सावन में चुदाई-2

प्रेषक : विजय पण्डित

“आह रे, मर जावां रे… विजय, तुझे तो मुझ पर रहम भी नहीं आता?” उसकी सेक्स में बेचैनी उभर रही थी।

“रहम तो आपको नहीं आता है … कभी मौका तो दो…” मेरी सांसे तेज होने लगी थी।

“किस बात का मौका … बोलो ना?” वो तड़प कर बोली।

“आपको चोदने का … हाय मेरा लण्ड तड़प जाता है तुम्हारी चिकनी चूत को चोदने का !” मैंने अपने मन का गुबार निकाल दिया।

“हाय मेरे विजय … फिर से बोलो …” वो मेरी बात सुन कर बहक सी गई।

“आपकी भोसड़ी को चोदने का…” मैंने अपना लहजा बदल दिया।

“हाय, तुम कितने अच्छे हो … फिर से कहो !” वो पत्थर से उतर कर मुझसे चिपकने लगी।

“रश्मि … तुम्हारी गोल मटोल, चिकनी गाण्ड चोदना है !” मेरा लौड़ा तन्ना उठा था।

“मेरे प्यारे, अपना लण्ड चुसा दे मुझे … कितना रस भरा है रे !” वो लौड़ा देख कर मचल सी गई।

वो मेरी बातों से वासना में डूब सी गई। मुझे खड़ा करके मेरा लण्ड अपने मुख में लेकर चूसने लगी। मैं उससे चिपकता जा रहा था। अपनी गाण्ड को धीरे धीरे हिला कर मस्ती ले रहा था।

“साले तू कितना मस्त है … तेरी बातें कितनी प्यारी हैं !” मुंह में लण्ड को लेकर पुचक पुचक करके चूसते हुए बोली।

“रश्मि, अपनी चड्डी नीचे कर दे, अपना लौड़ा तेरी चूत में घुसेड़ दूँ, आह मेरी रानी…” मैंने ठेठ चवन्नी भाषा में बोला। वो मेरी बातों से मस्त हो गई थी। मैंने उसे खड़ी कर दिया और उसके जलते हुए होंठो पर अपने होंठ रख दिए। हम दोनों की आंखे बन्द होने लगी और दोनों के अधर आपस में भिड़ गए। उसने अपनी चड्डी नीचे खींच कर मेरा लण्ड अपनी चूत में रगड़ने लगी।

“आह, भोसड़ी की, मेरी जान निकाल देगी क्या … ?” मेरे मुख से आह निकल पड़ी।

“जान क्या, माल भी निकाल दूंगी … जरा मेरी चूत में इस डण्डे को घुसने तो दे !” रश्मि में अपनी शर्म छोड़ दी।

“साली, चोद चोद कर तेरी चूत का भोसड़ा बना दूंगा !” मैंने जोश में कहा।

“सच, उईईई … जरा धीरे से … हां … बस ऐसे ही … कितना मस्त आनन्द आ रहा है, चल जोड़ दे इस डण्डे को मेरी भोसड़ी से !” इसी बात पर रश्मि को चूत में लण्ड घुसने का अहसास हुआ। मेरा लण्ड उसने अपनी चूत में निशाना लगा कर घुसेड़ लिया था। मैंने पास की चट्टान को उसका सहारा बना दिया और जोर लगा कर लण्ड घुसेड़ने लगा। एक तीखा सा, मीठा सा, करारा सा मजा आने लगा। पास में ठण्डा ठण्डा बहता पानी हमारे सुख में वृद्धि कर रहा था। इसी बीच एक जोड़ा हमे काम क्रीड़ा में लिप्त देख कर दूसरी ओर बढ़ गया था।

रश्मि के उरोज उछल उछल कर मेरी कामाग्नि को और बढ़ा रहे थे, उसके दोनों लचकदार नरम और गरम स्तन मेरे हाथों में मचक रहे थे। अब हम एक दूसरे से बुरी तरह लिपटे हुए थे। उसका एक पैर मेरी कमर में लिपटा हुआ था। दो जिस्म एक होने की कोशिश कर रहे थे। नीचे लण्ड से हम दोनों जुड़े हुए एक होने का अहसास दिला रहे थे। हमारी कमर तक बहते हुए पानी में तेजी से चल रही थी। लण्ड चूत पर जोरदार धक्के मार रहा था, प्रतिउत्तर में उसकी चूत भी लण्ड को लपक लपक कर ले रही थी।

“साले विजय, तेरा मोटा लण्ड मेरी तो जान ही निकाल देगा !” रश्मि में मस्ती भरी हुई थी।

“तेरी प्यारी भोसड़ी, आज तो मेरे लण्ड की मां चोद देगी रानी !” मैं भी मस्ती में चूर होता जा रहा था।

“चोद मेरे राजा, दे जोर से, फ़ाड़ दे मेरी फ़ुद्दी को, भेन चोद दे इसकी !” रश्मि ने अपनी फ़ुद्दी जोर से चलाते हुए कहा।

“उफ़्फ़्फ़, साली और दे गालियाँ, भेन की लौड़ी, चुदा ले जी भर के, निकाल ले अपना पूरा रस !” मैं भी पूरी तरह से लय में आ गया था।

“उईईई… चल भोसड़ा बना दे मेरी चूत को, मुझे मार डाल … मैय्या री , चुद गई मैं तो !” उसकी आंखें बन्द थी, शरीर जैसे थर्राने लगा था।

तभी रश्मि ने जोर से सांस भरी और अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया, मेरी बाहों में झूल सी गई।

“हाय रे विजय, तुमने तो आज मुझे जीत ही लिया, मुझे मार ही दिया, मेरी तो मां चुद गई रे !” उसने जोर की सांस छोड़ते हुए कहा।

“रश्मि, बस एक दो झटके और … मेरा भी माल भी निकल आएगा।” मेरा शरीर भी अब अकड़ने लगा था। बस मेरा भी माल निकलने को ही था।

रश्मि मुस्कराई और मेरे लण्ड को पानी अन्दर कस कर दबा दिया और जोर से रगड़ दिया। मेरे मुख से एक धीमी सी चीख निकल गई और पानी में वीर्य निकल पड़ा। वो मेरे पूर्ण स्खलित होने तक उसे दबाती रही, रगड़ती रही।

“हो गया ना …” रश्मि में मुस्करा कर पूछा।

“हां हो गया … मजा आ गया रश्मि… मेरी भी आज तो मां चुद गई, भोसड़ी की आप तो मस्त है यार…” मैंने रश्मि की तारीफ़ की।

“अब चुप … देखो बीस पच्चीस मिनट हो गए है … अब चले…” अब वो होश में आ चुकी थी।

हम दोनों चट्टान की आड़ से बाहर निकले, यहां वहां सतर्कता से देखा। एक जोड़ा हमें पास में ही नजर आ गया, यह वही जोड़ा था जो हमे देख कर आगे बढ़ गया था। उस जोड़े ने मर्द और युवती दोनों ने मुस्करा कर हमें हाथ हिला कर अभिवादन किया। हमने भी उसे हाथ हिला कर अभिवादन किया। वो दोनों फिर से काम क्रीड़ा में मग्न हो गए। हमने अपने गीले कपड़े किनारे आ कर बदल लिए और वैन की तरफ़ चल दिए। कमलेश दारू के नशे में सो रहा था।

हमने उसे उठाया और खाना लगा दिया। हम दोनों शाम तक यूँ ही मस्ती करते रहे पर दूसरी बार चुदाई नहीं कर पाए। कमलेश को भी पानी में खेलना अच्छा लगा। संध्या होते होते हम घर लौटने की तैयारी करने लगे। घर पहुँचते ही उसने मोबाईल की तरफ़ इशारा किया। रश्मि ने कमलेश को दो पेग और पिलाया और डिनर में दिन का बनाया हुआ खाना लगा दिया।

विजय पण्डित