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प्रेषक : आकाश

अन्तर्वासना के पाठकों को मेरा नमस्कार। क्योंकि अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है इसलिए अगर भाषा में कुछ गड़बड़ी हो जाये तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा। दरअसल यह मेरी सच्ची प्रेम कहानी है। मेरा नाम आकाश है, कद 5 फ़ीट 7 ईंच, उम्र 20 साल, रंग साँवला, गठीला बदन और हथियार का आकार करीब 6 ईंच है। परिवार में माँ-पिताजी और एक छोटा भाई है।

यह कहानी शुरू होती है तब से जब मैं नौवीं कक्षा से उत्तीर्ण होकर दसवीं में गया था। मुझे अपने सेक्शन में ना डालकर किसी और सेक्शन में डाल दिया गया था और वहाँ मैं पहली बार उससे मिला। उसका नाम था ॠचा।

पहले के एक-दो महीने तो बस इसी तरह पढ़ाई करते गुज़र गये। फिर पता नहीं क्यों मैं ॠचा की तरफ़ खिंचता चला गया। मुझे तो इस बात का पता ही नहीं चला कि कब मैं उससे प्यार करने लगा। पूरे एक साल के दौरान मैं उससे यह नहीं कह पाया कि मैं उससे प्यार करता हूँ।

खैर दसवीं की परीक्षा हुई और फिर स्कूल की छुट्टी हो गई। छुट्टियों के दौरान मैंने सोचा कि घर बैठने से अच्छा है कोई कोर्स कर लिया जाये पर जब भी मैं पढ़ने को बैठता तो बस उसका ही चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमता रहता। किसी तरह मैंने वो कोर्स पूरा कर लिया।

तीन महीने के बाद दसवीं के परिणाम आये। हमारे स्कूल में बारहवीं की पढ़ाई नहीं होती थी इसलिए हमें किसी और कॉलेज में उच्च शिक्षा के लिये नामांकन करवाना पड़ा। कॉलेज के पहले दिन मैंने देखा कि उसने भी उसी कॉलेज में अपना नामांकन करवाया था जिसमें मैंने अपना करवाया था और उसे भी वही सेक्शन मिला जो मुझे मिला था।

मैंने इस बार फ़ैसला कर लिया था कि उसे अपने दिल की बात बता कर रहूँगा।

एक दिन हिम्मत करके मैंने उसे अपना हाल-ए-दिल नुमाया कर ही दिया पर उसका जवाब सुनकर मेरी आँखों के सामने के सामने अन्धेरा छा गया। वो मुझे सिर्फ़ एक अच्छा दोस्त समझती थी और बस अपने परिजनों की पसंद को तरजीह देती थी।

मेरा ख्याल है कि वो भी मुझसे प्यार करती थी लेकिन उसने प्यार के अंत में होने वाले खेल को ध्यान में रखकर ही मुझे ना कहा होगा, लेकिन मैं यह गारंटी के साथ नहीं कह सकता लेकिन क्या प्यार का मतलब सिर्फ़ सेक्स करना ही तो नहीं होता?

उस दिन मैं ठीक से पूरी क्लास भी नहीं कर पाया और बीमारी का बहाना बनाकर पार्क चला गया, लेकिन जाते जाते मैं भारी गले से उसे ये कह गया कि चाहे तुम मुझसे प्यार ना करो, मैं तुमसे हमेशा प्यार करता रहूँगा।

दूसरे दिन से ना मैं उससे नज़र मिला पा रहा था ना ही वो।

दिन गुज़रते गये और एक दिन मुझे पता चला कि मेरे वर्ग की ही एक लड़की मुझसे प्यार करती है । अंजना नाम था उसका। कॉलेज के होस्टल में ही रहती थी, कद 5 फ़ीट 3 ईंच, मध्यम आकार की चूचियाँ, रंग गोरा बिल्कुल अंग्रेज़ों के जैसा, बस कयामत लगती थी।

मेरे पूछने पर कि क्या यह सच है और क्या वो जानती है कि मैं ॠचा से प्यार करता हूँ, तो उसने बड़ी ही शालीनता से हाँ में अपना सर हिला दिया।

मैंने उसे कहा- कल सोचकर बताऊँगा।

रात भर मैं अंजना के बारे में ही सोचता रहा, मैं सिर्फ़ ॠचा से ही प्यार करता था और किसी और से प्यार की बात मैं सोच भी नहीं सकता था लेकिन यह सोचकर कि प्यार में जितना मैं तरसा था, उतना कोई और मेरे वजह से तरसे, यह ठीक नहीं, मैंने उसे अगले दिन हाँ कह दिया।

दरअसल इसमें मेरा भी एक स्वार्थ छुपा हुआ था, मैं ॠचा को किसी भी तरह से भूलना चाहता था।

दिन गुज़रते गये और मेरे और अंजना के बीच की नज़दीकियाँ भी बढ़ती गई पर मैं अभी तक ॠचा को नहीं भूला पाया था।

कुछ दिनों बाद माँ-पिताजी को मौसी की शादी के कारण गाँव जाना पडा, भाई की परीक्षा खत्म हो चुकी थी इसलिए वो भी गाँव चला गया। मैं अपनी की परीक्षा की तैयारी के लिए घर पर ही रह गया।

एक दिन अंजना ने मुझसे कहा कि उससे गणित के कुछ सवाल हल नहीं हो रहे हैं तो मैंने उससे कहा कि छुट्टी के बाद वो मेरे घर चले, मैं उसे समझा दूंगा।

छुट्टी के बाद मैंने अपने बाइक पर उसे बैठाया, कुछ देर फ़्रेश होने के लिये पार्क चला गया और फ़िर घर आ गया। घर आने के बाद मैंने चाय बनाई और उसे सवाल समझाने लगा। मगर सारा समय वो मुझे घूरती ही रही।

पहले तो मैं नज़रअंदाज़ करता रहा पर आखिर में मैंने पूछ ही लिया- क्या बात है? आज जनाब का मूड बडा ही रोमांटिक हो रहा है?

तो उसने बड़े प्यार से कहा- यह अकेलापन मूड को रोमांटिक बनाने के लिय काफ़ी है।

मैंने कहा- मुझे तो नहीं लगता !

तो वो मेरे पास आई, मेरे चेहरे को पीछे से पकड़ा और अपने होंठ मेरे होंठों से सटा दिए।

पहले तो मुझे थोड़ा अजीब लगा, पर थोडी देर के बाद मैंने भी उसे पीछे से पकड़ा और उसका साथ देने लगा। मेरा चार ईंच का छोटा सिपाही अब छ्ह ईंच का होकर सलामी देने लगा था।

करीब दस मिनट के बाद मुझे अपने पैंट की ज़िप के ऊपर कुछ महसूस हुआ, मैंने देखा कि अंजना मेरी पैंट की ज़िप खोल रही थी।

थोड़ी देर के बाद वो मेरे लंड से खेलने लगी और फ़िर उसे लॉलिपॉप की तरह चूसने लगी।

मैं तो वैसे ही उसकी छुअन से मदहोश हुआ जा रहा था और ऊपर से उसका लंड को चूसना ! मैं बयाँ नहीं कर सकता मुझे कितना आनन्द आ रहा था।

थोड़ी देर के बाद मैं स्खलित हो गया।

फिर मैने उसे खड़ा किया और उसकी कमीज़ उतार दी। चूँकि यह मेरा पहली बार था इसलिए बडी मुश्किल से खुद पर काबू कर पा रहा था। मैं ब्रा के ऊपर से ही उसके कबूतरों को सहला रहा था पर मैंने उसकी ब्रा उतारने में कोई जल्दबाज़ी नहीं की, मैं उसकी सुन्दरता को अपने ज़हन में उतारना चाहता था।

मैं उसके दूधिया शरीर को बस देखता ही रह गया। वो शरमाती हुई मेरे पास आई और मेरे होठों का रसपान करने लगी।

मैं भी पूरे जोश से उसका साथ देने लगा। उसने मेरे शरीर से पहले कमीज़ उतारी, फिर बनियान उतारा और फिर मेरे बदन से खेलने लगी। मैंने उसके बाकी के कपड़े भी उतार दिये और खुद भी नंगा हो गया।

मैं उसे लिटाकर उसके कबूतरों से खेलने लगा। वो भी मस्ती में सिसकारियाँ लेने लगी और मुझे स्मूच करने लगी।

थोड़ी देर में हम दोनों काफ़ी गर्म हो गये थे। फ़िर मैंने अपने होंठ उसकी बुर की फ़ांकों के बीच रखकर उसकी भग्नासा को चूसने लगा और खेलने लगा।

मुझे ब्लू फ़िल्मों और अन्तर्वासना के माध्यम से इसका थोड़ा अनुभव हो गया था। वो बडी मुश्किल से खुद पर काबू कर पा रही थी।

कुछ देर में ही वो अकड़ने लगी और फ़िर झड गई।

वो फ़िर से मेरे लंड के साथ खेलने लगी। कुछ देर में ही मेरा लण्ड खड़ा हो गया। थोड़ी देर उसकी चूचियों से खेलने के बाद मैं एक पुरानी चादर ले आया और बेड पर बिछा दी।

अंजना को लिटाकर फ़िर मैं उसके ऊपर लेट गया और अपने लण्ड को उसकी बुर के मुँह पर लगाकर धक्का देने लगा। उसकी बूर अभी तक कुंवारी ही थी इसलिए थोड़ी दिक्कत हो रही थी। मेरे लण्ड का टोपा अंदर चला गया था और मुझे भी थोड़ी-थोड़ी जलन हो रही थी। अभी तक तो मैं यही समझता था कि लड़कियों की ही सील टूट्ती है।

अंजना के मुँह से एक हल्की चीख निकल गई। थोड़ी देर रूककर मैं उसके चूचियों से खेलने लगा और उसे स्मूच करता रहा।

जब वो सामान्य हुई तो मैंने एक झटका लगाया और लण्ड उसकी सील को चीरते हुए उसकी बुर की गहराइयों को नापने लगा।

अंजना की तो जैसे सांस ही रूक गई, वो तो बस एकटक होकर मुझे ही घूरने लगी। मेरी तो जैसे जान ही निकल गई। फ़िर जब वो सामान्य हुई तो मेरी जान में जान आई।

मैं धक्के लगाता रहा। थोड़ी देर बाद वो भी मेरा साथ देने लगी।

करीब आधे घंटे बाद मैं दोबारा झड़ गया। इस दौरान वो दो बार स्खलित हुई।

आधा घण्टा आराम करने के बाद मैं उसे हॉस्टल छोड़ने गया, उसे एक गुड नाइट किस दिया और फ़िर वापस आ गया।

सुबह कॉलेज में मैं ठीक से चल नहीं पा रहा था। लंड में अभी तक जलन हो रही थी। वही हाल अंजना का भी था।

इस एक सप्ताह के दौरान मैंने कई बार उसके साथ सम्भोग किया, दो बार उसकी गाँड चुदाई भी की।

फ़िर माँ-पिताजी घर आ गये और हमें फ़िर मौका नहीं मिला।

फ़िर वो दिन भी आ गया जब मुझे कॉलेज छोड़कर जाना था। जब छुट्टी में मैं ॠचा और अंजना से आखिरी बार मिलकर जाने लगा तो अंजना ने मुझसे कहा कि मैं तो उसका बस एक अच्छा दोस्त था, प्यार का नाटक तो उसने मुझसे सम्भोग करने के लिये किया था।

मैं तो जैसे अपने होश ही खो बैठा, किसी तरह उसे यह बोलकर निकल गया कि चलो मैं तुम्हारे किसी काम तो आया।

उस दिन के बाद से अंजना ने मुझे कई बार फ़ोन भी किया पर मैंने उसे कोइ जवाब नहीं दिया।

मुझे उस दिन इतना गुस्सा आया कि मैंने एक कालबॉय बनने का फ़ैसला कर लिया।

मुझे आप सबसे एक और सलाह चहिए कि क्या मै ॠचा को प्यार करता रहूँ या उसे भूल जाऊँ क्योंकि आज भी मैं उसे भूल नहीं पाया। आपके सलाह और विचार मुझे मेल करें।

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