महकती कविता-3

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

महकती कविता-1 महकती कविता-2

कविता ने लण्ड को फिर से मसलना शुरू कर दिया। रोहण को फिर से तरावट आने लगी। ‘अरे चुद तो गई, अब क्या करना है…?’ ‘तुम्हारा सारा दम निकालना है… आज मेरी सुहागरात समझो… कुछ ना छोड़ो… बस अपना माल निकालते रहो। देखूँ तो जरा कितना दम है?’ ‘अरे नहीं, यह तो फिर से सख्त होने लगा है… प्लीज अब नहीं ना…!’ भैया, अपने लण्ड को तो देखो ना, बेचारे पर तुमने कितनी ही मुठ्ठ मारी होगी, अब तो उसे सही जगह पर घुसने दो…!’

कविता ने उठ कर रोहण का लण्ड अपने मुख में डाल लिया और उसे चूसने लगी। रोहण फिर से उबलने लगा। ‘रस पियोगे…? मेरी चूत भी रस छोड़ रही है।’

रोहण ने चूत चूसने की बात सुनी तो वो पागल सा हो उठा। उसने उठ कर जल्दी से उसकी चूत पर अपना मुख फ़िट कर लिया। कसक भरी मीठी गुदगुदी के कारण कविता चीखने लगी। ‘अरे मार डालोगे क्या…? बहुत गुदगुदी चल रही है। ओह्ह्ह्ह बस करो ना…’ वो खिलखिलाने लगी। कविता के आनन्द से रोहण को और जोश आ गया। वो भी उसका दाना होंठों से चूस कर उसे बेहाल करने लगा।

कविता ने एक झटके से अपनी चूत से उसका मुख अलग किया और हंसते हुये बोली- तुम तो मुझे यू ही झड़ा दोगे… पहले जरूरी काम तो कर लो! फिर कविता ने अपनी चिकनी गाण्ड उसके लण्ड के सामने उभार दी। ‘देखो फिर गाण्ड चुद जायेगी, फिर ना कहना कि गाण्ड मार दी।’ ‘तो मारो ना भैया… देर किस बात की है। मजे लेना है तो सबका लो…’

रोहण ने कविता की कमर में हाथ डाल कर उसे थाम लिया और लण्ड पर थूक लगा कर उसे कविता की गाण्ड से चिपका दिया। ‘मारो ना सैंया… ताजी अनछुई है…’ ‘तेरी सैंया की ऐसी तैसी… चोद दूंगा साली को…’ कविता फिर से खिलखिला उठी। पर दूसरे ही क्षण उसके मुख से चीख निकल गई। ‘अरे, ढीली छोड़ो ना… इतना कस कर छेद रखोगी तो कैसे घुसेगा…?’

कविता ने अपनी गाण्ड ढीली की और उसका लण्ड उसमें प्रवेश कर गया। जैसे छेद ने लण्ड को धन्यवाद कहा हो। बहुत कसी हुई गाण्ड थी। ‘बस अब धीरे धीरे… है ना… मेरी गाण्ड कभी चुदी नहीं है… ताजा फ़्रेश माल है… तकलीफ़ होगी…’ कविता ने विनती करते हुये कहा। ‘चिन्ता ना करो… तकलीफ़ तुम्हे नहीं मुझे होनी है इस कसी हुई तंग गाण्ड से तो…’

उसने धीरे धीरे आधा लण्ड ही घुसाया… फिर अन्दर बाहर करने लगा। कविता की गाण्ड चुदने से उसे भी आनन्द आने लगा था। पर रोहण ने बड़ी सफ़ाई से उसकी गाण्ड चोदते हुये अपना लण्ड उसकी गाण्ड में पहले की ही तरह अपना लण्ड पूरा ही घुसा दिया था। पर चूंकि कविता को प्यार से चोदा था इसलिये उसे दर्द नहीं हुआ। वो भी समझ गई थी कि लण्ड पूरा समा चुका है। उसने अपने सर को धीरे से तकिये पर रख लिया और अपनी आँखें बन्द करके अपनी गाण्ड चुदाने में लगी थी।

कविता ने गाण्ड इतनी ऊँची कर रखी थी कि उसकी चूत तक भी स्पष्ट नजर आ रही थी। रोहण ने अपना हाथ उसके नीचे घुसा दिया और उसकी चूत को भी सहलाने लगा। कुछ देर तक गाण्ड मारने के बाद फिर रोहण ने अपना लण्ड उसकी गाण्ड में से निकाल कर उसकी चूत खोल कर उसमें धीरे से घुसा दिया। ‘उईईईईईई मां… उस्स्स्स्स्स… कैसा मजा आया! चोद दे मेरे राजा।’

उसका लण्ड अब कविता की चूत में चल रहा था। रोहण का सुपारा आनन्द से फ़ूल कर मस्ता रहा था। उसके चोदने की गति बढ़ती जा रही थी। पीछे से लण्ड घुसाने से वो पूरा घुस रहा था। कविता को बहुत आनन्द आ रहा था। फिर उसकी चूत में से मस्ती का पानी निकल पड़ा। वो झड़ गई थी। फिर भी वो वैसी ही बनी रही। उसकी चूत झड़ कर पनीली हो गई थी। पर इससे रोहण को कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। वो मन लगा कर उसकी चूत चोद रहा था। पता नहीं इतनी लम्बे समय तक वो कैसे चोद रहा था?

तभी कविता दूसरी बार झड़ने को होने लगी। उसकी गाण्ड भी आगे पीछे चलने लगी और वो एक बार फिर से झड़ गई। रोहण मस्ती से अपनी आँखें बन्द किये सटासट धक्के पर धक्के मारे जा रहा था। कविता को दुबारा झड़ने के बाद तकलीफ़ होने लगी थी पर कुछ ही देर में वो फिर से जोश में आ गई थी।

चुदते चुदते कविता फिर से झड़ने को होने लगी। तभी रोहण आनन्द से सिसकारता हुआ झड़ने लगा। तभी कविता भी फिर से तीसरी बार झड़ने लगी।

अब तक रोहण दो बार झड़ चुका था और कविता तो झड़ झड़ कर ढीली पड़ गई थी। दोनों लेटे हुये सुस्ता रहे थे।

‘मजा आ गया भैया… क्या चुदी मैं तो… थेंक्स। क्या हो गया था तुम्हें… झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे?’ ‘कितनी बार चुदी हो?’ रोहण हाँफ़ता हुआ बोला। ‘बस एक बार देह शोषण हुआ था… उसका नतीजा राजा है…’ ‘और अब इसका नतीजा?’ ‘तो क्या! एक से भले दो…’ फिर खिलखिला कर हंसने लगी। रोहण उसे देखता ही रह गया।

‘तो मम्मी पापा का क्या हुआ…?’ मैं अभागी… एक कार दुर्घटना में दोनों शान्त हो गये थे। किराये का मकान था। किराया कहाँ से देते? सो खाली करना पड़ा… तब से दर दर की ठोकरे खा रही हूँ?

मुझसे शादी करोगी? नहीं कदापि नहीं… भूल जाओ ये सब… जहाँ तुम्हारे मम्मी पापा कहे वहीं शादी करना… मेरे तरह काले मुख वाली के बारे में सोचना भी मत… अरे निराश क्यों होते हो… तब तक के लिये तो मैं हूँ ना।

पर रोहण अपने में कुछ निश्चय कर चुका था… वो मुस्करा उठा। इस बार उसने कविता को बहुत प्यार से चूमा… और उससे लिपट कर सो गया जैसे वो उसी की बीवी हो। कामिनी सक्सेना

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000