उसका मेरा रिश्ता-2

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प्रेषिका : निशा भागवत

मैंने उसे अपने बिस्तर पर लेटा लिया और उससे चिपक गई।

“अरे भाभी सुनो तो…! यः क्या कर रही हैं आप…?”

यह सुन कर मुझे एकदम होश आ गया, मैंने आश्चर्य से उसे देखा- क्या हो गया देवर जी? अभी तो आप…

“पर यह नहीं… आप भाभी हैं ना मेरी… मैं यह सब नहीं कर सकता… प्लीज !”

उसने स्पष्ट रूप से मेरा अपना रिश्ता बता दिया। मुझे कुछ शर्मिंदगी सी भी हुई… बुरा भी लगा, गुस्सा भी आया…

पर मैंने अपने आप को सम्भाला…

“ओह अंकित… ऐसा कुछ भी नहीं है… बस तुझे नीचे देखा तो ऊपर ले लिया… अब सो जा…”

हम दोनों इस झूठ को समझते थे… पर एक नाकामयाब परदा सा डालने का प्रयत्न किया था। मैं दूसरी ओर करवट लेकर लेट गई और आत्मग्लानि से भर उठी।

इतना कुछ तो वो करने लगा था ! फिर यह ना नुकुर…? समझ में नहीं आई थी।

कुछ ही देर बाद पीछे से उसने मेरा पेटीकोट ऊपर सरकाया।

अरे ! यह अब क्या करने लगा है? मैं बस इन्तजार करने लगी। उसने मेरा पेटीकोट उठा कर मेरी कमर से ऊपर कर लिया और फिर से मेरे चूतड़ों की गोलाइयों पर हाथ घुमाना आरम्भ कर दिया। इस बार तो वो पक्का जानता ही था कि मैं नींद में नहीं हूँ ! फिर…?

मैंने उसे पीछे घूम कर देखा। वो मदहोशी में मेरे चूतड़ों को जोर जोर से दबा रहा था… सिसकार भी रहा था।

अब तो उसके हाथ मेरे सीने पर भी आ गये थे। एक हाथ उसका लण्ड पर भी था। मेरे तने हुये उरोज और भी कठोर हो गये… निप्पल कड़े होकर सीधे तन गए।

मुझे बहुत तेज आनन्द आने लगा था। उफ़्फ़्फ़ ! करने दो जो यह करना चाहता है।

उसके हाथ अब मेरे कठोर स्तन को दबा रहे थे। मेरी चूत तो पानी पानी हो रही थी। मेरा मन तो चुदने को बेताब होने लगा था।

“अंकित… प्लीज अब कुछ कर ना…”

“अह… नहीं भाभी… नहीं, आप बहुत अच्छी हैं…” कहकर उसने मुझे चूम लिया।

फिर तो मैं तड़प सी उठी। उसका कड़ा तन्नाया हुआ लण्ड मेरी गाण्ड में घुस कर छल्ले को कुरेदने लगा। उसके हाथों ने मेरी चूत पर कब्जा जमा लिया, मेरी चूत को वो जोर जोर से दबाने लगा। तभी उसके लण्ड ने जोर से मेरी गाण्ड में बिना लण्ड घुसाये ही छल्ले से लण्ड दबा कर वीर्य उगल दिया। मेरी चूतड़ों की गोलाइयाँ उसके वीर्य से गीली हो गई… चिकनाई से भर गई।

उफ़ ! यह क्या कर दिया लाला… बिन चोदे ही माल निकाल दिया?

मैंने धीरे से दो अंगुलियाँ अपनी चूत में घुसा ली और अन्दर-बाहर करके अपना भी रस निकाल लिया।

चलो मेरे लिये आज तो इतना ही बहुत है। धीरे धीरे जोश आने पर तो मुझे वो चोद ही देगा। मेरे दिल से एक ठण्डी आह निकल गई।

सवेरे मेरी आँख जल्दी खुल गई। देखा तो सवेरे के पांच बज रहे थे। मैंने देखा तो अंकित मेरे पास नंगा पड़ा बेहाल सो रहा था। मैं जल्दी से उठी और वीर्य जो कि सूख कर कड़ी परत की तरह जम गया था उसे धोने के लिये बाथरूम में चली आई। मैं तो स्नान करके तरोताजा हो गई फिर अपना तौलिया गीला करके अंकित के पास आ गई। उसका लण्ड भी सूखे वीर्य से सना हुआ था पर खड़ा हुआ था। साला अभी भी कोई चोदने का सपना देख रहा है।

मुझे हंसी भी आई पर ना चुदने का अफ़सोस भी हुआ। मैंने उसका लण्ड गीले तौलिये से अच्छी तरह से साफ़ कर दिया। आस पास का बिखरा हुआ वीर्य भी साफ़ कर दिया।

उसका लण्ड इस दौरान और भी सख्त हो गया था। मैंने खेल खेल में उसके लण्ड को हौले हौले से मुठ्ठ मारना आरम्भ कर दिया। मुठ्ठ मारने से उसका लण्ड और भी खिल गया। सुपाड़ा रक्ताभ होने लगा था। लण्ड फ़ूल कर मोटा और कठोर हो गया था। उसके टोपे को मैंने अपनी अंगुली से सहलाया। उसके चीरे पर गुदगुदाया…

चीरे में से दो बून्द रस की छलक आई। मैंने धीरे से उसे चाट लिया। फिर मन मचल गया… मैंने उसका लण्ड अपने मुख में ले लिया… और चूसने लगी।

उसकी सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी। मेरी सांसें अब तेज हो गई थी… कुछ करने को मन मचल गया था… मैं उसके ऊपर बैठ गई और उसकी कमर जकड़ ली… मैंने अपनी चूत को दोनों अंगुलियों से चौड़ा कर के उसका रक्ताभ सुपाड़ा अपनी खुली हुई चूत में डाल लिया।

“अरे भाभी… प्लीज ये मत करो… प्लीज… प्लीज !”

उसने अपनी आँखें खोल कर मुझे धकेलने की कोशिश की। पर मैंने इतनी देर में अपनी चूत उसके लण्ड पर दबा दी थी। लण्ड चूत को चीरता हुआ काफ़ी अन्दर तक उतर गया था।

“उफ़ ! यह क्या कर दिया भाभी… मुझे अब पाप लगेगा…!”

मैंने उसे और दबाते हुये लण्ड को पूरा चूत में घुसा लिया, उसके ऊपर मैं लेट ही गई।

“कुछ नहीं होगा देवर जी… यह सब काम तो देवर भाभी के रिश्ते में समाया हुआ होता है। देवर से तो भाभी को चुदना ही पड़ता है… फिर देवर तो भाभी को कब चोदने की तलाश में रहता ही है।”

“आह्ह्ह… मार डालोगी आप तो मुझे… बहुत मजा आ रहा है भाभी।”

“तभी तो… भाभियाँ देवर पर मरती हैं… बहुत मजा आता है देवर से चुदाने में…”

“बस करो भाभी… अब मार डालो मुझे ! जोर से भचीड़ दो ना…”

“अरे तू ऊपर आकर मुझे दबा कर चोद दे…”

उसने पलटी मारी और मेरे ऊपर सवार हो गया और जोर जोर से मुझे भचीड़ कर चोदनेलगा।

आह… साले ने बहुत नखरे दिखाये… पर पट ही गया ना।

“उह्ह्ह ! मेरे देवर… मार और जोर से… चोद दे मेरे राजा… दे… और दे… फ़ाड़ दे मेरी भोसड़ी राजा…”

“उफ़्फ़ मेरी भाभी… मार डालो मुझे आज… कितनी मस्त हो आप… आपकी ये चूचियां… कितनी कठोर हैं।”

मैं अपनी चूचियां दबने से बेहाल थी… इतनी जोर से तो मेरे पति ने भी नहीं चोदा था मुझे और अब क्या चोदेगा… अब तो देवर ही मेरा सब कुछ है।

उस सुबह मैं उससे दो बार चुद गई… एक बार उसने मेरी गाण्ड भी चोद दी थी।

उसने मुझे पूरी तरह से सन्तुष्ट कर दिया था… पर यह तो शुरूआत थी।

“देवर जी रात को तो बड़े नखरे दिखा रहे थे?”

“सच बताऊँ भाभी… आपको देख कर मैंने बहुत बार मुठ्ठ मारी थी… पर रिश्ता तो भाभी का था ना… फिर भैया का आदर… यह तो पाप होता ना…”

“कुछ पाप नहीं होता है… बस जब कोई दूसरा चोदता है तो लोग जल जाते हैं और जलकर बुरा भला कहते हैं… यदि उन्हें कोई चूत मिल जाये तो देखो… उनकी कैसी लार टपकती है।”

“पर जब आपने दीवार तोड़ ही दी तो मैंने आपका यह पाप अपने सर ले लिया…”

“नहीं यह पाप नहीं है… भैया तो अब कुछ कर नहीं सकते हैं ना… बाहर जाकर चुदवाने से तो बड़ी बदनामी होती, तो घर की बात घर में… कितना सुरक्षित और रोमान्टिक है ना। ना कहीं जाना ना कोई खतरा… देवर का टनाटन लण्ड… और भाभी की चिकनी रस भरी चूत…”

“धत्त भाभी… आप तो बेशरम होने लगी है…”

अंकित धीरे धीरे मेरे पास आने लगा और धीरे से उसने हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाये।

“शरमाओ मत मेरे देवर जी… अब तो मै आपकी हूँ… चाहे जैसे दबा लो मुझे… चाहो जब चोद दो मुझे…”

अंकित शरमा गया और पास आकर उसने मेरी दोनों चूचियों के मध्य अपना चेहरा दबा लिया।

उफ़्फ़ दैया ! मेरी तो धड़कनें बढ़ने लगी… चूचियां फ़ूलने लगी। चूत गुदगुदाने लगी… तभी अंकित के मोटे और टन्टनाते हुये लण्ड ने मेरी चूत पर दस्तक दी… उसने मुझे उठा कर बिस्तर पर पटक दिया… पलंग चूं चर्रर्रर्र करने लगा…

“अरे धीरे देवर जी… पलंग टूट जायेगा !!!” मैं उसके नीचे दब गई… मेरी सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी। मैं चुदने लगी…

निशा भागवत

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