मुन्नी की कमसिन बुर की पहली चुदाई-1

मेरा नाम सावित्री है लेकिन मुझे मुन्नी कहकर ही बुलाते हैं. मेरे माँ बाप बचपन में गुजर गए थे. मेरी चढ़ती जवानी में मुझे मेरी मौसी गाँव से एक आर्मी ऑफिसर के यहाँ घर में काम करने के लिये छोड़ गयी थी. अंकल की उम्र 55-56 साल की रही होगी. वे लंबे चौड़े तो थे ही, साथ में बहुत ही गोरे थे. अंकल मुझे प्यार से मुन्नी बुलाते थे. अंकल मुझे हर रोज टाफी देते थे और मुझे टाफी चूसने में बहुत मजा आता था. आर्मी आफिसर अपनी पत्नी के साथ रहते थे. तीन साल के बाद उनकी पत्नी भी गुजर गयी. तब से अंकल और मैं ही रह गयी. हम दोनों हर वक्त साथ साथ रहते थे जैसे हम दोस्त हों. आंटी की मौत के बाद अंकल और मैं रोज साथ नहाते थे. नहाने के समय अंकल मेरे जिस्म पर खूब रगड़ते थे. मेरी छाती में उभार आ चुके थे, शुरू शुरू मैं इन उभारों पर ध्यान नहीं देती थी, पर कुछ दिनों बाद मुझे लगने लगा कि अंकल मेरे उभारों को कुछ ज्यादा ही दबाने लगे.

मौसी के घर तो मुझे रूखा सूखा खाने को मिलता था तो मैं अपनी उम्र के हिसाब से छोटी दिखती थी पर यहाँ इन अंकल के घर में खाने पीने को खूब मिलता था तो मेरी जवानी खूब खिल उठी थी.

एक रात खाना खाने के बाद मुझे अलमारी से दवा लाने को बोले और एक गिलास में पानी के साथ मिलाकर पीने लगे. मैं- ये क्या है? अंकल- इसे पीने से सर्दी नहीं लगती है. बदन में गर्मी आ जाती है. मैं- तब तो मुझे भी पीना है.

अंकल ने मुझसे गिलास लाने को कहा. मैं एक गिलास लाई और उसमें लेकर पी गई. कुछ ही देर में मुझे नशा हो गया और गर्मी लगने लगी. अंकल ने मुझे बुलाया और मेरे जिस्म पे हाथ फेरा और मेरे होंठों को चूसा. दस मिनट ऐसा करने के बाद अंकल ने मुझे टॉफी दे दी और बोले ये बात किसी को नहीं कहना वरना टॉफी नहीं मिलेगी.

ऐसा काफी दिनों तक चलता रहा वे मुझे रोज रात को दवा पिलाते और मेरे बदन को चूमते सहलाते. इससे मुझे भी मजा आने लगा था.

फिर एक दिन अंकल ने मुझे दवा पिलाई और आज उन्होंने मुझे बिना पानी के दवा पिला दी थी. मुझे बड़ी कड़वी सी लगी तो अंकल ने मुझे झट से टॉफ़ी दे दी. इसके बाद वो मुझे अपने बिस्तर पर ले गए. वहां पे लिटा के उन्होंने पहले 5 मिनट मुझे चूम चूम के बेहाल कर दिया. मैं भोली भाली कमसिन थी, मुझे क्या पता था कि यह सब क्या होता है.

अब मुझे नशा हो चला था. मेरा कलेजा तेज़ी से धक धक कर रहा था. अंकल ने मेरा एक हाथ पकड़ कर मुझे उठाया और बेड पर बिठा दिया. फिर बेड के बीच में बैठ कर वो मेरा हाथ पकड़ कर खींच कर मुझे अपनी गोद में बैठाने लगे. अंकल के मजबूत हाथों के खिंचाव से मैं उनकी गोद में बैठ गयी.

अगले पल मानो एक बिजली सी उनके शरीर में दौड़ उठी. मैं अपने पूरे कपड़े में थी. गोद में बैठते ही अब मेरी छोटी छोटी चुचियां केवल समीज़ में एकदम बाहर की ओर निकली हुई दिख रही थीं. मैं अपनी आँखें लगभग बंद कर रखी थीं. लेकिन मैंने अपने हाथों से अपनी चुचियों को ढकने की कोई कोशिश नहीं की. मेरी दोनों चुचियां समीज़ में एकदम से खड़ी खड़ी सी थीं. मानो मैं खुद ही अपनी दोनों गोल गोल कसी हुई चूचियों को दिखाना चाहती होऊं.

मैं अंकल जी की गोद में बैठे ही बैठे मस्त होती जा रही थी. दवा का असर भरपूर हो चला था. अंकल जी ने मेरी दोनों चूचियों को गौर से देखते हुए उन पर हल्के से हाथ फेरा, मानो चूचियों की साइज़ और कसाव नाप रहे हों. अंकल जी का हाथ फेरना और हल्का सा चूचियों का नाप तौल करना मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था. इसी वजह से मैंने अपनी चूचियों को छुपाने के बजाए कुछ उचका कर और बाहर की ओर निकाल दी. जिससे अंकल मेरी चूचियों को अपने हाथों में पूरी तरह से पकड़ लें.

मैं उनकी गोद में एकदम मूर्ति की तरह बैठ कर मज़ा ले रही थी. फिर अगले पल मैं खुद ही अंकल के गोद में आगे की ओर थोड़ी सी उचकी और अपनी समीज़ को दोनों हाथों से खुद ही निकालने लगी. अंकल ने इसमें मेरी सहायता की और पूछा- गर्मी लग रही है न? मैं- हाँ.

मैंने समीज को अपनी दोनों चूचियों के ऊपर से जैसे ही हटाया कि मेरी दोनों चुचियां एक झटके के साथ बाहर आ गयीं. चुचियां जैसे ही बाहर आईं कि मेरी मस्ती और अधिक बढ़ गयी और मैं सोचने लगी कि अंकल जल्दी से मेरी दोनों चूचियों को कस कस कर मींजें.

मेरी नंगी चूचियों पर अंकल अपना हाथ फिरा कर चूचियों के आकार और कसाव को देख रहे थे, जबकि मेरी इच्छा थी कि वे चूचियों को अब ज़ोर ज़ोर से मसलें. आख़िर मैं लाज़ के मारे कुछ कह नहीं सकती थी, तो अपनी इस इच्छा को अंकल के सामने रखने के लिए मैंने अपने नीबूओं को बाहर की ओर उचकाया. अब मैं एक मदहोशी भरे अंदाज़ में गोद में कसमसा दी.

इससे अंकल समझ गए और बोले- अपनी चढ़ती जवानी का धीरे धीरे मज़ा ले … समझी!

फिर अंकल ने मेरी दोनों चूचियों को कस कस कर मींज़ना शुरू कर दिया. ऐसा देख कर मैं भी अपनी छातियों को अंकल के हाथ में उचकाने लगी. अंकल रह रह कर मेरे चूचियों की घुंडियों को भी ऐंठने लगे. इससे मेरे मुँह से अजीब सी सिसकारियां निकल रही थीं ‘आह्ह ऊईई ईईई … ओऊह्ह आह्ह ऊईईई … ऐसे ही मसलो …’ मुझे बहुत मजा आ रहा था. मैं चाह रही थी कि अंकल चूचियों को कस कस के मसलते रहें. मुझे अंकल के गोद में बैठ आनन्द आ रहा था.

तभी अंकल ने मेरी एक चूची को इतनी ज़ोर से दबाया कि मैं दर्द के मारे बिस्तर से उतर कर खड़ी हो गयी. अंकल बेड पर पैर लटका कर बैठ गए और मुझे अपनी खींच लिया.

फिर उन्होंने मेरी दोनों चूचियों को मुँह में लेकर खूब चुसाई शुरू कर दी. अब क्या था … मेरी की आँखें मुंदने लगीं और जांघों के बीच अब सनसनाहट फैलने लगी. उसके बाद उनके होंठ फिसलते हुये मेरे एक चूचुक पर आकर रुके और अपने मुँह में लेकर जोर जोर से चूसने लगे. मेरे सारे बदन में एक सिहरन सी दौड़ने लगी. मैं अपने सिर को उत्तेजना में झटकने लगी और उनके सिर को अपनी छाती पर जोर से दबाने लगी.

मेरे एक स्तन का सारा रस पीने के बाद उन्होंने दूसरे स्तन को अपने मुँह में ले लिया और उसे भी चूसने लगे. मैंने देखा कि पहला चूचुक काफ़ी देर तक चूसने के कारण काफ़ी फूल गया था. मुझको मानो स्वर्ग का मजा मिल गया था. कोई कमसिन और कुवांरी लड़की की चुचियों को पी रहा हो तो मजा तो आना लाजिमी था.

अंकल का गर्म हाथ घुंडियों को रगड़ने से मेरे मुँह से मादक आवाजें निकल रही थीं- उफ … उफ … उई … इस्स … उह … उम … ओह … और चूसो अंकल!

थोड़ी देर की चुसाई के बाद मेरी पूरे देह में चुनचुनी उठने लगी … मानो चींटियां रेंग रहीं हों. अब मैं कुछ और मस्त हो गयी थी. मेरी लाज़ और शर्म मानो शरीर से गायब होती जा रही थीं.

अंकल जी … जो कि काफ़ी गोरे रंग के थे और मैं काफ़ी सांवले रंग की थी. मेरी चुचियां भी सांवली थीं. मेरी चूचियों के ऊपर की घुंडियां तो एकदम से काले अंगूर की तरह थीं, जो अंकल जी के गोरे मुँह में काले अंगूर की तरह कड़े और खड़े होकर रस बिखेर रही थीं. अंकल मजे से मेरे काले अंगूर चूस रहे थे. एकदम दूध से गोरे अंकल जी की गोद में बैठी मैं एकदम काली नज़र आ रही थी. दोनों के रंग एक दूसरे के विपरीत ही थे. अंकल जी अब मेरे दोनों होंठों को अपने होंठों में कस कर चूसने लगे. मेरी शरीर उनके देह के साथ सट गयी.

अंकल ने फिर मुझे बिस्तर पर लिटाया और फिर से मेरी दोनों चूचियों को मुँह में लेकर खूब चुसाई शुरू कर दी. मैं- बदन अब जल रहा है. अंकल- कहां कहां जल रहा है? मैं- पेट के नीचे ज्यादा. अंकल- अपने हाथों से दिखाओ. मैं- मेरी नूनी के पास. अंकल- सलवार को उतार कर दिखाओ.

मैंने झट से सलवार को खोल दिया और फिर लेट गयी. अंकल- अब यह नूनी नहीं है, यह तो चुत बन गयी है. मैं- यह चुत क्या होता है? अंकल- तुम जवान हो गयी हो … इसको अब नया खिलौना चाहिए. यह कह कर अंकल खड़े हो गए और बोले कि चुत का खिलौना इसके अन्दर है, उसको निकाल लो.

मैंने अंकल की लुंगी को हटाया तो अंकल को बोली- यह तो आपका नुनु है … खिलौना कहां है? अंकल ने बोला कि यह नुनु नहीं यह अब लौड़ा है और इसको लंड कहते है. इसी से चुत खेलती है. मैं- लंड से क्या करते हैं? अंकल- इसको अपने हाथों से पकड़ो, सहलाओ, फिर देखना.

उस वक्त अंकल का लंड लटका हुआ था जो 4-5 इंच लंबा था. फिर अंकल ने मेरे एक हाथ को अपने हाथ से पकड़ कर लंड से सटाते हुए पकड़ने के लिए कहा. मैंने अंकल के लंड को काफ़ी हल्के हाथ से पकड़ा क्योंकि मुझे कुछ लाज़ लग रही थी. अंकल के लंड का रंग भी गोरा था और लंड के अगल बगल काफ़ी झांटें उगी हुई थीं.

अंकल ने देखा कि मैं उनके लंड को काफ़ी हल्के तरीके से पकड़े हुए हूँ और कुछ लज़ा रही हूँ, तब वो धीरे से बोले- अरे कस के पकड़ … ये कोई साँप थोड़ी है कि तुम्हें काट लेगा … थोड़ा सुपारे की चमड़ी को आगे पीछे कर … अब ये सब करने की तुम्हारी उम्र हो गयी है … थोड़ा मन लगा के लंड का मज़ा लूट.

मैंने लंड को सहलाना शुरू किया, तो वह धीरे धीरे अपना आकार लेने लगा. शर्म से मैं आँख बंद कर लंड को दोनों हाथों से पकड़ कर आगे पीछे करने लगी. मैं- अंकल, यह तो बहुत लंबा हो गया … ऐसा क्यों हुआ? अंकल- यह बोल रहा कि मुझको चूसो. मैं- इसे चूसने से क्या होगा? अंकल- चूसने से तुम्हारे बदन की गर्मी को ठंडी लगेगी. पहले इस लंड के ऊपर वाली चमड़ी को पीछे की ओर सरका.

मैंने चमड़ी को सरकाया तो गुलाबी रंग का मुंड दिखाई दिया. अंकल- इसे सुपारा कहते हैं और थोड़ा सुपारे पर नाक लगा के सुपारे की गंध सूंघ कर देख.

ये सब सुन कर भी मैं चुपचाप वैसे ही बगल में बैठी हुई लंड को एक हाथ से पकड़े हुए थी और कुछ पल बाद कुछ सोचने के बाद सुपारे के ऊपर वाली चमड़ी को अपने हाथ से हल्का सा पीछे की ओर खींच कर सरकाना चाहा. फिर अपनी नजरें उस लंड और सुपारे के ऊपर वाली चमड़ी पर गड़ा दीं. मैं बहुत ध्यान से लंड को देख रही थी कि अंकल का लंड एकदम साँप की तरह चमक रहा था और सुपारे के ऊपर वाली चमड़ी मेरे हाथ की उंगलियों से पीछे की ओर खिंचाव पाकर कुछ पीछे की ओर सरक गई. अंकल के लंड की चमड़ी सुपारे के पिछले हिस्से पर से जैसे ही पीछे को हुई कि सुपारा एक मस्त टमाटर सा दिखने लगा. अब चमड़ी, लंड के इस काफ़ी चौड़े हिस्से से तुरंत नीचे उतर कर लंड वाले हिस्से में आ गयी थी. अंकल जी के लंड का पूरा सुपारा बाहर आ गया था. अंकल का लंड ऐसे हुआ, जैसे लगा कि कोई फूल खिल गया हो और चमकने लगा हो.

जैसे ही सुपारा बाहर आया कि अंकल जी मुझसे बोले- देख … इसे सुपारा कहते हैं और औरत की चुत में सबसे पहले यही घुसता है, अब अपनी नाक लगा कर सूँघो और देखा कैसी महक है इसकी, तुम इसकी गंध सूँघोगी तो तुम्हारी मस्ती और बढ़ेगी … चल जल्दी से सूंघ इसे.

मैंने काफ़ी ध्यान से सुपारे को देखा लेकिन मेरे पास इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं सुपारे के पास अपनी नाक ले जाऊं. तब अंकल ने मेरे सिर के पीछे अपना हाथ लगा कर मेरी नाक को अपने लंड के सुपारे के काफ़ी पास ला दिया, लेकिन मैं अब भी उसे सूंघ नहीं रही थी.

अंकल ने कुछ देर तक मेरी नाक को सुपारे से लगभग सटाये रखा. मैंने जब साँस ली, तब लंड से एक मस्तानी गंध आनी शुरू हो गई. ये महक सुपारे की थी, जोकि मेरी नाक में घुसने लगी और मैं कुछ मस्त हो गयी. फिर मैं खुद ही सुपारे की गंध सूंघने लगी और ऐसा देख कर अंकल ने अपना हाथ मेरे सिर से हटा लिया और मुझे खुद ही सुपारा सूंघने दिया.

मैं कुछ देर में ही लंड की महक सूंघ कर मस्त हो गयी. फिर अंकल ने मुझसे कहा- अब सुपारे की चमड़ी को फिर आगे की ओर लाकर सुपारे पर चढ़ा दो.

यह सुन कर मैंने अपने हाथ से सुपारे के चमड़ी को सुपारे के ऊपर चढ़ाने के लिए आगे की ओर खींचा और कुछ ज़ोर लगाने पर चमड़ी सुपारे के ऊपर चढ़ गयी. मैंने अंकल के लंड के सुपारे को पूरी तरीके से ढक दिया. लंड की चमड़ी मानो कोई नाप का कपड़ा हो, जो सुपारे ने पहन लिया था.

अंकल ने देखा कि मैं उनके लंड को काफ़ी ध्यान से अपने हाथ में लिए हुए देख रही हूँ. तो उन्होंने थोड़ी देर तक वैसे ही लंड को पकड़े रहने दिया. मेरे सांवले हाथ में पकड़ा हुआ अंकल का गोरा लंड अब झटके भी ले रहा था.

फिर अंकल बोले- अब चमड़ी को फिर पीछे और आगे करके मेरे लंड की मस्ती बढ़ाना चालू कर ना या बस ऐसे ही बैठी रहेगी … अब तू सयानी हो गयी है और … तो लंड से कैसे खेला जाता है, कब सीखेगी? तुझको इतनी गदरायी जवानी और शरीर मिला है कि बस तू ये सब सीख ले कि किसी मर्द से ये काम कैसे करवाया जाता है और शेष तो भगवान तेरे पर बहुत मेरहबान है. अंकल ये बोले और मुस्कुरा उठे. मैं भी नशीली आंखों से मुस्कुरा दी.

अंकल आगे बोले- लंड तो देख लिया, सूंघ भी लिया और अब इसे चाटना और चूसना रह गया है … इसे भी सीख लो. चलो इस सुपारे को थोड़ा अपने जीभ से चाटो. आज तुम्हें इत्मीनान से सब कुछ सिखा दूँगा. मैंने लंड को सहलाया तो अंकल आगे बोले- चलो अब जीभ निकाल कर इस सुपारे पर फिराओ.

साथियो, क्या आपको मेरी पहली चुदाई की कहानी पढ़ने में मजा आ रहा है. यदि हां तो देर किस बात की है. जल्दी से अपने में मुझे लिख भेजिएगा. बाकी का रस अगले भाग में लिखती हूँ. [email protected] कहानी जारी है.

कहानी का अगला भाग: मुन्नी की कमसिन बुर की पहली चुदाई-2