रेशु आण्टी ने सिखा दिया-1

प्रेषक : प्रेम सिंह सिसोदिया

मैं अपनी कॉलेज की पढ़ाई के लिये गांव से अपनी आण्टी रेशू के यहाँ शहर में आ गया था। अब तक मुझे सेक्स के बारे में जरा भी ज्ञान नहीं था, यहाँ तक कि मेरा कभी वीर्य पात तक नहीं हुआ था। पर हाँ, मेरे दोस्त लण्ड चूत की बात करते थे। कुछ चोदने या चुदाई की बातें भी किया करते थे। पर मैं अब तक उनका मतलब नहीं जानता था।

मेरे शहर पहुँचते ही जैसे रेशू आण्टी खुश हो गई। उसकी नजरें मुझ पर पड़ गई थी और वो मेरे गठीले शरीर को बहुत ही चाव से निहारती थी। मैं एकदम से उन्हें समझ नहीं पाया… उनकी वासना भरी निगाहें तो मुझे प्यार भरी नजरें लगती थी। मैं तो गांव के और लोगों की भांति पैंट के अन्दर धारीदार कच्छा ही पहनता था। नहाता भी खुले आंगन में था। मेरी नूनी जिसे हम लण्ड कहते हैं, वो अनजाने में कभी कभी बस यूं ही खड़ी हो जाया करती थी, कभी नहाते समय तो कभी सवेरे सो कर उठते समय भी।

रेशू तो सवेरे सवेरे मेरी खड़े हुये लण्ड को देखने ही आती थी और देर तक निहारती रहती थी। मेरी खड़ी हुई डण्डी को देख कर बस मुस्कराती रहती थी जैसे मन ही मन में वो उसके साथ कुछ करने की कोशिश करती हो। एक बार तो नहाते समय रेशू आण्टी से रहा नहीं गया, उन्होंने मेरी नूनी को जैसे हल्का सा हाथ मार कर कह ही दिया, तभी मुझे एक विचित्र सी अनुभूति भी हुई थी।

“इसे नीचे ही रखा करो, तुम्हें शरम नहीं आती?” रेशू की आवाज में मजाक का पुट अधिक था।

मैं भोला भाला सा लड़का, कुछ समझा ही नहीं, सोचा कि आण्टी मजाक ही कर रही है। मैंने अपना खड़ा हुआ लण्ड उनसे कभी छुपाया नहीं था। उन्होंने इसका मतलब भी कुछ और ही निकाल लिया था। जब उन्होंने मेरा कोई विरोध नहीं पाया तो उनका साहस खुलने लगा।

एक दिन जब मैं कॉलेज जाने की तैयारी में था, तब वो अचानक मेरे कमरे में आ गई। मैं पैंट पहन ही रहा था कि उन्होंने मुझ रोक दिया।

“पहन लेना कपड़े, ऐसी जल्दी क्या है?”

और वो मेरे समीप आ गई, मेरी खड़ी नूनी को थोड़ा सा हिला कर बोली- यह क्या ऐसे ही खड़ा रहता है…?

उनके इस अजीब से प्रश्न पर मैं चौंक सा गया। पर उनके लण्ड पर हाथ लगाने से मुझे एक सुहानी सी सिरहन हुई। वो मेरी हालत देख कर हंस पड़ी।

“आण्टी, ऐसे ना करो ऐसे, गुदगुदी लगती है !”

पर मुझे लगा कि वो ऐसा और करे।

“अच्छा बैठ जा … और अब बता, सच में गुदगुदी लगती है तुझे?”

मुस्करा कर उन्होंने मेरी डण्डी को पकड़ कर और हिला दिया। मेरा लण्ड सख्त होने लगा था। मेरे शरीर में जैसे सनसनाहट सी होने लगी। मैंने अपने पांव समेट लिये और नूनी पर अपना हाथ रख कर उसे छुपा लिया।

“अरे आण्टी आप जब हाथ लगाती हैं तो नूनी में बहुत जोर से गुदगुदी लगती है… पर जब मैं हिलाता हूँ तो बिल्कुल नहीं लगती है।” मैंने कुछ शरमा कर कहा।

“सुन, अपना हाथ नूनी पर से हटा और मुझे आण्टी मत कहा कर, रेशू कहा कर !”

मैंने ज्योंही हाथ हटाया तो रेशू ने मेरी नूनी कठोरता से पकड़ ली। उनकी आँखों में गुलाबीपन आ गया। उनके शरीर में एक कंपकंपाहट सी होने लगी। उनके सीने की चोली कसने सी लगी, तब उन्होंने उसे हिला कर सेट किया।

छातियाँ तेज सांस के कारण ऊपर नीचे होने लगी थी। मैं तो जैसे ऊपर से नीचे तक कांप गया। एक नया अनुभव, एक नई तरंग… एक नया आनन्द…

“रेशू जी, मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा है… ये मुझे क्या हो रहा है?”

मैंने उसका हाथ कलई पर से पकड़ लिया, पर अपना लण्ड नहीं छुड़ाया, मजा जो आ रहा था।

“गज्जू, अपना कच्छा तो थोड़ा उतार… तेरा लण्ड तो शानदार लगता है।”

ओह, तो लण्ड इसे कहते है। इससे तो लड़कियों को चोदा जाता है, मैं कुछ कहता उसके पहले ही रेशू ने धारीदार चड्डी का मेरा नाड़ा वो खींच चुकी थी। रेशू ने चड्डी नीचे कर दी और मेरी डण्डी पकड़ कर उसे ललचाई नजर से देखने लगी।

“आह, गज्जू, इतना बड़ा है तेरा लण्ड तो, तूने कभी किसी लड़की को चोदा है क्या?”

“जी, क्या चोदा? आप ठीक से बतायें रेशू जी।”

रेशू की चोदने वाली बात मेरी समझ से परे थी। कभी किसी को चोदा जो नहीं था ना। वो थोड़ा सा उठी और मेरी गोदी में बैठ गई और मेरे चेहरे को थाम कर मुझे प्यार करने लगी, चूमने लगी। मेरा खड़ा लण्ड उसके चूतड़ों के बीच दरार में धंसा जा रहा था।

“आप मुझे बहुत प्यार करती है रेशू जी?”

मुझे ये सब बहुत भाने लगा था। मेरा लण्ड कठोर हो कर बहुत जोर मार कर उसकी गाण्ड के छेद तक को ठोकर मार रहा था।

“हाँ हाँ ! बहुत सारा प्यार करती हूँ, चल बिस्तर पर चल, तुझे सिखाती हूँ कि प्यार कैसे करते हैं।”

मुझे तो रेशु के इस काम में बड़ा ही आनन्द आ रहा था। सारा शरीर एक अजीब सी गुदगुदी और रोमान्च से भरा जा रहा था। मेरा शरीर जैसे मीठी सी अग्नि में सुलग सा रहा था। तभी मेरा ध्यान रेशू के उन तड़पते हुये सीने के उभारों पर चला गया। मुझे याद आया कि दोस्त चूचियों के लिये भी दबाने को कहते थे। अनजाने में ही मेरे हाथ उस ओर बढ़ चले और रेशू के तने हुये कठोर वक्ष को मैंने दबा डाला। रेशू जैसे तड़प गई।

“इसे दबाते हैं ना रेशु जी?”

“हाय, जालिम, मेरी जान निकाल देगा क्या, और जरा मस्ती से दबा … आह…”

उसने मुझे घसीटते हुये बिस्तर पर ला पटका। मेरा कच्छा मेरे पांव से फ़िसलत हुआ नीचे उतर गया। रेशू ने मुझे बिस्तर पर पटक दिया और मेरे नंगे शरीर पर सवार हो गई। अपना पेटीकोट ऊंचा करके मेरी कड़क डण्डी पर अपनी नंगी चूत को घिसने लगी। मैंने भी जोश में उन्हें लिपटा लिया और अपने आप ही उनके होंठों को अपने होंठो में भर लिया। रेशू जैसे अपने होश में नहीं थी। उसने मेरा लण्ड पकड़ कर ऊपर नीचे करके घिसने लगी। मेरा शरीर वासना की आग में जलने लगा, मेरा लण्ड बहुत ही कड़क हो चुका थी, लग रहा था कि कोई उसे जोर से रगड़ कर घिस डाले। मेरा तन वासना से भर गया … मुझे जाने कैसा कैसा लगने लगा, जिन्दगी में पहली बार कोई युवती मुझसे इस प्रकार लिपट कर प्यार कर रही थी। जैसे मेरी जान निकलने को थी। एकाएक मेरा लण्ड उसकी गीली सी चूत में घुस सा गया। पर फिर बाहर निकल आया। इसी लण्ड को तोड़ने और मरोड़ने ने मेरी डन्डी ने जैसे आग उगल दी। मुझे लगा कि मेरा पेशाब या कुछ ऐसा ही मेरे लण्ड में से जोर से छूट गया। यह मेरा प्रथम वीर्यपात था … प्रथम स्खलन…

मेरा सारा जोश तेजी से ठण्डा पड़ता जा रहा था। रेशू को भी पता चल गया था कि मेरा माल निकलता जा रहा है। वो थोड़ा सा खीजती हुई मेरे ऊपर से उतर गई। उसकी वासना की आग बुझ नहीं पाई थी।

“अरे बाप रे, रेशू आण्टी, मुझे तो देर हो गई।” कॉलेज में देर हो जाने से मैं घबरा गया था।

“रेशू जी, लौट कर आऊँगा तो प्यार करेंगे।”

“अरे नहीं, उनके सामने नहीं करना, अकेले में चुपके से, यानि कल सुबह को, उनके ऑफ़िस जाने के बाद।”

“हाँ ठीक है… ठीक है…”

कुछ सुना अनसुना सा करके मैंने झटपट कपड़े पहने और कॉलेज की ओर दौड़ लगा दी। मुझे नहीं पता था कि यह प्यार तो अकेले में करने का होता है और इस तरह का प्यार तो छुप छुप के ही हो सकता है। मैं तो मन ही मन सोच रहा था रेशू आण्टी कितनी अच्छी है, मुझे तो वो खूब प्यार करती हैं।

कहानी जारी रहेगी।

प्रेम सिंह सिसोदिया