पूजा दीदी की चूत की पूजा

नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम अभय ढिल्लों है और मैं हरियाणा का वासी हूँ। मैं अंतर्वासना का लम्बे समय से पाठक हूँ। यह मेरी पहली कहानी है जो कि पूरी तरह से सच है।

बात तब की है जब मैं अपने मामा के यहाँ रहता था। मैं बचपन से ही मामा के यहाँ पढ़ रहा था। मेरा ध्यान ज्यादातर पढ़ाई पर रहता था। दिखने में मैं ठीक-ठाक हूँ। मेरे चार मामा हैं। मैं जिस मामा के घर रहता था, उनके दो ही बच्चे थे- एक लड़का और एक लड़की। लड़का छोटा था और लड़की बड़ी थी। वो मुझ से भी तीन साल बड़ी थी। सिम्पल सी थी, पढ़ाई में भी ठीक-ठाक ही थी। शरीर भी थोड़ा भारी था। मामा-मामी अलग कमरे में सोते थे।

हम तीनों भाई-बहनों को पढ़ने और सोने के लिए अलग कमरा दिया हुआ था। मामा का लड़का उस समय 10-11 साल का होगा और मैंने 18 की उम्र को पार किया ही था। मामा की लड़की उस समय लगभग 21 के आस-पास होगी और उसका नाम पूजा (बदला हुआ) है। मामा का लड़का बीमार हो गया तो मामा-मामी उसे अपने पास ही सुलाने लग गए। अब कमरे में हम दोनों ही थे। सब कुछ सही चल रहा था, दोनों पढ़ते थे और सो जाते थे।

शाम को मैं खेलने जाता था, फिर वापस आकर, खाना खाकर दूसरे मामा के घर चला जाता था। उसके बाद मैं सीधा अपने कमरे में जाता था।

उस दिन मैं दूसरे मामा के पास ना जाकर सीधे अपने कमरे पर चला गया। जाकर देखा तो दरवाजा भीतर से बन्द था और लाइट भी ऑफ थी। पहले तो मैंने खटखटाया मगर कोई उत्तर नहीं मिला, लेकिन जब आवाज लगाई, तब पूजा ने जवाब दिया कि खोलती हूँ।

जब दरवाजा खोला तो कुत्ता निकला। कुत्ता गली में रहता था, लेकिन हम रोटी डाल दिया करते थे उसको। मैंने पूजा से पूछा कि कुत्ते को अन्दर क्यों ले रखा था तो वो बोली- आज ही मेरी फलाँ सहेली ने बताया था कि बुधवार को कुत्ते को घर के भीतर रोकने से धन बढ़ता है।

मुझे पूजा पर शक तो पहले से ही था. मगर इतना भी शक नहीं था कि वह कुत्ते से अपनी चूत की प्यास बुझवाने की कोशिश करेगी. एक बार तो मन किया कि शायद मैं ही ज्यादा सोच रहा हूँ मगर फिर ध्यान आया कि अगर उसे कुत्ते को अंदर बंद ही करना था तो कमरे की लाइट बंद करने की क्या जरूरत थी? हो न हो जरूर उसकी चूत का लावा कुत्ते के लंड के पानी से शांत होने की इच्छा कर रहा होगा. लड़की जवान थी मगर जवानी भी कैसी कि कुत्ते को ही पकड़ लिया. मैं तो हैरान और परेशान!

बहाना तो पूजा दीदी ने अच्छा बनाया था मगर मैं भी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था. समझ गया कि पूजा दीदी अपनी चूत की पूजा कुत्ते के लिंग से करवाने की फिराक में थी. मुझे स्टोरी तो समझ आ गई थी कि ये धन का नहीं लन्ड का मामला है, लेकिन कहने की हिम्मत नहीं हुई। फिर रोज की तरह पढ़ करके और गप्पें मार कर सो गये हम दोनों। लेकिन पूजा को लेकर मेरा नज़रिया बदल गया और मैं सोचने लग गया कि ये तो लण्ड की प्यासी है।

फिर दिमाग में आया कि ये तो मेरी बहन लगती है। लेकिन फिर दिमाग घुमाया कि मैंने नहीं चोदा तो किसी और से चुदवाएगी, मगर चुदेगी पक्का। कोई बाहरी लौड़ा चोदेगा तो हो सकता है बदनामी भी हो। क्यों न घर की बात घर में रहे। काफी कश्मकश के बाद मैंने डिसाइड कर लिया कि पूजा की तो चूत पूजा अपने लन्ड की अगरबत्ती से ही करनी है।

इस डिसीजन के बाद मैं प्लानिंग बनाने लग गया। कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि पूजा को कैसे हिंट दू कि मैं उसे चोदने का अभिलाषी हूँ। लेकिन दिमाग काम ही नहीं कर रहा था। दो दिन बीत गये कुछ नहीं हुआ. उल्टा टेंशन बढ़ रही थी कि पूजा इतनी भड़की पड़ी है, किसी और से चुदवा न ले।

एक शाम को मामा जी बोले- अभय खेतों में पानी दे आ। मेरे मामा के खेतों में नहर का पानी लगता है। उस टाइम खेतों में गेहूं खड़ी थी और ये वाला पानी लास्ट वाला था। हमारे पानी का टाइम लगभग 20 घंटे है। मुझे और फ्रस्ट्रेशन हो गई कि आज की रात भी कुछ नहीं हो सकता क्योंकि पानी अगले दिन शाम तक लगना था। लेकिन मामा जी को मना तो कर नहीं सकता था इसलिए चला गया।

कहते हैं ना जो होता है अच्छे के लिए होता है, मेरे साथ भी यही हुआ। जब मैंने लोवर उतार के नाका लगाया मतलब कस्सी से मिट्टी से दूसरे का पानी अपने खेत की तरफ किया तो कस्सी से ज़ोर लगाने के कारण मेरा कच्छा नीचे से थोड़ा फट गया। जब मैं पानी बाँध के बैठा तो मेरा लन्ड खुद ब खुद बाहर आ गया। अब लंड महाराज बाहर खुली हवा में सांस लेने लगे तो दिमाग की बत्ती जली और आइडिया आया कि पूजा को कैसे बिना कहे चुदाई के लिए तैयार करना है। ये प्लानिंग सोचते-सोचते मेरा लन्ड खड़ा हो गया।

एक तो खेत में मैं अकेला था, ऊपर से मैंने कपड़े नहीं पहने हुए थे. साथ ही मन में पूजा के ख्याल आने लगे थे. फिर लौड़े का खड़ा होना तो स्वाभाविक सी बात थी. वैसे भी जवानी के वो दिन ऐसे होते हैं कि दिन में अगर सौ काम करो तो नब्बे काम लौड़े को शांत करने के लिए लिए होते हैं.

लंड तो खड़ा हो गया और वो भी अकेले में, फिर हाथ कैसे न जाता उसके पास. हाथ गया तो लंडराज को थोड़ा आनंद मिला. जब थोड़ा आनंद मिला तो उसने और ज्यादा आनंद की मांग की. मेरा भी फर्ज बनता था कि लंडराज की ख्वाहिश पूरी करूँ. ख्वाहिश तो पूजा की चूत मारने की थी मगर अभी तो पूजा की चूत उपलब्ध हो नहीं सकती थी. इसलिए ख्यालों में ही पूजा की चूत की कल्पना होने लगी.

पूजा की चूत की कल्पना होने लगी तो फिर लौड़े को जोश में आते हुए देर न लगी. मैंने लौड़े को वहीं पानी किनारे बैठ कर हिलाना शुरू कर दिया. हाय! पूजा की चूत … ओह्ह … उसके चूचे … उफ्फ मिल जाये तो उसकी चूत को चोद दूँ. वासना का तूफान हाथ की पकड़ को लंड पर और ज्यादा कसने लगा. जैसे-जैसे हाथ कसता गया लंड को और मजा आता गया. मैंने जोर-जोर से लंड के टोपे की त्वचा को आगे-पीछे करते हुए, पूजा की चूत और चूचियों के चित्र मन में बनाते हुए अपने लंड को आनंद देने की पूरी कोशिश की.

पहली बार पूजा के नाम की मुट्ठ लग रही थी. ऊपर से हाथों से कस्सी चलाने के कारण हाथ की पकड़ भी लंड का दम घोंट रही थी. मजा तो बहुत आ रहा था. मन कर रहा था कि बस पूजा आ जाये और उसकी चूत, गांड, मुंह सब के अंदर अपने प्यासे लंड को डालकर अपना पानी उसकी चूत के सूखे खेत में डाल दूँ. आह्ह … पूजा तेरे चूचे … ओह्ह पूजा नंगी … और ये गया पूजा की चूत में. मन में पूजा की चूत में लंड को डाला तो लंड ने नीचे बहते हुए पानी में थूक दिया. वीर्य छूटने के वे कुछ क्षण ऐसे थे जैसे इसके अलावा जिंदगी में इससे बड़ा न तो कोई आनंद है और न ही कोई लक्ष्य. जब अंडकोषों का थैला एक बार के लिए खाली हो गया तब जाकर कहीं मन को शांति मिली.

अब जब पूजा के नाम की मुट्ठ लगनी शुरू ही हो गई थी तो एक बार में कहाँ मन भरने वाला था. कुछ देर के बाद फिर से ध्यान लंड पर जाने लगा. खाली दिमाग शैतान का घर! इस वक्त मेरा शैतान लंड फिर से मुझे मुट्ठ मारने के लिए उकसाने लगा. नीचे बहते पानी में लंड को धोया तो थोड़ी ठंडक मिली और मजा भी आया. उसी मजे ने दोबारा मजे लेने की आग को थोड़ी और हवा दे दी.

एक-दो बार ही लंड के टोपे को खोला और बंद किया था कि लंड फिर से अपने पूरे आकार में आ गया और मेरे हाथ में भर गया. हाथ में भर गया तो हिलाने में कैसी देरी? लंडराज को हिलाना शुरू कर दिया. थोड़ा दर्द सा महसूस हुआ क्योंकि आठ-दस मिनट पहले ही तो वीर्य पानी में बहाया था. अभी तक तो लौड़े को संभलने का मौका भी नहीं मिला था कि पूजा की चूत के ख्यालों ने फिर से उसको रगड़ने के लिए तैयार कर दिया था.

दूसरी बार लंड को हाथ में पकड़ा और जोर-जोर से उकडू बैठ कर हिलाने लगा. लंड में झाग आने लगे. लंड का टोपा सूखने लगा. थोड़ा पानी डाला और फिर से दोहन शुरू. भला थन से दूध निकले बिना छोड़ने वाला थोड़े ही था मैं? हिलाते हुए जब दूसरी बार ख्यालों में पूजा को नंगी किया तो अबकी बार चूत में लंड को पेल दिया और दो चार धक्कों के हसीन ख्वाबों ने वीर्य को बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया. अबकी बार थोड़ा कम वीर्य निकला क्योंकि कुछ ही देर पहले तो बहाया था. इस तरह पूजा के नाम की दो बार मुट्ठ मारी।

अगले दिन शाम को पाँच बजे घर आया. खाना जल्दी खा कर अपने कमरे में सोने चला गया लेकिन नींद कहाँ आनी थी। लाइट बंद करके, लोवर और टीशर्ट उतार कर उसी फ़टे हुए कच्छे में लेट गया। फिर साढ़े सात बजे के आस-पास पूजा आई; आकर बोली- अभय सो गया क्या? मैंने कोई जवाब नहीं दिया और आँखें बंद करके सोने का नाटक कर लिया। पूजा ने लाइट जला दी और इसका ध्यान फटे हुए कच्छे से निकले तने हुए लन्ड पर गया। थोड़ी देर वो वहीं खड़ी लन्ड को देखती रही। मैं थोड़ी सी आँखें खोलकर ये सब देख रहा था।

फिर लाइट बन्द करके वह अपनी चारपाई के पास आई लेकिन अपनी चारपाई पर लेटी नहीं। पहले मैंने सोचा कि इतनी भड़की हुई है सीधा मेरे पास आयेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं भी चुपचाप पड़ा रहा। फिर थोड़ी देर बाद उसके चारपाई पर लेटने की आवाज आई। मैं यही सोचता रहा कि अब मेरे लन्ड को पकड़ेगी- अब पकड़ेगी। लेकिन कुछ नहीं हुआ और मुझे पता ही नहीं चला कि कब नींद आ गयी।

अगली सुबह जब उठा तो सब नॉर्मल था और पूजा भी। जैसे कुछ हुआ ना हो, कुछ देखा ना हो। बस मुझे देखकर हल्का-सा स्माईल किया पूजा दीदी ने। प्रति उत्तर में मैं भी मुस्कुरा दिया। रविवार का दिन था तो कॉलेज की भी छुट्टी थी।

मामा-मामी छोटे भाई को डॉक्टर को दिखाने ले गए। अब घर में मैं और पूजा ही थे, लेकिन न उसने कुछ कहा न मेरी हिम्मत पड़ी। शाम का वही रुटीन- खाना खाया, दूसरे मामा के घर गया। लेकिन दिमाग में पूजा और उसे चोदने के ख्याल … कमरे पर आया तो देखा पूजा मेरी चारपाई पर पसरी पड़ी थी। मैंने पूछा- ऐ पूजा तेरी खाट कहाँ है? तो वो बोली- मेरी खाट गीली हो गयी। मैं- कैसे? पूजा- मुझसे पानी का जग गिर गया। मैं- तो मैं कहाँ सोऊँगा?

उसकी चलाकी मैं समझ गया था। मेरे मन में लड्डू फूट रहे थे। वो बोली- ऐसा करते हैं, आज-आज मैं तेरी खाट पर सो जाऊँगी. फिर थोड़ा सा हिचकिचाती हुई बोली- मतलब दोनों एक ही पर। मैं बोला- यार पूजा कुछ ठीक सा नहीं लग रहा हम दोनों का ऐसे एक साथ सोना। पूजा- कुछ नहीं, सिर्फ एक रात की बात है। आँख बंद हुई औऱ सवेरा हुआ।

मैं मन में सोच रहा था कि काश इस रात का सवेरा न हो क्योंकि मुझे पता था आज तो पूजा ने खुद ही चुदने की पूरी तैयारी कर रखी है। मैं- चलो कोई ना। कहकर मैं पूजा के बगल में लेट गया। उसके जिस्म से मादक सी खुशबू आ रही थी।

फिर मैंने पूछा- पूजा तुम्हें एतराज न हो तो मैं कपड़े निकाल दूँ? पूजा- पागल हो गया है? मैं- मेरा मतलब पजामा और टी-शर्ट, मुझे सिर्फ कच्छे-कच्छे में नींद आती है। पूजा- मर्ज़ी है भाई, तेरी खाट पर रात गुजारनी है आज। आज की रात तो तेरे रहमोकरम पर हूँ। कह कर हंस पड़ी। मैं- मैंने कौन-सा मुजरा करवाना है? पूजा- चल-चल बकवास मत कर, सो जा चुपचाप!

फिर मैं सीधा लेट गया और वो मेरी तरफ पीठ करके सोने का नाटक करने लग गई। आधे घंटे के करीब टाइम हो गया, न उसकी तरफ से कोई हरकत हुई और ना मेरी तरफ से। फिर उसने अपनी गांड थोड़ी सी मेरी तरफ निकाली। मैं समझ गया कि पूजा की पूजा का मुहूर्त शुरू होने वाला है। आज मैंने भी जॉकी का अंडरवियर डाल रखा था। मैंने अंडरवियर के कट से लन्ड बाहर निकाल लिया और पूजा की तरफ करवट करके लेट गया। पूजा थोड़ा सा और पीछे सरकी और सोने का नाटक करती रही।

मैंने भी लन्ड उसकी गांड के छेद पर रख दिया। मेरे ऐसा करते ही उसके मुंह से हल्की सी सिसकारी निकल गयी और उसने गांड का थोड़ा सा और दबाव बढ़ा दिया। कुछ समय तक दोनों ऐसे ही पड़े रहे। फिर उसने करवट ली और मेरी तरफ मुँह कर लिया लेकिन सोने का नाटक जारी रखा। कुछ देर बाद अपनी एक टांग उठा कर और घुटना मोड़ कर मेरी टांग पर रख दी। उसकी इस हरकत से मेरा लन्ड उसकी चूत से सट गया। मैंने भी अपना सोने का ड्रामा करते हुए अपना हाथ उसकी पीठ पर रख दिया। फिर थोड़ी देर तक उसी पोज़िशन में पड़े रहे।

इस खेल में मज़ा दोनों को ही आ रहा था। फिर थोड़ी देर बाद वह थोड़ा सा मेरी तरफ सरकी, इससे लन्ड चूत से और जोर से सट गया। उसकी चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। अगर बीच में सलवार न होती तो लन्ड कब का डुबकी लगा चुका होता। लेकिन फिलहाल दोनों के बीच में एक पतली सी दीवार बाकी थी।

इसी सरका-सरकाई में एक घंटे के करीब हो गया। तब मैंने उसकी चूत को हाथ से टटोला। जो मुझे महसूस हुआ. मेरी हैरानी और खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पूजा ने नीचे से थोड़ी सी सलवार उधेड़ रखी थी। फटी हुई सलवार में से जब मैंने चूत को छुआ तो, उसकी सिसकारी निकल गयी। चूत डबल रोटी की तरह फूली हुई थी और खुशी के आँसू बहा रही थी।

मैंने देर न करते हुए अपना लन्ड फटी हुई सलवार के छेद से चूत पर रख दिया। मेरे ऐसा करते ही पूजा ने मुझे जोर से दोनों बांहों में जकड़ लिया। फिर मैंने कहा- नाटक छोड़ और चुदाई का मज़ा ले, अब कुत्ते के साथ झक नहीं मारनी पड़ेगी। इतना सुन कर पूजा हँस पड़ी।

फिर हम दोनों भाई बहन ने अपने अपने कपड़े उतार फेंके। काफी देर तक चूमाचाटी चलती रही। फिर वो बोली- अब और इंतजार नहीं होता, बस डाल दे। मैं भी यही चाहता था, मैंने लन्ड को अपनी बहन की चूत पर रखा और ज़ोर से झटका मारा। पूजा थोड़ा सा ऊपर उठी और कराही- उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैंने पूछा- पहले किससे चुदी हो? जवाब में पूजा बोली- किसी से नहीं। मैंने फिर पूछा- फिर लन्ड इतनी आसानी से कैसे अन्दर चला गया। वो बोली- बैंगन, मूली और खीरे खाए हैं इसने! मैं- कुत्ते का भी लिया है? पूजा- नहीं यार, बड़ा तंग किया उसने. ऊपर से तू आ गया। चल बातें ना चोद, चोदने वाली चीज चोद!

उस दिन तो पूजा दीदी की चूत ख्यालों में ही चोदी थी मगर आज तो लंड को चूत साक्षात मिल गयी थी. खुशी का कोई ठिकाना न था. साथ ही चोदने की ऐसी लालसा कि बस पल भर का इंतजार भी सौ बरस के बराबर. मैंने अंदर गये हुए लंड से पूजा की गर्म-गीली चूत की पूरी फील लेते हुए लंड को धीरे-धीरे अपने बेचैन तने हुए लौड़े को अंदर-बाहर किया तो आनंद के सागर में डूब गया. पूजा के चूचों को अपने हाथों से भींचा और धक्कों का जोर बढ़ता चला गया. खाट चर्र-चर्र करने लगी. हाय पूजा! तेरी चूत … ओह्ह … ऐसा आनंद, ऐसा स्वर्ग. मलाल हो रहा था कि इससे पहले पूजा की चुदास पर ध्यान क्यों नहीं गया. मैं तो वैसे ही अब तक हाथ से लंड की खाल छील रहा था. चूत चुदाई के आनंद के सामने तो मुट्ठ का आनंद आधा भी नहीं.

पूजा के चूचों को भींचते हुए उसकी चूत की गहराई अपने लंड से नापने लगा. मगर पहली बार पूजा की चूत में लंड गया था इसलिए न चाहते हुए ध्यान को यहाँ-वहाँ भटकाने की कोशिश करने लगा ताकि ज्यादा से ज्यादा देर तक उसकी चूत को निचोड़ने का समय मिले. मगर बहुत कोशिश करने के बाद भी दस मिनट में लगने लगा कि अब ज्यादा देर टिक नहीँ पाऊंगा.

करीब पन्द्रह मिनट के बाद वो झड़ गयी और दो-चार धक्कों के बाद मैं भी। पहली बार पूजा की भट्टी को चोदने के बाद लंड को बड़ा सुकून मिला. मगर बात एक ही चुदाई पर खत्म होने वाली नहीं थी. जब मुट्ठ ही दो बार मार दी थी तो फिर चुदाई एक बार खत्म हो जाती तो मेरे लंड और पूजा दीदी की चूत के साथ बड़ी ही नाइंसाफी हो जाती. इसलिए चुदाई के पहले राउंड के बाद पूजा दीदी की चूत के साथ मेरे लंड की मौज-मस्ती कई घंटों तक चलना लाजमी था.

उस रात सुबह तीन बजे तक हमारी चुदाई चली।

उसके बाद पूजा की चूत की पूजा करने के लिए मेरे वासनामयी लौड़े ने कौन-कौन से जतन किये वह सब मैं आपको आगे की कहानियों में बताऊंगा. ये कहानी कैसी लगी, मेल करके बताएँ। [email protected]