अतुलित आनन्द-3

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प्रेषक : फ़ोटो क्लिकर

हम दोनों ने साथ खाना खाया, खाने का स्वाद गजब का था, अंत में गाजर का हलवा भी परोसा गया।

मैंने कहा- आप तो बहुत अच्छ खाना बना लेती हैं !

इस पर उन्होंने कहा- मैंने होटल मैनेजमेंट किया हुआ है, तीन साल एक बड़े ही नामचीन होटल में काम भी किया है, पति को मेरा काम करना पसंद नहीं था सो छोड़ना पड़ा !

कहते-कहते उदास हो गई, मैंने उनके कन्धे पर हाथ रखा तो उन्होंने मेरा हाथ चूम लिया, होंठों पे मुस्कान पर आँख भरी थी मानो और छेड़ा तो सैलाब !

मैं भी मुस्कुरा दिया।

खाने के बाद हमने साथ साथ सफ़ाई की और सोने के कमरे में चले गये।

तब तक करीब दस बज रहे होंगे, उन्होंने पूछा- बीयर पीते हो?

मैंने कहा- हाँ ! कभी कभार दोस्तों के साथ !

तो उन्होंने कहा- दो बोतल ले आओ तो ठीक रहेगा क्योंकि मर्द बीयर पीने के बाद घोड़े की तरह देर तक चुदाई कर सकता है।

मैं गया और जाकर तीन बोतल ले आया क्योंकि रात में देर तक कार्यक्रम चलना था काफ़ी बार शायद।

उन्होंने कमरे का माहौल बड़ा ही सुहावना बना दिया था, मन्द मन्द सी रोशनी, चारों ओर खुशबू फ़ैली हुई और उस रोशनी में उनका सारे बदन का रेखाचित्र सा खिंचा दिख रहा था, माहौल देख कर मैं बेकाबू होने लगा तो उन्होंने रोक दिया, कहा- अब हम एक दूसरे को आप-आप नहीं कहेंगे, तुम और अन्य शब्दों से सम्बोधित करेंगे।

मैंने हामी भरी और उन्हें (उसे) बिस्तर पर लिटा कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, एक हाथ उसके कमर को सहला रहा था और दूसरा उसके सर को पीछे से सहारा दिये हुए था। सहलाते हुए मैंने उसकी चूत को कपरों के ऊपर से छुआ, वाह ! फ़ूली हुई, गर्म, थोड़ी नम, शायद पानी छोड़ना शुरू हो गया था।

मैं चूत की दरार में उंगली से सहला रहा था, तो उसने कहा- चलो एक खेल खेलें ! ताश के पत्तों से जिसे तीन पत्ती या फ़लैश भी कह्ते हैं, साथ में बीयर होगी, एक एक बाजी हारने वाले को अपने बदन से एक एक कपड़ा उतारना पड़ेगा और एक एक ग्लास बीयर भी पीनी पड़ेगी।

मैं तैयार हो गया और खेल शुरू ! पास में दोनों के लिये बीयर के ग्लास भी थे, चखने के तौर पर साथ में कुछ फ़ल थे ही।

खेल शुरू हुआ, पहली बाजी उसने ही जीती, उसके चेहरे पर हँसी आ गई और मैंने अपना कमीज उतार दिया, एक ग्लास गटक गया और एक सेब को काट खाया।

उसने झट कहा- अब उस सेब को मेरे मुँह में अपने मुँह से ही खिलाओ !

मैंने वैसे ही किया और उसने मेरे होंठ काट लिये।

दूसरी बाजी चली और फ़िर मैं हार गया, मैंने अपनी पैंट खोल दी, एक और ग्लास पी गया, मैं जितना उसे नंगा देखना चाहता था, किस्मत उतना ही तड़पा रही थी।

तीसरी बाजी चली और इस बार किस्मत मेहरबान हुई, मैं जीता, तो उसने पहले तो अपना ग्लास उठाया और चुस्की लेते हुए पीने लगी और बिना पलक झपकाये मुझे देखने लगी।

मैं सोच रहा था कि क्या उतारेगी, चेहरे पे हल्की मुस्कान लिये उसने आधा ग्लास ही खत्म किया और अपना कुर्ते को ऊपर उठा कर खोल दिया।

क्या नजारा था !

बिल्कुल गोरे बदन पर बड़ी-बड़ी चूचियों को एक काले रंग की ब्रा संभाले हुए थी, किसी अप्सरा को भी मात दे देने वाला बदन !

गले में उसके चेन थी जो दोनों चूचियों के बीच में पड़ी हुई थी। कमर थी कि लग रहा था कि बरसों की मेहनत से तराशी हुई हो।

मैंने हाथ बढाया और उसकी चूचियों को हल्के से दबाया। सच कहता हूँ, लग रहा था जैसे रुई पर हाथ फ़ेर रहा हूँ।

उसने भी मेरे लण्ड को धीरे से दबाया और कहा- अभी काफ़ी कपड़े बाकी हैं !

मैंने ग्लास की ओर इशारा किया, वो बाकी पी गई, मेरे होठों के सामने आई और मैंने जैसे ही मुँह खोला, अपने मुँह से मेरे मुँह में बियर डाल दी।

मैं हँसा।

अगली बाजी डाली, मैं जीता, उसने अपनी स्लैक्स उतार दी।

अब तो मुझे संयम बरतना मुश्किल लग रहा था, लण्ड था कि अन्डरवीयर फ़ाड़ कर बाहर निकलने को बेताब था।

मैंने उसे दबाया तो थोड़ी राहत महसूस हुई।

नज़र तो उसके बदन पर ही थी, क्या जाँघें थी ! उफ़्फ़ ! कयामत ! गोरी-गोरी, चिकनी, चमकीली और उस पर काले रंग की पैन्टी, चूत की दरार साफ़ दिख रही थी।

मैंने वहाँ छुआ तो हल्का गीला गीला सा मह्सूस हुआ। मैंने अपनी उँगली को सूंघा, और उसकी ओर देखते हुए मैंने उँगली मुँह में रख ली।

उंगली को जीभ से चाटने लगा, उसने एक ग्लास भरा और इस बार एक ही दफ़ा पूरा का पूरा ग्लास पी गई।

अगली बाजी हुई तो फ़िर वो हार गई, उसने कहा- मेरे सारे कपड़े उतर रहे हैं पर तुम्हारे नहीं !

मैंने कहा- गाड़ी में तुमने मेरे लण्ड से तो खेल लिया तो अब किस्मत मुझे मौका दे रही है !

उसने अपनी ब्रा उतार दी।

मुझसे नहीं रहा गया, मैंने कहा- भाड़ में गया यह खेल ! अब असली पर आ जाता हूँ।

उसने कहा- मेरा भी यही ख्याल है, पर बीयर तो पी जाओ !

मैंने बोतल मुँह से लगाई और पूरी बोतल पी गया और उसके ऊपर टूट पड़ा।

बिस्तर पर लेटे लेटे हम गुत्थम-गुत्था हो गये और एक दूसरे को कसकर पकड़ कर होंठों से होंठ मिला कर एक दूसरे के होंठों का स्वाद लेने लगे।

न जाने हम दोनों कब के प्यासे थे कि बस एक दूसरे के होंठों को चूसे जा रहे थे। वो मेरे दोनों होंठों को चूस रही थी, जीभ से जीभ लड़ा रही थी, मैं उसकी चूचियों को दबा रहा था, होंठों से उतर कर मैं उसकी गर्दन को चूमने लगा और गले पर जीभ फ़िराने लगा।

उसकी पसीने और सेंट की मिली-जुली खुशबू मुझे पागल कर रही थी।

मैं उसके कानों को दाँत से दबाने लगा, वो मस्ती में सराबोर थी, उसने पैर फ़ैला लिये थे, मैं उसके दोनों टांगों के बीच में उसके ऊपर लेट कर उसकी चूचियों को दबा रहा था और उसे चूम रहा था। मैं उसकी चूत के ऊपर अपने लण्ड को अन्डरवियर से रगड़ रहा था, वो मस्ती की सिसकारियाँ ले रही थी।

हम दोनों की आँख़ें बंद हो रही थे, मेरा भी लण्ड लोहे की रॉड बन गया था, उसने ख़ुद ही अपने हाथों से मेरे अण्डवीयर को उतार दिया और लण्ड को अपने उंगलियों से सहलाने लगी। लण्ड के ऊपर के गुलाबी भाग को सहलाने से मेरी भी हालत एक भूख़े शेर की सी हो गई, मैं बस उसे चोद देना चाह रहा था।

मैंने अपने ख़ड़े लण्ड को उसकी चूत पर जैसे ही भिड़ाया उसने मुझे रोक दिया, कहा- पहले लण्ड का स्वाद तो चख़ लूँ।

मेरा भी मन उसकी चूत को चाटने का हुआ, मैं पीठ के बल लेट गया, मेरा लण्ड तो पहले से ही तैयार था, वो मेरे लण्ड को निहार रही थी।

मैंने पूछा- क्या हुआ?

तो कहने लगी- मन कर रहा है कि ख़ा जाऊँ ! पर इसके और भी काम हैं !

कह वह लण्ड पर जीभ फ़िराने लगी, क्या आनन्द आ रहा था। वो मेरे लण्ड को मुँह मे लेकर लॉलीपाप की तरह चूसने लगी, उसके मुँह का गर्म गर्म एहसास, उसके हाथों से लण्ड को सहलाना, मेरे लण्ड को मुँह से चोदना, बड़ा मजा आ रहा था।

मैं भी उसके सर को पकड़कर उसके मुँह में लण्ड पेले जा रहा था, वो भी मेरे लण्ड पर से अपने होंठों का दबाव कम नहीं कर रही थी।

मैं उसके मुँह मे ही झड़ जाना चाहता था पर उसने बीच में ही रोक दिया, मैं समझ गया कि मेरी बारी है।

मैं उसे बिस्तर के किनारे ले गया, दोनों टांगों को बिस्तर से नीचे झुला दिया, फ़र्श पर बैठकर मैंने उसकी चूत पर उंगली फ़िराना शुरु किया और दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को सहलाने लगा। मैं अपने होंठों से उसके चूत की पंख़ुड़ियों को सहलाने लगा, तो उसने सिसकारियाँ लेनी शुरु कर दी।

मैं भी जीभ से उसके चूत को चाटने लगा, एक उंगली से उसके छेद के ऊपर के भाग(क्लिट) को सहलाने लगा और जीभ को छेद में घुसाकर चोदने लगा, वो भी अपनी गाण्ड उचकाकर साथ देने लगी। मैं जीभ से ही चोदे जा रहा था, वो जोर जोर से सिसकारियाँ ले रही थी।

उसकी चूत बेहद गीली हो गई थी, उसकी चूत की ख़ुशबू मुझे मदहोश कर रही थी, मैं भी बड़े मन से उसके चूत को जीभ से चोदे जा रहा था। उसने अपनी टांगों से मेरा सर दबा दिया, मैं उसकी भग्नासा को हिलाये जा रहा था और जीभ से चाटे जा रहा था, वो बड़े जोर से स्ख़लित हुई।

मैं उठ ख़ड़ा हुआ कि अब कुछ देर तो वो कुछ नहीं करेगी, पर वो झट घुटनों के बल आकर मेरे लण्ड़ पर टूट पड़ी, मुँह मे लेकर जोर जोर से चूसने लगी जैसे मैं कहीं भागा जा रहा था।

उसका मुँह लगाना था कि मेरा लण्ड फ़िर रॉड बन गया, उसने मुझे बिस्तर पर लेटने का इशारा किया, मैं लेट गया और वो मेरे ऊपर आ गई और लण्ड को अपने चूत पर रगड़ने लगी और धीरे धीरे लण्ड पर बैठ कर उसे अपने चूत में घुसाने लगी, उसे दर्द हो रहा था, मैं भी कसाव महसूस कर रहा था। गर्मागर्म चूत का कसाव, पूरा लण्ड उसकी चूत में समा गया और वो मेरे होंठों को चूसने के लिये मेरे ऊपर लेट गई और धीरे धीरे गाण्ड उचका-उचका कर चुदवा रही थी।

मैं भी उसकी कमर को पकड़ कर नीचे से लण्ड को उसकी चूत में चोद रहा था।

क्या अनुभव था ! अदभुत ! ऐसे धीरे धीरे चोदने में मजा आ रहा था, पूरा लण्ड उसकी चूत के रस से सराबोर था, मेरी जांघों से उसकी गाण्ड के टकराने की आवाजों से सारा कमरा गूँज रहा था, वो धीरे धीरे तेज होने लगी, मैं भी तेज होने लगा, वो कराहने लगी तो मैं पागल हो उठा।

उसने मेरे होंठों को चूसना बंद कर दिया और सीधे हो कर चुदाई का आनन्द लेने लगी, उसकी आँख़ें बंद थी, अपने बालों को पकड़ कर वो उछ्ल रही थी, उसे चुदवाता देख़ मैं भी अपने चरम की ओर बढ़ने लगा। लगा कि मेरा लण्ड फ़ूट पड़ेगा, मैं भी नीचे से उसे कस-कस कर धक्के लगा रहा था, वो ऊऊऊउह्ह्ह्ह आ…आ……आ……ह की आवाजों स्ख़लित हुई और मेरा भी तापमान बढ़ाने लगी।

मैंने कहा- मैं खत्म होने वाला हूँ तो वो झट उतर गई और मेरे लण्ड को अपने होंठों में ले लिया।

मैं घुटनों पर आ गया और वो पेट के बल लेट कर लण्ड को चूसने लगी।

मैंने कई फ़व्वारे उसके मुँह में छोड़े और उसने सारा का सारा पी लिया, वीर्य पीने के बाद उसने बड़े प्यार से मेरे लण्ड को चाट कर साफ़ किया और मैंने एक जबरदस्त चुम्बन उसके होंठों को किया।

हम उसी हालत में रात को सो गये, सवेरे साथ नहाये, उसकी गाड़ी में हाई-वे पर चुदाई की और बाद में मैंने बिन शादी के हनीमून भी मनाया, हम कई जगह साथ घूमने गये।

यह सिलसिला दो साल चला।उसकी सास के मर जाने के बाद भी उसका पति उसे साथ न रखने के बहाने बनाता था। हमें फ़र्क क्या पड़ता था, उन दिनों के कई किस्से हैं, अगली फ़ुर्सत में आपको जरूर बताऊँगा। फ़िलहाल इस किस्से को आप लोगों ने पास किया या फ़ेल जरूर लिखें।

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