वासना का मस्त खेल-10

अब तक इस हॉट कहानी में आपने पढ़ा कि प्रिया इस वक्त बहुत ही चुदासी हुई पड़ी थी. उसकी चुदाई को मैंने स्लो कर दिया था. जिससे वो मुझे घूरने लगी थी. अब आगे:

प्रिया की हालत पर मुझे भी अब तरस आ गया, इसलिए मैंने अब फिर तेजी से धक्के लगाने शुरू कर दिए‌.‌ इससे प्रिया ने मुझे अब कुछ कहा तो‌ नहीं मगर उसने फिर से मेरे होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया.

इस बार उसने मेरे दोनों होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें जोरों से चूसते हुए काटने लगी. मेरे होंठों को जोरों से चूसते हुए प्रिया अब खुद भी अपनी कमर को अपनी पूरी तेजी से हिलाने लगी थी. मैं भी अब तेजी से प्रिया की चुत को अपने लंड पर घिसने लगा था.

बस कुछ देर ही हमने ऐसे ही तेजी से धक्के लगाये थे कि अचानक से प्रिया मुझसे किसी बेल‌ की तरह लिपट गयी और उसका बदन अकड़ सा गया. उसकी चुत की दीवारें मेरे लंड पर कस गईं और उसने मुँह से ‘उऊऊऊ … अह्हहह … ओहहह …’ की आवाजें निकालते हुए रह रह कर अपनी चुत के अन्दर ही अन्दर मेरे लंड को प्रेमरस से नहलाना शुरू कर दिया.

मैं सच बता रहा हूँ, उस दिन प्रिया की चुत ने इतना प्रेमरस उगला था कि मेरा लंड उसकी चुत‌ में घुसा हुआ होने के बावजूद भी किनारों से उसकी चुत ने प्रेमरस की इतनी पिचकारियां मारी थीं कि उससे मेरे पेट के साथ साथ मेरी दोनों जांघें भी भीग गयी थीं.

प्रिया का स्खलन हो गया था, मगर मैं अब भी प्यासा ही था. इसलिए मैं अब जल्दी से प्रिया को अपनी गोद में लिए लिए ही आगे की तरफ गिर गया. इससे प्रिया अब मेरे नीचे आ गयी और मैं उसके ऊपर चढ़ गया. प्रिया के ऊपर आकर मैंने अब तेजी से धक्के लगाने शुरू कर दिए, जिससे मेरा पूरा लंड अब प्रिया की नन्ही सी चुत में अन्दर बाहर होने लगा.

प्रिया अब भी बेसुध सी ही थी, मगर तेजी से मेरा लंड अब उसकी नन्ही चुत की दीवारों को घिसने लगा, तो वो अब कराहने लगी. हालांकि प्रिया की चुत से निकले प्रेमरस से उसकी चुत की दीवारें अब और भी चिकनी हो गयी थीं, मगर तब भी प्रिया को शायद तकलीफ हो रही थी. इधर मुझे अब होश ही कहां था. मैं अपनी ही धुन में लगातार धक्के लगाता रहा, जिससे प्रिया अब जोरों से कराहने लगी- आआ … अहह्हह … ओय्य … बस्स्स … अब बहुत जल रहा है … प्रिया ने मेरी कमर को पकड़कर कराहते हुए कहा.

‘बस्स मेरी जान … हो गया अब …’ कहते हुए मैंने प्रिया को सांत्वना देने के लिए उसके गालों पर एक बार प्यार से चूमते हुए कहा और फिर से तेजी से धक्के लगाने लगा. प्रिया अब भी कराहती रही, मेरे हरेक धक्के के साथ वो जोरों से ‘आआआ … अह्हह … मम्मीईई … मरीईईई … आआआह … इह्हह … ओय्य्य …’ कर रही थी, मगर फिर भी मैं धक्के लगाता रहा … क्योंकि मैं भी अब चरमोत्कर्ष के करीब ही था.

प्रिया ने कराहते हुए एक बार फिर से मुझे अब रोकने की कोशिश की, मगर मैं अब रूका नहीं और अपनी पूरी तेजी और ताकत से लंड से धक्के लगाता रहा. फिर कुछ ही देर में मैं भी चरम पर पहुंच गया, मैंने प्रिया को अपनी बांहों में जोरों से भींच लिया और चार पांच किस्तों में उसकी चुत को अपने वीर्य से पूरा भरकर उसके ऊपर ही निढाल होकर गिर गया.

कुछ देर तक तो मैं ऐसे ही प्रिया के ऊपर लेटा रहा मगर फिर प्रिया बोल उठी- चलो अब उठो … बहुत हो गया हां … मम्मी भी आने वाली होंगी! प्रिया ने प्यार से मेरे गालों को चूमते हुए कहा.

“नहीं थोड़ी देर और लेटी रहो ना!” मैंने प्रिया पर लेटे लेटे ही कहा‌, मगर प्रिया ने धकेलकर मुझे अपने ऊपर से उतार दिया और उठकर अपने कपड़े पहनने लगी.

अपने कपड़े पहनने‌ के‌ बाद प्रिया ने मुझे भी अब कपड़े‌ पहनने के‌ लिए कहने लगी लेकिन‌ थकान के कारण मेरा‌ तो उठने का दिल‌ ही नहीं कर रहा था.

“मैं जा रही हूँ … मम्मी आने वाली होंगी, इसलिए तुम‌ भी‌ अब‌ अपने‌ कपड़े‌ पहन‌ लो.” प्रिया ने अब जबरदस्ती मुझे खींचकर उठाते हुए कहा. मेरा उठने का दिल‌ तो नहीं कर रहा था मगर सुलेखा भाभी के डर के कारण मैं भी अब उठकर अपने‌ कपड़े पहनने‌ लगा‌ और प्रिया‌ कमरे से बाहर चली गयी.

मैं अभी‌ अपने‌ कपड़े पहन‌ ही रहा था कि तभी मुझे आवाज आई ‘अरे … मम्मी आप‌ कब आईं?’ बाहर से ही प्रिया की घबराई हुई आवाज सुनाई दी. शायद सुलेखा‌ भाभी आ गयी थीं. डर के मारे मैं अब जल्दी जल्दी अपने‌ कपड़े‌ पहनने‌ लगा.

मगर तभी मेरे दिमाग में आया कि उस समय दरवाजे पर जो आया था, कहीं वो सुलेखा भाभी तो नहीं थीं? नहीं … नहीं … सुलेखा भाभी कैसे हो सकती हैं? अगर वो सुलेखा भाभी होतीं, तो अभी तक‌ घर में हंगामा नहीं हो जाना था. मुझे अब डर लगने लगा था इसलिए कपड़े पहनने के बाद मैं सुलेखा भाभी की व प्रिया की बातें सुनने के लिए दरवाजे के पास जाकर खड़ा हो गया. मगर बाहर मुझे सब‌ कुछ सामान्य ही लगा.

मैंने भी अब सोचा कि शायद वो मेरा वहम था, इसलिए कुछ देर बाहर की बातें सुनने के बाद मैं वापस अपने बिस्तर पर आकर लेट गया. नेहा और प्रिया की चुदाई से मैं काफी थक गया था, इसलिए पता नहीं, कब मुझे नींद आ गयी.

थकावट के कारण मुझे इतनी गहरी नींद लगी कि पता ही नहीं चला, कब रात हो गयी. रात में जब मुझे अपने सीने पर भार सा महसूस हुआ तो मेरी नींद खुली. मैंने आंखें खोलकर देखा तो नेहा मेरे ऊपर लेटी हुई थी और गालों‌ को चूम‌ रही थी. मैंने अब घड़ी में देखा तो उस समय रात के ग्यारह बज रहे थे.

मैंने रात का खाना भी नहीं खाया था और शाम‌ से सो ही रहा था. मैंने जब नेहा से पूछा कि मुझे उठाया क्यों नहीं तो उसने बताया कि वो प्रिया ने मम्मी को बोल‌ ये दिया था कि तुम्हारी तबियत खराब है इसलिए!

इतना कहकर नेहा अब फिर से मेरे गालों को चूमने लगी. नेहा ने भी खिड़की से मेरी और प्रिया‌ की चुदाई देख ली थी, इसलिए शायद वो तब से ही उत्तेजित थी.

मैंने भी अब नेहा की एक अच्छी सी चुदाई करके उसका साथ दिया. मगर नेहा की चुदाई करते समय बार बार मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कि खिड़की से कोई हमें देख रहा हो … बाहर अन्धेरा था इसलिए कोई नजर तो नहीं‌ आया था मगर काफी बार मुझे किसी‌ के‌ होने‌ की आहट हुई थी.

खैर चुदाई के बाद नेहा तो वापस अपने कमरे में चली गयी. मगर उसके कुछ ही देर बाद ही प्रिया मेरे कमरे में आ गयी. अब प्रिया के साथ भी मेरा एक अच्छा खासा चुदाई का दौर चला. मगर प्रिया की चुदाई करते समय भी मुझे ऐसा लगता रहा, जैसे कि अभी भी कोई हमें खिड़की से देख रहा है.

नेहा और प्रिया की चुदाई करते करते मुझे रात के तीन बज गए थे और मैं काफी थक‌ भी गया था. इसलिए बिस्तर पर गिरते ही मुझे अब नींद आ गयी.

अगले दिन एक तो इतवार की छुट्टी थी और दूसरा नेहा व प्रिया के कारण मैं रात भर ठीक से सोया भी नहीं था, इसलिए अगले दिन मैं काफी देर तक सोता रहा‌.

बारह बजे के करीब जब मेरी नींद खुली और जब तक मैं तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आया तो दोपहर के खाने का समय हो गया था.

नेहा, प्रिया और सुलेखा भाभी साथ में ही खाना खा रही थीं, इसलिए मैं भी अब उनके साथ ही खाना खाने के लिए बैठ गया. “तबीयत कैसी है अब तुम्हारी?” सुलेखा भाभी ने मुझे घूरकर देखते हुए कहा.

मैंने सोचा कि मैं देर तक सोता रहा था, इसलिए सुलेखा भाभी ऐसा पूछ रही हैं. “जी … अब बिल्कुल ठीक है.” मैंने हंसते हुए बिल्कुल सामान्य सा ही जवाब दिया‌‌. “अरे … मम्मी ठीक‌ क्यों नहीं होगा? कल से ही मैं और नेहा दीदी इसे दवाई दे रहे हैं.” प्रिया ने अब शरारत से मेरी तरफ देखते हुए कहा, जिससे मुझे भी हंसी आ गयी और मैं नेहा की तरफ देखने लगा.

नेहा भी मेरी तरफ देख रही थी. उसे ये तो पता चल गया था कि प्रिया ने बातों ही बातों में हमारे सम्बन्धों पर ताना मारा था. मगर उसे ‘दवाई’ के बारे में कुछ समझ नहीं आया था. इसलिए वो गुस्से से मेरी तरफ देखने लगी.

मगर तभी … “ठीक है … ठीक है … पता है मुझे!” सुलेखा भाभी ने अब गुस्से से प्रिया की तरफ देखते हुए कहा, जिससे प्रिया सहम सी गयी और मेरी तरफ देखने लगी.

मुझे भी अब ये कुछ अजीब सा लगा था. इसलिए मैं अब सुलेखा भाभी की तरफ देखने लगा. वो अब फिर से मेरी तरफ घूर घूर कर देख रही थीं. “दवाई की नहीं, इसे अब डॉक्टर की जरूरत है!” सुलेखा भाभी ने अब फिर से मेरी तरफ घूर कर देखते हुए कहा और खाना खाने लगीं. जिससे मुझे अब थोड़ा डर सा लगने लगा और मैं चुपचाप खाना खाने लगा.

अब किसी ने कोई बात नहीं की, सब चुपचाप‌ अपना अपना खाना खाने लगे. मगर जब तक हमने खाना खाया, तब तक सुलेखा भाभी ऐसे ही मुझे घूर घूर कर देखती रहीं. सुलेखा भाभी के ऐसे देखने से मुझे अब डर सा लगने लगा था.

खैर खाना खाने के बाद मैं अब अपने कमरे में आ गया और सुलेखा भाभी के बारे में सोचने लगा. मुझे अब शक सा होने लगा था कि कहीं सुलेखा भाभी को हमारे बारे पता तो नहीं चल गया, क्योंकि कल शाम से ही सुलेखा भाभी का व्यवहार और बातचीत मुझे कुछ अजीब सी लग रही थी. मैं जब भी उनके सामने जाता था, तो वो मुझे घूर घूर कर और कुछ अजीब सी ही नजरों से देखने‌ लगती थीं.

अगर सुलेखा भाभी को सब पता चल ही गया है तो फिर अभी तक वो मुझसे, या फिर नेहा व प्रिया से कुछ कह क्यों नहीं रही थीं. कहीं वो किशोर भैया के आने का इन्तजार तो नहीं कर रहीं क्योंकि आज सुबह ही किशोर भैया ऑफिस के किसी काम से दो दिनों के लिए शहर से बाहर चले गए थे.

शायद सुलेखा भाभी किशोर भैया के ही आने का इन्तजार कर रही हैं, इसलिए ही वो मुझे ज्यादा कुछ कह नहीं रही थीं. अगर सही में सुलेखा भाभी को हमारे बारे में पता चल गया है, तो कल किशोर भैया आने के बाद मेरी पिटाई होना अब तय ही था.

मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी सुलेखा भाभी मेरे कमरे में आ गईं.

“ये जो रोज रोज तुम्हारी तबियत खराब हो रही है … ये ऐसे नहीं ठीक होने वाली, तुम्हें अब डॉक्टर की जरूरत है.” सुलेखा भाभी ने मेरी तरफ घूरकर देखते हुए गुस्से से कहा. “ज …ज जी …” डर के कारण मेरे मुँह से बस अब इतना ही निकला था कि तब तक सुलेखा भाभी मेरे बिस्तर के पास आ गईं. “तुम्हारी तबियत बार बार क्यों खराब हो रही है और नेहा व प्रिया तुम्हें कौन सी दवाई दे रही हैं … मुझे ये सब पता है … कल‌ से तुम‌ तीनों का ये खेल देख रही हूँ मैं!” सुलेखा भाभी ने गुस्से से मेरी तरफ‌ देखते हुए कहा और वापस मुड़कर जाने‌ लगीं.

डर के कारण मेरा गला अब सूख गया था और मुझे अब अपनी पिटाई होना तय ही लगने लगा था. मेरी सोच ने मेरी बुद्धि खराब कर दी थी. पिटाई तो ठीक है, मगर मुझे जब यहां से निकाल देंगे तो मैं अपने घर पर क्या जवाब दूँगा? अब ये सोच कर तो मैं अन्दर तक‌ ही हिल सा गया.

“अब क्या करूँ? क्या ना करूँ?” ये सोच सोचकर मेरा दिमाग खराब हो रहा था कि तभी मेरे दिमाग आया. “अगर सुलेखा भाभी को सब पता चल ही गया है और मेरी पिटाई होना तय ही है, तो क्यों ना मैं सुलेखा भाभी को ही पटाने की एक आखिरी कोशिश कर लूँ?”

वैसे भी सुलेखा भाभी के साथ ऐसा कुछ करने के विचार तो मेरे दिल में तब से ही थे, जबसे मैं यहां आया था‌ क्योंकि मेरे साथ सुलेखा भाभी का व्यवहार की कुछ ऐसा था. उनका मुझसे वो खुलकर बातें करना, हंसी मजाक करना … और बातों बातों में मुझे छेड़ना कुछ अलग सा ही था. वैसे भी देखने में सुलेखा भाभी बहुत खूबसूरत हैं.

जब इस दिशा में सोचना शुरू किया तो दिमाग आगे सोचता ही चला गया. किशोर भैया और सुलेखा भाभी की उम्र में काफी अन्तर है‌ और जब उनकी उम्र में इतना इतना अन्तर है, तो उनके रिश्तों में भी कुछ ना कुछ कमी तो रहती ही होगी.

मैं काफी बार सोचता रहता था कि क्यों ना मैं सुलेखा भाभी और किशोर भैया की उम्र के इस अन्तर के तार को छेड़ कर सुलेखा भाभी के साथ अपने प्यार की पींग बढ़ाने की कोशिश कर ली‌ जाए. मगर प्रिया और नेहा में उलझे रहने के कारण कभी कोशिश करने का समय ही नहीं मिल पाया था.

अब वैसे भी मेरी पिटाई तो होना तय ही है. अगर कुछ गड़बड़ भी हो जाएगी तो अब इससे ज्यादा कुछ फर्क‌ नहीं पड़ने वाला और अगर … अगर मैं कामयाब हो जाता हूँ तोओओ … एक चूत और मेरे लंड के नाम हो जाएगी. लोगों की तो दो उंगलियां घी में होती हैं मगर मेरी तो तीन हो जाएंगी … प्रिया, नेहा और सुलेखा‌ भाभी!

सुलेखा भाभी अभी दरवाजे पर ही पहुंची‌ थीं कि अब ये बात मेरे दिमाग में आते ही मैंने बिजली की सी फुर्ती से उठकर सुलेखा भाभी को दरवाजे पर ही पकड़ लिया.

अचानक हमले से सुलेखा भाभी अब बुरी तरह घबरा गईं- य ये ये … त त तुम्म्म … क्क्या कर रहे होओओ? छ छछोड़ मुझे … उउऊ ऊह्ह्ह … सुलेखा भाभी ने मेरी‌ बांहों में कसमसाते हुए कहा. “कुछ‌ नहींई … आप ही तो कह रही हो कि नेहा और प्रिया की दवाई से मेरा कुछ नहीं होने वाला, मुझे अब डॉक्टर की‌ जरूरत है इसलिए अब डॉक्टर से दवाई लेने की कोशिश कर रहा हूँ.” मैंने सुलेखा भाभी को अपनी बांहों में भरकर जोरों से भींचते हुए कहा.

“आने दो कल तुम्हारे भैया को, अब वो ही खबर लेंगे तुम्हारी?” सुलेखा भाभी ने अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा. “आपको जब कल से पता था, तो आपने कल ही भैया को क्यों नहीं बता दिया, कल तो वो घर पर ही थे? मगर कल तो आप भी खिड़की से हमें देख देख कर मजा ले रही थीं.” मैंने सुलेखा भाभी की आंखों में देखते हुए कहा.

एक पल के लिए सुलेखा भाभी ने अब मेरी आंखों में देखा और फिर अपना चेहरा घुमा लिया. उनका पूरा बदन अब जोरों से कांपने लगा था.

मुझे नहीं पता था कि कल जो मुझे खिड़की से किसी के देखने का वहम सा हुआ था, वो सुलेखा भाभी ही थीं. मैंने तो ये अन्धेर में ऐसे ही तीर चलाया था मगर वो सही निशाने पर लगा था. क्योंकि मैंने सुलेखा भाभी की मनोदशा भांप ली थी. मैंने आगे बढ़कर उनके चेहरे को एक बार फ़िर अपने हाथों में लेकर अपनी तरफ घुमाया और एकटक देखते हुए उनके जवाब का इंतज़ार करने लगा.

उनका चेहरा अब टमाटर की तरह लाल हो गया था और होंठ थरथराने से लगे थे. आंखें अब भी नीचे थीं और एक अजीब सा भाव उनके चेहरे पर उभर आया था, जैसे कि उनकी चोरी पकड़ी गई हो. बड़ा ही मनोरम दृश्य था वो, लाल साड़ी में लिपटी लाल लाल गालों से घिरा वो खूबसूरत सा चेहरा … जी कर रहा था कि उनके पूरे चेहरे को ही चूम-चाट लूँ. मगर मेरे दिल में अभी भी एक डर सा बना हुआ था.

“छोड़ो … छोड़ो मुझे … नहीं तो मैं शोर मचाकर सबको बुला लूँगी.” सुलेखा भाभी ने अब कसमसाते हुए कहा. लेकिन मैंने उन्हें कस कर पकड़े रखा, मैंने भी सोच लिया था कि अब जो होगा सो देखा जाएगा.

मैं और सुलेखा भाभी अब एक दूसरे पर अपना अपना जोर आजमा रहे थे. मैंने उन्हें जोर से जकड़ा हुआ था और वो अपने आप को छुड़ाने का प्रयास कर रही थीं. मगर इस कसमसाहट में उनकी चूचियां बार बार मेरे सीने से रगड़ कर मेरे अन्दर के शैतान को और भी भड़का रही थीं. सुलेखा‌ भाभी की सांसें धीरे धीरे अब गर्म और तेज़ होती जा रही थीं. मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब आगे क्या करना चाहिए.

मगर तभी सुलेखा भाभी ने ही हथियार डाल दिए और कहने लगीं- उफ्फ … महेश, जाने दे मुझे … नेहा और प्रिया यहीं पर हैं. सुलेखा भाभी ने अपने चेहरे को घुमाकर बाहर की तरफ देखते हुए कहा.

मेरे लिए तो सुलेखा भाभी का बस इतना कहना ही काफी था. मुझे मेरा सिग्नल मिल गया था, इसलिए अगले ही पल मैंने सीधा सुलेखा भाभी के होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया … और जब तक वो कुछ समझतीं, तब मैंने उनके होंठों को अपने मुँह में भरकर जोरों से चूसना शुरू कर दिया.

“उउऊ ऊह्ह्ह … हुहुहुँ … ऊऊउउ …” ये कहकर सुलेखा भाभी अब जोरों से कसमसाने‌ लगीं और अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़कर अपने होंठों से अलग कर दिया. “उफ्फ् … समझा कर ना, नेहा और प्रिया यहीं पर हैं, अगर गलती से कोई बाहर आ गयी तोओ …” सुलेखा भाभी ने अपनी अनियंत्रित साँसों को इकठ्ठा करते हुए कहा. “आ जाने दो … मैं नहीं डरता उनसे …” मैंने सुलेखा भाभी की नशीली आंखों में देखकर उनके मुलायम गाल को चूमते हुए कहा. ‘हांआ … हांआआ … तुम्हें डर क्यों लगेगा? वे दोनों तुम्हें दवाई जो दे रही हैं … तुम्हें तो डर नहीं, मगर मुझे तो अपनी बदनामी का डर है …” सुलेखा भाभी ने अब थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा और मेरे चेहरे को अपने से दूर हटा दिया. “आपको डर है तो ये लो.” मैंने दरवाजे को बन्द करके अन्दर से कुण्डी लगा ली और‌ सुलेखा भाभी को खींचकर बिस्तर की तरफ लाने लगा. “ये ये … त् तुम्म्म क्क्या कर रहे हो … छ छछोड़ मुझे … उउऊ ऊह्ह्ह …” सुलेखा भाभी ने मुझसे छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा लेकिन मैं अब कहां छोड़ने वाला था.

सुलेखा भाभी को अपनी बांहों में पकड़े पकड़े ही मैं उन्हें बिस्तर के पास ले आया और कहा- बताया ना कि डॉक्टर की दवाई लेने की कोशिश कर रहा हूँ! मैंने सुलेखा भाभी के गालों को‌ चूमते हुए कहा जिससे उनके गाल तो क्या अब तो पूरा का पूरा चेहरा ही शर्म से सिन्दूरी सा हो गया.

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