चुदाई यात्रा-3

लेखिका : उषा मस्तानी

लौड़ा घुसने के बाद सतीश ने तेज धक्कों से मेरी चूत फाड़नी शुरू कर दी थी। मैं ऊह आह ऊह का हल्ला मचाती हुई चुदवाने लगी।

5 मिनट बाद मेरी चूत वीर्य से नहा गई। इसके बाद हम लोग 5 मिनट तक चिपक कर नहाए। नहाने के बाद मैंने सिर्फ छोटी स्कर्ट बिना पैंटी के और अमित ने नेकर पहन ली।

हम लोग कमरे में आ गए, बिस्तर पर लेट कर मैं और सतीश बातें करने लगे। सतीश मुझे इस समय एक अच्छा आदमी लग रहा था उसने मुझे अपना बना लिया था। मेरी शर्म पूरी दूर हो गई थी रात के 10 बज रहे थे, भाभी का फ़ोन आया कि वो लोग आ रहे हैं। भाभी और अमित साढ़े दस बजे आए।

मैंने और भाभी ने एक-एक जाम व्हिस्की का अमित और सतीश के लिए बनाया। मैं सतीश की जाँघों में और भाभी अमित की जाँघों पर नंगी होकर बैठ गईं। दोनों ने हमारी चूचियां और जांघें मसलते हुए हमें प्यार से रगड़ा और अपने जाम ख़त्म किये। हम सब लोगों ने उसके बाद खाना खाया। इसके बाद यह तय हुआ आज भाभी अमित के साथ और मैं सतीश के साथ सोऊँगी।

12 बजे मैं सतीश के कमरे में आ गई। सतीश से चिपक कर मैं लेट गई सतीश का नेकर मैंने उतार दिया और उसका लंड अपने हाथों में पकड़ लिया।

सतीश का लंड सहलाने में बड़ा आनन्द आ रहा था। सतीश मेरे बाल सहला रहा था, मैं चाह रही थी कि वो मेरी चुदाई करे लेकिन सतीश शांत लेटा हुआ था। उसका लंड पूरा कड़क हो रहा था।

मुझसे रहा नहीं गया, मैं बोली- सतीश चोदो ना मुझे ! मसल दो मुझे।

सतीश मुस्कराया और मेरे को सीधा करके बोला- अर्चना, मेरी एक बात मानोगी?

मैंने पूछा- क्या?

“एक मिनट रुको, मैं बताता हूँ !”

सतीश बाहर गया और एक पतला सा अपने लंड जितना लम्बा और लंड से थोड़ा मोटा बैंगन लेकर आया, बोला- प्लीज़ इसे अपनी चूत में डाल कर दिखाओ न। छोटेपन में एक बार मैंने अपनी मामी को चूत में बैंगन करते देखा था तबसे मुझे अपनी आँखों के सामने औरतों को बैंगन चूत में डलवाते हुए देखने में बड़ा मज़ा आता है। प्लीज़ करके दिखाओ न।

उसने मेरे हाथ मैं बैंगन पकड़ा दिया और मेरे गले में बाहें डालकर मेरे होंटों को चूसने लगा।

होंट चूसने के बाद सतीश बोला- रानी, मेरी इच्छा पूरी कर दो न?

मैंने कहा- ठीक है ! लेकिन किसी को बताना नहीं !

उसने हाँ में मुंडी हिलाई।

मैंने अपनी जांघें चौड़ी की और चूत में बैंगन घुसा लिया। पतला 7 इंची बैंगन बड़े आराम से अंदर तक घुस गया।

मैं अपनी टांगें फ़ैला कर चूत में बैंगन करने लगी, सतीश मुझे बैंगन करते हुए देख कर अपनी मुठ मारने लगा, उसे देखकर मैं मुस्करा रही थी, मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।

5 मिनट बाद सतीश ने उठकर बैंगन निकाल कर एक तरफ़ रख दिया और मेरे गालों पर पप्पियों की बारिश कर दी। मैंने उसे चूत मारने का इशारा किया उसने मुझे तिरछा लेटा कर मेरी चूत में अपना लंड घुसा दिया और प्यार से मेरे गालों और चूचियों को सहलाते हुए मुझे चोदने लगा।

मेरी चुदाई यात्रा की गाड़ी अपने अगले पड़ाव की तरफ दौड़ने लगी।

थोड़ी देर बाद पलंग पर सीधा लेटा कर सतीश मुझे चोदने लगा। सतीश अमित से बड़ा चूत का खिलाड़ी था। एक कुशल खिलाड़ी की तरह वो चोदते हुए मेरे सारे अंगों से खेल रहा था। मेरी गेंदों की शामत आई हुई थी, सतीश एक हैवान की तरह मेरे स्तनों की मसलाई, चुसाई कर रहा था, मेरी चूत पानी छोड़ रही थी और उसका लंड मेरे चूत रस से नहा रहा था, लौड़ा पूरे जोश के साथ मेरी सुरंग चौड़ी करते हुए उसकी खुदाई चोद-चोद कर कर रहा था।

कुछ देर बाद सतीश लेट गया और मुझे उसने अपने ऊपर लिटा लिया। मैं उसके ऊपर लेटी हुई थी, मोटा लंड मेरी चूत में अब आराम कर रहा था, शायद अगले हमले की तैयारी में था। उसका हाथ मेरे चूतड़ों पर घूम रहा था। उसने मेरी गांड में अपनी दो उँगलियाँ घुसा कर गांड चौड़ी की और साइड में पड़ा हुआ बैंगन मेरी गांड में डाल दिया।

मुझे तेज दर्द सा हुआ।

सतीश ने मुझे एक हाथ से कसकर दबा रखा था, थोड़ी देर में सात इंची पतला बैंगन मेरी गांड में घुस चुका था, मेरी आँखों में पानी आ रहा था। मैं सतीश पर चिल्ला रही थी- कुत्ते ! बाहर निकाल ! दर्द हो रहा है।

लेकिन सतीश ने मुस्कराते हुए मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और तिरछा कर दिया। बैंगन गांड में, लंड चूत में था। अमित ने लंड बाहर निकाल लिया और 3-4 बार मेरी गांड में बैंगन आगे पीछे किया, इसके बाद उसे बाहर निकाल लिया और मुझे प्यार करने लगा।

उसका लंड तना हुआ था। उसने 10 मिनट बाद लंड फिर चूत में डाल दिया और मुझे चोदना शुरू कर दिया, थोड़ी देर में उसने वीर्य मेरी चूत में उड़ेल दिया था, पूरी चूत वीर्य से नहा गई सतीश का वीर्य मेरी चौड़ी और खुल चुकी चूत से बाहर बह रहा था। मैं आनन्द से नहा गई, इतने आनन्द की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मैं सतीश से चिपक गई।

उसने दुबारा मेरी गांड में बैंगन आगे पीछे करना शुरू कर दिया। मुझे दर्द हो रहा था लेकिन उसने मुझे अपनी बाँहों में दबा रखा था। दस मिनट के बाद उसने मेरा गाण्ड से बैंगन निकाला तो मुझे बड़ी राहत मिली।

सतीश बोला- आओ अब एक एक छोटा पेग व्हिस्की का लेते हैं। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉंम पर पढ़ रहे हैं

हम दोनों ने एक एक छोटा पेग व्हिस्की का लिया। कुछ देर बाद मैं नशे में थी।

सतीश बोला- एक एक राउंड और हो जाए? तुम मेरा लोड़ा चूस कर खड़ा करो, एक बार और तुम्हें चोदना है।

सतीश की मर्दानगी में कुछ बात थी, मैं मना नहीं कर पाई और नशे मैं उसका लौड़ा चूस कर मैंने खड़ा कर दिया। उसने खड़े होकर लौड़े पर तेल लगाया और मुझे उल्टा कर दिया मुझे लगा पीछे से वो मेरी चूत मारेगा।

सतीश ने मेरे पेट के नीचे दो तकिए रखे और मेरी टाँगें चौड़ी कर मेरी चूत में अपना लंड घुसा कर 3-4 धक्के मारे। इसके बाद उसने लंड का सुपारा मेरी गांड के मुँह पर रख दिया। मेरी गांड में उसका लंड छू रहा था, उसने अपने हाथों से मेरी गांड में अपना सुपारा घुसा दिया। मैं उई करते हुए उछल पड़ी, उसका लंड फिसल गया। हम दोनों नशे में थे। उसने मुझे धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और मुझे दबा कर अपना लंड मेरी गांड पर मारा तो लंड का सुपारा गांड में प्रवेश पा गया।

सतीश औरतों की मारने में खिलाड़ी था। इस बार उसने मुझे उचकने का मौका नहीं दिया और मेरी पीठ पर अपने हाथों का जोर डाल दिया और चिल्लाते हुए बोला- रंडी, साली ! मज़े भी करने हैं और रो भी रही है? प्यार से ठोक रहा हूँ तो नखरे कर रही है? आज तक जिस पर भी चढ़ा हूँ, गांड फाड़े बिना नहीं छोड़ा है उसे !

और वो पूरी ताकत से अपना लंड मेरी गांड में ठूंसने लगा।

मैं जोर से चिल्ला रही थी- उई मर गई ! मर गई, छोड़ो सतीश, छोड़ो !

लेकिन औरतों की चूत से खेलने वाले खिलाडियों को पता होता है कब मारनी है और कब प्यार करना है इस समय मेरी मारी जा रही थी, सतीश लंड पेलता जा रहा था और बोलता जा रहा था- रंडी, साली ! रो क्यों रही है? मज़े कर एक बार गांड का मज़ा ले लोगी फिर चूत मराने का मन नहीं करा करेगा।

सतीश ने अपना लंड पूरा ठोक कर मेरी गांड में घुसा दिया मेरी आँखों में आँसू आ गए थे। उसने अब अपने हाथ मेरी पीठ से हटा लिए थे लेकिन अब मेरी गांड उसके लंड के कब्जे में थी, मैं छुतने की कोशिश कर रही थी लेकिन अब कोई फायदा नहीं था। उसने मेरे बालों को सहलाया और बोला- अब एक अच्छी औरत की तरह गांड ढीले छोड़ो, जब गांड चुदेगी तो वैसा ही मज़ा आएगा जैसे कि चलती गाड़ी में हवा लगती है।

मरती क्या नहीं करती ! मैंने अपनी गांड ढीली छोड़ दी।

सतीश ने मेरी कमर अपने दोनों हाथों से पकड़ कर गांड में गाड़ी दौड़ानी शुरू कर दी थी। मेरी चीखें निकल रही थीं, मेरी गांड मारी जा रही थी। कुछ धक्कों के बाद मुझे मज़ा आ रहा था लेकिन दर्द बहुत हो रहा था। बीच में सतीश ने मेरे चूचे पकड़ लिए थे और अब वो धीरे धीरे चोद रहा था। मेरी गांड फट गई थी !

5 मिनट के बाद सतीश ने अपना वीर्य गांड में छोड़ दिया। मेरी गांड की सुहागरात पूरी हो गई थी। सुबह के 2 बज रहे थे सतीश ने बाँहों में भरा और बोला- तकलीफ हुई उसके लिए माफ़ी। सुबह उठोगी तो बहुत अच्छा लगेगा।

मैं लेट कर सो गई।

अगले दिन दोपहर एक बजे नींद खुली मेरी गांड बहुत दुःख रही थी। उठकर भाभी के कमरे में झांक कर देखा तो भाभी और अमित नंगे सो रहे थे।

मैंने भाभी को उठाया, आँख मलते हुए भाभी उठीं, भाभी लंगड़ा रही थीं, बोली- 4 बजे सो पाई हूँ, अमित ने कल गांड की माँ चोद दी, दो बार चढ़ा साला ! बड़ा दर्द हो रहा है !

मुझे भी लंगड़ाते हुए देख कर बोलीं- वाह, तेरी गांड की भी सुहागरात मन गई। सतीश ने तो आज तक जो भी लोंडिया मिली है बिना गांड मारे नहीं छोड़ा है।

हम लोग बातें करते हुए बाथरूम में आ गई, साथ नहाते हुए हम दोनों ने एक दूसरे की गांड पर दवाई लगाई।

भाभी बोली- चल अच्छा है, तेरी गांड खुल गई। अब किसी मोटे लंड वाले से गांड चुदेगी तो दर्द ज्यादा नहीं होगा। यह अमित भी बड़ा हरामी है, तेरी गांड मारे बिना तुझे दिल्ली नहीं जाने देगा। साले का लंड भी मोटा है। एक बार अपनी कामवाली की कुंवारी गांड में डाल दिया था, बेचारी बेहोश हो गई थी, बड़ी मुश्किल से बीस हजार में मामला निपटा था। अब तेरी गांड खुल चुकी है, अमित का लंड तो घुस जाएगा लेकिन मज़े वाला दर्द भी बहुत होगा। साले को ठीक से गांड मारनी आती भी नहीं, लेकिन मज़ा अच्छा देता है।

हम दोनों नहाने के बाद अपने कुत्तों के लिए नाश्ता बनाने लगे।

3 बजे नाश्ता खाकर हम लोग बाज़ार घूमने चले गए। बाज़ार से खाना खा पीकर 9 बजे हम लोग लौटे।

पता नहीं अमित और सतीश ने आपस में क्या बात चीत की, कहने लगे कि हम दोनों को दो दिन के लिए बनारस जाना है। दोनों रात को बनारस चले गए, मैं और भाभी रात में गहरी नींद सोए, सुबह हम दोनों तरो ताज़ा थी, हम दोनों को बड़ा अकेला अकेला सा लग रहा था।

मैंने अपनी गांड की सुहागरात की पूरी कहानी भाभी को सुनाई। अगली रात को चूत कुनमुना रही थी, गांड में भी खुजली हो रही थी, दोनों सहेलियाँ लंड मांग रही थीं। भाभी और मैं नंगी होकर ब्लू फिल्म देखते एक दूसरे की चूत और चूचियों से रात 12 बजे तक खेलती रहीं। भाभी ने मुझे 2X2 खेल के लिए तैयार कर लिया था।

अगले दिन मुझे सतीश और अमित की याद आ रही थी। शाम को दोनों लोगों को वापस आना था और आज रात हम चारों को एक साथ सेक्स का खेल खेलना था, एक डर सा लग रहा था लेकिन यह सोचकर कि जब इतनी रंडीबाजी कर ली है तो यह भी सही ! दोबारा मौका मिले या नहीं ! घर जाकर तो गाज़र-मूली ही चूत में डालनी पड़ेगी।

कहानी जारी रहेगी।

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