जेठ के लंड ने चूत का बाजा बजाया-3

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मेरी चुदाई की कहानी के पिछले भाग में आपने अभी तक पढ़ा था कि कुछ हालत और कुछ शरीर की जरूरतों के वजह से मैं और जेठजी रसोई में ही चुदाई का मज़ा लेने लगे थे और जेठजी मुझे कई आसनों में चोदने के बाद अब अपनी गोद में उठा कर चोद रहे थे. जैसा कि आप सब जानते है कि भले ही ये पोज़ इंटरेस्टिंग है, पर इस पोज़ में थकान भी जल्दी लगती है और हुआ भी वही.

अब आगे:

कोई 2-3 मिनट तक धक्के लगाने के बाद जेठजी थक गए और उन्होंने मुझे नीचे उतार दिया, पर अपना लंड उन्होंने निकाला नहीं. फिर मेरे शरीर के ऊपर के हिस्से को पीछे की ओर धकेल कर खड़े खड़े ही धक्के लगाने लगे. मैं भी अपनी चूतड़ों को स्लैब के सहारे टिका कर उनके धक्कों का मज़ा लेने लगी.

इस पोज़ की अच्छी बात ये थी कि इसमें लंड चूत के दाने को रगड़कर अन्दर बाहर हो रहा था, जिससे और भी मज़ा आ रहा था. पर जल्दी ही पीछे की ओर झुक कर खड़े होने की वजह से पीठ में अकड़न सी महसूस होने लगी. इसलिए मैं सीधी खड़ी हो गयी. मेरे सीधे खड़े होने की वजह से जेठजी का लंड बार बार चूत से बाहर निकल जाता.

एक दो बार जेठजी लंड को पकड़ फिर चूत में घुसा देते, पर बार बार लंड के बाहर निकल जाने से मज़ा कम होने लगा और ये जेठजी भी महसूस कर रहे थे. इसलिए अब उन्होंने मेरे एक पैर को उठाकर हाथ से अपने सीने तक कर लिया. इस तरह से उन्होंने अपने लंड को पकड़ कर मेरी चूत के फांकों में एक दो बार ऊपर नीचे घुमा कर चूत में घुसा दिया और मुझे चोदने लगे.

मैंने भी अपने एक हाथ का घेरा बनाकर जेठजी के गले में डाल दिया, ताकि मैं भी अपना बैलेंस बनाकर चुदाई का मज़ा ले सकूँ.

कुछ देर तक वैसे ही एक पैर पर खड़ा करके चोदने के बाद जेठजी फिर से रुक गए और मेरे पैर को अपने कंधे से नीचे उतार दिया. मुझे लगा कि शायद अब जेठजी किसी और पोज़ में चोदेंगे और मेरा अंदाज़ा सही हुआ. जेठजी ने इस बार पहले मुझे स्लैब की ओर घुमाया, फिर स्लैब की तरफ ही झुका दिया. मैं भी अच्छी लड़की की तरफ उनका मतलब समझ कर झुक गयी.

सच कहूं तो मज़ा तो बहुत आ रहा था पर अब मैं थक सी गयी थी. करीब पिछले 20 मिनट से जेठजी मुझे अलग अलग आसनों में चोद रहे थे और आगे पता नहीं कितनी देर तक और चोदेंगे. जेठजी ने मेरी दाहिनी टांग को उठा कर स्लैब पर रख दिया और मेरे चूतड़ों को पकड़ कर ऊपर की ओर करने लगे.

मैं समझ गयी कि जेठजी चूत का छेद थोड़ा और ऊपर की ओर चाहते हैं इसलिए मैंने खुद ही थोड़ा और ऊपर की ओर सरकते हुए अपनी चूत का छेद उनके लंड के सामने कर दिया. उन्होंने भी देर ना करते हुए लंड को चूत में घुसा दिया और हचक कर चुत चोदने लगे. वैसे तो मुझे मेरे पति भी पूरी तरह संतुष्ट करते हैं, पर आज मैं जेठजी का स्टैमिना और टाइमिंग देखकर उनकी दीवानी हो गयी.

जेठजी का स्टैमिना और टाइमिंग मेरे पति से बेहतर था. अब तो मेरी चूत भी गीली होनी बंद हो गई और इसलिए अब लंड के रगड़ से दर्द होने लगा था. अब मैं मन ही मन में जेठजी का जल्दी पानी निकलने की प्रार्थना करने लगी थी. करीब 5-7 मिनट बाद जेठजी आह के साथ और जोर जोर से धक्के लगाने लगे.

मैं समझ गयी कि अब जेठजी का भी काम तमाम होने वाला है, जैसे जैसे जेठजी का टाइम नज़दीक आ रहा था, वैसे वैसे ही उनके धक्कों की स्पीड भी बढ़ती जा रही थी. उनके धक्कों की तीव्रता इतनी अधिक हो गई थी कि एक दो बार तो मेरा सर भी रसोई की दीवार से टकरा गया.

करीब 20-25 जोरदार धक्कों के बाद एक लंबी आह के साथ ही जेठजी ने अपना सारा रस मेरी चूत में ही छोड़ दिया. जेठजी मेरे ऊपर ही लेट गए. अभी भी मैं अपनी चूत में उनके लंड के झटके महसूस कर रही थी. लंड के पानी ने मेरी चूत को फिर से गीला कर दिया था. इस जबरदस्त चुदाई के दौरान मैं कितनी बार झड़ी थी, ये तो मुझे याद भी नहीं.. पर मैंने एक बार भी जेठजी को पता नहीं चलने दिया.

कुछ सेकंड्स बाद ही जेठजी का लंड भी ढीला होकर चूत से बाहर आ गया. लंड के बाहर आते ही जेठजी ने अपना शॉर्ट्स उठाया और बिना कुछ बोले ही रसोई से निकल गए.

ये मुझे कुछ बुरा तो लगा, पर मैं कुछ बोल न सकी. जेठजी का सारा रस भी मेरी चूत से टपकने लगा. मैंने तुरंत ही पास में ही पड़े एक कपड़े को उठाकर अपनी चूत पर दबा दिया ताकि जेठजी का रस फर्श पर ना गिरे.

कुछ देर तक मैं वैसे ही खड़ी रही और पिछले एक घंटे में जो कुछ हुआ वही सब दिमाग में चलने लगा. अब मैं ये सोच रही थी कि बाहर कैसे जाऊं क्योंकि जेठजी अभी हॉल में ही होंगे और अगर मुझे बाथरूम या अपने बेडरूम में जाना है, तो हॉल से होकर ही जाना पड़ेगा. उधर अगर जेठजी दिख गए, तो मैं उनसे नजरें कैसे मिला पाऊंगी. भले ही मैं उनसे चुद चुकी हूं पर वो सब तो जोश जोश में हो गया.

खैर … मुझे रसोई से बाहर तो जाना ही था, कपड़े बदलने थे और खाना भी खाना बाकी था. पर कैसे होगा ये सब? मैं सोचने लगी थी.

कुछ देर तक सोचने के बाद मैंने रसोई के दरवाजे से झांक कर देखा, तो जेठजी हाल में नहीं दिखे. मैं तुरंत ही भाग कर अपने बेडरूम में चली गयी और अपने बाथरूम में घुस गई. पहले तो मन किया कि बाकी बदन को धो लेती हूं और चूत को वैसे ही रहने दूं. ताकि जब भी चूत पर उंगली लगाऊं तो जेठजी के वीर्य की महक मिलती रहे. फिर सोचा अभी तो पूरी रात बाकी है, अगर मौका मिला तो जेठजी से फिर से खुल कर चुद लूंगी.

यही सोचते हुए मेरा हाथ अपने आप ही मेरी चूत पर पहुंच गया और मेरी उंगली जेठजी और मेरे बीच हुए कामक्रीड़ा के रस से भीग गयी. अब उंगली पर रस लग गया, तो हाथ भी अनायास ही मेरी नाक तक पहुंच गया.

आहहहा … वीर्य की महक से ही मैं फिर से मदहोश होने लगी. जेठजी के लंड का एहसास फिर से याद आने लगा और मेरी चूत रानी फिर से गीली होने लगी.

खुद की भावनाओं को कंट्रोल करते हुए मैंने शॉवर लिया और इस बार अपनी नाइट ड्रेस टॉप पजामा पहना. वैसे रात को तो मैं कोई मेकअप वगैरह नहीं करती, पर आज पता नहीं क्यों … मन कर रहा था कि पूरी दुल्हन की तरह सजूं जेठजी के लिए!

पर इतना सब करना मुझे ही ठीक नहीं लगा इसलिए मैंने हल्का सा टचअप किया और बाहर आ गयी.

जेठजी अभी भी हॉल में नहीं दिखे. शायद वो अभी भी अपने रूम में ही थे. मैं सीधे रसोई में चली गयी, वहां की सभी अस्त व्यस्त चीजों को फिर से सही किया और खाना गर्म करने लगी.

खाना गर्म करने के बाद मैंने फिर से रसोई से झांक कर देखा, पर अभी भी जेठजी नहीं दिखे. अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि मैं जेठजी को खाना खाने के लिए बुलाऊं कैसे?

अमूमन हम सब हॉल में एक साथ ही खाना खाते हैं. और जब से मैं और जेठजी अकेले थे, तब से लेकर आज तक भी हम दोनों एक साथ ही खाना खाते थे. पर आज जो कुछ हमारे बीच हुआ, उसके बाद समझ में ही नहीं आ रहा था कि जेठजी को कैसे बुलाऊं?

फिर सोचा कुछ देर इंतजार ही कर लेती हूं, शायद जेठजी खुद ही बाहर आकर मुझे आवाज दें.

आप सबको तो पता ही है कि इंतजार करना कितना मुश्किल होता है, बड़ी मुश्किल से करीब 10-12 मिनट मैंने इंतजार किया और इस दौरान मेरी नज़र कभी घड़ी पर, तो कभी हॉल पर ही टिकी रही.. पर अभी तक जेठजी न ही अपने कमरे से निकले और ना ही मुझे खाने के लिए आवाज दी.

चुदाई के दौरान अच्छी खासी मेहनत होने की वजह से मुझे भूख भी जोरों की लगी थी और इधर जेठजी पता नहीं अपने कमरे में क्या कर रहे थे. सच कहूं तो भूख की वजह से अब मेरे सब्र का बांध टूटने लगा, पर अकेले खाना खाना नहीं चाहती थी, इसलिए मैंने रसोई से जेठजी को दो बार आवाज लगाई. पर सामने से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला.

थोड़ी देर और इंतजार करने के बाद मैं हॉल में आ गयी और वहां से भी जेठजी को आवाज लगाई. जेठजी के कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला होने की वजह से मेरी आवाज जेठजी तक तक पहुंच ही रही होगी पर फिर भी जेठजी कोई जवाब नहीं दे रहे थे.

अब मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने ठीक जेठजी के कमरे के सामने जाकर जेठजी को आवाज लगाई. अब भी कोई रेस्पांस नहीं मिला, मैंने हल्के से दरवाजे को धक्का दिया, तो दरवाजा पूरी तरह खुल गया. सामने देखा तो जेठजी शॉर्ट्स और टीशर्ट में अपने बेड पर सर नीचे किए बैठे थे. शायद वो कुछ सोच रहे थे.

मैंने एक फिर से जेठजी को आवाज दी, इस बार जेठजी ने एक बार सर उठा कर मेरी तरफ देखा और फिर से सर झुका लिया. मैं समझ गयी कि हो ना हो जेठजी अभी थोड़ी देर पहले जो कुछ हुआ, उसी के बारे में सोच रहे हैं और शायद जेठजी बुरा महसूस कर रहे हैं.

इसलिए मैंने माहौल को हल्का बनाने के लिए जेठजी से बात करने का फैसला किया- क्या सोच रहे है भैया? मेरे सवाल के बाद जेठजी कुछ देर तक मेरे चेहरे को देखते रहे और फिर अपना सर नीचे कर लिया.

मैं- क्या हुआ भैया … क्या सोच रहे हैं आप? खाना नहीं खाना क्या आपको? मेरे सवालों से शायद जेठजी ने महसूस किया कि जो कुछ हुआ उसके बाद मैं जेठजी से नाराज़ नहीं हूं. जेठजी मेरी तरफ देखते हुए बोले- सॉरी जस्सी, मुझे माफ़ कर दो … मैं खुद को संभाल नहीं पाया. इतना बोल कर जेठजी फिर से चुप हो गए और उन्होंने फिर से अपना सर नीचे कर लिया.

अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि मैं जेठजी को कैसे बताऊं कि जो कुछ हुआ, वो मुझे भी अच्छा लगा. भले ही वो सब अचानक में हो गया पर जो कुछ हुआ अच्छा ही हुआ और मैं आगे भी उसके लिए तैयार हूं. मैं- ह्म्म … अच्छा चलिए खाना खा लीजिए, आपकी वजह से काफी देर हो चुकी है.

मैंने ‘आपकी’ शब्द को थोड़ा खींच कर बोला. पर शायद जेठजी ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया.

जेठजी- नहीं जस्सी, तुम जाकर खा लो, मेरा खाने का मन नहीं है. मैं- अगर मुझे अकेले खाना होता, तो इतनी देर से आपको आवाज क्यों लगाती? जेठजी- ह्म्म, अच्छा तुम चलो मैं आता हूं.

मैं समझ गयी कि जेठजी अभी भी खुद को दोषी समझ रहे हैं और वो मुझे टालने की कोशिश कर रहे हैं. पर मैं अपने दिल की बात जेठजी को कैसे कहती इसलिए मैंने सोचा कि चलो जेठजी को कुछ हिंट दे दी जाए, शायद वो समझ जाएं.

मैं- नहीं … आप मेरे साथ ही चलो और अगर आपको मेरे साथ खाना खाने में शर्म आ रही है, तो मैं आपका खाना यहीं लेकर आ जाती हूं.

मेरी बात सुनकर जेठजी को जैसे राहत सी महसूस हुई.. जेठजी कुछ देर तक मेरे चेहरे को देखते रहे और उस दौरान मैं हल्के हल्के से मुस्कुराती रही. जेठजी बोले- जस्सी, अभी जो कुछ हुआ उस वजह से तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो ना? मैं- अगर मैं नाराज़ होती, तो यहां आपको मनाने आती क्या?

उनके सवाल के जवाब में मेरा सवाल सुनकर जेठजी रिलैक्स हो गए, अब उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गयी. जेठजी- ह्म्म्म.. मैं- खाने चल रहे हैं या खाना यहीं लेकर आऊं? जेठजी- दो मिनट बैठो ना जस्सी … फिर खाना खाते हैं ना!

मेरी समझ में आ गया कि अब जेठजी के मन से सारी हिचकिचाहट दूर हो गयी है और हो सकता है कि कुछ देर बाद फिर से मेरी चुदाई हो जाए. मैं भी मन ही मन एक और राउंड के लिए तैयार थी.

मैं जेठजी की बात मानते हुए वहीं पड़े स्टूल पर बैठ गयी. कुछ देर तक ना तो मैंने कुछ बोला और ना ही जेठजी ने.

फिर अचानक से जेठजी ने बोलना शुरू किया- सॉरी जस्सी, श्वेता की नाइटी की वजह से मैं कंफ्यूज हो गया था और उसी दुविधा में मैंने तुम्हें पीछे से पकड़ लिया और उसके बाद मौसम की वजह जो कुछ हुआ, फिर मैं खुद को रोक नहीं पाया. पर सच कहूं, तो मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं था और ना ही मेरे मन में तुम्हारे लिए ऐसी कोई सोच थी.

जेठजी पता नहीं और क्या क्या बोल रहे थे पर मेरा ध्यान जेठजी के शॉर्ट्स पर था जिसमें अब हल्की हल्की हलचल होने लगी थी. शायद जेठजी के लंड को फिर से मेरी चूत की गुफा में सैर करने के एक और मौके का आहट मिल गई थी. इधर मेरी चूत रानी भी धीरे धीरे पानी छोड़ने लगी थी.

कोई 5-7 मिनट तक जेठजी बोलते रहे. जैसे जैसे जेठजी की बातें बढ़ती जा रही थीं, वैसे वैसे जेठजी के शॉर्ट्स में हलचल भी बढ़ती जा रही थी.

मैंने नोटिस किया कि जेठजी ने शॉर्ट्स के नीचे कुछ नहीं पहना है, जिस वजह से उनके लंड का आकार साफ साफ समझ में आ रहा था. उनका लंड अब अपने रौद्र रूप में आने लगा था. सच कहूं तो अब मेरा खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था. मेरा मन कर रहा था कि जेठजी को बेड पर धकेल कर उनके ऊपर चढ़ जाऊं और पहली राउंड में जो ख्वाहिशें अधूरी रह गयी थीं, उन्हें पूरा कर लूं. पर मैं सही मौके का इंतजार कर रही थी. ये भी सच था कि मैं जेठजी से एक बार तो चुद चुकी थी, पर वो सब हालात की वजह से हुआ था और उस वक़्त मैं तैयार भी नहीं थी. शायद इसीलिए मैं अभी भी पहल करने में हिचकिचा रही थी. पर इतना तो मैं पक्का कर चुकी थी कि अगर इस बार मौका बना, तो मैं अपने हिसाब से चुदूंगी.

जेठजी समझ गए कि मेरी नज़र क्या ढूंढ रही हैं, इसलिए उन्होंने अपनी दोनों टांगों को थोड़ा और खोला और आराम से बैठ गए. वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगे. जेठजी से नज़र मिलते ही मुझे शर्म आ गयी और मैंने अपनी नजरें नीचे कर लीं.

इतने में जेठजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए और उन्होंने मेरे पास आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दिया. मैंने अपना चेहरा ऊपर करके जेठजी को देखना चाहा कि उससे पहले उनका लंड मेरी आंखों के सामने आ गया, जो अभी भी जेठजी के शॉर्ट्स में झूल रहा था. जेठजी मेरे पास खड़े थे और मैं स्टूल पर बैठी थी. इस वजह से जेठजी का औजार ठीक मेरे चेहरे के सामने था.

जेठजी के लंड से ध्यान हटाकर मैंने जेठजी के चेहरे की ओर देखा. जेठजी मुझे ही देख रहे थे. मैंने फिर से अपना चेहरा नीचे कर लिया. जेठजी अपना हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरी बांह को पकड़ लिया और मुझे स्टूल से उठाने का प्रयास करने लगे.

मैं भी उनका इशारा समझ कर स्टूल से उठ खड़ी हुई. मेरे खड़े होते ही जेठजी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. मैं भी उनके सीने से चिपक गयी.

कुछ देर तक वैसे ही रहने के बाद जेठजी ने मुझे अपने सीने से अलग कर दिया और मेरे चेहरे को पकड़ कर मेरे होंठों को चूमना चाहा, पर मैं अपने हाथ की उंगलियां उनके होंठों पर रख कर उन्हें रोकते हुए बोली- भैया पहले खाना खा लें … मुझे बहुत जोर की भूख लगी है. जेठजी- हम्म … मैं- खाना यहीं लेकर आऊं या हॉल में चलेंगे खाने? जेठजी- यहीं लेकर आ जाओ, साथ में खाते हैं. मैं- ओके.

इतना बोलकर मैं रसोई में खाना लेने चली गयी.

सेक्स कहानी का ये भाग कैसा लगा आपको, कमेंट करके जरूर बताइएगा. कहानी से संबंधित आप अपने विचार और सुझाव मुझे मेरे मेल आईडी पर मेल करके भी बता सकते हैं. [email protected] मेरी चूत चुदाई की कहानी जारी रहेगी.

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