भैया से ट्रेन में चुदाई-2

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कहानी का पहला भाग: भैया से ट्रेन में चुदाई-1

इस बार उन्होने ने मेरी पैंट की ज़िप खुद खोली और मेरी बुर पर हाथ फिराया। बुर पर हाथ लगते ही मैं बेचैन हो गई। वो मेरी फूली हुई बुर को मुट्ठी में लेकर भींच रहे थे। मैने बेबसी से अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठा कर भैया का सुपाड़ा चूमा और उसे मुंह में लेने की कोशिश की परंतु उसकी मोटाई के कारण मैने उसे मुंह में लेना उचित न समझा और उसे जीभ निकालकर चाटने लगी।

मेरी गर्म और खुरदरी जीभ के स्पर्श से भैया बुरी तरह आवेशित हो गये। उन्होने आवेश में भरकर मेरी गीली बुर को टटोलते हुये एक झटके से बुर में उंगली घुसा दी। मैं सिसकी भरकर उनके लंड सहित कमर से लिपट गयी। मेरा दिल कर रहा था कि भैया फ़ौरन अपनी उंगली को निकाल कर मेरी बुर में अपना लंड ठूंस दें।

मेरी ये इच्छा भी जल्द ही पूरी हो गयी। भैया मेरी टांगों में हाथ डालकर अपनी तरफ खींचने लगे थे। मैने उनकी इच्छा को समझ कर अपना सिर उनकी जांघों से उतारा और कम्बल के अंदर ही अंदर घूम गयी। अब मेरी टांगें भैया की तरफ थीं और मेरा सिर बर्थ के दूसरे तरफ था। भैया ने अब अपनी टांगों को मेरे बराबर में फैलाया फिर मेरे कूल्हों को उठा कर अपनी टांगों पर चढ़ा लिया और धीरे धीरे कर के पहले मेरी पैंट खींच कर उतार दी और उसके बाद मेरी पैंटी को भी खींच कर उतार दिया अब मैं कम्बल में पूरी तरह नीचे से नंगी थी। अब शायद मेरी बारी थी मैं ने भी भैया के पैंट और अंडर वियर को बहुत प्यार से उतार दिया। अब भैया ने थोड़ा आगे सरक कर मेरी टांगों को खींच कर अपनी कमर के इर्द गिर्द करके पीछे की ओर लिपटवा दिया।

इस समय मैं पूरी की पूरी उनकी टांगो पर बोझ बनी हुयी थी। मेरा सिर उनके पंजों पर रखा हुआ था। मैने ज़रा सा कम्बल हटा कर आसपास की सवारियों पर नज़र डाली सभी नींद में मस्त थे। किसी का भी ध्यान हमारी तरफ़ नहीं था। फिर मेरी नज़र भैया की तरफ पड़ी उनका चेहरा आवेश के कारण लाल भभूका हो रहा था वो मेरी ओर ही देख रहे थे न जाने क्यों उनकी नज़रों से मुझे बहुत शरम आयी और मैने वापस कम्बल के अंदर अपना मुंह छुपा लिया।

भैया ने फिर मेरी बुर को टटोला। मेरी बुर इस समय पूरी तरह रस से भरी हुई थी फिर भी भैया ने ढेर सारा थूक उस पर लगाया और अपने लंड को मेरी बुर पर रखा उनके गर्म सुपाड़े ने मेरे अंदर आग दहका दी फिर उन्होने टटोल कर मेरी बुर के मुहाने को देखा और अच्छी तरह सुपाड़ा बुर के मुंह पर रखने के बाद मेरी जांघें पकड़ कर हल्का सा धक्का दिया मगर लंड अंदर नहीं गया बल्कि ऊपर की ओर हो गया।

भैया ने इसी तरह एक दो बार और कोशिश किया वो आसपास की सवारियों की वजह से बहुत सावधानी बरत रहे थे। इस तरह जब वो लंड न डाल सके तो खीज कर अपने लंड को मेरी बुर के आस पास मसलने लगे। मैने अब शरम त्याग कर मुंह खोला और उन्हें सवालिया निगाहों से देखा। वो बड़ी बेबस निगाहों से मुझे देख रहे थे। मैने सिर और आंखों के इशारे से पूछा “कया हुआ?”

तब वो थोड़े से नीचे झुक कर धीरे से फुसफुसाये, “आस पास सवारियां मौजूद हैं गुडू इसलिये मैं आराम से काम करना चाहता था मगर इस तरह होगा ही नहीं, थोड़ी ताकत लगानी पड़ेगी।”

“तो लगाओ न ताकत भैया” मैं उखड़े स्वर में बोली।

“ताकत तो मैं लगा दूंगा परंतु तुम्हे कष्ट होगा क्या बरदाश्त कर लोगी?”

“आप फ़िक्र न करें कितना ही कष्ट क्यों न हो मैं एक उफ़ तक न करूंगी। आप लंड डालने में चाहे पूरी शक्ति ही क्यों न झोंक दें।”

“तब ठीक है मैं अभी अंदर करता हूं” भैया को इतमिनान हो गया।

और इस बार उन्होने दूसरी ही तरकीब से काम लिया। उन्होने उसी तरह बैठे हुये मुझे अपनी टांगों पर उठा कर बिठाया और दोनो को अच्छी तरह कम्बल से लपेटने के बाद मुझे अपने पेत से चिपका कर थोड़ा सा ऊपर किया और इस बार बिल्कुल छत की दिशा में लंड को रखकर और मेरी बुर को टटोलकर उसे अपने सुपाड़े पर टिका दिया। मैं उनके लंड पर बैठ गयी। अभी मैने अपना भार नीचे नहीं गिराया था। मैने सुविधा के लिये भैया के कंधों पर अपने हाथ रख लिये। भैया ने मेरे कूल्हों को कस कर पकड़ा और मुझसे बोले, “अब एक दम से नीचे बैठ जाओ”

मैं मुस्कुराई और एक तेज़ झटका अपने बदन को देकर उनके लंड पर चपक से बैठ गयी। उधर भैया ने भी मेरे बदन को नीचे की ओर दबाया। अचानक मुझे लगा जैसे कोई तेज़ धार खंजर मेरी बुर में घुस गया हो। मैं तकलीफ़ से बिलबिला गयी। क्योंकि मेरी और भैया की मिली जुली ताकत के कारण उनका विशाल लंड मेरी बुर के बंड दरवाज़े को तोड़ता हुआ अंदर समा गया और मैं सरकती हुयी भैया की गोद में जाकर रुकी।

मैने तड़प कर उठना चाहा परंतु भैया की गिरफ़्त से मैं आज़ाद न हो सकी। अगर ट्रेन में बैठी सवारियों का ख्याल न होता तो मैं बुरी तरह चीख पड़ती। मैं मचलते हुये वापस भैया के पैरों पर पड़ी तो बुर में लंड तनने के कारण मुझे और पीड़ा का सामना करना पड़ा। मैं उनके पैरों पर पड़ी पड़ी बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी।

भैया मुझे हाथों से दिलासा देते हुये मेरी चूचियों को सहला रहे थे। करीब १० मिनट बाद मेरा दर्द कुछ हल्का हुआ तो भैया कूल्हों को हल्के हल्के हिला कर अंदर बाहर करने लगे।

फिर दर्द कम होते होते बिल्कुल ही समाप्त हो गया और मैं असीमित सुख के सागर में गोते लगाने लगी।

भैया धीरे से लंड खींच कर अंदर डाल देते थे। उनके लंड के अंदर बाहर करने से मेरी बुर से चपक चपक की अजीब अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रही थीं। मैने अपनी कोहनियों को बर्थ पर टेक कर बदन को ऊपर उठा रखा था और खुद थोड़ा सा आगे सरक कर अपनी बुर को वापस उनके लंड पर ढकेल देती थी।

इस तरह से आधे घंटे तक धीरे धीरे से चोदा चादी का खेल चलता रहा और अंत में मैने जो सुख पाया उसे मैं बयान नहीं कर सकती।

भैया ने टोवल निकाल कर पहले मेरी बुर को पोंछा जो खून और हम दोनो के रज और बीज से सनी हुई थी उसके बाद मैने उनके लंड को पोंछा और फिर बारी बारी से बाथरूम में जाकर फ़्रेश हुये और कपड़े पहने।

मेरे पूरे बदन में मीठा मीठा दर्द हो रहा था। यहींन से हम दोनो भाई बहन न होकर प्रेमी प्रेमिका बन गये। अब जब भी भैया घर आते मुझे बिना चोदे नहीं मानते हैं मुझे भी उनका इंतज़ार रहता है। मगर अभी तक किसी और को मैने अपना बदन नहीं सौंपा है और न कोई इरादा है

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