कुक्कू आंटी-2

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कहानी का पिछला भाग: कुक्कू आंटी-1

आंटी पलट कर कमर से ऊपर तक बेड पर लेट गई, पैर नीचे लटक रहे थे, शंकर ने एक शीशी उठाई जिसमें शायद शहद था, उसे उसने आंटी के चूतड़ों पर डाल दिया और शहद को दोनों कूल्हों पर धीरे-धीरे फ़ैलाने लगा, फिर उसे चाटने लगा।

आंटी सिसकार कर बोलने लगी- ऊउईई मां! शाबाश बेटा! आराम से!

गाण्ड चटाई के बाद शंकर आंटी के बदन की मालिश करने लगा, शंकर के हाथ तो जोर-जोर से चल रहे थे लेकिन जैसे ही उसके हाथ स्तनों पर जाते, उसकी रफ़्तार कम हो जाती और उनको देर तक मसलता। जब ज्यादा देर उसके हाथ वहाँ पर रहता तो आंटी उसके सिर में एक चपत लगाती और बोलती- बेटा थोड़ी जल्दी कर, अभी आखिरी ड्यूटी भी करनी है! जल्दी कर नहीं तो निक्की और सुनील आ जायेंगे।

उसके बाद जब मालिश पूरी हुई तो आंटी सीधी लेट गई और शंकर उसके ऊपर चढ़ कर अपना लण्ड आंटी की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा और आंटी सिसकारी लेती रही- ऊ उई ईई ईईईइ माआर गईईए!

तभी मेरे हाथ से खिड़की का पल्ला खिंच गया और आवाज़ आई।पल्ले की आवाज़ सुन कर आंटी उठ गई, आंटी मेरी तरफ देखती, उससे पहले मैं तुरंत पिछवाड़े के रास्ते बाहर आ गया।

आंटी ने मुझे देखा या नहीं मुझे नहीं मालूम!

उसके बाद रात को मुझे नींद नहीं आई। आप यह कहानी अन्तर्वासना.काम पर पढ़ रहे हैं।

करीब दो-दिन तक मैं सुनील के घर नहीं गया, तीसरे दिन आंटी मेरे घर आई, मुझको देखा और मुस्कुरा कर पूछा- बेटा, मम्मी कहाँ है?

मैं बोला- अन्दर रसोई में!

आंटी अन्दर गई, थोड़ी देर बाद आंटी चली गई, जाते-जाते बोली- बेटा, आजकल घर नहीं आते? मैं बोला- आंटी, सुनील तो गाँव गया है! आंटी- तो क्या हुआ? मैं तो हूँ।

और मुस्कुरा कर चल दी।

दूसरे दिन मैं दोपहर को सुनील के घर गया, दरवाज़े की घण्टी बजाई, आंटी ने दरवाजा खोला। मैंने नमस्ते की और पूछा- आंटी, सुनील कब आएगा? आंटी- सुनील की बात छोड़ो, अभी मैं हूँ, मुझसे बात करो। मैं बोला- क्या बात है आंटी, आज आप थोड़ी गुस्से में लग रही हो? आंटी- बेटा, अन्दर आओ।

मैं अन्दर गया और आंटी ने दरवाजा बंद कर लिया। आंटी मेरा हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम में ले गई और अपनी साड़ी उतरने लगी।

मैंने घबराने का नाटक किया, बोला- आंटी, आप यह सब क्या कर रही हो? आंटी- क्यों, उस दिन तो तुम खिड़की से यह सब तो देख रहे थे! मैं- किस दिन आंटी? आंटी- बनो मत पप्पू, उस दिन तुमने मुझे और शंकर को इसी बेडरूम में देखा था और बहुत दिनों से तुम मुझे और मेरे इन संतरों को घूरते हो। अब मेरी चौंकने की बारी थी।

आंटी- घबराओ नहीं, तुम मेरी बात मानो, मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी, बस मेरा कहना मानते जाओ, तुम्हें जन्नत की सैर कराऊँगी। मैं बोला- ठीक है आंटी। आंटी- दैट्स लाइक ए गुड बॉय!

अब आंटी स्लीवलेस ब्लाऊज़ और पेटीकोट में मेरे सामने थी, उन्होंने मुझे अपने गोद में बिठाया और अपने ब्लाऊज़ और ब्रा उतार कर मेरा मुँह अपने मम्मों में घुसा लिया जैसे कोई बच्चा अपनी माँ का दूध पी रहा हो।

आंटी- कैसा लग रहा है बेटा? मैं- आंटी, मुझे दूसरा वाला भी दूध पीना है। आंटी- क्यों नहीं, बेटा जब जहाँ का चाहो दूध पीयो! मैं- आंटी, मुझे शहद भी चाटना है। आंटी- चुप, बदमाश ऐसे नहीं बोलते बेटा! वो तो नौकर था, उसे मैं गुलाम की तरह रखती हूँ, नहीं तो उसके पर लग जायेंगे। तू तो मेरा डार्लिंग बेटा है। मैं- तो आंटी, आप मुझे जन्नत की सैर करवा दो! मैं इठला कर बोला।

आंटी- बेटा आराम से! अभी तो मेरी प्यास नहीं बुझी है।

और वे मेरी टी-शर्ट, पैन्ट उतारने लगी।

मैं- आंटी, मेरे रहते आप क्यों कष्ट कर रही हैं, मैं अपने कपड़े खुद उतार देता हूँ।

आंटी- नहीं बेटा मुझे अपने बेटे के कपड़े उतारने दो, आखिर बचपन में मैं सुनील के कपड़े उतारती थी, तू भी तो सुनील का दोस्त है।

मैं- हाँ आंटी, अब तो मैं आपका भी दोस्त हूँ।

फिर मेरे सारे कपड़े उतारने के बाद आंटी मेरे लण्ड को हाथ में लेकर सहलाने लगी। आंटी- कितना प्यारा लण्ड है बेटा! और चूसने लगी।

मैं- आंटी, आप शंकर का लण्ड क्यों नहीं चूसती?

आंटी- बेटा, मैंने कहा ना कि वह नौकर है, उसकी जगह मेरे पैरों में है, तुम्हारी जगह मेरे दिल में है। और उन्होंने मेरा मुँह एक बार फिर अपने वक्ष पर दबा दिया।

मैं- और अंकल की जगह? आंटी ने मेरे को अपने से अलग किया, उनका मुँह लाल हो गया, बोली- उस मादरचोद का नाम मत लो! साला दस साल से किसी के लायक नहीं है! साले को पीने से ही फुर्सत नहीं है! चुदाई क्या करेगा मेरी? मैं- सॉरी, आंटी!

आंटी- कोई बात नहीं, अब मैं तुम्हें जन्नत की सैर कराती हूँ। अब आंटी ने पेटीकोट और पैंटी निकाल फेंकी, मेरे होंठों से अपने होंठ लगाए और बेड पर लेट गई।

मैं भी उनके ऊपर लेट गया और बोला- आंटी, यह मेरा पहली बार है, डर लग रहा है। आंटी- मैं हूँ न बेटा, अब अपना लण्ड इसमें डाल! और आंटी ने अपनी चूत के दोनों लबों को खोल दिया। उसके बाद आंटी ने मेरा हौसला बढ़ाया और बोली- डरो मत बेटा! जन्नत की सैर करो।

मैंने अपना लण्ड आंटी की चूत में डाल दिया तो कुक्कू आन्टी बोलने लगी- शाबाश बेटा, ऊ..ऊई..ईई.. मा..अ बेटा जी भर के सैर कर ऊऊ.ऊउ. ईई.इ जन्नत की! आंटी सिसकारी लेती रही- उ.. उ… उइइ… माआ..अ.. बेटा उउ.. उइ.. इ.. मा… मज़ा आ रहा है!

करीब 15 मिनट बाद हम दोनों झड़ गये और फिर आंटी मुझे नंगा ही बाथरूम ले गई। पहले अपनी चूत साफ की फिर मेरा लंड अपने हाथों से साफ किया और मेरे लण्ड को चूमा।

बाथरूम से वापस आने के बाद मैं अपने कपड़े पहनने लगा तो वो बोली- बेटा, तुम्हारे कपड़े मैंने उतारे थे अब तुम्हे कपड़े मैं ही पहनाऊँगी। मुझे कपड़े पहनाने के बाद उन्होंने मेरे माथे को चूमा और मुझे विदा किया। और मैं अपने घर आ गया। उसके बाद अक्सर मैं सुनील के यहाँ जाता और जब भी मौका मिलता तो कुक्कू आंटी को अपनी गर्लफ्रेंड की तरह कभी उन्हें चूमता, कभी गले लगाता, कभी बाहर-बाहर उनके चूचे दबाता तो कभी अपनी बाहों में जकड़ लेता। अकसर वो मेरा लण्ड अपने हाथ से दबाती।

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