चाची चार सौ बीस-2

‘यशोदा … सो गई क्या?’

‘उंह्ह … चाची, क्या है? ओह, खाना लग गया क्या?’

‘देख अंकल तुझे कुछ कहना चाह रहे हैं।’ फिर चाची पीछे मुड़ी और जाने लगी।

अंकल ने तुरन्त चाची का हाथ पकड़ लिया, चाची रुक गई।

‘अंकल आप तो नंगे हैं !’ मैं जान करके हंस पड़ी। उनका लण्ड सख्त था। सीधा खड़ा था। अंकल तो पूरी तैयारी के साथ थे शायद !

प्रियंका, जरा इसके हाथ थामना तो !’

चाची ने मेरे दोनों हाथ ऊपर खींच कर दबा दिये। अंकल मेरी टांगों की तरफ़ आ गये और उन्हें पकड़ कर दोनों और चौड़ा दिये। मेरी चूत खुल गई। अंकल का लण्ड हाय राम … कैसा कड़क और तन्नाया हुआ था। दिल में तेज खलबली मची हुई थी। मैं अपनी धड़कनों को कंट्रोल करने की भरपूर कोशिश कर रही थी।

‘अरे चाची … यह क्या कर रही हो … छोड़ो मेरा हाथ …’

‘यशोदा, राजेश अंकल आज तुझे मजा देना चाह रहे हैं … चुप से लेटी रह प्लीज !’

‘अरे नहीं, चाची मैं तो लुट जाऊंगी, बरबाद हो जाऊंगी … फिर मेरी शादी कैसे होगी?’

‘अरे पगली, इससे लुटने बरबाद होने का कोई वास्ता नहीं है … फिर शादी तो अलग चीज है, बावली है क्या?’

‘तो चाची … यह तो मेरे शरीर में घुस जायेगा ना…?’

‘तभी तो मजा आयेगा मेरी यशोदा रानी …’

‘लगेगी तो नहीं ना … चाची … बताओ ना …’

‘पहले तू घुसवा कर तो देख … मजा नहीं आये तो मना कर देना…’

मैंने अब अंकल की ओर देखा। वो मुझे देख कर प्यार से मुस्करा रहे थे। चाची ने मेरे दोनों गालों को सहला कर पुच्ची ले ली।

‘यशोदा जी … अब आगे चलूं … तैयार हो…?’

मैं अपनी चूत में लण्ड लेने को पूरी तरह तैयार थी। अंकल मेरी चूत के पास और सरक आये और मेरी चूत से अपना लण्ड अड़ा दिया। चाची ने मुझे देखा और प्यार से मेरे स्तन सहला दिये।

‘चल अब लण्ड लेकर देख ले…’

उनकी बात से मैं शरमा गई।

‘चाची मेरे पास ही रहना, यहीं बिस्तर पर पास बैठ जाओ ना।’

चाची ने झुक कर मुझे गले लगा लिया। अंकल ने धीरे से दबाव डाला और चूत में लण्ड अन्दर सरक गया।

‘चाची … अन्दर गया …’

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मैंने चाची को अपनी बाहों से जोर से दबा लिया। चाची ने मेरे सिर के बालों पर हाथ फ़ेरते हुये कहा- बस तो अब सब अपने आप हो जायेगा … ले ले मस्ती से …

उसने अपना लण्ड थोड़ा सा और अन्दर ठेल दिया। एक तेज मीठी सी खुजली हुई। बहुत मोटा था था लण्ड मेरी चूत के लिये।

‘अब तू ठीक से चुदा ले … मुझे जाने दे …’

‘नहीं चाची … प्लीज मत जाओ … आह्ह्ह चाची बहुत तेज मजा आ रहा है … ओह चाची …’

राजेश अब धीरे धीरे लण्ड को अन्दर बाहर करने लगा था।

‘प्रियंका … बहुत कसी है रानी इसकी चूत तो …’

‘नया माल भी तो है … बस जवानी की हवा अभी खाई ही है।’

‘चाची, बहुत मोटा है … बड़ी मुश्किल से चल रहा है !’

‘क्या मोटा है … लण्ड, चल अब खा ले … नसीब वालों को ही मिलते है ऐसे लण्ड !’

‘चाची अंकल से कहो ना, जरा तबियत से चोदें … जरा जोर से …’

‘खुद ही क्यों नहीं कह देती?’

‘अर र र … चाची शरम आती है … उफ़्फ़ अंकल … प्लीज जरा जोर से चोद देवें।’

‘यह बात हुई ना यशोदा … अच्छा लग रहा है ना…?’

चाची मेरे से अलग हो गई और मेरा पूरा तन अंकल को सौंप दिया। अंकल धीरे से प्यार से मुझे सहलाते हुये मेरे ऊपर लेट गये और चूत पर अपने लण्ड का पूरा जोर डाल दिया।

‘ओह्ह … चाची … उफ़्… मार डाला रे … अंकल … पूरा घुसेड़ दीजिये ना … प्लीज।’

अंकल का लण्ड धीरे धीरे धक्के देता हुआ अन्दर उतरने लगा। मेरी तो आनन्द के मारे आँखें बन्द होने लगी थी। कितना कसा-कसा अन्दर जा रहा था।

तब मुझे उसके जड़ पर दबने से जोर से दर्द हुआ। लण्ड पूरा खा चुकी थी मैं। वो मुझे प्यार से चूमता रहा। मेरे मम्मे दबा दबा कर और चूचक दबा कर मुझे आनन्दित करता रहा। मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने भी नीचे से चूत को लण्ड पर दबा दिया।

मैंने चाची की तरफ़ देखा। वो प्यार से मेरे सिरहाने बैठी मेरे बालों को सहला रही थी।

‘चाची, प्लीज कहो ना … अब जोर से चोदें…’

चाची जोर से हंस पड़ी …अरे भई, राजेश … क्या बच्चों जैसे खेल कर रहे हो … चोद डालो मेरी बच्ची को … फ़ाड़ दो इसकी प्यारी मुनिया को।

‘तो ये लो … यशोदा की चाची … आखिर कब तक खैर मनायेगी।’

फिर उसने अपने शॉट तेज कर दिये। लण्ड को चूत पर भींच भींच कर मारने लगा।

‘आह्ह्ह्ह … और जोर से अंकल … मारो ना … उफ़ चोद डालो … चाची … हाय मर गई रे …’

अंकल मुझे अपने नीचे दबा कर जोर जोर से चोद रहे थे था। जाने इस जवान चूत में कितनी मस्ती थी जो पिटी जा रही थी और जितना पिटती थी उतनी ही और जोर से लण्ड खाना चाह रही थी। मेरे चुदने की तमन्ना चाची ने पूरी करवा दी थी।

फिर तो जी भर कर मैंने अंकल का लण्ड खाया और फिर अपने आप को रोक नहीं पाई … एकदम से झड़ने लगी।

मेरे झड़ते ही अंकल ने अपना लण्ड मेरे मुख में ठूंसने की कोशिश की। पर मैंने अपना मुख इधर उधर करके बचा लिया। पर तभी चाची ने जल्दी से अंकल का लण्ड अपने मुख में लेकर जो तीन चार बार कस कर मुठ्ठ मारा, अंकल ने सारा का सारा वीर्य चाची के मुख में दान कर दिया।

मैंने बैठ कर अपनी चूत का गीलापन साफ़ किया और शमीज को नीचे सरका दी।

‘चलो अब भोजन कर लें?’ चाची बोली।

‘मेरा तो हो गया ना भोजन !’ मैंने कुछ इठलाते हुये और कुछ ठसकते हुये कहा।

उंहु, ये तो चोदन था, भोजन वहाँ मेज पर !’ चाची ने शरारत से मेरी चूची दबा कर बाहर की ओर इशारा किया।

कहानी अगले भाग में समाप्त होगी।

यशोदा पाठक 2517