तीन पत्ती गुलाब-24

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किसी भी कहानी या कथानक को लिखने में लेखक को बहुत समय और ऊर्जा के साथ-साथ सकारात्मक मनोदशा (मूड) की जरूरत होती है। आज के व्यस्त जीवन में बहुत सी समस्याएँ होती हैं और ऐसे में किसी कहानी को सुन्दरतम ढंग से लिखना किसी चुनौती से कम नहीं होता।

प्रेमगुरु ने पिछले 4-5 वर्षों से कहानी लिखना बंद कर दिया था पर मेरे आग्रह पर उन्होंने अपने कुछ मेल्स और नोट्स मुझे इस शर्त के साथ भेजे कि मैं इस कहानी में किसी भी प्रकार के अभद्र, फूहड़ और अमर्यादित शब्दों का प्रयोग नहीं करूँ। मैंने अपनी ओर से इस कहानी को अनुवादित करते हुए पूरी कोशिश की है कि सेक्स को सुन्दरतम रूप में पेश करके सेक्स से जुड़े मिथकों और तथ्यों के बारे में भी अपने पाठकों को बताया जाए और उसके साथ ही नारी मन के अंतर्मन को सटीक ढंग से पेश करने की कोशिश की है।

पर कुछ पाठकों को यह कहानी पसंद नहीं आई। यह उनका व्यक्तिगत मामला हो सकता है पर किसी को गाली गलौज भरे मेल करना शोभनीय नहीं लगता। किसी कहानी की आलोचना या प्रशंसा करना और सलाह देना आपका व्यक्तिगत अधिकार है पर अमर्यादित टिप्पणियों और गाली गलौज भरे मेल करने से एक संवेदनशील लेखक को कितना दुःख और तकलीफ होती है, आप समझ सकते हैं.

आप लोग तो बहुत प्रबुद्ध पाठक हैं समझ सकते हैं एक लेखक के लिए उसकी कहानी की आलोचना, प्रशंसा और सुझाव एक संजीवनी का काम करते हैं।

कुछ पाठकों और पाठिकाओं ने इस कहानी की प्रसंशा में बहुत से मेल प्रेमगुरु के मेल आईडी पर किये हैं। उन सभी ने कहानी जारी रखने की विनती भी की है। मैं उन सभी का हृदय से आभार प्रकट करती हूँ। उनकी इच्छा और रूचि को सम्मान देते हुए मैं कोशिश करुँगी कि कम से कम इस कहानी को तो पूरा कर सकूं।

यह कहानी लम्बी जरूर है पर एक नए और अनूठे विषय पर आधारित है जिसमें आप एक नारी हृदय की तमाम संवेदनाओं और भावनाओं को समझ और महसूस कर सकेंगे। आप सभी का बहुत-बहुत आभार स्लिम सीमा (प्रेमगुरु की एक प्रशंसिका)

पिछले भाग में आपने गोरी के योनि भेदन की कहानी पढ़ी. अब आगे :

मैं कुछ कर पाता इससे पहले गौरी बाथरूम में भाग गई। या खुदा … उसके बालों का जूड़ा खुल गया था और उसके सिर के बाल कमर तक फ़ैल गए थे। मैं बिस्तर पर बैठा हिचकोले खाते और बिजलियाँ गिराते उसके नितम्बों को ही देखता रह गया। बिस्तर पर गुलाब और मोगरे की नाज़ुक पत्तियाँ बिखरी पड़ी थी जिनमें बहुत सी पत्तियाँ मेरे और गौरी के बदन मसली और कुचली हुई थी। आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि गौरी की क्या हालत हुई होगी! पुरुष हमेशा ही कठोरता पसंद करता है और प्रकृति ने भी उससे जुड़ी हर चीज को कठोर बनाया है अब चाहे वह उसका शरीर हो, हृदय हो कामांग हों या भावनाएं।

इसके विपरीत स्त्री की हर चीज प्रकृति ने नाजुक और कोमल बनाई हैं अब चाहे वह उनके शरीर का कोई अंग हो, हृदय हो या भावनाएं हों सभी में एक नाजुकता और कोमलपन का अहसास भरा होता है।

पुरुष और स्त्री के प्रेम में भी यही विरोधाभास झलकता है। पुरुष छद्म प्रेम या बलपूर्वक स्त्री को पा लेना चाहता है। वह एकाधिकारी बनाना पसंद करता है वह सोचता है कि वह एक समय में बहुत सी स्त्रियों से प्रेम (दिखावा) कर सकता है पर नारी मन हमेशा ही अपने प्रियतम के लिए समर्पित रहता है।

थोड़ी देर बाद गौरी बाथरूम से वापस आ गई। शायद वह शुद्धि स्नान (नहा) करके आई थी।

हे भगवान् अगर मुझे पहले पता होता तो मैं भी गौरी के साथ शुद्धि स्नान कर लेता। शॉवर के नीचे ठन्डे पानी में गौरी के साथ लिपट कर नहाने में बारिश में भीगने जैसा आनन्द कितना अद्भुत होता मैं तो सोच कर ही रोमांच से भर गया।

उसने हाफ बाजू का कुर्ता और पाजामा पहन लिया था। उसने वह नाइटी और हमारे प्रेमरस में भीगा तौलिया समेट कर अपने हाथों में पकड़ रखा था। जिस अंदाज़ में वह अपनी टांगें चौड़ी करके चल रही थी मुझे लगता है उसे अब भी थोड़ा दर्द महसूस हो रहा होगा।

मेरा मन एक बार फिर से उसे बांहों में भर कर दबोच लेने को करने लगा था। मैं तो आज सारी रात गौरी को अपनी बांहों में भर कर प्रेम करना चाहता था। यह पुरुष मन एक बार में संतुष्ट होना ही नहीं चाहता? पता नहीं प्रकृति ने इसे इतना रहस्यमयी क्यों बनाया है?

गौरी ने वो समेटा हुआ तौलिया और नाइटी एक तरफ रख दी और बेड पर बैठ गई। मैंने भी अब तक बनियान और एंडरवीअर पहन लिया था।

“गौरी मेरी प्रियतमा!” कह कर मैंने उसे अपनी बांहों में भर लेना चाहा। “अब त्या है?” “गौरी आओ एक बार उस आनन्द को फिर से भोग लें प्लीज … ” “आप तो अपना मज़ा देखते हो पता है मुझे तित्ता दर्द हुआ? तित्ता खून सारा निकला? मालूम? मेले से तो चला भी नहीं जा लहा?” “गौरी आई एम् वैरी सॉरी?” कह कर मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया।

“हटो परे … मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे चाक़ू से चीर दिया हो.” गौरी ने आँखें तरेरते हुए कहा। “गौरी ज्यादा दर्द हो रहा हो तो लाओ मैं कोल्ड क्रीम लगा देता हूँ.” “हट … ” गौरी एक बार फिर शर्मा गई।

इस बार उसके शर्माने में उलाहने के बजाय रूपगर्विता होने का भाव ज्यादा था। “गौरी तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद इस समर्पण के लिए!” “दीदी आपको कितना भोला समझती ही और आपने …?” “मैंने क्या किया?” “अच्छा जी मेला सब कुछ तो ले लिया ओल बोलते हो मैंने त्या किया?” “गौरी क्या तुम नाराज़ हो?” मैंने उदास स्वर में पूछा.

तो गौरी जोर-जोर से हँसने लग गई- मेले नालाज़ होने से आपको त्या फलक पड़ता है? “ऐसा मत कहो जान … अब हम दोनों दो नहीं एक हैं तुम्हारा हर दुःख दर्द अब मेरा भी है … आई लव यू … ” कह कर मैंने एक बार फिर से गौरी को अपने आगोश में ले लिया।

गौरी मेरे सीने से लग गई। मैंने उसके सिर और पीठ पर हाथ फिराना चालू कर दिया। मेरा मन तो एक बार फिर से हल्का होने को करने लगा था। मेरा लंड फिर से कुनमुनाने लगा था। “गौरी तुम बहुत खूबसूरत हो … एक बार में तो मन ही नहीं भरा … प्लीज …” “नहीं मेरे प्रियतम … आज ओल नहीं … मैं तहाँ भागी जा लही हूँ … सब तुछ तो आपतो सौम्प दिया है। मैं आज ती लात आपते साथ इन भोगे हुए सुनहली पलों ती याद ते लोमांच में बिताना चाहती हूँ। मैं यह महसूस तरना चाहती हूँ ति यह सब सपना नहीं हतीतत है। अब आप भी सो जाओ … 1 बजने वाला है।”

“और हाँ … यह चादल भी बदल देती हूँ. और आप भी नहा लो आपते भी चेहले और सीने पल मेले प्रेम की तुछ निशानियाँ रह गई हैं जिन्हें दीदी ने देख लिया तो मुझे ओल आपको जान से माल डालेगी.” कह कर गौरी जोर जोर से हँसने लगी। अब मैं क्या बोलता? गौरी ने बेडशीट बदली और अपने कपड़े और तौलिया उठाकर सोने के लिए स्टडी रूम में चली गई।

दोस्त आप सभी सोच रहे होंगे वाह … प्रेम माथुर तुम्हारे तो मजे हो गए। एक कुंवारी अक्षत यौवना ने सहर्ष अपना कौमार्य तुम्हें इतना आसानी से सौम्प दिया। हाँ मित्रो … आपका सोचना अपनी जगह सही है पर एक बात बार-बार मेरे दिमाग में दस्तक दिए जा रही है.

चलो गौरी के साथ मेरे प्रेम सम्बन्ध बन गए। लेकिन अगर मधुर को इसकी ज़रा भी भनक लग गई तो क्या होगा? कई बार मुझे संदेह होता है कहीं मधुर जानबूझ कर तो हम दोनों को ऐसा करने के लिए उत्साहित तो नहीं कर रही और बार-बार इस प्रकार की स्थिति और मौक़ा तो पैदा नहीं कर रही जिससे हम दोनों की नजदीकियां बढ़ जायें?

कहीं वह गौरी के माध्यम से तो बच्चा नहीं चाह रही … हे भगवान् … मेरा दिल इस आशंका से जोर-जोर से धड़कने लगा। मान लो गौरी प्रेग्नेंट हो जाती है सब को पता चल जाएगा … ओह तब क्या होगा? गौरी तो अभी मासूम है उसने अभी दुनिया नहीं देखी है। वह अभी सुनहरे सपनों के घोड़े पर सवार है और इस समय मेरे या मधुर के एक इशारे किसी भी हद तक जाने के लिए सहर्ष तैयार है। यह सब किस्से कहानियों में तो बहुत आसान लगता है पर वास्तविक जीवन में इसका कानूनी पहलू भी होता है और उसे सोच कर तो मैं जैसे काँप सा उठाता हूँ।

उम्र के इस पड़ाव पर मैं किसी पेचीदगी में नहीं फंसना चाहता। मैं कोशिश करुंगा कि गौरी किसी भी तरह प्रेग्नेंट ना होने पाए। हे लिंग देव! पता नहीं भविष्य के गर्भ में क्या लिखा है? तू ही जाने? इन्हीं विचारों में कब मेरी आँख लग गई पता नहीं।

कहानी जारी रहेगी. [email protected]

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