गाण्ड मारे सैंया हमारो-5

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प्रेम गुरु और नीरू बेन को प्राप्त संदेशों पर आधारित

प्रेषिका : स्लिम सीमा

मुझे लगा जैसे कोई मूसल मेरी फूलकुमारी के अंदर चला गया है, मुझे लगा ज़रूर मेरी फूलकुमारी का छेद बुरी तरह छिल गया है और उसमें जलन और चुनमुनाहट सी भी महसूस होने लगी थी। मुझे तो लगा कि यह फट ही गई है। मैं उसे परे हटाना चाहती थी पर उसने एक ज़ोर का धक्का और लगा दिया।

“मेरी जान….!”

मैं दर्द के मारे कसमसाने लगी थी पर वो मेरी कमर पकड़े रहा और 2-3 धक्के और लगा दिए।

मैं तो बिलबिलाती ही रह गई !

आधा लण्ड अंदर चला गया था। उसने मुझे कस कर पकड़े रखा।

“ओह… जस्सी बहुत दर्द हो रहा है.. ओह.. भेनचोद छोड़ ! बाहर निकाल … मैं मार जावाँगी… उईईईईईईई !”

दर्द के मारे मेरा पूरा बदन ऐंठने लगा था, ऐसा लग रहा था जैसे कोई गर्म लोहे की सलाख मेरी गाण्ड में डाल दी हो।

“मेरी बुलबुल ! कुछ नहीं होगा…. थोड़ी देर रूको, बहुत मज़ा आने वाला है …!”

उसने एक हाथ से मेरी कमर पकड़े रखी और दूसरे हाथ से मेरे नितंबों को सहलाने लगा। फिर उसने मेरी पीठ पर एक चुम्मा ले लिया। जब दर्द वाली जगह पर सहलाया जाए तो बहुत अच्छा लगता है, मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था, हालाँकि लौंडा अनाड़ी था पर लग रहा था कि थोड़े दिनों में सब कुछ सीख जाएगा।

अब उसके लण्ड ने अंदर अपनी जगह बना ली थी, मेरी फूलकुमारी का छल्ला कुछ सुन्न सा हो गया था।

“नीरू रानी ! अब तो दर्द नहीं हो रहा ना ?”

“साले भोसड़ी के … अपना मूसल गाण्ड में डाल कर पूछ रहा है कि दर्द तो नहीं हो रहा ….?”

“नखरे करने की तो हसीनो की फ़ितरत होती है… !”

“मेरी तो जान ही निकाल दी थी तुमने !”

“अब देखना ! मज़ा भी तो आएगा !”

“अरे मेरे राज़ा, तकलीफ़ तो हो रही है पर अब मज़ा भी आने लगा है ! सच कहती हूँ, मैंने कई लण्ड खाए हैं पर तुम्हारे जैसा मुझे अभी तक नहीं मिला… आ…”

अब उसने अपना लण्ड थोड़ा सा बाहर किया और फिर से एक धक्का लगाया। अब तो पूरा का पूरा लण्ड अंदर चला गया था। मुझे लगा यह मेरी नाभि तक आ गया है। हालाँकि मुझे थोड़ा दर्द तो अब भी हो रहा था पर उस मीठे दर्द और चुनमुनाहट में अनोखा आनन्द भी आने लगा था।

जस्सी हौले-हौले धक्के लगाने लगा। अब तो लण्ड अंदर-बाहर होने में ज़रा भी दिक्कत नहीं थी। मैंने अपनी मुण्डी पीछे करके उसका लण्ड देखना चाहा पर उसका लण्ड कैसे नज़र आता?

वह आँखें बंद किए सीत्कार किए जा रहा था और मेरी कमर पकड़े धक्के लगा रहा था। मैंने अपनी जांघें थोड़ी और चौड़ी कर ली। उसके मोटे-मोटे टट्टे मेरी लाडो से टकराने लगे थे। मैंने एक हाथ से उन्हें पकड़ लिया और मसलने लगी।

यह चुदाई भी भगवान ने बड़ी कमाल की चीज़ बनाई है, जिंदगी भर किए जाओ पर यही लगता है इसके लिए जिंदगी कम ही रही है।

आज पहली बार इस गाण्ड चुदाई का अनूठा आनंद तो किसी स्वर्ग के आनन्द से कतई कम नहीं था, कितना मज़ा आ रहा था !

जस्सी का लण्ड फंस-फंस कर मेरी फूलकुमारी के अंदर-बाहर हो रहा था। ग़ालिब ने सच ही इसी दूसरी जन्नत का नाम दिया है :

ग़ालिब गाण्ड चुदाई का यही वक़्त सही है

गाण्ड में दम है तो लूट ले इस जन्नत को !

जस्सी को तो भगवान ने छप्पर फाड़ कर मुझ जैसी हसीना की जवानी का मज़ा लूटने का मौका दे दिया था पर मेरे लिए भी यह किसी नेमत से कम नहीं था। स्त्री और पुरुष के शरीर के मिलने पर काम-सुख तो दोनों को ही मिलता है।

अब उसने अपना एक हाथ नीचे किया और मेरी लाडो की फांकों को मसलने लगा। मैं तो इस दोहरे आनन्द से एक बार झड़ गई।

उसे अपनी अंगुलियों पर मेरा लिसलिसा रस महसूस हुआ तो उसने अपनी तर्जनी अंगुली मेरी लाडो में डाल दी और अंदर-बाहर करने लगा।

मैं तो इस दोहरे आनन्द के सागर में ही डूब गई थी ! भगवान से औरत को दो छेद तो दे दिए पर आदमी को दो लण्ड दे देता तो कितना अच्छा होता !

मैंने सुना था कि अगर जांघें भींच ली जाएँ तो गाण्ड चुदाई का आनंद दुगना हो जाता है पर इतने मोटे लण्ड के साथ ऐसा करना संभव नहीं था। मैंने अपनी जांघें चौड़ी कर ली और अपनी गाण्ड के छल्ले का अंदर संकुचन करने लगी।

जस्सी के धक्के अब भी चालू थे ! वो तो झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैंने अपनी फूल कुमारी का संकोचन करना चालू रखा, ऐसा करने से उसका जोश फिर बढ़ने लगा और उसने जल्दी जल्दी धक्के लगाने चालू कर दिए। मैं तो इतनी उत्तेजित हो गई थी कि उसके धक्कों के साथ मैंने अपने नितंब आगे-पीछे करने चालू कर दिए थे।

मेरी कामुक सीत्कार कमरे में गूंजने लगी थी। काश ! यह चुदाई कभी ख़त्म ही ना हो और हम दोनो इसी तरह आनन्द लेते रहें !

अब तो हालत यह थी कि जैसे ही वो धक्का लगता तो मेरे मम्मे हिलने लगते और गकच की आवाज़ के साथ नितंब भी थिरक उठते।

मैंने अपना सिर तकिये पर लगा लिया और अपने मम्मों को दबाने लगी। मैंने अपना एक हाथ पीछे करके अपनी महारानी के छेद को टटोला। छेद के बाहर गीलापन सा था और ऐसे लग रहा था जैसे कोई मूसल अंदर फंसा हो।

मुझे हैरानी हो रही थी कि इतने छोटे से छेद में इतना मोटा मूसल कैसे अंदर जड़ तक समा गया है?

या रब्बा…! तेरी कुदरत भी अपरम्पार ही है।

“आ.. मेरी सोणिये…. मेरा तोता उड़ने वाला ई …”

“कोई गल नई मेरे मिट्ठू… मेरी फूलकुमारी भी तुम्हारे अमृत के लिए तरस रही है ! अंदर ही उस रस की फुहार छोड़ दे.. आ….”

“मेरी जान…. ईईईईईईईईईई !”

उसने 4-5 धक्के ज़ोर ज़ोर से लगाए और फिर मेरी गाण्ड के अंदर ही उसकी पिचकारियाँ फूटने लगी. वो मेरी कमर पकड़े अपना लण्ड जड़ तक अंदर ठोके खड़ा रहा। उसने धक्के लगाने बंद कर दिए पर मेरी फूलकुमारी अपना संकोचन करती जा रही थी जैसे उसकी अंतिम बूँद तक अंदर चूस लेना चाहती हो।

थोड़ी देर बाद उसका लण्ड फिसल कर बाहर आ गया तो वो परे हट गया और मैं पेट के बल लेटी रही, गाण्ड का छल्ला सिकुड़ने लगा, उसमें से धीरे धीरे रस बाहर आने लगा था और मेरी जांघों को भिगोने लगा था। मुझे गुदगुदी और रोमांच दोनो हो रहे थे।

जस्सी ने मेरे नितंबों को एक बार फिर से चूम लिया।

मैं भी उठ गई और उसे अपनी बाहों में भर कर एक बार फिर से चूम लिया।

“भरजाई जी ..!”

“हम्म…. ?”

“ए सी ठीक हो गया ना ?”

“ओह.. तुमने तो ए सी और डी सी दोनो ही सही कर दिए… पर हवा-पानी बदलने के लिए कल फिर आना पड़ेगा !”

“कोई गल नई जी, मैं कल फेर आ के ठीक कर जावाँगा जी !”

जस्सी अगले दिन फ़िर आने का वादा करके चला गया और मैं एक बार फिर से बाथरूम में चली गई।

आपको मेरी यह गाण्ड चुदाई कैसी लगी?

मुझे और प्रेम गुरु को ज़रूर बताना !

आपकी नीरू बेन (प्रेम गुरु की मैना)

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