना शुरु कर दिया।

दीपक ने मानसी के ड्रेस का हुक खोल दिया. मानसी तो थोड़ी देर पहले अपनी माँ की चुदाई देख कर गर्म हो चुकी थी, वो भी कम नहीं थी। उसने सीधे दीपक की पैन्ट के ऊपर हाथ रख करके लंड को सहलाने लगी और आँख भी मिलाने लगी एक कामुक मुसकुराहट के साथ! जब दीपक ने उसकी ड्रेस उतार दी तो वो धीरे से नीचे बैठ गयी और दीपक की जिप खोलने लगी.

दीपक तो रास्ते भर उन दोनों को कैसे चोदे … यही सोच के आया था, उसका लंड तो कब से फुंफकार मार रहा था. मानसी ने उस गर्म सख्त सांप को चड्डी से बाहर निकाल दिया. वो गुस्से में अपना सर हिला रहा था … मानसी ने देर नहीं की, उसने लंड को चाटना शुरु कर दिया। दीपक से रहा नहीं गया, उसने मानसी के मुँह को जोर जोर से चोदना शुरु कर दिया. मानसी भी बड़े प्यार से उसके लंड को चूसने लगी जोर जोर से।

दीपक ने अपनी शर्ट खोल के बेड पर फ़ेंक दिया। इधर मैं अपनी धोती खोलकर लंड को सुशीला के चूत पर साड़ी के ऊपर घिसता जा रहा था और उसकी चूचियाँ मसलत रहा था.

मानसी के मुँह से ‘गूं गु गु गों हह …’ की आवाज निकलती जा रही थी और अब वो डॉक्टर के लंड को गले तक लेने लगी थी। दीपक का लंड थोड़ी देर में झड़ गया, मानसी ने सब गले के अंदर निगल लिया.

अब दीपक ने उसे बेड के ऊपर लिटाया और उसकी चूत चाटना शुरु कर दिया। उसकी जीभ लंड की तरह चूत में घुसने लगी थी और मानसी मादक सिसकारियाँ छोड़ने लगी थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह …” इधर मैंने सुशीला का ब्लाउज खोल दिया था और उसकी चूचियों को काटने लगा था. मैं धीरे धीरे नीचे आया और सुशीला की चूत चाटना शुरु कर दिया। उसके मुँह से भी सिसकारियां निकलने लगी। वो मानसी से भी जोर जोर से सिसकारियां छोड़ रही थी. बीच बीच में दीपक मुंह उठा कर सुशीला को देख रहा था … उसको मुझसे बहुत ईर्ष्या हो रही थी। वो भी चाहता था कि मानसी भी अपनी मम्मी सुशीला की तरह उछल कूद करे और जोर जोर की सिसकारियाँ निकाले.

कुछ देर के बाद दीपक उठा और उसने मानसी की चूत में लंड घुसा दिया और जोर जोर से धक्का लगाने लगा. मानसी उसे जकड़ कर उसका साथ देने लगी. वो अब जानबूझकर मानसी की चूचियाँ जोर जोर से मसलने लगा ताकि उसे दर्द हो! मानसी- आहिस्ता अहह आह … आहिस्ते डॉक्टर साहब! दीपक- चुप रंडी, कितनों से चुदवा चुकी है … तुझ पर कोई असर नहीं होता! बोल कर और जोर से उसकी चूची को मसल दिया और जोर जोर से धक्का लगाने लगा।

इधर मैंने सुशीला की चूत से मुँह निकाला और अपना लंड उसके मुँह में दे दिया. वो बड़े प्यार से मेरे लंड को चूसने लगी, जीभ को लंड के सुपारे पर घुमाने लगी किसी रंडी की तरह। दीपक मानसी को चोद रहा था और देख रहा था कि सुशीला कैसे मेरा लंड चूस रही है.

मैं बेड के उपर बैठ गया और सुशीला मेरे ऊपर चढ़ के फिर से चिल्ला चिल्ला कर चुदवाने लगी ‘आह सस्स हाँ आह …’

कुछ देर के बाद मानसी झड़ गई और दीपक से चिपक गयी. दीपक इसी मौके की तलाश में था, उसने अपना लंड मानसी की चूत से निकाला और सीधे सुशीला के ऊपर झपट पड़ा. सुशीला कुछ समझे उससे पहले वो मेरे ऊपर झुक चुकी थी और दीपक का लंड उसकी गाण्ड में तीन इंच तक घुस चुका था.

“आह … उम्म्ह… अहह… हय… याह…” सुशीला बोली- इसे निकालो। मैंने पहले कभी गाण्ड में नहीं चुदवाया। दीपक- चुप साली रंडी, तब तो बहुत अच्छा हुआ। तेरी गाण्ड की सील आज मैं तोड़ता हूँ। और उसकी गाण्ड में और एक जोर का धक्का लगाया … आधा से ज्यादा लंड सुशीला की गांड में घुस गया, सुशीला फिर चिल्ला उठी.

मैं उसके मुँह पर मुँह डाल दिया और उसके होठों को चूसने लगा, जीभ मुख के अंदर तक घुसाने लगा और उसकी जीभ को चूसने लगा। साथ में मैं उसकी चूचियाँ भी मसलता जा रहा था।

दीपक ने फिर एक जोर का धक्का लगाया तो सुशीला की आँखों से आँसू निकल आये. अब दीपक का लंड पूरा सुशीला की गाण्ड के अंदर था मगर सुशीला तड़प रही थी. इधर मैं नीचे से धक्का दे रहा था … वो हिल ही नहीं पा रही थी क्योंकि लंड उसकी गाण्ड में जकड़ गया था. दीपक तो रुकने वाला नहीं था, उसने थोड़ा लंड बाहर निकाल के फिर धक्का लगाना शुरु कर दिया.

सुशीला सिसकारियां भर भर के तड़पने लगी … दो बडे बड़े लंड उसके दो छेदों में थे। मानसी देख रही थी कि उसकी माँ को दो मर्द रगड़ रगड़ कर चोद रहे हैं. मैं नीचे से सुशीला को गर्म कर रहा था, अब उसे भी मजा आने लगा था मगर दीपक उस पर थोड़ा भी रहम नहीं कर रहा था और उसे चोदता जा रहा था. दो तरफ के धक्के से वो जैसे घायल होने लगी थी ‘आहह हह हहहाआ…’ की आवाज हर वक्त उसके मुँह से निकल रही थी।

थोड़े धक्कों के बाद वो भी हमारा साथ देने लगी. अब वो चिल्ला चिल्ला कर दोनों से मजा लेने लगी थी। दीपक- क्या गर्म औरत है यार … चोद के मजा आ गया। और वो धक्के की स्पीड बढ़ाता गया और कुछ देर बाद वो उसकी गाण्ड में ही झड़ गया.

“आहस शस्स …” मैं भी सुशीला की चूत में झड़ गया. हम वैसे ही वहीं ढेर हो गये। मैं … मेरे ऊपर सुशीला … उसके ऊपर दीपक!

थोडी देर बाद मैं बोला- उठ मादरचोद साली रंडी … अच्छा गद्दा पाया है। मैं नीचे दब रहा हूँ। दीपक ने आहिस्ते से लंड को निकाला सुशीला की गाण्ड से और ढेर हो गया बेड पर … बोला- साली मेरी कमसिन नर्सों से तो ज्यादा ये साली गर्म है. मैं- साले डॉक्टर, कितनी नर्स को चोद चुका है? दीपक- कोई गिनती नहीं … लेकिन अभी तो सिर्फ दो हैं. मैं- मुझे भी उनका स्वाद चखा यार! दीपक- जरूर … कल इसका पेट साफ करेंगे तो वहीं उनसे मिल लेना.

सुशीला और मानसी हैरान हो रही थी हमारी बात सुन के!

दीपक- साली, खड़ी क्यों है? आ खड़ा कर मेरे लंड को चूस के … तेरी माँ को फिर से चोदना है. दीपक की बात सुनकर मानसी उसके लंड पे जाकर झुक गई और उसे मुँह में लेकर चूसना शुरु कर दिया। मैंने भी अपना लंड धीरे से सुशीला के मुंह में पेल दिया. सुशीला धीरे धीरे मेरा लंड चूसने लगी. कुछ ही देर में मेरा लंड भी पूरा रॉड के जैसा टाइट हो चुका था. उधर मानसी ने भी दीपक का लंड चूस कर पूरा खड़ा कर दिया था।

अब दीपक उठ कर सुशीला के तरफ आया और सुशीला को कुतिया बनाकर चोदने लगा. मैंने भी मानसी को फर्श पर कुतिया बना दिया और उसकी चूत में अपना लंड पेल दिया. अब हम दोनों मां बेटियों को रंडियों की तरह कुतिया बनाकर पेल रहे थे।

अब हमने दोनों को एक दूसरे के पास कर दिया और दोनों को एक दूसरे का मुंह चूमने को बोला. दोनों रंडियां माँ बेटी एक दूसरी के होंठ चूस रही थी और पीछे से हम दोनों की चूत चोद रहे थे. मैंने दीपक को इशारा किया कि यार इन दोनों रंडियों की गांड मारते हैं।

मैंने अपना लंड मानसी की चूत से निकाल लिया और उसकी गांड पर थूक दिया. फिर मैंने अपना लंड उसकी गांड के भूरे छेद पर रख के जोर का झटका दिया, मेरा लंड एक ही झटके में मानसी की गांड में आधा घुस गया।

मानसी जोर जोर से रोने चिल्लाने लगी. उधर दीपक ने भी ठीक उसी समय सुशीला की गांड में बिना थूक लगाए सुशीला के गांड में अपना लंड पेल दिया। सूखी गांड में आधा लंड घुसते ही सुशीला जोर जोर से रोने चिल्लाने लगी. अब दोनों मां बेटियां जोर जोर से चिल्ला रही थी और हम दोनों इन दोनों रंडियों की गांड फाड़ रहे थे. हम लोग जोर जोर से दोनों को रंडियों को कुतिया बना के चोद रहे थे और उनकी गांड पर थप्पड़ भी मार रहे थे।

मैंने मानसी की गांड को थप्पड़ मार कर पूरा लाल कर दिया था, उसकी गांड से थोड़ा सा खून भी निकल रहा था. उधर सुशीला का भी यही हाल था. दस मिनट तक जी भर कर गांड चोदने के बाद हम अपना लंड कभी उनके चूत में तो कभी उनके गांड में पेलने लगते।

फिर कुछ देर के बाद हमने अपनी अदला बदली कर ली, अब मैं सुशीला की चूत और गांड मार रहा था और दीपक मानसी की गांड मार रहा था. हम दोनों को इतना मजा आ रहा था जितना जीवन में कभी नहीं आया था।

हम लोग सुशीला और मानसी को बहुत देर तक नॉनस्टॉप पेलते रहे. मानसी की तो हालत बहुत बुरी हो चुकी थी, लग रहा था कि उसमें जान ही नहीं है. वह कुतिया बनने के बावजूद बार-बार गिर जाती थी. उसकी हालत देखकर मैंने मानसी को छोड़ दिया और अपना लंड सुशीला के मुंह में पेल दिया।

पीछे से दीपक सुशीला की कभी चूत और कभी गांड मार रहा था। सुशीला बहुत ही चुदक्कड़ औरत थी। हम लोग सुशीला को बुरी तरह चोद रहे थे।

फिर दीपक नीचे लेट गया और अपने लंड पर सुशीला को बैठने के लिए बोला। सुशीला जब अपनी चूत को दीपक के लंड पर रखने लगी तो दीपक ने अपने लंड को सुशीला की गांड में पेल दिया और जोर लगा कर सुशीला को अपने लंड पर बिठा दिया। सुशीला की गांड आज इतनी चुद चुकी थी कि दीपक का लंड आसानी से उसकी गांड में घुस गया।

अब दीपक ने सुशीला की चूचियों को मुंह में भर लिया और उन्हें काटने लगा। पीछे से मैंने दीपक को बोला- देख रंडी की गांड में एक साथ दो दो लंड घुसाता हूँ. दीपक यह सुनकर हैरान रह गया।

सुशीला यह सुनकर चिल्लाने लगी, वह बोली- क्या कर रहे हो? मैं कोई रंडी थोड़े हूं। मैं बोला- अबे साली, रंडी नहीं है तो क्या है? आज के लिए तू हम लोगों की रंडी ही है। आज देख हम तेरी चूत और गांड का क्या हाल करते हैं. फिर मैंने दीपक को बोला- यार, जल्दी से इसको अच्छे से पकड़ … मैं देखना चाहता हूं कि इसकी गांड में दो दो लंड एक साथ घुस पाते हैं या नहीं! अगर गांड में नहीं घुस पाया तो हम इसकी चूत में दो दो लंड घुसाएंगे।

फिर मैंने सुशीला की गांड पर ढेर सारा थूक लगा दिया और मैंने लंड को सुशीला की गांड पर रखा। जहां पर पहले से ही दीपक का लंड घुसा हुआ था मैंने उसी साइड में अपने लंड को रख कर एक जोर का धक्का मारा। सुशीला इतनी जोर से चिल्लाई कि पूरा कमरा गूँज उठा। लेकिन हमें तो अपने मजे से मतलब था. मेरा लंड सुशीला की गांड में घुस चुका था मानसी चौंककर देखने लगी. वह समझ नहीं पाई कि उसकी मां क्यों चीख रही है। लेकिन अब तो सुशीला को हम लोग किसी रंडी की तरह से चोद रहे थे, रंडी की गांड में भी दो लंड एक साथ नहीं घुस सकता लेकिन मैंने सुशीला की गांड में दो दो लंड घुसा दिये थे। उसकी गांड से खून बहने लगा था लेकिन वह बहुत गर्म हो रही थी इतना कुछ होने के बाद भी वह अपने गांड को हिला रही थी।

मैं समझ गया कि यह कुतिया कितनी गर्म है. फिर मैंने दीपक को बोला- अपना लंड इसकी चूत में घुसा। दीपक ने अपना लंड सुशीला की गांड से निकाल कर उसकी चूत में घुसा दिया. फिर मैंने सुशीला की चूत में भी अपना लंड घुसाया. हम दोनों का लंड जब एक साथ उसकी चूत में पूरा घुसता तो सुशीला चिल्लाने लगती. लेकिन मानना पड़ेगा कि वह बहुत गर्म थी साली। गांड में दो दो लंड पूरा पूरा घुस गए लेकिन एक बार भी बेहोश नहीं हुई.

फिर हम दोनों ने उसे जी भर के चोदा और फिर अपना वीर्य दोनों कुतियों के मुंह में गिराया जिसे दोनों चूस चूसकर पी गई।

इसके बाद दीपक चला गया, उसे अस्पताल जाना था और फिर मैंने सुशीला और मानसी को तैयार होने को कहा।

हम लोग तैयार होकर अस्पताल गए। जहाँ वादे के मुताबिक दीपक ने मानसी का पेट साफ़ कर दिया और दवा वगैरह दे दी। फिर हम लोग कमरे में आ गए जहाँ मानसी को 24 घंटे आराम करना था।

अब कुछ दिनों तक वो नहीं चुद सकती थी इसलिए मैंने सारा ध्यान सुशीला पर लगाया क्योंकि सुशीला अगर पटी रहेगी तो गाँव में भी मुझे मज़े दिला सकती थी अपने भी और अपनी बेटी के भी! इसलिए रात को मैंने सुशीला को अपनी बीवी की तरह से प्यार किया और उसे जी भर के संतुष्ट किया और अपनी गलती की माफ़ी भी मांग ली। अब वो मेरी दीवानी हो गई थी।

फिर दूसरे दिन को मैंने सुशीला को शहर घुमाया और उसकी पसंद के कपड़े भी दिलाये, उस पर मैंने दिल खोलकर खर्च किया। मानसी के लिए भी कपड़े लाया और उससे भी माफी मांगी। उसने मुझे माफ़ कर दिया। आगे मैंने उसे किसी भी लड़के से दूर रहने को कहा।

अब मानसी भी कुछ ठीक हो चुकी थी इसलिए हम लोग शाम की बस से गाँव आ गए।

सुशीला ने पंडितजी से बोलकर जल्दी ही मानसी की शादी करा दी क्योंकि वह जान गई थी की मानसी की शादी नहीं हुई तो वो गलत रास्ते पर जा सकती है। बाद में भी मैंने कई बार सुशीला को चोदा जब पंडितजी गाँव से बाहर गए होते थे।

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