दो दीवाने-1

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प्रेषक : प्रेम सिसोदिया

अजय मेरा अच्छा दोस्त था। हम दोनों एक साथ पढ़ाई पूरी करके मेडिकल रेप्रेसेंटेटिव बन गये थे। हम दोनों एक ही कम्पनी में थे। आस पास के क्षेत्रो में जाकर दौरा करना और दवाईयां का ऑर्डर लाना ही हमारा काम था। अपनी दवाईयों को भी हम प्रोमोट करते थे।

अजय मेरा अच्छा दोस्त ही नहीं था बल्कि उस पर मैं आसक्त भी था। मैं उसकी सुन्दरता पर मरता था। खास कर उसकी गोल गोल कसी हुई गाण्ड मुझे बहुत आकर्षित करती थी। मैं कभी कभी अपने आपे से बाहर हो कर उसकी गाण्ड पर हाथ भी फ़िरा देता था, पर वो सहज ही रहता था। बस कभी कभी हंस देता था। मुझे उसके लण्ड का उभार तो बस घायल ही कर देता था। मैं रात को कभी कभी सपने में उसकी गाण्ड मारने का प्रयत्न भी करता था। पर प्रत्यक्ष रूप से कभी किसी की गाण्ड मारी नहीं थी सो सपने में भी बस कोशिश ही करता रहता था। फिर मेरा लण्ड ढेर सारा वीर्य पजामे में ही उगल देता था और मेरा सारा पजामा भीग जाता था।। वीर्य के चिपचिपेपन के कारण मैं जल्दी से अपना उतार देता था। पर मेरे दिल में था कि कैसे भी उसे पटा कर उसकी गाण्ड मार दूँ और एक बार मरवा कर भी देखूँ। पता नहीं कितना मजा आयेगा। मजा आयेगा भी या नहीं?

आज कम्पनी के द्वारा मुझे और अजय को दिल्ली जाने का आदेश मिला था। मैंने सवेरे ही जाकर दो सीट एसी बस में करवा ली थी। मैंने सोचा रात भर साथ साथ बस में रहेंगे तो शायद काम बन जाये ! अगर नाराज होगा तो माफ़ी मांग लूंगा, दोस्त ही तो है। यही सोच कर मैंने अपने आप को जैसे तैसे तैयार कर लिया। पर डर तो दिल में लगा ही रहा।

शाम का समय भी आ गया। मैं पहले अजय के घर गया और उसको साथ लेकर टैक्सी में बस स्टेण्ड आ गया। मेरे दिल में चोर था सो मैं उससे आँखें तक नहीं मिला पा रहा था। मैंने आज पैंट के भीतर चड्डी जानबूझ कर नहीं पहनी थी सो कुछ अजीब भी लग रहा था।

एसी बस में हर सीट के पास पर्दे लगे हुए थे ताकि कोई किसी को परेशान ना कर सके। मैंने पर्दे को ठीक से सरका कर केबिन जैसा बना लिया। बस अपनी नियत समय पर चल दी थी। रात्रि के नौ बज चुके थे। हम दोनों बतियाने में लगे थे। मैं तो अपनी योजना अनुसार अपने हाथ को बार बार उसके लण्ड के आस पास मार भी रहा था। जाने कैसे उसका हाथ भी एक दो बार मेरे लण्ड पर आ गया था। कुछ ही देर में बस की बत्तियाँ बन्द हो गई। हम भी शान्त होने लगे। अब समय था कुछ कर गुजरने का। उसके लण्ड पर जम कर हाथ मारने का। मैंने अपना मन कठोर बना लिया था कि इसकी मा चुदाये ! मुझे तो इसका लण्ड पकड़ कर मरोड़ ही देना है।

मैं सोच ही रहा था कि कैसे क्या करना चाहिये, तभी अजय का एक हाथ मेरी जांघ पर आ गिरा। मुझे लगा नींद के झोंके में हाथ आ गया है। मैंने कुछ नहीं किया, पर मैं भी एकाएक रोमांचित हो उठा। उसका हाथ मेरे लण्ड की तरफ़ सरक रहा था।

तो क्या … इसका मन भी यही करने का था।

अब उसका हाथ सरक कर मेरे लण्ड के ऊपर आ गया था। आह, मुझे तो अब कुछ भी नहीं करना था। बस इन्तज़ार करना था कि कब उसका पहला वार हो।

उसका हाथ धीरे से चला और मेरे लण्ड का जैसे आकार नापने लगा। मैंने अजय की ओर देखा। वो जैसे अन्जान सा बना हुआ सामने सड़क देख रहा था। उसका हाथ अब मेरे लण्ड को ऊपर से नीचे तक पूरी लम्बाई को टटोल रहा था। उसकी अंगुलियाँ मेर लण्ड दबा दबा कर लम्बाई को महसूस कर रही थी।

मेरा लण्ड सख्त हो उठा, खड़ा होने लगा था। तब उसे पकड़ने में और सरलता लगने लगी। मुझे भीना भीना सा आनन्द आने लगा था। लण्ड को पकड़ने के कारण मेरे शरीर में तरंगे उठने लगी थी। मेरा काम तो बिना किसी मुश्किल के अपने आप हो रहा था।

उसने मुझे तिरछी नजर से देखा- विनोद, तेरा लण्ड तो मस्त है यार !

मैं कुछ नहीं बोला, बस उसे देखता ही रहा।

ये जिप तो खोल दे यार, जरा इस मस्त लण्ड को अन्दर से देखूँ तो !

मैंने पैंट की जिप खोल दी, मेरा लण्ड बाहर आ गया।

अरे वाह, बस ऐसे ही … बाकी का काम उसने लण्ड खींच कर पूरा ही बाहर निकाल लिया।

तभी परदे के पीछे से आवाज आई- टिकट दिखाइए !

मैंने जल्दी से लण्ड पैंट के भीतर डाल दिया। परदा हटा कर उसे टिकट दिया।

भाई साहब, आप दोनों उस पीछे वाली सीट पर चले जाईये। पीछे गाड़ी पूरी खाली है, प्लीज, वहां पर जितना चाहे मज़ा कीजिये।

हम दोनों पकड़े गये थे। शर्म से हमारे मुख लाल हो गये। पर जब उसे मालूम ही हो गया था तो हम चुप से उठ कर पीछे आ गये। सच में पीछे कोई नहीं था और पर्दे भी लगे हुये थे। कन्डक्टर मुस्कराते हुये सीट दिखा कर चला गया। लक्जरी बस थी सो पीछे भी गाड़ी का उछाल नहीं था। हम दोनों पीछे बैठ गये। अजय ने कण्डक्टर को धन्यवाद कहा।

अब मैंने भी खुल जाना बेहतर समझा। मेरे पैंट की जिप तो खुली हुई ही थी। मैंने भी उसके पैंट पर से उसके लण्ड पर हाथ मारा। वो तो पहले से ही खड़ा हुआ था।

“साले तेरा बम्बू तो पहले से ही तना हुआ है?”

“तुझे देख कर खड़ा हो जाता है यार, तू है ही इतना सोलिड !”

उसकी पैंट की जिप खोल कर मैंने भी उसका लण्ड थाम लिया। बाहर से आती रोशनी में से उसका लण्ड बहुत सुन्दर लग रहा था। उसका हाथ अब मेरे लण्ड पर धीरे धीरे आगे पीछे चलने लगा था। मैंने उसका सुपाड़ा धीरे से चमड़ी खींच कर खोल दिया। वो गीला और चिकना हो गया था।

मैंने भी मुठ मारने की कोशिश की तो वो बोला,”रुक जा ! बाद में करना, पहले मुझे मुठ मारने दे। बहुत दिनों से अपने आप को रोके हुए हूँ। साली तेरी गाण्ड बहुत सेक्सी है।”

वो धीरे से नीचे झुक गया और मेरा कड़क लण्ड अपने मुख में ले लिया। अब वो मस्ती से धीरे धीरे चूसने लगा। मेरे तन में मीठी मीठी लहरें चलने लगी। कैसा संयोग था कि मुझे जिस बारे में महीनों सोचना पड़ा था और हिम्मत भी नहीं हो रही थी, वो सब उल्टा ही हो गया। सब कुछ इतना आसानी से हो गया। अब मैं और सम्भल कर बैठ गया ताकि वो लण्ड को बेहतरीन तरीके से चूस ले। उसके लण्ड चूसने की पुच पुच की आवाजे आने लगी थी।

“आह, तू तो मेरा लण्ड चूस चूस कर तो आज मुझे झड़ा ही देगा, अरे बस कर यार !”

यह सुन कर तो उसने और जोर से चूसना आरम्भ कर दिया।

“अरे साले, मेरा निकल जायेगा, बस कर तो…”

वो जान कर मेरी अनसुनी करता रहा। बल्कि और जोर से मेरा सुपाड़ा घिसने लगा।

“मादरचोद, साले छोड़ दे अब तो …” मैं तो कहता ही रह गया और मेरी पेशाब नलिका अनियंत्रित होकर ढेर सारा वीर्य उसके मुख में ही उगल दिया। शायद वो यही चाहता था। बहुत ही शान्ति से उसने सारा वीर्य पी लिया और फिर बैठ गया। मैंने रूमाल से उसके मुख पर आये वीर्य के छींटों को साफ़ कर दिया।

“तू गजब करता है यार ! मेरा तो माल ही निकाल दिया और पी भी गया उसे?”

वो मुस्करा उठा।

“तू भी यार मस्त माल है, पर तुझे मजा आया या नहीं, विनोद?”

“सच बताऊँ अजय, मेरा दिल तो बहुत दिनो से तुझ पर था, कि मैं तेरा लण्ड पकड़ कर घिस दूं, तेरी… तेरी गाण्ड मार दूं, पर हिम्मत ही नहीं हुई, सोचा कहीं बुरा ना मान जाये !”

“तो क्यों नहीं किया यार, मेरा दिल तो सच कहूं तेरी गाण्ड मारने पर आ ही गया था। साला कितना सेक्सी लगता है तू, तेरी गाण्ड देख कर यार मेरा तो साला लौड़ा खड़ा हो जाता था। लगता था कि तेरी प्यारी सी गाण्ड मार दूँ।”

“मेरा भी यही हाल था, तेरी मस्त गाण्ड देख कर मेरा जी भी तेरी गाण्ड चोदने को करता है।”

हम दोनों गले मिल गये और एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे।

दूसरे भाग में समाप्त !

आपका

प्रेम सिसोदिया

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